"चर्चा मंच" अंक-31 चर्चाकारः डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
आज का "चर्चा मंच" सजाते हैं- दिल्ली से खबर दे रहे हैं एम.वर्मा पढ़िए उनकी यह सुन्दर रचना- जज़्बात लाशों के बँटवारे हैं ~~ - लाशों के बँटवारे हैं मुट्ठी में पर नारे हैं * चाँद जब ग्रहण में था वे बोले क्या नज़ारे हैं * डूब गय साहिल पर ही जितने कश्ती उतारे हैं * फूल से ख.. | उदयपुर राजस्थान से डॉ श्रीमती अजित गुप्ता लिखतीं हैं- अभी समीरलाल जी की पोस्ट आयी, "दूर हुए मुझसे वो मेरे अपने थे"। मन में कहीं उथल-पुथल सी हुई, रिश्तों को लेकर। मेरा यह आलेख समीर जी के लिए - सकून आता जाएगा कई दिनों से मन में एक उद्वेग उथल पुथल मचा रहा है, लेकिन समझ नहीं आ रहा कि क्या है? तभी डॉक्टर पति के पास एक बीमार आया, उसे फूड पोइजनिंग हो गयी थी और वह लगातार उल्टियां कर रहा था। मुझे मेरी उथल पुथल भी समझ आ गयी। दिन रात मनुष्यता को समाप्त करने वाला जहर हम पीते हैं, शरीर और मन थोड़ा तो पचा लेता है लेकिन मात्रा अधिक होने पर फूड पोइजनिंग की तरह ही बाहर आने को बेचैन हो जाता है। मन से निकलने को बेचैन हो जाता है यह जहर। कुछ लोग गुस्सा करके इसे बाहर निकालते हैं, कुछ लोग झूठी हँसी हँसकर बाहर निकालने का प्रयास करते हैं और हम स्याही से खिलवाड़ करने वाले लोग स्याही को बिखेर कर अपनी उथल-पुथल को शान्त करते हैं। बच्चा जब अपने शब्द ढूंढ नहीं पाता तब वह स्याही की दवात ही उंडेल देता है। शब्द भी पेड़ों से झरे फूलों की तरह होते हैं, वे झरते हैं और ………. | युवा दखल अशोक कुार पाण्डेय का यह लेख भी पढ़ लें- मोबाईल : 09425787930 - ग्वालियर, मध्य प्रदेश, India
कल बोधिसत्व भाई की अश्क जी के सन्दर्भ में लिखी पोस्ट पढ़ने के बाद मन बहुत देर तक अशांत रहा। क्या हम सचमुच अपने इतिहास, अपनी परंपरा और अपने पूर्वजों के प्रति कृतघ्नता की हद तक लापरवाह और भुलक्कड़ हैं? क्या हम बस आज में जीते हुए ज़माने की भेड़चाल में शामिल होना जानते हैं? या फिर किसी अपराधबोध या…………. | कोटा के वकील साहब ने भी तो उपयोगी जानकारी प्रकाशित की है- - दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi
भारतीय कानून और न्याय प्रणाली पर चर्चा का मंच संशोधन अधिनियम-1781 से रेगुलेटिंग एक्ट से उत्पन्न सु्प्रीम कोर्ट और गवर्नर जनरल परिषद के बीच क्षेत्राधिकार विवाद तो हल कर लिया गया था। इस से कंपनी की शक्तियों में वृद्धि हो गई थी। कंपनी की बढ़ी हुई शक्तियाँ भारतीय जनता पर कहर बरपा सकती थीं। परिणाम स्वरूप भारत में ब्रिटिश क्राउन की बदनामी होती। इस कारण से महसूस किया गया कि कंपनी पर संसद और क्राउन का प्रभावी नियंत्रण होना चाहिए। इस के लिए 1784 में जब विलियम पिट इंग्लेंड का प्रधानमंत्री था ईस्ट इंडिया अधिनियम पारित किया गया। इसी कारण से यह अधिनियम पिटस् इंडिया अधिनियम कहलाया। इस अधिनियम का उद्देश्य ईस्ट इंडिया कंपनी की प्रबंध व्यवस्था में सुधार करना, भारत में ब्रिटिश आधिपत्य के क्षेत्रों में प्रशासनिक सुव्यवस्था स्थापित करना और अपराधिक मामलों के प्रभावी विचारण के लिए कोर्ट ऑफ जुडिकेचर स्थापित करना था। इस अधिनियम के द्वारा एक नियंत्रण मंडल (बोर्ड ऑफ कंट्रोल) तथा निदेशक मंडल की स्थापना कर के कंपनी को भारतीय मामलों के नियंत्रण से …,. .. | ऐसा कुछ 'महान' कर्म अभी तक किया नहीं है, जिसका विवरण दिया जाए। हाँ, औरेया जैसे छोटे क़स्बे में बचप न, आगरा में युवावस्था और दिल्ली में करियर की शुरुआत करने के दौरान इन्हीं तीन जगहों की धरातल से कई क़िस्सों ने जन्म लिया। वैसे, कहने को पत्रकार हूँ। अमर उजाला, नवभारत टाइम्स , आजतक और सहारा समय में अपने करियर के क़रीब दस साल गुज़ारने के बाद अब टेलीविज़न के लिए कुछ कार्यक्रम और इंटरनेट पर कुछ साइट लॉन्च करने की योजना है। पांच साल पहले पहली बार ब्लॉग पोस्ट लिखी थी, लेकिन जैसा कि होता है, हर बार ब्लॉग बने और मरे... अब लगातार लिखने का इरादा है... इंटरनेट की दुनिया की बेताज बादशाह गूगल क्या चीन से बोरिया-बिस्तर वास्तव में समेट सकती है? अगर ऐसा हुआ तो इसका अर्थ सिर्फ एक कंपनी का चीन से काम-काज समेटना भर है? अथवा इसके निहितार्थ कहीं व्यापक हैं ? ये सवाल इसलिए क्योंकि गूगल के चीन से कामकाज समेटने की धमकी देने के बाद दुनिया भर की सूचना तकनीक कंपनियां इस मसले पर आंख गढ़ाए बैठी हैं। कंपनियां ही नहीं भारत समेत कई देशों की सरकारें भी गूगल के भावी कदम से लेकर चीन की प्रतिक्रिया जानने को बेचैन हैं। गूगल ने अभी आधिकारिक तौर पर चीन छोड़ने का कोई फैसला नहीं किया है, लेकिन गूगल की धमकी को इस बार आर-पार की लड़ाई के रुप में देखा जा रहा है। हालांकि,गूगल ने चीन को अलविदा कहा तो उसका भी कम नुकसान नहीं होगा। कंपनी के चीन में 700 से ज्यादा कर्मचारी हैं। गूगल चीन से सालाना 300 मिलियन डॉलर कमा रहा है। कंपनी के सर्च इंजन की लोकप्रियता चीन में … देशनामा में भी आपके लिए एक जानकारी है- देश का कोई धर्म नहीं, कोई जात नहीं, कोई नस्ल नहीं तो फिर यहां रहने वाले किसी पहचान के दायरे में क्यों बांधे जाएं।
- खुशदीप सहगल
क्या आप अपने बच्चों को अच्छी तरह जानते हैं...उनके दिमाग में हर वक्त क्या रहता है, आप उसे पढ़ना जानते हैं...मुझे आज ये मुद्दा उठाने के लिए मजबूर किया है ऐसी कुछ उम्मीदों ने जो हक़ीक़त बनने से पहले ही दम तोड़ गईं...इन उम्मीदों को बचाया जा सकता था...इन छोटे-छोटे सपनों का दम निकालने के लिए कौन ज़िम्मेदार है...सबसे आगे रहने की अंधी दौड़...एजुकेशन सिस्टम या खुद आप और हम... मध्य प्रदेश के देवास में दसवीं की छात्रा सपना चौहान ने स्कूल में ही सल्फास खाकर खुदकुशी कर ली...सपना ने सुसाइड नोट में बड़ा-बड़ा लिखा "I QUIT"...ठीक वैसे ही जैसे फिल्म थ्री इडियट्स में हॉस्टल में रहने वाला एक छात्र गले में फंदा डालकर जान देने से पहले लिख कर छोड़ जाता है... | अनुभूति कलश में पढ़िए रमा द्विवेदी का गीत- अहसासों को संजोया है मैंने, अनुभूतियों को पिरोया है मैंने, बने सत्य,शिव, सुन्दरम यह कलश,मानस की गंगा में धोया है मैंने. यह बचपन कितना निर्द्वन्द, खुश हैं ये कितने रंगों के संग। मस्ती करते, धूम मचाते, आगे – पीछे दौड़ लगाते, नीला -पीला और हरा, लाल, गुलाल कर दें ये धरा, नहीं भंग पी फिर भी झूमै जैसे मतंग ………….. |
- गिरीश बिल्लोरे 'मुकुल'
- http://blog.girishbillore.com/ www.girishbillore.com. http://sites.google.com/a/girishbillore.com/mukul/
प्रेम का सन्देश देता ब्लॉग इस गतिमान चित्र को देख आपकी याद ताज़ी हो जावेंगी विकी पीडिया पर इस तस्वीर को देखिये आज दिन भर खबरीले चेनल्स इस खबर के साथ उसी तरह घिस्सा-पीटी करते रहे जैसे अन्य खबरों के संग साथ की जाती है. अब इस तस्वीर को गौर से देखिये एक भारतीय पुरुष की वैवाहिक ज़िंदगी और इस तस्वीर में काफी समानता मिलेंगी....? इधर दिन भर हमको सरकारी छुट्टी न मिलने के कारण दु:खी हमारी श्रीमती जी ने अंत तया आधे दिन का अवकाश आवेदन रखवाकर घर वापस बुला ही लिया. हम भी घर में ठीक सूरज भगवान की तरह कैद करा दिए गए...! बस श्रीमती जी ने स्टार न्यूज़ से लेकर जाने कितने चैनल बदल बदल के देखे दिखाए ……… |
- राजीव तनेजा
- Don't Worry Be Happy
टीचरः बताओ ‘ए’ के बाद क्या आता है ? संता काफी सोचने के बाद बोला - ...क्या बोलती तू ? ***राजीव तनेजा***"क्या हुआ?….आते ही ना राम-राम..ना हैलो-हाय...बस..बैग पटका सीधा सोफे पे और तुरन्त जा गिरे पलंग पे...धम्म से...कम से कम हाथ मुँह तो धो लो"..... | साहित्य के नाम पर जो कुछ मेरा अपना है ...
- अजय कुमार झा
मैं अब तक , ये समझ नहीं पाया कि ,……..
| पहले सच्चे इंसान, फिर कट्टर भारतीय और अपने सनातन धर्म से प्रेम .. इन सबकी रक्षा के लिए ही हमें स्वजातीय संगठन की आवश्यकता पडती है !!
- संगीता पुरी
युग बीता अंग्रेज गए , क्यूं अंग्रेजी अब भी रानी। दासी बनकर हिन्दी बोलो , भरेगी कब तक उसका पानी ? गैरों के न हम कपडे पहनें, न औरों का भोजन खाते। क्यूं चोट ना लगे स्वाभिमान को , गैरों की भाषा ।। ….. रचयिता ... योगेन्द्र सिंह जी |
- SURESH GUPTA
पडोसी देश ने, हड़प ली जमीन हमारी, इंच-इंच करके, पर सरकार सोती रही, कुछ न कर पाई, न ही कुछ करना चाहा, क्या देश सुरक्षित है, ऐसी सरकार के हाथों में?
| साहित्य-सहवास बड़ा ही टुच्चा ग्रहण था - ग्रहण ? ये ग्रहण था ? अगर था तो बड़ा ही टुच्चा ग्रहण था जो यूँ लगा और यूँ उतर गया कोई निशां नहीं, किधर गया लेकिन दिन भर बवाल मचा रखा था सारी दु.. हास्यफुहार जरा गेस कीजिये .......... - एक औरत थी सपना..... सपना गर्भवती थी। एक दिन वह अपने टाटा नैनो कार में जा रही थी। उसके समान्तर एक और औरत जा रही थी, अपनी कार में। वह भी गर्भवती थी। दूसरी और. | वीर बहुटी - संजीवनी {* कहानी* } जैसे ही मानवी आफिस मे आकर बैठी ,उसकी नज़र अपनी टेबल पर पडी डाक पर टिक गयी। डाक प्रतिदिन उसके आने से पहले ही उसकी टेबल पर पहुँच जाती थीपर.. | | किस्सा-कहानी मेरी पसंद.... - वो आदमी नहीं मुकम्मल बयान है, माथे पे उसके चोट का गहरा निशान है. वे कर रहे थे इश्क पे संजीदा गुफ़्तगु, मैं क्या बताऊँ, मेरा कहीं और ध्यान है. सामान कुछ नह. आज के लिए बस इतना ही…! धन्यवाद! | कल की मजेदार चर्चा “ललित शर्मा” करेंगे! |
सुंदर चर्चा-आभार
जवाब देंहटाएंbaahut samay baad lauta hoon ...yahan to charcha ka dhang hi badal gaya, aur bhi rochak ho gaya sir.. kahani ki taraf dhyaan aakarshit karane ke liye shukriya..
जवाब देंहटाएंJai Hind...
nice
जवाब देंहटाएंआज की चर्चा का रंग कुछ और ही है। आनंद आया।
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार चर्चा.
जवाब देंहटाएंरामराम.
सुंदर चर्चा !
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी,
जवाब देंहटाएंचर्चा में जगह देने के लिए आभार...कई बेहतरीन लिंक्स पढ़ने को मिले...
जय हिंद...
बहुत ही परिश्रम के साथ लिखा गया सार्थक चिठ्ठा। कई पोस्ट तो यहाँ आकर ही पढ़ी जाती है। बधाई। पसन्द पर चटका भी लगा दिया है।
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा की है भाईजी!!
जवाब देंहटाएंsundar charcha....shukriya
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर चर्चा । बहुत से उपयोगी और सुन्दर लिंक मिल गये । आभार ।
जवाब देंहटाएंatyant sundar shastri ji
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा।
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा. आपने चर्चा में मेरी रचना की चर्चा की - आभार
जवाब देंहटाएंसिर्फ़ इतना ही शास्त्री जी कि आजकल आपसे बेहतर चर्चाकार दूसरा कोई नहीं है , नित नए प्रयोग और मेहनत हमारा मार्गदर्शन कर रही है ।आभार
जवाब देंहटाएंअजय कुमार झा
अच्छी चर्चा।
जवाब देंहटाएंइस चर्चा-मंच को
जवाब देंहटाएंकुछ अच्छे ब्लॉग्स तक पहुँचानेवाला
"बहुराहा" कहा जाए,
तो अतिशयोक्ति नहीं होगी!
--
लगी झूमने फिर खेतों में,
ओंठों पर मुस्कान खिलाती, भोर हुई कोहरे में!
--
संपादक : सरस पायस