चर्चा मंच-अंक-26चर्चाकार-ललित शर्मासप्ताहांत रविवार के रुप मे होता है, लेकिन रविवार का प्रारंभ शनिवार से हो जाता है एक उमंग हिलोरें लेती है आने वाले दिन के स्वागत मे, कई मंसुबे बांधे जाते हैं क्या करना है कल। जब रविवार धीरे धीरे सरकता हुआ सोमवार की तरफ़ बढता है तो फ़िर नजर आने लगता है, वही भागम-भा्ग दफ़तर की बाजार की घर की। धीरे –धीरे गाड़ी पटरी पर आती है तो फ़िर शनिवार आ जाता है और फ़िर वही रविवार्। चलिए आलस छोडते है और मै ललित शर्मा आपको ले चलता हुँ आज की चर्चा पर…….. |
क्या यही स्वतंत्र अभिव्यक्ति का मंच है की किसी पर भी कुछ भी थोपो .... क्या ब्लागिंग जीनियस करते है आदि आदि ....क्यों न अब ब्लागिंग को राम राम कर लीतीन सालो का ब्लागिंग का सफ़र .... खूब पोस्टे पढी.... खूब लिखी और खूब टिप्पणियां दिलोजान से अर्पित की . हिंदी ब्लागिंग को देखा जाना और समझा .... बस यही समझ में आया है की बस वही खींच तान, लल्लू चप्पू बाजी, संयमित मर्यादित नपे तुले शब्दों का अभाव , जो कहते है की गुटबाजी है इसे समाप्त किया जाना चाहिए वे ही गुटबाजी को बढ़ावा दे रहे है . किसी को भी अमर्यादित टीप भेज देना और वरिष्ट होने का दावा करना ...कहाँ तक उचित है . किसी की भी खिल्ली उड़ाना और किसी भी विषय पर विचार किये वगैर अपनी बात थोप देना आदि आदि यहाँ .... बखूबी देखने को मिल रही है |
जब प्यार हुआ मुझेयही दिन थे (मई-जून), वेबदुनिया में आए अभी छ: महीने हुए थे। घर से कभी बाहर नहीं निकला था, इसलिए इन दिनों मैंने वेबदुनिया छोड़ने का मन बना लिया था, लेकिन कहते हैं ना कि समय से पहले और किस्मत से ज्यादा किसकी को कुछ नहीं मिलता, ऐसा ही कुछ मेरे साथ हुआ, मुझे |
राजनीति और कूटनीति के सबक सीखती जनतासुबह ग्यारह बजे कोर्ट परिसर के टाइपिस्टों की यूनियन के चुनाव थे। मुझे चुनाव में सहयोग करने के लिए ग्यारह बजे तक क्षार बाग पहुँच जाना था। लेकिन कई दिनों से टेलीफोन में हमिंग आ रही थी। दो दिनों से शाम से ही वह इतनी बढ़ जाती थी कि बात करना मुश्किल हो जाता |
जीने लगे इलाहाबाद में [बकलमखुद-121]…खटीमा के जंगलों से रूमानियत कि शुरुआत और फिर … चंद्रभूषण हिन्दी के वरिष्ठ पत्रकार है। इलाहाबाद, पटना और आरा में काम किया। कई जनांदोलनों में शिरकत की और नक्सली कार्यकर्ता भी रहे। ब्लाग जगत में इनका ठिकाना पहलू के नाम से जाना जाता है। |
कहाँ जा रही हो हिंदी ???ब्लॉग जगत में हिंदी और देवनागरी लिपि अपने कंप्यूटर पर साक्षात् देखकर जो ख़ुशी होती है, जो सुख मिलता है, जो गौरव प्राप्त होता है यह बताना असंभव है, अंतरजाल ने हिंदी की गरिमा में चार चाँद लगाये हैं, लोग लिख रहे हैं और दिल खोल कर लिख रहे हैं, |
गुरु ने ब्लागिंग से राम राम की तो वो सब कुछ नाम खोलकर लिखूंगा की बाबा हिल जाओगे... |
तन्हा जिन्दगी के सफर में ...!!!तन्हा जिन्दगी के सफर में ,तेरा साथ चाहिए ,गिर न जावूँ कहीं ठोकर खा के ,तेरा हाथ चाहिए । जिन्दगी गुजर गयी तन्हाईयों के साथ ,अब तुमसे खुशियों कि सौगात चाहिए । मंसूबे जो बने वो पूरे न हुए ,हो जाये कुछ ऐसा अकस्मात चाहिए । जिन्दगी की किश्ती को किश्तों में न | चिट्ठाजगत के २० शीर्ष ब्लॉग और उनकी अलेक्सा रेंकचिट्ठाजगत की सक्रियता सूची देख आज कोतुहल जगा कि देखा जाये चिट्ठाजगत के शीर्ष २० सक्रीय ब्लोग्स की अलेक्सा रेंक क्या है | अलेक्सा.कॉम किसी भी वेब साईट पर आने वाले पाठकों (ट्राफिक) के आधार पर रेंक तय करती है | अलेक्सा रेंक में १००००० अंकों से नीचे की |
शादी के रस्मो-रिवाजशादी के रस्मो-रिवाज लड़कियों की शादी होने प्रक्रिया काफी सारे रस्मो-रिवाज लेकर आती है। उन्हीं प्रक्रियाओं में से एक है लड़के द्वारा लड़की का देखा जाना। या यूं कहें इंटरव्यू लेकर सलेक्ट करना। तो आज की हास्य फुहार यहीं से। लड़का होने वाली दूल्हन को देखने | 'मुश्किल नहीं संभलना"- एक नाटक, जेल बन्दियों का'अवितोको' ने इस बार थाणे केन्द्रीय काराग्र्ह में 10 दिवसीय थिएटर वर्कशॉप का आयोजन किया. अंतिम दिन 11 बन्दियों ने अपने द्वारा तैयार 35 मिनट का नाटक 'मुश्किल नहीं संभलना' प्रस्तुत किया.'टाइम्स ऑफ इंडिया की यह रिपोर्ट. अंग्रेजी में है |
दिसंबर माह की महिमासाथियों, दिसंबर का महीना बीत चुका है ,इस महीने की बीतने से मेरा मन उसी प्रकार दुखी है जिस तरह देश भर के शिक्षक अपने स्वर्णकाल के समाप्त होने से ज्यादा , सिब्बल युग के अविर्भाव के कारण दुखी हैं. मेरे पास इस माह का गुणगान करने | बुढ़ापे का सन्नाटा कैम्पसबुढ़ापे के सन्नाटे कैम्पस मेंप्रतिदिन सिकुड़ते माँ-बाप का वज़न इतना कैसे हो जाता हैकि बोझ लगने लगते हैं वे...वो--जिसके पास हो डायटिंग की ऐसी तकनीक जो कम कर सके बोझ लगने वाला यह एकस्ट्रा फ़ैटमुझे तलाश हैएक ऐसे डॉक्टर की |
सैलून या कहें गुमटियां हैं सही जगहमेरे लिये सैलून में बैठना कभी रोमांचकारी या दिलचस्प नहीं रहा। छुटपन में कुर्सी पर लकड़ी के पाये के सहारे ऐनक के सामने बैठा दिया जाता था,,क्योंकि ऊंचाई मार खाती थी। अब बड़े होते गए, तो वहां पर झट से, जब तक बाल काले थे, हेयर कटिंग करा कर आ जाते थे। लेकिन | "मुकुल-ब्लॉगवार्ता"समय चक्र परशब्दों का सफर मनोरमा व हेलो मिथिला ...अजित वड़नेरकर जी तथा श्यामल सुमन जी को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएंके साथ आज की वार्ता प्रारम्भ करने की अनुमति चाहता हूँ आज की वार्ता का | हवा हो लिए फौजी बाबाउत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर ज़िले की बात है। कभी मां फूलमती, बाबा चौकसी नाथ के मंदिर के करीब एक फौजी का निवास हुआ करता था। निवास के नाम पर कोई सरकारी आवास नहीं था। बल्कि एक 16 फुट लंबे और दस फिट चौड़ा कमरा ही |
जैसे को तैसा !!!चुन्नी भैया खेत से घर की तरफ आ रहे थे ! पैरों में चप्पले डाले और वो रेगिस्तान का चुरू का रेतीला इलाका !! चप्पलों की आवाज़े पटा पट पटा पट !!! पीछे से चल रहे एक गंजे ने आवाज़ लगाईं: अरे ऐ पट पटिये कोनसा गाँव हैं !चुन्नी भैया को पट पटिया नाम पसंद नहीं आया | कैसा लगेगा यदि आपका जन्मदिन हो और किसी अपने के मरने का समाचार आ जाये??आप भी सोंच रहे होंगे की मै पगला गया हूँ मगर जनाब अगर ऐसा हो जाए तो क्या होगा? जरा सोंचिये बिचारिये,ये अलग बात है आज तक आपने ऐसी कल्पना नहीं की है.परन्तु ये असंभव तो नहीं.भगवान करे आपके साथ ऐसा कभी ना हो मगर भगवान की लीला अपरम्पार है इससे तो किसी को इनकार | योगेंद्र मौदगिलविगत कईं दिनों तक ब्लाग जगत से दूर रहा आज समक्ष हूं पर समझ में नहीं आ रहा कि क्या पोस्ट करूं.....चलिये.... एक आयोजन के कुछ फोटो दिखाता हूं...पानीपत में विगत २५ दिसंबर २००९ को एक भव्य कवि सम्मेलन सम्पन्न हुआ जिसमें सरदार प्रताप सिंह फौजदार (आगरा) |
टर्म इंश्योरेन्स क्या होता है.. भाग ७ (What is Term Insurance…) Part 7टर्म जीवन बीमा योजना लेने के लिये जो राशि आपने खर्च की है उस राशि पर आपको आयकर की धारा ८०(सी) के तहत छूट मिल जायेगी। और बची हुई राशि जो कि आमतौर पर हम लोग इंश्योरेन्स के लिये निवेश करते हैं, उसे अच्छे म्यूचयल फ़ंड में या अच्छे शेयर में निवेश करें, तो आपको |
फ़र्रुखाबादी हे ट्रिक विजेता (166) : सुश्री अल्पना वर्मा ताऊ रामपुरिया द्वारा ताऊजी डॉट कॉम पर - नमस्कार बहनों और भाईयो. रामप्यारी पहेली कमेटी की तरफ़ से मैं समीरलाल "समीर" यानि कि "उडनतश्तरी" फ़र्रुखाबादी सवाल का जवाब देने के लिये आचार्यश्री यानि कि हीरामन "अंकशाश्त्री" जी को निमंत्रित करता हूं कि वो... |
पत्नियों को समझने के 10 Commandments...खुशदीप खुशदीप सहगल देशनामा -पर तो लो जी जनाब, आज आपको वो चीज़ बताने जा रहा हूं जिसके लिए बड़े बड़े दार्शनिकों ने अपने पूरे जीवन का तज़ुर्बा लगा दिया...पत्नी को समझने के लिए इन *Ten Commandments* पर बस गौर कीजिए...बिना कोई हाथ-पैर मारे व... |
सैयां भये कोतवाल........... करण समस्तीपुरी मनोज - पर -- करण समस्तीपुरी जब सैयां भये कोतवाल तो बीवी चौकीदारो तो होगी..... ! अब कोई इसे परिवारवाद कहे कि वंशवाद लेकिन हमें तो भैय्या ई में कौनो ऐब नहीं दीखता है। आज-कल बिहार के एगो पूर्व सांसद जी को ई बहुत खल र... |
वोट न देने की सजा बलात्कार…???लीक से हटकर इंसाफ की एक डगर उत्तर प्रदेश का शाहजहाँपुर जिला कई विशेषताओं के लिए जाना जाता है। एक ओर उत्तर में घने जंगलों से घिरा हुआ, अतीत में दलदल के रूप में प्रसिद्ध, तराई का क्षेत्र है, जिसे मेहनतकश सिख किसानों ने अपने खून-पसीने से सींच कर स्वर्ग बना |
जब पहली बार मुझे डी डी ए पर गर्व महसूस हुआ --दिल्ली के एक हरित क्षेत्र की सैर ---यूँ तो कॉलिज के दिनों में अक्सर उसके पास से जाना होता था। लेकिन किस्मत देखिये की सारी ज़वानी गुज़र गयी और हम एक बार भी इस जगह फटक तक न सके। लेकिन कहते हैं न की दाने दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम। इसी तरह जब तक संयोग नहीं होता तब तक आप कुछ नहीं कर सकते |
....... शब्द - प्रयोग पर आपकी क्या राय है , अनुरोध है कि बताएं ---आज पोस्ट के रूप में मैं एक टिप्पणी को रख रहा हूँ , जिसे अभी-अभी श्री ज्ञानदत्त पाण्डेय जी की 'मानसिक-हलचल' पर करके आ रहा हूँ ... बात शब्द-प्रयोग को लेकर है , आप लोगों की राय अपेक्षित है ---पूरी टिप्पणी यूँ है |
ब्लागरों को आने लगी एक-दूजे की याद- जल्द होगी मुलाकातछत्तीसगढ़ के ब्लागरों में एक दूसरे के प्रति कितना लगाव है इसका पता इसी बात से चलता है कि एक-दो दिन फोन पर बातें नहीं होती हैं तो ऐसा लगता है कि कुछ छूट सा गया है। इसी के साथ मिलने की कशिश भी रहती है। कल सुबह जब हमने बीएस पाबला जी का फोन खटखटाया तो
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आजकल ललित चर्चा के चर्चे हर ज़ुबान पर,
जवाब देंहटाएंसबको मालूम है और सबको ख़बर हो गई...
जय हिंद...
सुंदर रही आज की समग्र चर्चा.
जवाब देंहटाएंलग रही है ललित कला....बेहतरीन चर्चा....टिप्पणी कैसी कैसी ध्यान आकर्षित कर रही है..वहाँ जाते हैं अब!!
जवाब देंहटाएंललित जी,
जवाब देंहटाएंआपकी भी धाक जम गयी अब...चर्चा बहुत शानदार रही...!!!
आभार ...!!
ये चर्चा बड़ी है मस्त-मस्त
जवाब देंहटाएंआज की चर्चा .. बहुत अच्छी, सटीक।
जवाब देंहटाएंवाह बेहतरीन चर्चा ललित जी , बहुत ही सुंदर । मुझे बहुत खुशी है कि अब चर्चाकार ब्लोग्गर्स की संख्या बढती जा रही है , बहुत ही जरूरत थी इस बात की । मजा आ गया
जवाब देंहटाएंअजय कुमार झा
बढ़िया चिट्ठा चर्चा..हर प्रकार के खजाने यहाँ पर उपलब्ध है..धन्यवाद जी!!
जवाब देंहटाएंबढिया चर्चा बडे भाई.
जवाब देंहटाएंबडे भाई क्षमा सहित जानना चाहता हुं कि इस ब्लाग मे तोते को लैप टाप पर काम करते हुये हेडर मे दिखाया गया है, इस बिम्ब का इस चिट्ठा चर्चे से क्या कोइ विशेष सम्बन्ध है. सामान्य बोध और पौराणिकता.
जवाब देंहटाएंसंजीव तिवारी जी!
जवाब देंहटाएंव्लॉगिंग तो लैप-टॉप या कम्प्यूटर पर ही लिखी जाती है ना!
इसलिए यह तोतारूपी चर्चाकार चर्चा लिख रहा है।
तोता इसलिए कि चर्चा में तो आपके ब्लॉगों की नकल ही की जाती है और तोता नकल का पर्याय माना जाता है। बस यही कारण है कि एक तोता यहाँ लैप-टॉप लिए हुए चर्चा मंच सजा रहा है और दूसरी ओर का तोता चर्चा बाँच रहा है।
बेहतरीन चर्चा...
जवाब देंहटाएंललित शर्मा जी ने सम्भाल लिया है मोर्चा!
जवाब देंहटाएंइसीलिये करते हैं सुन्दर सुन्दर और विस्तृत चर्चा!!
वाकई ललित चर्चा. सुंदर.
जवाब देंहटाएंरामराम.
sundar charcha chithhon ki badhiyaa hai !!
जवाब देंहटाएंvaah...badhiya charcha...
जवाब देंहटाएंwah wah wah
जवाब देंहटाएंआपकी संक्षिप्त प्रतिक्रिया भी चर्चा के साथ
जवाब देंहटाएंहोनी चाहिए ... नहीं तो यह 'संग्रह' कहा जाएगा
'चर्चा' नहीं ,,,