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सुरेश शर्माकार्टून धमाका (128)नव वर्ष के पहले दिन इससे अच्छी बधाई और क्या हो सकती है .......****************************************************** |
M VERM | एक चिट्ठी अलबेला जी के नाम...आदरणीय अलबेला जी कि पोस्ट यहाँ पढ़ें ,http://albelakhari.blogspot.com/2009/12/blog-post_8281.html#comments आदरणीय अलबेला जी, आप कलम के धनी व्यक्ति हैं...आपकी कई रचनाएँ तारीफ के काबिल रही हैं... हम सबके ह्रदय में आपके प्रति अपार सम्मान है... आपको कलम की ताकत का भी भरपूर भान है और शायद यही वजह है की आपने यह रचना रच डाली.… …………. |
यौन अपराधों की सुनवाई जल्द..बीते साल ३१ दिसंबर से लागू हुए यौन अपराध संशोधनों से अब मामले की सुनवाई २ माह में पूरी करने का प्रयास किया जायेगा. इसके साथ ही पीड़ित पक्ष को भी अपनी तरफ से अभियोजन करने की सुविधा भी रहेगी. अभी तक यह केवल राज्य की तरफ से दायर होने वाले पक्ष पर ही निर्भर करता था. साथ ही यह भी अधिकार दिया गया है कि किसी भी फैसले के खिलाफ सभी पक्षों को अपील करने की छूट भी होगी. साथ ही पीड़ित का बयान उसके घर में ही लिया जायेगा....अनुप शुक्ला फुरसतिया, कितने अजीब हो तुम।लाल अन्ड बवाल पर आपका कमेंट देखा। अजीब लगा। अनूप शुक्ल ने कहा… मगर अलसेट यह हो रही थी कि चित्र अपन से बनते कहाँ हैं ?बस इसको ही पढ़कर आनंदित हो गये। ऐसे शब्द /वाक्य आपके यहां ही सुनने/पढ़ने को मिलते हैं। आप नियमित लिखते रहा करें। बाकी पहेली के बारे में हम क्या कहें? आप बेहतर समझते हैं। लोग इसी के माध्यम से हिन्दी की सेवा में चिपटे हैं। कुछ कहना उनको हिन्दी सेवा से विरत करने जैसा पाप करना होगा।...... |
पद्य के आँगन गद्य अतिथि कह रहा," दो दुनी चार"सुबह सुबह नींद खुलते ही भनभनाता हूँ - कमबख्त कितनी ठंड है ! श्रीमती जी हैप्पी न्यू इयर बोलती हैं तो याद आता है - वो: ! ऐसा क्या हैप्पी है इसमें? हर साल तो आता है और इतनी ही ठंड रहती है। हर साल लगता है ठंड बढ़ती जा रही है। शायद हम बूढ़े होते जा रहे हैं।सोच को अभी समझ सकूँ कि बोल फूट ही पड़ते हैं - बड़ी खराब आदत है। बड़े बूढ़ों ने कहा सोच समझ के बोला करो। लेकिन हम तो हम, बहुत धीमे सुधरने वाले! अब तो सोचते ही लिखने भी लगे हैं – जिन्हें जो समझना हो समझता रहे। शायद अभी बूढ़े नहीं हुए - उठी तसल्ली अभी बैठी भी नहीं कि मन के किसी कोने से आवाज आती है - अभी मैच्योर नहीं हुए! धुत्त !!……. |
अलविदा कहता हूँ मैंआज लहर है , तूफान है , बादल है , बारिश है , धूप है , छांव है पर तुम नहीं हो । मैं क्यों कहूँ कुछ तुमसे बताओ ना ? जबकि चाहती हो अपना बनाना पर कह नहीं सकती जुबां से अपने । ऐसा नहीं कि जानता नहीं हूँ फिर सुनना चाहता हूँ तुमसे । और तुम हो कि क्यों कहोगी और मैं हूँ कि बिन सुने अनसुना हूँ । तुम्हारी एक परिधि है , एक सीमा है , दीवार है न यही कहती हो जानता हूँ । ये बेबसी पर मुझे तरस क्यों आये भला ? मैं न झुकूंगा और न ही……. |
सर्वोत्तम ब्लॉगर्स 2009 पुरस्कारलाजमी है कि आज ज्यादातर दीवारों से पुराने कलेंडरों की जगह नए कलेंडर आ गए होंगे। मोबाइल, कम्प्यूटर में तो कलेंडर बदलने की जरूरत ही नहीं पड़ती वहां तो आटोमैटिक ही बदल जाता है। साल बदलने के साथ ही कलेंडर बदल जाता है, लेकिन शायद कुछ लोगों की रोजमर्रा की जिन्दगी नहीं बदलती, जैसे कि आज मैंने देखा कि ऑफिस में कुछ लोग पहले की तरह ही कीबोर्ड के बटनों को अपनी ऊंगलियों से दबा रहे थे, उनमें नया कुछ न था। इसके अलावा रोड़ किनारे लगी फल, सब्जी एवं अन्य वस्तुओं की लारियों पर खड़े विक्रेता पहले जैसे ही थे, उनमें मुझे तो कोई बदलाव नजर नहीं आया। |
हिन्दी साहित्य संगम जबलपुरफिर आया नव वर्षपिछले वर्षों के सभी, मुद्दे और विकल्प पूरा करने के लिए, लेंगे फिर संकल्प स्वयं और परिजनों का, करने को उत्कर्ष --------------------- फिर आया नव वर्ष…………. |
जाड़ा—2 (फुलबगिया)जाड़ा ताल ठोंक जब बोला, सूरज का सिंहासन डोला, कुहरे ने जब पांव पसारा, रास्ता भूला चांद बिचारा। ………………… |
वाह वाह कहते है शहीदो की चिताऒ पर लगेगे हर वर्ष मेले(श्रद्धांजलि या उत्सव)पराया देशइस साल की पहली पोस्ट, ओर उस मै भी विरोध, अब करुं तो क्या करू, झुठ मुझे भाता नही, ओर सच बोले बिना, सच देखे बिना रह नही पाता, आज फ़िर एक खबर पर नजर पडी, दो चार दिन पुरानी है,अजी नही करीब एक महीना पुरानी है, लेकिन भारत के समाचार पत्रो मै तो शायद ही किसी एक कोने मै ऎसी खबर छपे सोचा आप से बांट लू.... श्रद्धांजलि या उत्सव (B.B.C. हिन्दी)सुशील झा बीबीसी संवाददाता, मुंबई से ताज होटल के बाहर 26 नवंबर की बरसी पर उत्सव का समां था. हालांकि लोग यहां मृतकों को श्रद्धांजलि देने आए थे. मरने वालों को याद करने का शायद यह भारतीय तरीक़ा है. होटल के ठीक सामने एक सरकारी समारोह था जिसमें आम लोगों की शिरकत बहुत कम थी. सरकारी पंडाल से बाहर 'मैंगो पीपुल' यानी आम जनता जुटी हुई थी. आम जनता भी कौन.....जो ख़ुद को टीवी पर 15 मिनट देखना चाहता है………… |
Dr ArvindChaturvediArvindChaturvedकैसे कैसे बधाई सन्देश्एक ज़माना था ज़ब आम तौर पर बधाई सन्देश के लिये हाथ से बनाये हुए विशेष ग्रीटिंग (बधाई) कार्ड का प्रयोग होता था. कार्ड खरीदने बाज़ार जाने वाले लोग ऐसे कार्ड ढूंढने का प्रयास करते थे जिसमे सन्देश ( की इबारत) 'ज़रा हट के' हो और जो पाने वाले का तुरंत ध्यान आकर्षित करे.अब बधाई कार्ड का स्थान अधिकांश्त: ई-मेल या एस एम एस ने ले लिया है. जब से मोबाइल पर एस एम एस ( SMS ) का चलन चला है ,फोन कम्पनियों की कमाई का एक बड़ा हिस्सा विशेष अवसरों पर दिये जाने वाले इन सन्देशों से ही आता है. यही कारण है कि मोबाइल सेवा प्रदाता कम्पनियां अत्यंत ही रोचक सन्देशों को विशेषज्ञ लेखकों से लिखवाती हैं और प्रचारित करती हैं… ….. |
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अनिल अनल भू नभ 'सलिल', पञ्चतत्वमय देह. नेह नर्मदा नित नहा, होती दिव्य विदेह. होती दिव्य विदेह, आत्म हो सत-शिव-सुंदर. सत-चित-आनंद बन मिल जाते हैं विधि-हरि-हर. सफल साधना मन्वंतर तक, करे स्वयम्भू. तुहिना सम हों विमल, 'सलिल' नभ अनिल अनल भू.शुभ कामनाएं सभी को... संजीव "सलिल"शुभ कामनाएं सभी को... संजीव "सलिल" salil.sanjiv@gmail.com divyanarmada.blogspot.com * शुभकामनायें सभी को, आगत नवोदित साल की. शुभ की करें सब साधना,चाहत समय खुशहाल की.. शुभ 'सत्य' होता स्मरण कर, आत्म अवलोकन करें. शुभ प्राप्य तब जब स्वेद-सीकर राष्ट्र को अर्पण करें.. |
किस यु ऐन्ड योर फ़ेमिली..हैपी न्यु ईयर-बोदूरामनमस्कार ..हु पंकज छु अने तामारो स्वागत करू छु नवीन वर्ष माँ ...आ वर्ष तमारे माटे मंगलकारी होवे ... आज आपको बोदूराम के दो किस्से बताता हु नए साल मनाने के बारे में .. हुआ यु की बोदूराम को मोबाइल पर मैसेज भेजकर नया साल की शुभकामनाये देने में बड़ा मजा आता था ..था , है नहीं रहेगा कैसे जो हादसा बोदूराम के साथ हुआ उसके बाद तो बोदूराम ने मैसेज लिखना ही छोड़ दिया ...तो पढ़ लीजिये क्या हुआ ..... हुआ यु की की बोदूराम ने नए साल पर सबको मैसेज करने की सोची ..और किया भी और मैसेज में वो लिखना चाहा कि... |
वर्ष नव - हर्ष नववर्ष नवहर्ष नव ! जीवन उत्कर्ष नव ! |
साल भर में ही वृद्धावस्था को प्राप्त बच्चा जाते समय तो हमें दुआ दे !वर्षों से परंपरा रही है हर साल के अंतिम दिन, आने वाले साल को बच्चे के रूप में तथा जाते हुए साल को वृद्ध के रूप में दिखाने की। हर बार इसे देख मन में यह बात उठती रही है कि कोई बच्चा एक साल में ही गज भर की दाढी और झुकी कमर वाला वृद्ध कैसे हो जाता है। हर बार बात आयी-गयी हो जाते थी।पर इधर फिल्मों ने नयी-नयी बिमारियों को आम आदमी से परिचित करवाया तो अपने भी ज्ञान चक्षु खुले। गहन शोध के बाद यह बात सामने आयी कि यह बिमारी तो "पा" की बिमारी से भी खतरनाक है। "पा" वाली तो फिर भी अपने रोगी को कुछेक साल दे देती है और उससे ग्रसित एक दूसरे के बारे में देख सुन धीरज धरने वाले दस-पांच रोगी मिल भी जाते हैं। पर यह साल दर साल लगने वाली बिमारी एक बार में एक ही को लगती है और उसको समय भी देती है तो कुछ महिनों का। खोज से यह बात भी सामने आयी है कि इस रोग को बढाने में आस-पास के माहौल का भी बहुत बड़ा हाथ होता है। प्रदुषित वातावरण का प्रभाव इस पर जहर का असर करता है। |
रिंकू का उल्टा चश्माबुरी तरह से घाएल नारायण मिश्रा जी के बिना इलाज मार देबे में सरकारी आमला भी शामिल रहे?2 जनवरी1975 ,रेल मंत्री ललित नारायण मिश्रा समसतीपुर में मुजफरपुर-समस्तीपुर बड़ी रेल लाइन के उद्घाटन करे गेल रहलन उहा जब उ मंच से सभा के संबोधित करत रहलन तबे भीड़ से एगो आदमी उनका उपर बम फेंक देहलस जेइमे ललित नारायण बुरी तरह से घाएल हो गैलन,बाद में दानापुर के एगो हॉस्पिटल में उनकर मौत हो गइल/ लेकिन हैरानी के बात ता इ बावे की आज ३३ साल बाद भी एह मामला में केहू के सजा न भइल/ आज तक केहू न जानल की उनकर हत्या के कैल ?हत्या के पीछे मकसद का रहल? केकरा कहला पर ललित जी के उपर बम फेकल गइल? आज तक दिल्ली के अदालत में ललित जी के हत्या के केश लटकल बावे/ इंडिया टुडे में पेज नम्बर २८ पर छपल आर्टिकल के हिसाब से----- -मामला के आठ अभुक्त में से एक और बचाव पछ के तरफ से ४ वकील लोग के मौत हो चुकल बा आब तक/ -कुल १९ जज एह मामला के सुनवाई किले बा लोग,जेइमे ७१९ गो तारीख पड़ चुकल बा आब तक/ -७१९ तारीख में से ६२५ तारीख पर आब तक सुनवाई भइल बा/ -एह हत्या कांड में आब तक १५१ गवाह के बयान भइल बावे/ -एह केश से सम्बंधित कागजात के संख्या ११,००० पन्ना के होगैल बा/ ललित नारायण जी के बम हमला में घाएल भैला के बाद रेल प्रशासन जे तरह से उनकर साथै पेश आईल ,ओहसे बहुत सवाल खडा होता जिन कर जवाब आज तक न मिलल---- |
राज़ की बातें उम्मीदें - मौसम के नए फूल मुबारक हों सबको और समय के ये नए पल भी *पल्लवों की उम्मीदें* हरित पल्लवों की उम्मीदें मौसम की गुलाम नहीं होती जैसे बरगद उगता, पुराने किले क... |
नुक्कड़ब्लॉगिंग पर किताब...ब्योरा चाहिएनए साल पर नई सूचना... हिंदी ब्लॉगिंग पर एक महत्वपूर्ण किताब का प्रकाशन हो रहा है. मार्च तक किताब प्रकाशित होने की पूरी संभावना है. पुस्तक में शामिल करने के लिए कृपया ये जानकारी मुहैया कराएं. ब्योरा कृपया मेरे ई-मेल chandiduttshukla@gmail.com पर भेजें. अपना विवरण / परिचय फ़ोटो मूल व्यवसाय ब्लॉगिंग में चुनौती, | गत्यात्मक ज्योतिष हिन्दी ब्लॉग जगत के लेखकों और पाठकों को वर्ष 2010 की शुभकामनाएं !!
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आज के लिए बस इतना ही……….! नमस्कार! |
शामदार चर्चा.आप बहुत मेहनत कर रहे हैं.
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चर्चा ! सुन्दर सँजोये लिंक ! आभार ।
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच की खूबसूरती लुभा रही है ....जैसे जैसे ये लिंक पढ़ते गए ...मन और दिमाग का बोझ भी उतरता गया ....बहुत आभार ...
जवाब देंहटाएंनव वर्ष की बहुत शुभकामनायें ....!!
ये चर्चा बड़ी है मस्त-मस्त
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार मंच सजाया है शाश्त्री जी.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत-बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंBahut Khoob, Sundar charchaa shashtri ji !
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी-चर्चा के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंशामदार चर्चा!!
जवाब देंहटाएंshashtri ji gajab kaa kaam !
आज दिल ने आवाज दी- चलो "चर्चा- मंच" को पढ़ा जाये !
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर पहुंचकर इतनी आश्चर्यजनक ख़ुशी हुई,जिसका बयान
मैं शब्दों के द्वारा नहीं कर पा रहा हूँ, अपना कार्टून चर्चा-मंच
में सबसे ऊपर पाकर अत्यंत उत्साहित हुआ हूँ, श्री शास्त्री जी का
मैं दिल से आभारी हूँ....आभार !
शास्त्री जी-चर्चा के लिए आभार...
जवाब देंहटाएंशनदार चर्चा!!
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी , बहुत सुंदर चर्चा बन पडी है कार्टूनों को शामिल करने से उसका जायका बढ गया
जवाब देंहटाएंसुरेश शर्मा जी तो खुशी से उपर हो गए
जवाब देंहटाएंकार्टून के रूप में तो वे हर आंख और
दिमाग में खुशी वितरित कर ही रहे हैं।