"चर्चा मंच" अंक-22
चर्चाकारः डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
आज का "चर्चा मंच" सजाते हैं-
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हर तरफ भेड़ियों का राज हो गया है!!! - *आज एक गजलनुमा रिठेल कर रहा हूँ..... हर तरफ भेड़ियों का राज हो गया है, मासूम आदमी ही शिकार हो गया है ढूंढ़ते हैं कोई तो ब...... | आरज़ूओं के समंदर इतने छोटे हो गए हैं कि ख्वाहिशों की बूंदें नज़र आने लगी हैं अब हम कहाँ हँसते हैं पहले की तरह दुखती सी इक रग है जो सताने लगी है ...... |
मेरा नाम प्रणय शर्मा हैं ..मैं दिल्ली का रहने वाला हूँ ..दिल्ली विश्वविद्यालय ये स्नातक की डिग्री प्राप्त कर चुका हूँ ..मैंने दिल्ली विश्वविद्यालय P.G diploma in Journalism n Mass communication भी प्राप्त कर फिलहाल पत्रकारिता में अपना भविष्य बनाने में जुट गया हूँ ..मैं अपने परिवार से बेहद प्यार करता हूँ .सूफी संगीत मुझे प्रिय हैं .नुसरत फतह अली खान साहब का मैं दीवाना हूँ..लिखना मेरा शौक हैं ..मेरी कोशिश यही रहेगी की मैं जो लिंखू अच्छा लिंखू और आशा करता हूँ की आप सब लोग मेरा ब्लॉग पढ़े और मुझे और लिखने के लिए प्रेरित करते रहे ..आप सबके सहयोग की जरुरत हैं
शायरी-9 क्यूं कहते हो.......क्यूं कहते हो.......क्यूं कहते हो मेरे साथ कुछ भी बेहतर नही हो तासच ये है के जैसा चाहो वैसा नही होता कोई सह लेता है कोई कह लेता है क्योकि ग़म कभी ज़िंदगी से बढ़ कर नही होता आज अपनो ने ही सीखा दिया हमे यहाँ ठोकर देने वाला हर पत्थर नही होता क्यूं ज़िंदगी की……..
| प्रबलप्रताप सिंहमेरी आवाज़ सुनो...!नव वर्ष मुबारक....! चटकती कलियों को किलकती गलियों कोनव वर्ष मुबारक....! नील गगन के बादल कोममता के आँचल कोनव वर्ष मुबारक....! पूरब की पुरवाई कोसागर की गहराई कोनव वर्ष मुबारक....! अनेकता के साथों कोएकता के हाथों कोनव वर्ष मुबारक....! पतझर की बहार कोमाटी के........ |
कवि सम्मेलन में आज पधारे हैं यू के से प्राण शर्मा .अपनी प्यारी सी कविता के साथ...हमकोजब मालूम हुआये रामू के बारह बच्चे हैं,अपने पास बुला कर हमने समझाया-ऐ भाई !45 की उम्र में तेरे 12 बच्चे ?राम दुहाई !महंगाई के दौर मेंये बारह बच्चेजनना ठीक नहीं है,गुरबत मेंइतनेबच्चों का बापूबनना ठीक नहीं हैरामू बोला-साहेबये तो ऊपर वाले कीमाया हैउस |
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पारुल
सिलवटों मेंज़हन की सिलवटों में अब यूं ही बल रहने दोबड़ी मुश्किल से तो कोई यहाँ पे आता है |
गिरिजेश रावआखराँ न होता कोई आखिरी मंजरढूढ़ा किए दौरे जहाँ कि तिलस्म का राज खुले | अभिनव उपाध्यायभोर का ताराकभी चांद था मेरा वो कभी रात अलबेली |
इस बार की सर्दी...१कितनी ही सर्दियाँ आई गयीं,किन्तु इस बार की सर्दी का,अंदाज कुछ निराला है ,कोहेरे से ढका है पूरा दिन ,और रात को पड़ता पाला है ।सूरज की क्या बिसात जो,लोगों को दर्शन दे जाये,कैसे झांके चाँद बेचारा ?कुहासे ने घूंघट जो डाला,कहीं मफलर, कहीं स्वेटर,कहीं टोपी , | संजीव 'सलिल'सरस्वती वंदना : २ -संजीव 'सलिल'सरस्वती वंदना : २ संजीव 'सलिल'*हे हंसवाहिनी!, ज्ञानदायिनी!!अम्ब विमल मति दे...*जग सिरमौर बने माँ भारत.सुख-सौभाग्य करे नित स्वागत.नव बल-विक्रम दे...*साहस-शील ह्रदय में भर दे.जीवन त्याग-तपोमय कर दे.स्वाभिमान भर दे...*लव-कुश, ध्रुव-प्रह्लाद हम बनें.मानवता |
भारतीय वास्तु शास्त्रश्रीगणेशश्रीगणेश | मैं झूठ नहीं बोलता: महफूज़मैं झूठ नहीं बोलता,साहित्य-कला से क्या लेना?ढूंढ रहा खुद को मैं,खोज रहा प्याज़,छिलकों में..... |
“सगीर अशरफ का एक मुक्तक”उत्तर प्रदेश के नूरपुर (जनपद:बिजनौर) निवासी पोस्टमास्टर(H.S.G.-II) के पद से सेवा-निवृत्त शायर, पत्रकार व साहित्यकार "सग़ीर अशरफ़" ने अपनी बेगम “ज़मीला अशरफ़” को देख कर एक शेर ही जड़ दिया- “ज़मीला अशरफ़”तुम्हारा यूँ दबे होठों में हँसना अच्छा लगता है,… |
जब वह काले कोट वाला कैफ़ियत मांगेगा तुमसे बग़ैर टिकट यात्रा की तुम चुपचाप हवाले कर दोगे उसके जेब में पड़ी बची हुई बोतल तुम पर तो वैसे ही थकान हावी है । - शरद कोकास |
मुकेश कुमार तिवारी ज़मीन से कटा हुआ आदमीहवा,जिसे हम महसूस कर लेते हैंबहते हुये / शरीर को छूकर गुजरते हुये या कभी सूखते हुये पसीने की ठण्डक में ना,तो मैंने उसे देखा है ना ही आपने देखा होगा वही हवा, जब भर जाती है इन्सान में तो नज़र आती है उनकी बातों में जो ज़मीन के ऊपर ही उतराते हुये ना किसी के….. |
I am a very energetic person believing that every moment of live is young and full of energy. Never feel low always think high in life. अभी तक मेरे चार ग़ज़ल संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। (१) पगडंडियाँ (२)शीशे की किरचें (३)चिनगारियाँ (४)हवा आवाज़ देती है. पाँच ग़ज़ल संग्रहों में गज़लें सम्मिलित हैं। देश की विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में गज़लें प्रकाशित होती रहीं हैं। आकाशवाणी से भी रचनाओं का प्रसारण होता रहा है। १९७० से अनवरत रूप से ग़ज़ल लेखन में संलग्न हूँ। कभी लगती हकीक़त सीकभी तो ख्वाब सा लगता कभी लगती हकीक़त सी; |
गुरूपर्व के परम पावन अवसर पर हिन्दू और हिन्दूत्व के रक्षक दशमेश श्री गुरु गोबिन्दसिंहजी के श्रीचरणों में..जिकर आफ़ाक़ न हुन्दा,तां धरती दा बिन्दू किंवें होन्दा ?जिकर होन्दा न अक्खां विच पाणी,तां फेर सिन्धु किंवें होन्दा ?हिन्दू अते सिक्ख विच फ़र्क करण वालयो ,तवारीख कैन्दी एजिकर सिक्ख न होन्दा,तां फेर हिन्दू हिन्दू किंवें होन्दा ? | कुछ दिन से मेरा घर भी परीखाना हुआ हैमकबूलजी शासर का नाम जो भी हो काम बहुत बड़ा है। आपने अच्छे शेर पढ़वाए आपके हम शुक्रगुजार हैं। खासकर के शेर- |
डाकिया या कुरियरडाकिया आता थाएक थैला लाता था, मोहल्ला जुटता था, जिज्ञासा और आशा के बीच, हरेक आनंदित होता थाडाकिया पता पूछता तो हर कोईघर तक छोड़ आने को तैयार होता था, अपने आप को धन्य समझता था, आज पहली बात तो, डाकिया नहीं आताकोरियर आता है वह, पता पूछता हैतो कोई नहीं बताता, पड़ोस में………. |
रंग मंच सा लागे मुझको रंग मंच सा लागे मुझको |
कितने मौसम बीत गये हैंकितने मौसम बीत गये हैं दुख सुख की तन्हाई में। दर्द की झील नहीं सूखी है आँखों की अंगनाई में। बीती रातों के झोंके आए जब मेरी अंगनाई में। दिल के सौ सौ टांके टूटे एक एक अंगड़ाई मे………… | दोस्तियाँ कितनी अजीब बात है कि सोचे समझे जीवन में, | हिन्दी ब्लॉगर्स अवार्ड"संवाद डॉट कॉम" द्वारा दिये जाने वाले 2009 के श्रेष्ठ ब्लॉगर्स सम्मानों हेतु ऑनलाइन नॉमिनेशनजारी है। देख खुली कमरे की खिड़की, चुपके से घुस आती है।
- संभव शर्मा -
यह ठण्डी जब आती है।
व ह हमको बहुत सताती है। सूरज से पर डरती है, देख उसे छुप जाती है।……. |
अब आज्ञा दीजिए! आज के लिए बस इतना ही……..! |
बहुत बढ़िया और मेहनती चर्चा.
जवाब देंहटाएंबधाई.
अच्छी चर्चा ...!!
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा।
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी, सुंदर चर्चा-शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा शास्त्री जी!
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंललित जी सिर्फ मजाक :)
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी कविता चर्चा जम रही है संयोजन भी मनमोहक ....
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया.
जवाब देंहटाएंरामराम.
bahut hi sundar aur sarthak charcha.
जवाब देंहटाएंबडिया लगी आज की चर्चा धन्यवाद्
जवाब देंहटाएंइस चर्चा के पीछे आपकी मेहनत साफ़ झलक रही है .... आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया और मेहनत से की गई चर्चा!!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सबकी खबर मिल जाती है यहाँ आकर |कुछ दिन बीजी हो गया था अत: आ नहीं पाया !!!
जवाब देंहटाएंसार्थक चर्चा
जवाब देंहटाएंसार्थक शब्दों के साथ अच्छी चर्चा, अभिनंदन।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा।
जवाब देंहटाएंआपकी इस समर्पित भावना की जितनी प्रशंसा की जाए, कम है।
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सुरक्षा के नाम पर इज्जत को तार-तार...
बारिश की वो सोंधी खुश्बू क्या कहती है ?
अच्छी चर्चा.
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