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गुरुवार, जनवरी 07, 2010

"हर तरफ भेड़ियों का राज हो गया है" (चर्चा मंच)

"चर्चा मंच" अंक-22


 

चर्चाकारः डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"

 

                                           आज का "चर्चा मंच" सजाते हैं-

 

  
सिर्फ 25 कवियों की “कविता-पच्चीसी” से-

 

 

शिल्पकार के मुख से

हर तरफ भेड़ियों का राज हो गया है!!! - *आज एक गजलनुमा रिठेल कर रहा हूँ..... My Photo

हर तरफ भेड़ियों का राज हो गया है, 

 

मासूम आदमी ही शिकार हो गया है

ढूंढ़ते हैं कोई तो ब......

'अदा'

कुछ ख़ास है नहीं कहने को...
My Photo

आरज़ूओं के समंदर इतने छोटे हो गए हैं

कि ख्वाहिशों की बूंदें नज़र आने लगी हैं

अब हम कहाँ  हँसते  हैं पहले की तरह

दुखती सी इक रग है जो सताने लगी है ......

मेरा नाम प्रणय शर्मा हैं ..मैं दिल्ली का रहने वाला हूँ ..दिल्ली विश्वविद्यालय ये स्नातक की डिग्री प्राप्त कर चुका हूँ ..मैंने दिल्ली विश्वविद्यालय P.G diploma in Journalism n Mass communication भी प्राप्त कर फिलहाल पत्रकारिता में अपना भविष्य बनाने में जुट गया हूँ ..मैं अपने परिवार से बेहद प्यार करता हूँ .सूफी संगीत मुझे प्रिय हैं .नुसरत फतह अली खान साहब का मैं दीवाना हूँ..लिखना मेरा शौक हैं ..मेरी कोशिश यही रहेगी की मैं जो लिंखू अच्छा लिंखू और आशा करता हूँ की आप सब लोग मेरा ब्लॉग पढ़े और मुझे और लिखने के लिए प्रेरित करते रहे ..आप सबके सहयोग की जरुरत हैं

 

 

शायरी-9 क्यूं कहते हो.......
क्यूं कहते हो.......
क्यूं कहते हो मेरे
साथ कुछ भी बेहतर नही हो
तासच ये है के जैसा चाहो वैसा नही होता
कोई सह लेता है कोई कह लेता है
क्योकि ग़म कभी ज़िंदगी से बढ़ कर नही होता
आज अपनो ने ही सीखा दिया हमे
यहाँ ठोकर देने वाला हर पत्थर नही होता
क्यूं ज़िंदगी की……..

प्रबलप्रताप सिंह

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मेरी आवाज़ सुनो...!
नव वर्ष मुबारक....!  चटकती कलियों को किलकती गलियों कोनव वर्ष मुबारक....! नील गगन के बादल कोममता के आँचल कोनव वर्ष मुबारक....! पूरब की पुरवाई कोसागर की गहराई कोनव वर्ष मुबारक....! अनेकता के साथों कोएकता के हाथों कोनव वर्ष मुबारक....! पतझर की बहार कोमाटी के........


कवि सम्मेलन में आज पधारे हैं यू के से प्राण शर्मा .अपनी प्यारी सी कविता के साथ...
हमकोजब मालूम हुआये रामू के बारह बच्चे हैं,अपने पास बुला कर हमने समझाया-ऐ भाई !45 की उम्र में तेरे 12 बच्चे ?राम दुहाई !महंगाई के दौर मेंये बारह बच्चेजनना ठीक नहीं है,गुरबत मेंइतनेबच्चों का बापूबनना ठीक नहीं हैरामू बोला-साहेबये तो ऊपर वाले कीमाया हैउस


मेरा फोटो

shubhdaa saxena
जन्मदिन मुबारक

मम्मा,

जन्मदिन मुबारक!

तुम बहुत अच्छी हो माँ, सब से अच्छी।

अपने दिल को दुखाया न करो।

मैं हूँ ना!

क्या मेरा होना तुम्हें खुश रखने के लिए पर्याप्त नहीं?


My Photo

RANJANA
न जाने क्यों

न जाने क्यों
हर वो चीज मुझे अपनी सी लगती है
जिसमे बनावट नहीं
न जाने क्यों
हर वो सोच खुदा सी लगती है
जिसमे गिरावट नहीं……



पारुल

 

सिलवटों में
ज़हन की सिलवटों में अब यूं ही बल रहने दोबड़ी मुश्किल से तो कोई यहाँ पे आता है

गिरिजेश राव
आखराँ न होता कोई आखिरी मंजर

ढूढ़ा किए दौरे जहाँ कि तिलस्म का राज खुले
देख लेते तुम्हारे अक्षर तो यूँ क्यूँ भटकते?
न भटकते तो कैसे होती हासिल ये शोख नजर
देखा तो पाया, आखराँ न होता कोई आखिरी मंजर।…

अभिनव उपाध्याय
भोर का तारा

कभी चांद था मेरा वो कभी रात अलबेली
भरी भीड़ में भी अक्सर कर जाता मुङो अकेली
बातें करता, रातें करता और करता गुस्ताखी।
लेकिन झट से मांग भी लेता था मुझसे वो माफी
गर हो जाए गुस्सा तो बस एक मुस्कान थी काफी।

नवनीत “नीरव”

इस बार की सर्दी...
१कितनी ही सर्दियाँ आई गयीं,किन्तु इस बार की सर्दी का,अंदाज कुछ निराला है ,कोहेरे से ढका है पूरा दिन ,और रात को पड़ता पाला है ।सूरज की क्या बिसात जो,लोगों को दर्शन दे जाये,कैसे झांके चाँद बेचारा ?कुहासे ने घूंघट जो डाला,कहीं मफलर, कहीं स्वेटर,कहीं टोपी ,
संजीव 'सलिल'


सरस्वती वंदना : २ -संजीव 'सलिल'
सरस्वती वंदना : २ संजीव 'सलिल'*हे हंसवाहिनी!, ज्ञानदायिनी!!अम्ब विमल मति दे...*जग सिरमौर बने माँ भारत.सुख-सौभाग्य करे नित स्वागत.नव बल-विक्रम दे...*साहस-शील ह्रदय में भर दे.जीवन त्याग-तपोमय कर दे.स्वाभिमान भर दे...*लव-कुश, ध्रुव-प्रह्लाद हम बनें.मानवता

भारतीय वास्तु शास्त्र

श्रीगणेश

श्रीगणेश
श्रीगणेश निर्माण का, अच्छा मुहरत देख ।
धन मांगे पण्डित सभी, मूषक देखे रेख ।।
देखे मूषक रेख , न मांगे एकहुं पैसा ।
भवन रेख तत्काल ,भवन हो महलों जैसा ।।
कह `वाणी´ कविराज, होय नही बांका केश ।
जो जग बांका होय, मनाय प्रभु श्रीगणेश ।।

महफूज़ अली

लखनऊ, उत्तर प्रदेश, India


मैं झूठ नहीं बोलता: महफूज़
मैं झूठ नहीं बोलता,साहित्य-कला से क्या लेना?ढूंढ रहा खुद को मैं,खोज रहा प्याज़,छिलकों में.....
“सगीर अशरफ का एक मुक्तक”
उत्तर प्रदेश के नूरपुर (जनपद:बिजनौर) निवासी पोस्टमास्टर(H.S.G.-II) के पद से सेवा-निवृत्त शायर, पत्रकार व साहित्यकार "सग़ीर अशरफ़" ने अपनी बेगम “ज़मीला अशरफ़” को देख कर एक शेर ही जड़ दिया- “ज़मीला अशरफ़”
तुम्हारा यूँ दबे होठों में हँसना अच्छा लगता है,…

लोहे का घर – सात (शरद कोकास)

 


जब वह काले कोट वाला

कैफ़ियत मांगेगा तुमसे

बग़ैर टिकट यात्रा की

तुम चुपचाप

हवाले कर दोगे उसके

जेब में पड़ी

बची हुई बोतल


तुम पर तो वैसे ही

थकान हावी है ।


- शरद कोकास

मेरा फोटो
मुकेश कुमार तिवारी
ज़मीन से कटा हुआ आदमी
हवा,जिसे हम महसूस कर लेते हैंबहते हुये / शरीर को छूकर गुजरते हुये या कभी सूखते हुये पसीने की ठण्डक में ना,तो मैंने उसे देखा है ना ही आपने देखा होगा वही हवा, जब भर जाती है इन्सान में तो नज़र आती है उनकी बातों में जो ज़मीन के ऊपर ही उतराते हुये ना किसी के…..

chandrabhan bhardwaj
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I am a very energetic person believing that every moment of live is young and full of energy. Never feel low always think high in life. अभी तक मेरे चार ग़ज़ल संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। (१) पगडंडियाँ (२)शीशे की किरचें (३)चिनगारियाँ (४)हवा आवाज़ देती है. पाँच ग़ज़ल संग्रहों में गज़लें सम्मिलित हैं। देश की विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में गज़लें प्रकाशित होती रहीं हैं। आकाशवाणी से भी रचनाओं का प्रसारण होता रहा है। १९७० से अनवरत रूप से ग़ज़ल लेखन में संलग्न हूँ।

कभी लगती हकीक़त सी

कभी तो ख्वाब सा लगता कभी लगती हकीक़त सी;
मिली है ज़िन्दगी इक क़र्ज़ में डूबी वसीयत सी.
उसूलों के लिए जो जान देते थे कभी अपनी,
वे खुद करने लगे हैं अब उसूलों की तिजारत सी.

AlbelaKhatri.com

गुरूपर्व के परम पावन अवसर पर हिन्दू और हिन्दूत्व के रक्षक दशमेश श्री गुरु गोबिन्दसिंहजी के श्रीचरणों में..
जिकर आफ़ाक़ न हुन्दा,तां धरती दा बिन्दू किंवें होन्दा ?जिकर होन्दा न अक्खां विच पाणी,तां फेर सिन्धु किंवें होन्दा ?हिन्दू अते सिक्ख विच फ़र्क करण वालयो ,तवारीख कैन्दी एजिकर सिक्ख न होन्दा,तां फेर हिन्दू हिन्दू किंवें होन्दा ?
कुछ दिन से मेरा घर भी परीखाना हुआ है

मकबूलजी

शासर का नाम जो भी हो काम बहुत बड़ा है। आपने अच्छे शेर पढ़वाए आपके हम शुक्रगुजार हैं। खासकर के शेर-

बजते हैं ख़यालों में तेरी याद के घुंघरू
कुछ दिन से मेरा घर भी परीखाना हुआ है।

मौसम ने बनाया है निगाहों को शराबी
जिस फूल को देखूं वही पैमाना हुआ है।
आप महान हैं। पूरा हिंदुस्तान हैं। आपके आगे हम तो रेगि महफिल की शान हैं। आपके आगे हम तो रेगिस्तान हैं।
पं. सुरेश नीरव

पवन “चन्दन”

डाकिया या कुरियर
डाकिया आता थाएक थैला लाता था, मोहल्‍ला जुटता था, जिज्ञासा और आशा के बीच, हरेक आनंदित होता थाडाकिया पता पूछता तो हर कोईघर तक छोड़ आने को तैयार होता था, अपने आप को धन्‍य समझता था, आज पहली बात तो, डाकिया नहीं आताकोरियर आता है वह, पता पूछता हैतो कोई नहीं बताता, पड़ोस में……….

KUSUM THAKUR
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रंग मंच सा लागे मुझको

रंग मंच सा लागे मुझको
मैंने दुनिया को न जानी ।
जीवन के इस रंग मंच पर
कलाकार अद्भुत देखी है
निर्देशन का पता नहीं है
होती है अभिनय मन मानी
मैंने दुनिया को न जानी ।

A.U.SIDDIQUI
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"मध्य प्रदेश" के दिल अदब, और अमन के शहर "भोपाल" में रहता हूं कम लफ़्ज़ों मैं ज़्यादा कहने की कोशिश करता हूं, इस वजह से शायरी मेरे दिल के क़रीब है । क्योंकी एक कहानी को शायरी की दो लाइनो में बयां किया जा सकता है। शायरी हर दिल का आईना है, "लाख परदों में रहो राज़ ये सब खोलती है शायरी सच बोलती है,शायरी सच बोलती है..."
 
कितने मौसम बीत गये हैं

कितने मौसम बीत गये हैं  दुख सुख की तन्हाई में।

दर्द की  झील नहीं सूखी  है  आँखों की अंगनाई में।

बीती  रातों  के झोंके  आए जब मेरी  अंगनाई में।

दिल  के  सौ  सौ  टांके टूटे  एक एक  अंगड़ाई  मे…………

स्वप्नदर्शी
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डा. सुषमा नैथानी,.................. रोज़मर्रा की जद्दोजहद और अपने माईक्रोस्कोपिक जीवन के बाहर एक खिड़की खुलती है, कभी ब्लॉग मे, कभी डायरी मे, कभी किसी किताब के भीतर, कभी स्मृति मे और कभी सचमुच की वादियों मे...... खुली आँखों के सपने देखती हूँ। अलग-अलग अनुपात मे इन्ही को मिलाकर रोज़-ब-रोज़ दुनिया की आड़ी -तिरछी तस्वीर बनाने मे मशरूफ़. लिखना इसी तस्वीर को बनाने और तोड़ने की निहायत व्यक्तिगत क़वायद है.

दोस्तियाँ

कितनी अजीब बात है कि सोचे समझे जीवन में,
बिन मौसम बरसात से टपक जाते है दोस्त
और समझ चली जाती है पानी भरने,
कोई पूछता है किस तरह की दोस्ती?
कैसे दोस्त? कब मिले?

…..

हिन्दी ब्लॉगर्स अवार्ड

"संवाद डॉट कॉम" द्वारा दिये जाने वाले 2009 के श्रेष्ठ ब्लॉगर्स सम्मानों हेतु ऑनलाइन नॉमिनेशनजारी है।

देख खुली कमरे की खिड़की, चुपके से घुस आती है।

- संभव शर्मा -

 

 

                                                

यह ठण्डी जब आती है।

ह हमको बहुत सताती है।

सूरज से पर डरती है,

देख उसे छुप जाती है।…….

अब आज्ञा दीजिए!
आज के लिए बस इतना ही……..!

19 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया और मेहनती चर्चा.

    बधाई.

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  2. शास्त्री जी, सुंदर चर्चा-शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  4. शास्त्री जी कविता चर्चा जम रही है संयोजन भी मनमोहक ....

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  5. इस चर्चा के पीछे आपकी मेहनत साफ़ झलक रही है .... आभार.

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत बढिया और मेहनत से की गई चर्चा!!!

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  7. बहुत सुन्दर सबकी खबर मिल जाती है यहाँ आकर |कुछ दिन बीजी हो गया था अत: आ नहीं पाया !!!

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  8. सार्थक शब्दों के साथ अच्छी चर्चा, अभिनंदन।

    जवाब देंहटाएं

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