"चर्चा मंच" अंक-19 चर्चाकारः डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक" “मानसिक हलचल” की “हिन्दी सेवा का प्रवचन”के साथ आज का "चर्चा मंच" सजाते हैं |
भ्राता ज्ञानदत्त पाण्डेय जी तो हिन्दी की महान सेवा कर रहे हैं और हम आज से 35 वर्ष पूर्व हिन्दी-संस्कृत में स्नातकोत्तर करने के उपरान्त भी उनके अनुसार घास ही छील रहे हैं क्या? श्री पाण्डेय जी के पास तो इसका उत्तर शायद नही है, इसीलिए तो वे अपनी पोस्ट पर टिप्पणी के द्वार ही बन्द करके बैठ गये हैं। देखिए तो सही कि ये क्या लिख रहे हैं- “हिन्दी सेवा का प्रवचन”बड़ी थू-थू में-में हो रही है हिन्दी ब्लॉगरी में। जिसे देखो, उगल रहा है विष। गुटबाजी का यह कमाल है कि अश्लीलता का महिमामण्डन हो रहा है। व्यक्तिगत आक्षेप ब्लॉग साहित्य का अंग बन गया है। जिसको देखो, वही पोस्ट हटाने, टिप्पणी हटाने का लीगल नोटिस जेब में धर कर चल रहा है। अगर हिन्दी ब्लॉगरी इस छुद्रता का पर्याय है तो भगवान बचाये। ऐसे में हिन्दी ब्लॉगरी को बढ़ावा देने का श्री समीरलाल का अभियानात्मक प्रवचन मुझे पसन्द नहीं आया। यह रेटोरिक (rhetoric) बहुत चलता है हिन्दी जगत में। और चवन्नी भर भी हिन्दी का नफा नहीं होता इससे। ठीक वैसे जैसे श्रीमद्भाग्वत के ढेरों प्रवचन भी हिन्दू जन मानस को धार्मिक नहीं बना पाये हैं। सत्यनारायण की कथा का कण्टेण्ट आजतक पता न चल पाया। इन कथाओं को सुनने जाने वाले अपनी छुद्र पंचायतगिरी में मशगूल रहते हैं। कम से कम मैं तो हिन्दी सेवा की चक्करबाजी में नहीं पड़ता/लिखता। और मेरे जैसा, जिसका हिन्दी का सिंटेक्स-लेक्सिकॉन-ग्रामर अशुद्ध है; हिन्दी सेवा का भ्रम नहीं पालना चाहता समीरलाल के बरगलाने से। हां, मुझे अपने लिये भी लगता है कि जब तब मीडिया, हिन्दी साहित्य या सेकुलरिज्म आदि पर उबल पड़ना मेरे अपने व्यक्तित्व का नकारात्मक पक्ष है। और नये साल से मुझे उससे बचना चाहिये। ऐसे ही नकार से बचने के लक्ष्य और लोग भी बना सकते हैं। मुझे बहुत प्रसन्नता होगी जब लोग हिन्दी ब्लॉगरी को गुटबाजी, चिरकुटत्व, कोंडकेत्व आदि से मुक्त करने के लिये टिप्पणी-अभियान करें तो। अन्यथा तो यह सब बहुत जबरदस्त स्टिंक कर रहा है जी। सड़क किनारे के सार्वजनिक मूत्रालय सा - जहां लोग अपनी दमित वर्जनायें रिलीज कर रहे हैं और कोई मुन्सीपाल्टी नहीं जो सफाई करे मूत्रालय की। आपको गंध नहीं आ रही? और मुझे लग रहा है कि चिठ्ठाचर्चा कुछ समय से जो घर्षण उत्पन्न कर रहा है, उसे देखते हुये उसे तात्कालिक रूप से गाड़ दिया जाना चाहिये। साथ साथ; भांति भांति की चिठ्ठाचर्चायें न हिन्दी की सेवा कर रही हैं न हिन्दी ब्लॉगरी की। मुझे मालुम है कि मैं यह लिख बहुतों में कसमसाहट पैदा कर रहा हूं। पर मित्रों, इस पोस्ट पर मैं टिप्पणी आमन्त्रित नहीं कर रहा। :-)…………. |
पाण्डेय जी! आपको लघु-भ्राता कहूँ या बड़े भइया कहूँ! आप अंग्रेजी मिश्रित पोस्ट लिखकर कथितरूप से हिन्दी की महान सेवा कर रहे हैं। हम तो अपनी पोस्ट में एक भी अंग्रेजी का शब्द नही लिखते। इसलिए आपके अनुसार हम जैसे बहुत से लोग न तो हिन्दी की सेवा कर रहे हैं और न ही ब्लॉगरी की सेवा। आपने पोस्ट लिखी अच्छा लगा, लेकिन टिप्पणी के द्वार क्यों बन्द कर दिए? आज तक तो आपने ऐसा नही किया फिर इस पोस्ट को लगाकर अपनी कायरता क्यों उजागर कर दी। "संस्कृति एवं सभ्यता" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक") सम्भव हो तो इन प्रश्न का उत्तर देने का कष्ट स्वीकार करें। |
आइए अब आज की चर्चा के अपने रंग में आते हैं- |
भीगी गज़ल कोई पत्थर तो नहीं हूँ , कि ख़ुदा हो जाऊँ - कैसे मुमकिन है, ख़मोशी से फ़ना हो जाऊँ कोई पत्थर तो नहीं हूँ, कि ख़ुदा हो जाऊँ फ़ैसले सारे उसी के हैं, मिरे बाबत भी मैं तो औरत हूँ कि राज़ी-ओ-रज़ा हो जाऊँ ... | Alag sa दादा से बेटा बनते अमिताभ - आज यह ई-मेल मिला जिसे पढ़ कर आप् जान जायेंगे कि क्यों अमिताभ, अमिताभ हैं। साथ की फोटुओं के साथ पोस्ट बहुत लम्बीईईईईई हो रही थी सो ............... |
प्रतिभा की दुनिया ...!!! प्रेम का मौसम - वेरा उन सपनों की कथा कहो (1996) से कविताओं का सफर शुरू करने वाले आलोक श्रीवास्तव के दो कविता संग्रह आने को हैं. पहला दिखना तुम सांझ तारे को और दूसरा दु:ख ... |
ज्योतिष की सार्थकता अपनी बद्धमूल धारणाओं को त्याग कर ही किसी सत्य को जाना जा सकता है!!! - चाहे देरी से ही सही, सर्वप्रथम तो समस्त इष्ट मित्रों तथा सुधि पाठकों को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाऎँ!!! चलिए अब बात करते हैं मेरी पिछली पोस्ट के बारे में, ज... | गत्यात्मक चिंतन आप इतना सकारात्मक सोंच भी न रखें कि जरूरी बातें अनदेखी हो जाए !! - प्रकृति की कोई भी वस्तु और व्यक्ति अपने आपमें संपूर्ण नहीं होती , सबमें कुछ गुण होते हैं तो अवगुण। कुछ व्यक्ति उनके गुणों के साथ ही साथ अवगुणों से भी ला... |
शिल्पकार के मुख से जरा ये कविता भी पढ़ कर देखें!!! - *सब लोग बड़ी बड़ी कविता लिखते हैं और छोटी से छोटी भी. एक दिन शरद भाई बोले यार मेरी कविता 57 पेज की है. मैं सोचने लगा कविता है कि खंड काव्य है. लेकिन उन्हो... |
ताऊजी डॉट कॉम खुल्ला खेल फ़र्रुखाबादी (160) : आयोजक उडनतश्तरी - बहनों और भाईयों, मैं उडनतश्तरी इस फ़र्रुखाबादी खेल में आप सबका हार्दिक स्वागत करता हूं. जैसा कि आप जानते हैं कि आज मैं ये 29 वां अंक आयोजक के बतौर पेश कर .. |
आरंभ Aarambha रामहृदय को 11वां रामचंद्र देशमुख सम्मान -छत्तीसगढ़ी लोक संस्कृति के अग्रपुरुष दाऊ रामचन्द्र देशमुख की स्मृति में स्थापित तथा लोक संस्कृति के प्रति प्रदीर्घ समर्पण एवं एकाग्र साधना के लिए प्रदत्त ... |
ANALYSE YOUR FUTURE इस वर्ष की कुछ उपलब्धियां - | हिन्दी साहित्य मंच सरकारी दफ्तर -सरकारी दफ्तर _________________ जी हाँ यह सरकारी दफ्तर है यहाँ का प्रत्येक कर्मचारी अफसर है दफ्तर के मुख्य द्वार पर दो सीढ़ी पार कर कभी- कभी मिलेगा एक ऊँघता ... |
शब्द-शिखर ट्रेन हादसों का जिम्मेदार कौन ??- नए साल के उल्लास पर शनि महाराज का कोप भरी पड़ा. साल के दूसरे दिन ही शनिवार को उत्तर प्रदेश में तीन ट्रेन-हादसे हुए. कईयों की जान गई व कई घायल हुए. कोई नया ... |
हास्यफुहार मनौती - एक आदमी शादी नहीं होने से बहुत परेशान था। बेचारा हर देवी-देवता की मनौती मान कर थक गया तो अंत में बजरंगवली की शरण में आया। बजरंगवली की मनौती मानी, "हे हनुमा.. | Albelakhatri.com सारा हलवा तेरी कुतिया को खिलादूं........ - तुम कहो तो मैं सितारे तोड़ लाऊं तोड़ कर घर तक तुम्हारे छोड़ आऊं तुम कहो तो मैं समन्दर को सुखा दूँ उसका सारा खारापन खा कर पचा दूँ तुम कहो तो बेर का ह... | ज़िन्दगी मैंने तो जीना कब का छोड़ दिया है -मैंने तो जीना कब का छोड़ दिया है एक निर्जीव , स्पन्दनहीन जीवन जी रही थी फिर तुम ठहरे हुए पानी में क्यूँ उम्मीदों के कंकड़ फेंकते हो क्यूँ अपेक्षाओं के बीज बोत... |
चिट्ठा चर्चा ज्ञानविमुख हिन्दी का चिट्ठाकार… -आज सुबह सवेरे जबर्दस्त मानसिक हलचल मची और विचार आया - *“और मुझे लग रहा है कि **चिठ्ठाचर्चा** कुछ समय से जो घर्षण उत्पन्न कर रहा है, उसे देखते हुये उसे ता.. डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक said: अच्छा भोजन परोसा है जी। खुश्बू से ही पेट भर गया! पं.डी.के.शर्मा"वत्स" said: वैसे तो हिन्दी ब्लागिंग की वर्तमान दशा दुर्दशा को देखते हुए ज्ञानदत्त जी ने जो भी चिन्ता जाहिर की...उससे तो कोई भी बुद्धिसम्पन, हिन्दी हिताकांक्षी व्यक्ति असहमत हो ही नहीं सकता किन्तु उनका ये कहना कि भान्ती भान्ती की चिट्ठाचर्चाएं न तो हिन्दी की सेवा कर रही हैं और न ही हिन्दी ब्लागिंग की---इस कथन से सहमत होना थोडा मुश्किल है। ये माना कि अभी अन्य चर्चा मंचों में चिट्ठा चर्चा मंच जैसी गंभीरता, परिपक्वता नहीं दिखाई पडती किन्तु वो लोग भी अपने अपने ढंग से हिन्दी की सेवा तो कर ही रहे हैं....नियमित रूप से चर्चा करते देर सवेर उनमें में वो परिपक्वता आ ही जाएगी। उनके प्रयासों, उनके योगदान को नकार देना मैं तो गलत मानता हूँ। ज्ञानदत जी की उस पोस्ट पर टिप्पणी की सुविधा न होने के कारण ही हमें ये टिप्पणी यहाँ करनी पड रही है। Arvind Mishra said: कुछ बातें जेहन में कौंध गयी हैं - मूल लेख सुधा सिंह का है जो शायद जगदीश्वर जी की शोध स्टुडेंट हैं ... रवि जी ने दूसरे की थाली से हलुआ उड़ा अपनी थाली सजा ली है निश्चय ही साहित्य के गुण अवगुण ब्लॉगर भी सीख ही रहा है . लेकिन स्रोत उधृत कर देने और पैरोडी की ढाल से किसी "साहित्य की चोरी "(प्लैजिआरिज्म ) के आरोप से बचा लिए हैं अपने को. ज्ञानदत्त जी का अपने ब्लॉग पर संवाद का आप्शन रखना या न रखना उनका मौलिक विशेषाधिकार है . मगर यह नौबत आई क्यों? केवल इसलिए ही कि जिम्मेदार, बौद्धिक व्यक्ति का निरंतर डरपोक बनकर तटस्थ होते जाना -राजनीति में इस वृत्ति ने कितना कहर ढा दिया है -केवल क्रिमिनल्स बचे हैं वहां -अब बुद्धिजीवियों ,श्रेष्ठ जनों की निःसंगता, निस्प्रिह्ता और उसी अनुपात में मूर्खों की उद्धतता ने ही ब्लागजगत में यह धमाल मचा रखा है ! इस शुतुरमुर्गी रुख से क्या हासिल होगा ? ज्ञानदत्त जी (अब सीनियर को कुछ कहने की गुस्ताखी कैसे हो ?} हों या डॉ अमर कुमार(जो अक्सर अब अंतिम दृश्य पर प्रगट होते हैं खलीफाई अंदाज में -मुआफी डाग्डर..इसे ही नववर्ष की शुभ कामना (गुड ओमेन, धीठी! समझी जाये!सादर ) या फिर समीर लाल(अब ये तो सखा है, क्या कहें इन्हें !) अपनी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकते. .....और हाँ , यह सही है जिस दुकान पर गुणवत्ता और पेशे की इमानदारी नहीं बरती जायेगी वह बंद ही हो जायेगी एक दिन ...कोई चाहे या न चाहे ... डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक said: "....और मुझे लग रहा है कि चिठ्ठाचर्चा कुछ समय से जो घर्षण उत्पन्न कर रहा है, उसे देखते हुये उसे तात्कालिक रूप से गाड़ दिया जाना चाहिये। साथ साथ; भांति भांति की चिठ्ठाचर्चायें न हिन्दी की सेवा कर रही हैं न हिन्दी ब्लॉगरी की।....." अरे अनूप भाई (फुरसतिया जी) आपको सुझाव मिला है और मेरे जैसे हिन्दी-संस्कृत की घास छीलते-छीलते हुए बूढ़े-तोते को चुनौती दी है भ्राता ज्ञानदत्त पाण्डेय जी ने। बताओ तो सही कब से "चिट्ठा-चर्चा" बन्द कर रहे हो। भ्राता ज्ञानदत्त पाण्डेय जी तो टिप्पणी का द्वार ही बन्द किये बैठे हैं। चुनौतीपूर्ण पोस्ट लगाई थी तो कायरता का परिचय क्यों दिया? |
cmpershad said: "दुर्भाग्य है कि हिन्दी के चिट्ठाकारों में अपने वर्ग की कुण्ठाएँ, चालाकियाँ, दोरंगापन और थोथी नैतिकता का दिखावा बहुत है। " क्या हम भी इस केटेगरी में आते हैं :( "सोच लीजिए भाई चन्द्र मौलेश्वर प्रसाद जी!" |
शुभकामनाएँ : जिन्होंने खिला दी ओंठों पर मधु-मुस्कानओंठों पर मुस्कान खिलाती शुभकामनाएँप्रस्तुतकर्त्ता - रावेंद्रकुमार रवि मुझे कई बच्चों के शुभकामना-पत्र मिले! आप भी देखिए इनकी कुछ झलकियाँ! बुलबुल की चोंच में अंगूर का गुच्छा, नया साल मुबारक़ हो - यही हार्दिक इच्छा! …….. | हिंदी गीति काव्य सलिला : एक अध्ययन गीतिका: तितलियाँ --संजीव 'सलिल' -गीतिका तितलियाँ संजीव 'सलिल' * यादों की बारात तितलियाँ. कुदरत की सौगात तितलियाँ.. बिरले जिनके कद्रदान हैं. दर्द भरे नग्मात तितलियाँ.. नाच र.. Gyanvani व्यक्ति के चार प्रकार - संता और बंता ने व्यक्तित्व निर्माण के लिए विशेष कक्षा में प्रवेश लिया ... पहले ही दिन उपदेशक ने उन्हें पढाया .... " व्यक्तित्व विकास की इस कक्षा में आपका स.. Hindi Tech Blog फिर से रुकावट के लिए खेद है - BSNL के कनेक्शन में फिर से समस्या है पेज बहुत ही देर से खुल रहे है और डाउनलोड तो भूल ही जाइये । नए साल का ऐसा आगाज़ हुआ है BSNL के द्वारा अब एक महीने जब ... अंतर्मंथन गत वर्ष की शुभकामनायें ---देखिये कितनी काम आई --- - आज ही के दिन, एक साल पहले , ३ जनवरी २००९ को मैंने पहली पोस्ट लिखी थी। नव वर्ष की शुभकामनायें --- इस एक साल में कितनी कामनाएं पूर्ण हुई, आइये देखते हैं --.. |
अपनी बद्धमूल धारणाओं को त्याग कर ही किसी सत्य को जाना जा सकता है!!!चाहे देरी से ही सही, सर्वप्रथम तो समस्त इष्ट मित्रों तथा सुधि पाठकों को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाऎँ!!!चलिए अब बात करते हैं मेरी पिछली पोस्ट के बारे में, जिसमें मैने अपने जीवन से जुडे एक विचित्र घटनाक्रम का उल्लेख आप लोगों के सामने किया था। उसमें आपने देखा होगा कि उस घटनाक्रम के विषय में मैने कैसा भी कोई विचार,कोई राय प्रकट नहीं की, बल्कि घटनाक्रम को सिलसिलेवार जस का तस आप लोगों के सामने रखा भर है। जैसा कि मैंने पहले भी कहा कि पिछले कईं महीनों से मैं इसी दुविधा से त्रस्त था कि इस वाकये को यहाँ ब्लाग के माध्यम से पाठकों के समक्ष रखा जाए अथवा नहीं। इस ब्लाग के जो नियमित पाठक हैं, वो मेरी इस दुविधा को भली भान्ती समझ सकते हैं। क्यों कि वो जानते है कि ज्योतिष की सार्थकता नाम के इस ब्लाग का अपने प्रारंभ से सिर्फ एक ही उदेश्य रहा है कि ज्योतिष,आध्यात्म,कर्मकाँड से जुडी निर्मूल भ्रान्तियो, भ्रम,अवधारणाओं को दूर कर वैदिक ज्ञान-विज्ञान के सही परिष्कृ्त स्वरूप से आप लोगों का परि………. |
और अन्त में आज का कार्टून- Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून कार्टून:- एक खरबूजे का छुरी पर निरापद गिरना ... |
अब दीजिए आज्ञा……! लेकिन अपनी टिप्पणियों में इतना जरूर अंकित करने की कृपा करें कि - क्या आप और हम हिन्दी-सेवा और ब्लॉगरी कर रहे हैं या नही? |
मैं तो आजकल बहुत से पोस्ट यहीं से खोलकर पढ़ता हूँ!
जवाब देंहटाएंहिंदी में लिखने से बढ़कर हिंदी की सेवा और क्या हो सकती है?
ब्लॉगिंग के माध्यम से ही तो हिंदी की सेवा का सबसे अनूठा मंच मिला हुआ है!
मेरे विचार से ये तीन वाक्य पर्याप्त हैं!
जाओ बीते वर्ष
नए वर्ष की नई सुबह में
महके हृदय तुम्हारा!
मधु-मुस्कान खिलानेवाली शुभकामनाएँ!
संपादक : "सरस पायस"
:)
जवाब देंहटाएंबहुत दुख हो रहा है इस प्रकार की गुटबाज़ी देखते यह निश्चित रूप से ब्लॉगर्स के हित में कतई उचित नही..शास्त्री जी जहाँ तक आपका सवाल है आपने हिन्दी को एक पहचान दी है ब्लॉग की दुनिया में ..समुचा ब्लॉग जगत इस बात को जनता है..आज की चिट्ठा चर्चा भी बढ़िया लगी..सुंदर प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार..
जवाब देंहटाएंसार्थक शब्दों के साथ अच्छी चर्चा, अभिनंदन।
जवाब देंहटाएंचर्चा तो हो ली। वहाँ नहीं तो यहाँ होली।
जवाब देंहटाएंशाश्त्री जी आपने आज इस संगठित गिरोह के खिलाफ़ आवाज उठाने की जुर्रत की है। असल मे इन लोगों को ये दंभ है कि हिंदी के ये पुरोधा हैं। और बाकी लोग तो मच्छर हैं। हिंदी सिर्फ़ ये ही जानते हैं। और चिट्ठाचर्चा करना सिर्फ़ इनको ही आती है बाकी आप जैसे लोग तो घसखोदे हैं. इन लोगों ने किसी को टिकने ही नही दिया। अब देखते हैं कि आपकी चर्चा कब तक चलेगी?
जवाब देंहटाएंये आप जैसे असली हिंदी के सेवक की इन अधकचरे हिंदी वालो से जंग है। आप इसमे सफ़ल हों यही कामना है।
aanand aaya............
जवाब देंहटाएंचर्चा अच्छी रही । आभार ।
जवाब देंहटाएंसही विषय
जवाब देंहटाएंसही राह।
nice
जवाब देंहटाएंआपकी बेहतरीन चर्चा के साथ हमारा नया संदेश समस्त विरोधों के बाद:
जवाब देंहटाएं’सकारात्मक सोच के साथ हिन्दी एवं हिन्दी चिट्ठाकारी के प्रचार एवं प्रसार में योगदान दें.’
-त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाना जरुरी है किन्तु प्रोत्साहन उससे भी अधिक जरुरी है.
नोबल पुरुस्कार विजेता एन्टोने फ्रान्स का कहना था कि '९०% सीख प्रोत्साहान देता है.'
कृपया सह-चिट्ठाकारों को प्रोत्साहित करने में न हिचकिचायें.
-सादर,
समीर लाल ’समीर’
जानकारी देने का आभार !!
जवाब देंहटाएंबहुत उत्तम चर्चा.
जवाब देंहटाएंरामराम.
आपसे सहमत हूँ शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
क्या बात है? आजकल हर जगह हिन्दी का दम्भ भरा जा रहा है..आपने भी भर दिया और ’anonymous' लोग बोलकर निकल गये....
जवाब देंहटाएंआपको शायद पता ही होगा की हमारी सरकार सालाना ६० करोड रुपये सिर्फ़ हिन्दी के प्रचार प्रसार मे ही लगाती है...हर साल अन्ग्रेज़ी से हिन्दी शब्द निकाले जाते है..उनके मायने तय किये जाते है..और रही बात अन्ग्रेजी शब्दो को हिन्दी मे उपयोग करने की तो वो कहा से गलत है..अन्ग्रेज़ी भी तो अलग अलग ओरिजिन के शब्द उपयोग करती है..जाकर एक बार देखे की हिन्दी ओरिजिन के कितने शब्द है वहा..चटनी, मोहल्ला, समोसा, गली, करुणा इत्यादि..
लेकिन हमारे हिन्दी के मठाधीशो को ये बात नही दिखती..क्यू नही एक आधुनिक हिन्दी बन सकती है जिसमे अन्ग्रेजी भी हो और उर्दु भी...और आप जिस हिन्दी की बात कर रहे है हमारा आम आदमी तो उसे आजकल समझता भी नही...और हान आपने अपने कमेन्ट ओपन करके बहुत बहादुरी का परिचय दिया है उसके लिये जरूर तालिया...हिन्दी को आप आगे बढाईये.. We as an Indian looking towards you.
ललित जी!
जवाब देंहटाएंयहाँ तो टिप्पणी बॉक्स ठीक काम कर रहा है।
शास्त्री जी मै आपसे सहमत हुँ। आप अपना कार्य करते रहें।
जवाब देंहटाएंबढिया चर्चा आभार
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअंतरजाल में अपने अपने प्रयासों से सभी हिंदी भाषा के प्रचार प्रसार के लिए कार्य कर रहे है ... इस हेतु एक व्यक्ति या संस्था को उत्तरदायी नहीं माना जा सकता है ... भाषाओ के विकास की दौड़ में हिंदी भाषा को निरंतर आगे बढ़ने के लिए कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा है .... जिसके फलस्वरूप आज हिंदी भाषा विश्व के समक्ष सम्मानीय भाषा के रूप में स्वीकार की जाने लगी है .... यदि अपनी मातृभाषा के प्रचार प्रसार के लिए हम सबको अनेको चुनौतियों का सामना करने के लिए तत्पर रहना चाहिए यही हमारी राष्ट्र भाषा हिंदी के प्रति सच्ची सेवा होगी .
जवाब देंहटाएंमहेन्द्र मिश्र
हमारा तो ये मानना है कि जो भी इन्सान हिन्दी में लिख रहा है या हिन्दी में लिखे को पढ रहा है तो वो एक तरह से हिन्दी की सेवा ही कर रहा है....
जवाब देंहटाएंबाकी चर्चा एकदम बढिया और सामयिक!!
मयंक साहब, आपको टोपी उतारकर सेल्युट मारता हूं कि इन तथाकथित हिंदी सेवको की जमकर लू उतार दी। आपके रुप मे कोई तो इनको जवाब देने वला मिला वर्ना ये तो अपने आपको स्वयं भू हिंदी सेवक होने का दंभ पाल बैठे थे। जिनको हिंदी का क ख ग आता नही है, उसमे भी a b c मिलाकर कर अपने आपको दूसरो से अलग साहब दिखाने की इनकी कुंठा के सिवाय कुछ नही है. धिक्कर है ...थू...थू ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर और सामयिक चर्चा
जवाब देंहटाएंहिन्दी में लिखा हर एक शब्द हिन्दी की सेवा है
इस बार की चर्चा बहुत अच्छी चल रही है!
जवाब देंहटाएंलगे रहो सच्चे मन से सभी टिप्पणीकारो!
नए वर्ष पर मधु-मुस्कान खिलानेवाली शुभकामनाएँ!
सही संयुक्ताक्षर "श्रृ" या "शृ"
FONT लिखने के चौबीस ढंग
संपादक : "सरस पायस"
सच तो यह है कि हिंदी को किसी के बैसाखियों की आवश्यकता नहीं है। असल में तो हम हिंदी की बैसाखी लेकर लेखन कर रहे हैं- चाहे वह लेखन ब्लाग की शक्ल में ही क्यों न हो॥
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी , चर्चा हमेशा की तरह बहुत ही सुंदर और बढिया लगी ॥ और हां आपका प्रश्न बहुत ही गंभीर है इसलिए सिर्फ़ टीप में मुझ से उसका जवाब नहीं दिया जाएगा । जल्दी ही एक पोस्ट इस आशय पर भी लिखूंगा किसी को जवाब देने के लिए न सही मगर अपनी बात रखने के लिए तो जरूर ही ।
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा !
जवाब देंहटाएंहिन्दी ब्लाग एक बनती हुई दुनिया है। (हिन्दी में)यह एक अपेक्षाकृत नए माध्यम के उभार का का समय है। यह ऐसा समय है जब हमारे समक्ष कोई पूर्ववर्ती परम्परा नहीं है और जब सब कुछ बन रहा है , सबकुछ निर्माण और आकार ग्रहण करने की प्रक्रिया में है तो जल्दबाजी, प्रचुरता , त्वरितता, आत्मश्लाघा,आत्ममुग्धता, छिद्रान्वेषण,उपदेशात्मकता जैसे तात्कालिक खतरे तो उदित और उपस्थित होंगे ही। ऐसा हर नए माध्यम के आरंभ में होता ही है। धीरे - धीरे एक गंभीरता और स्थिरता आती है। हिन्दी ब्लाग का वह समय भी आएगा। थोड़ा धैर्य और इंतजार ।
आत्मानुशासन सबसे बड़ी चीज है और असहमति का साहस और सहमति का विवेक भी।
आप अच्छा काम कर रहे हैं। इसे जारी रखें।
आपके दुःख दर्द और सरोकार को समझा जा सकता है -मगर ज्ञानदत्त जी ने अपनी परतिक्रिया मुख्य रूप से एक ब्लॉग चर्चा को लेकर ही की थी ....
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