"चर्चा मंच" अंक-38
चर्चाकारः डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
आइए आज का "चर्चा मंच" सजाते हैं- आज की चर्चा में प्रस्तुत है-
केवल कविताएँ ही कविताएँ! - कमलेश वर्मा
पटियाला , बाराबंकी, पंजाब , उत्तरपरदेश, India गुलशन वीराने हो गये..!!! गुलशन वीराने हो गये तेरे जाने के बाद , खिली कलियाँ थी जहाँ तेरे आने के बाद । उम्मीद में बैठी है कोयल उसी डाल पर , कूह -कूह की तान छेड़ी थी जहाँ तेरे आने के बाद । … | डॉ.कविता'किरण'(कवयित्री) एक ग़ज़ल श्रंगार की - मुझमें जादू कोई जगा तो है मेरी बातों में इक अदा तो है नज़रें मिलते ही लडखडाया वो मेरी आँखों में इक नशा तो है आईने रास आ गये मुझको कोई मुझ पे भी मर मिटा तो ... | लंबे समय से ब्लाग पर न आ पाने के लिए माफी चाहता हूं। दरअसल, हमारे चाहने भर से कुछ नहीं होता। इसके पहले जब मैंने अपनी गजल पोस्ट की थी, उस पर आपने बहुत सी उत्साहजनक टिप्पणियां देकर मुझे अच्छा लिखने को प्रेरित किया था। आज जो गजल पेश कर रहा हूं, यह किस मनोदशा में लिखी गई, यह नहीं जानता। हां, यहां निराशा हमें आशा की ओर ले जाते हुए नहीं दिखती...?- अब तो हमको दूर तक कोई खुशी दिखती नहीं जिंदा रहकर भी कहीं भी जिंदगी दिखती नहीं हर किसी चेहरे पे हमको दूसरा चेहरा दिखा एक भी चेहरे के पीछे रोशनी दिखती नहीं … | हिन्दी साहित्य मंच हिन्दी प्रेमियों का मंच आज कल जो भी दिखता है परेशान दिखता है, वक्त ऐसा है बस इंसान ही नहीं दिखता है। जहां देखो बस ऐतबार नहीं दिखता है, इंसान कहता है बस प्यार नहीं मिलता है।…… | मेरी भावनायें... इमरोज़ की कलम से इमरोज़ - नज्मों की दोस्ती लम्हा-दर-लम्हा बढ़ी कुछ तुमने कहा कुछ हमने कहा पलों की गतिविधियाँ बढीं .................. .इन्हीं गतिविधियों के अंतर्गत इमरोज़ की कलम से इम... |
- हरिओम दास अरुण
- दरभंगा, बिहार,
ज़िन्दगी जिंदादिली का नाम है। आँखों में मस्ती लबों पर जाम है। अतीत के गह्वर में घिरा न कर व्यतीत हुआ वह व्यर्थ है सोचा न कर कर्तव्यपथ पर अहर्निश बढ़ता ही चल पीछे पलट कर देखना क्या काम है |
एक जिन्दगी .... - वो जाने क्यों होने लगी कमजोर मुहब्बत का उस पर असर होने लगा, सामने होने पर जिसको न देखा नजर उठा के, निगाहें उसके आने का रस्ता तकन... | बहुत हैं मन में लेकिन फिर भी कम अरमान हैं प्यारे. पुरोहित हौसले हैं मंजिलें जजमान हैं प्यारे.. लिये हम आरसी को आरसी में आरसी देखें. हमें यह लग रहा है खुद से ही अनजान हैं प्यारे.. | सुबह खिड़की से देखा धुंधला सफेद सा मन ने सोचा सपना है ...... अरे नहीं यह तो कोहरा है धुंध सा कोहरा जिसमे बना लो चाहे जितनी शक्ले जो भी रूप दे लो उन्हें........... | के.सी.वर्मा मेरे दिल की बात....सीधा दिल से.... आप तक!! देखो जमाने का क्या ? कमलेश वर्मा देखो जमाने का क्या ? मिजाज़ हो गया , 'सही' के लिए लेना रिश्वत रिवाज़ हो गया । देखो सच्चाई सरे आम बे-पर्दा हो गयी , झूठ ,फरेब ,मक्कारी का हिजाब हो गया ।… | गजानन माधव मुक्तिबोध की रचनाओं का ब्लॅाग पता नहीं कब, कौन, कहाँ किस ओर मिले किस साँझ मिले, किस सुबह मिले!! यह राह ज़िन्दगी की जिससे जिस जगह मिले.... | रोज़ दिखते हैं, ऐसे मंज़र कि, अब तो , किसी बात पर , दिल को, हैरानी नहीं होती॥ झूठ और फरेब से, पहले रहती थी शिकायत, पर अब उससे कोई, परेशानी नहीं होती॥.... | - Dr. shyam gupt
- Lucknow, UP, India
- डा श्याम गुप्त की ग़ज़ल--तू गाता चल ऐ यार
ग़ज़ल की ग़ज़ल शेर मतले का न हो तो कुंवारी ग़ज़ल होती है | हो काफिया ही जो नहीं,बेचारी ग़ज़ल होती है। और भी मतले हों, हुश्ने तारी ग़ज़ल होतीं है । हर शेर मतला हो हुश्ने-हजारी ग़ज़ल होती है।…. | लोगों के मन का कोई रिश्ता नहीं होता | सिर्फ घडी दो घडी के लिए वे रिश्ते का भ्रम डालना चाहते हैं | इसलिए लोग चुप रहते हैं ...पर जब किसी को रिश्ते से डर लगता हो .तो ख़ामोशी इस डर को बढ़ा देती है ,इसलिए उसको बोलना पड़ता है ,डर को तोडना पड़ता है ..पर कई रिश्ते ऐसे होते हैं जो न लफ़्ज़ों की पकड में आते हैं न किसी और की पकड में ... मैंने पल भर के लिए --आसमान को मिलना था पर घबराई हुई खड़ी थी .... कि बादलों की भीड़ से कैसे गुजरूंगी .. कई बादल स्याह काले थे खुदा जाने -कब के और किन संस्कारों के कई बादल गरजते दिखते जैसे वे नसीब होते हैं राहगीरों के …. |
- आमिर खान "तन्मय"
- pune, maharashtra, India
सपने संजोया करती हैं जो आँखें, उनमे बीतें पलों की सिर्फ तस्वीर रह जाती हैं | रूठा हो खुदा,तो बड़ी से बड़ी उम्मीद ढह जाती हैं|| जज्बा-ऐ-इश्क न हो,तो सिर्फ बातें कहीं जाती हैं| वक़्त गुजर जाने के बाद तो सिर्फ यादें रह जाती हैं|| ……………………
| सपने संजोया करती हैं जो आँखें, उनमे बीतें पलों की सिर्फ तस्वीर रह जाती हैं | रूठा हो खुदा,तो बड़ी से बड़ी उम्मीद ढह जाती हैं|| जज्बा-ऐ-इश्क न हो,तो सिर्फ बातें कहीं जाती हैं| वक़्त गुजर जाने के बाद तो सिर्फ यादें रह जाती हैं|| ……….प्रस्तुति: अनिल | -बशीर 'बद्र'-
तलवार से काटा है फूलों भरी डालों को। दुनिया ने नहीं चाहा हम चाहने वलों को। मैं आग था, फूलों में तब्दील हुआ कैसे? बच्चों की तरह चूमा उसने मेरे गालों को।……… अगर आपको 'हमराही' का यह प्रयास पसंद आया हो, तो कृपया फॉलोअर बन कर हमारा उत्साह अवश्य बढ़ाएँ। | जिंदगी मेरे लिए ख्वाबोंके बादल पर उड़नेवाली परी है .!! जो हर पल को जोड़ते हुए बनती है, और उन हर पलोंमें छुपी एक जिंदगी होती है .... आज एक बेगानासा हो गया था वो एक लिफाफा मिला , लिफाफेके अन्दर गुजरा हुआ जमाना मिला , अन्दरसे निकला एक ख़त पहचाना सा उसके हर अल्फाज़में बचपनका सुनहरा फ़साना मिला .... |
आज के लिए
बस इतना ही……!
कल आपको
कुछ और चिट्ठों की
सैर करायेंगे! | |
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जवाब देंहटाएंहवा चली है कविताओं की,
जवाब देंहटाएंअब मयंक के ब्लॉग पर!
नाच रहे हैं सभी शब्द अब,
कविताओं के फाग पर!
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मयंक जी,
काव्य की सरिता बहाई आपने,
दे रहे हैं हम बधाई आपको!
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क्यों हम सब पूजा करते हैं, सरस्वती माता की?
लगी झूमने खेतों में, कोहरे में भोर हुई!
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संपादक : सरस पायस
शानदार कविताओं की चर्चा...आनन्द आ गया. जारी रहिये.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
सुंदर कविताओं की चर्चा !
जवाब देंहटाएंkavitamay charchaa
जवाब देंहटाएंbehad umda prastuti.........aajkal waqt ki kami ka karan kitni hi post yahin padh li .........shukriya.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर चर्चा मंच, आपने सभी को संजोया इनमें, आभार के साथ बधाई ।
जवाब देंहटाएंकविता ही कविता
जवाब देंहटाएंकविता की चर्चा
कविता ही टिप्पणी
कविता ही जिंदगी
कविता ही बंदगी।
बहुत ही सुंदर चर्चा रही, एकदम कवितामय संगीतमयी और अलग अंदाज़ समेटे । आभार , नाचीज़ के टुकडे को स्थान देने के लिए
जवाब देंहटाएंअजय कुमार झा
बढ़िया चर्चा !
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