"चर्चा मंच" अंक-43 चर्चाकारः डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक" आज के "चर्चा मंच" को सजाते हैं- कुछ पोस्टों के शीर्षकों के साथ।
आप इन पर आयीं टिप्पणियों का भी आनन्द लीजिए-
वास्तव में पोस्ट में निखार तो आपकी टिप्पणियों से ही आता है। सबसे पहले आपको ले चलते हैं- 3 टिप्पणियाँ: - Sanjeet Tripathi, January 27, 2010 12:51 PM
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बात सही, तार्किक है। सहमत। -
- पी.सी.गोदियाल, January 27, 2010 1:03 PM
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एकदम सही, ब्लोग्गर यदि सार्वजनिक मंच पर आया है तो पाठक का फर्ज बनता है की यदि उसे उसके लेखन में रूचि अथवा कोई बार बुरी लगी तो इससे उसे अवगत कराये ! -
- खुशदीप सहगल, January 27, 2010 1:34 PM
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अवधिया जी, टिप्पणी के बारे में जो भी कहा जाए लेकिन ये तो तय है कि हर ब्लॉगर को अपने लिखे पर प्रतिक्रिया मिलने में असीम संतोष मिलता है...ज़रूरी नहीं कि आप हर पोस्ट पर टिप्पणी करे...लेकिन जहां भी करें वो टिप्पणी उस पोस्ट की पूरक या उसे विस्तार देने वाली हो...कुछ तथ्य अगर पोस्ट में छूट रहे हों तो आप उसे टिप्पणी के ज़रिए देकर पोस्ट का रूप और निखार सकते हैं...और सेंस ऑफ ह्यूमर का सटीक उपयोग किया जाए तो पोस्ट लिखने वाले और दूसरे पढ़ने वालों के चेहरे पर मुस्कान भी लायी जा सकती है...यानि सोने पे सुहागा... जय हिंद... | ताऊ डॉट इन
आज की यह अतिथि पोस्ट श्री समीर लाल "समीर" की है. बहुत आभार!श्री समीर लाल "समीर"प्रकृति की अनुपम खूबसूरत कलाकृति-इटली का सांस्कृतिक एवं व्यापारिक केंद्र-वेनिस.पूरा शहर सड़को की बजाय जल मार्गों से जुड़ा है और परिवहन का मुख्य साधन नाव है जिसे गंडोला कहा…… | वीर बहुटी - पुस्तक समीक्षा द्वारा- श्रीमती निर्मला कपिला Udan Tashtari said... बेहतरीन समीक्षा...अब तो रुका नहीं जा रहा पुस्तक पाने के लिए...कहाँ गया दीपक!!! January 26, 2010 7:32 PM दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi said... अच्छा प्रयास है। हर समीक्षा पुस्तक परिचय से आरंभ होती है। यह उस से कुछ आगे की चीज बन गई है। आप दो चार पुस्तकों की समीक्षा करेंगी तो हाथ मंज जाएगा। इस काम की ब्लागीरी में कमी है। समीक्षा के बिना लेखन आगे नहीं बढ़ता। समीक्षा आरंभ होनी चाहिए। यहाँ समीक्षा करने वाला या तो केवल तारीफ ही करता है आलोचना का अभाव है। इसे ऐसे आरंभ किया जा सकता है कि लेखक खुद समीक्षा का प्रस्ताव समीक्षक से करे और समीक्षक से सभी तरह की समीक्षा झेलने को तैयार रहे। जब कुछ समीक्षाएँ हो लेंगी और उन का प्रभाव देखने को मिलेगा तो यह सिलसिला भी चल निकलेगा। इस की बहुत जरूरत है। इस के बिना ब्लागीरी में लोग बिना मँजे रह जाएंगे। लोग तो जूता भी बिना पालिश के नहीं पहनते। ब्लागीरों को पालिश की जरूरत है। January 26, 2010 7:37 PM Kulwant Happy said... मशाल भाई को...सलाम और माँ को सजदा। 'माँ तेरी बेबसी आज भी मेरी आँखों मे घूमती है तुमने तोड़े थे सारे चक्रव्यूह कौन्तेयपुत्र से भी अधिक जबकि नहीं जानती थीं तुम निकलना बाहर.... या शायद जानती थीं पर नहीं निकलीं हमारी खातिर, अपनी नहीं अपनों की खातिर' January 26, 2010 7:41 PM पी.सी.गोदियाल said... सुन्दर समीक्षा निर्मला जी और दीपक जी को ढेरो शुभकामनाये ! निशंदेह इस युवा साहित्यकार के पास साहित्य का बहुत बड़ा खजाना है ! January 26, 2010 8:45 PM seema gupta said... बहुत सुन्दर समीक्षा , रोचक लगा पढना.... regards January 26, 2010 9:01 PM sada said... आपने बहुत ही सुन्दर पुस्तक समीक्षा की, बारीकी से हर कविता की गहराई को महसूस किया, दीपक जी को बहुत-बहुत बधाई इस उपलब्धि पर, शुभकामनायें । January 26, 2010 9:04 PM Creative Manch-क्रिएटिव मंच said... आपने बेहतरीन समीक्षा की भाई दीपक मशाल जी को ढेरो शुभकामनाये ! January 26, 2010 9:46 PM अजय कुमार said... अच्छी समीक्षा , दीपक जी को बधाई January 26, 2010 10:14 PM भारतीय नागरिक - Indian Citizen said... मैं इसे दोबारा पढ़ूंगा. समीक्षा को. January 26, 2010 10:21 PM दिगम्बर नासवा said... पुस्तक की समीक्षा बहुत लाजवाब तरीके से की है .......... ख़ास ख़ास रचनाओं को बहुत असरदार तरीके से प्रस्तुत किया है आपने .......... दीपक जी की संवेदना झलकती है उनकी रचनाओं में ......... January 26, 2010 11:28 PM वन्दना अवस्थी दुबे said... बहुत शानदार और विस्तृत समीक्षा. बधाई. January 26, 2010 11:30 PM arvind said... बहुत अच्छी पुस्तक और उतनी ही अच्छी समीक्षा,........जब मां के हाथों मां पर लिखी गयी पुस्तक की समीक्षा हो,तो उत्कृष्ट होना स्वाभाविक ही है. January 27, 2010 1:01 AM डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक said... पुस्तक तो देखी नही है लेकिन समीक्षा से आभास होता है कि बहुत कुछ खास होगा इसमें। January 27, 2010 1:22 AM | डॉ श्रीमती अजित गुप्ता प्रकाशित पुस्तकें - शब्द जो मकरंद बने, सांझ्ा की झंकार (कविता संग्रह), अहम् से वयम् तक (निबन्ध संग्रह) सैलाबी तटबन्ध (उपन्यास), अरण्य में सूरज (उपन्यास) हम गुलेलची (व्यंग्य संग्रह), बौर तो आए (निबन्ध संग्रह), सोने का पिंजर---अमेरिका और मैं (संस्समरणात्मक यात्रा वृतान्त) आदि। 2 comments: -
दिगम्बर नासवा said... -
आपकी पोस्ट में आशा की किरण नज़र आती है ....... काश देश के हर गाँव में कोई पमली पैदा हो सके ........ गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ ........ - January 27, 2010 12:46 PM
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खुशदीप सहगल said... -
अजित जी, हर गांव में ऐसे ही पूजाओं की गिनती बढ़ने लगे तो देश का आज तो सुधरेगा ही, आने वाला कल भी इस बदलाव के लिए हमेशा ऋणी रहेगा... जय हिंद... - January 27, 2010 1:10 PM
| जो दिखता है आस - पास मन उससे उद्वेलित होता है उन भावों को साक्ष्य रूप दे मैं कविता सी कह जाऊँ | विज्ञान केन्द्रित विचारों और वैज्ञानिक पद्धतियों से परिचित कराने का एक विनम्र प्रयास। | नन्हा दिन जाड़े का रोक सका कौन गुरसी में आग लोग मुद्दों पे मौन ? 1 टिप्पणियाँ: -
निर्मला कपिला said... -
ये माजरा क्या है अपनी समझ मे तो आया नहीं मगर इस बात से सहमत हूँ "एकला चलो लेकिन बहु जान हिताय जात्रा करो'' धन्यवाद्
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Dimps ने कहा… -
Hello, Twaanu lakh-lakh vadhaiyan ho ji :) Bahut sundar likha hai... harr rachna mein aap aur motiii piro dein, aapko meri taraf se bahut shubhkaamnaaiyan :) Prem Sahit, Dimple - २७ जनवरी २०१० २:०३ AM
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वन्दना ने कहा… -
50 vi post ki hardik badhayi. bahut sundar bhav. pls read --------http://ekprayas-vandana.blogspot.com - २७ जनवरी २०१० २:२६ AM
| एक प्रयास
सुरेन्द्र "मुल्हिद" ने कहा… aafareen aafareen Vandana ji.. follower bann gaya hoon aata rahunga! २७ जनवरी २०१० २:३६ AM रजनीश के झा (Rajneesh K Jha) ने कहा… bahut khoob , badhaii sweekariye. २७ जनवरी २०१० २:४५ AM डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक ने कहा… बिल्कुल सटीक! जो इस घोड़े को लगाम लगा लेता है, वो सँवर जाता है! जो आवारा छोड़ देता है वो...........! २७ जनवरी २०१० २:४७ AM rashmi ravija ने कहा… ओह्ह कटु सत्य बयाँ कर दिया आपने तो...यथार्थपरक पंक्तियाँ २७ जनवरी २०१० २:४७ AM - २७ जनवरी २०१० २:४७ AM
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अजय कुमार ने कहा… -
सपने और यथार्थ का अच्छा चित्रण ,यही जिंदगी है - २७ जनवरी २०१० २:४९ AM
संगीता पुरी ने कहा… -
जीवन की सच्चाई बयान की है आपने .. बहुत सटीक लिखा है!! -
२७ जनवरी २०१० २:५७ AM -
मनोज द्विवेदी ने कहा… -
nice - २७ जनवरी २०१० ३:०३ AM
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महफूज़ अली ने कहा… -
सच में सच्चाई बयाँ करती सुंदर कविता..... - २७ जनवरी २०१० ३:०५ AM
- महेन्द्र मिश्र ने कहा…
बेहतरीन प्रस्तुति वंदना जी ...बधाई. - ह्रदय पुष्प ने कहा…
बेहद सटीक, सार्थक और शिक्षाप्रद - "बेलगाम घोडा". "अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत" ना कहना पड़े इसलिए समय रहते इस पर "लगाम" लगाना अतिआवश्यक है. - दिगम्बर नासवा ने कहा…
शायद इसलिए ग्यानि कहते हैं ....... मन को बांधो ........नियम में रहना सीखो नही तो ये बेलगाम घोड़े ही उड़ान का अंत ऐसे ही होगा ............. बहुत अच्छा संदेश छिपा है इस रचना में .......... - नीरज गोस्वामी ने कहा…
वंदना जी लाजवाब रचना...बधाई... नीरज - अमिताभ श्रीवास्तव ने कहा…
yes jeevan isi ka naam he, belagaam ghoda kah le yaa kuchh..is par lagaam to mruty bhi nahi lagaa saki he... vese utkrasht rachnaa he. - मनोज कुमार ने कहा…
जीवन की अभिव्यक्ति का सच।
| ये ज़िंदगी के मेले दुनिया में कम न होंगे, अफ़सोस हम न होंगे | तेताला
| Kavymanjusha
| ज्ञानदत्त पाण्डेय की मानसिक हलचल
| काव्य मंजूषा
एक पुरानी कविता.... - parimal-अदा जी,आज आपकी दो प्रविष्ठी पढ़ लीसमय का आभाव है इनदिनों, लेकिन पढूंगा ज़रूरयह कविता जीवन की सच्चाई का बखूबी उकेर गयी हैबहुत बड़ा सत्य बता रही है आपकी
- Arvind Mishra-सुन्दर रचना , अंग्रेज कवि फ्रास्ट की एक कविता की याद दिला गया ..कभी सुनाउगां !
- वाणी गीत-मैं जहाँ चलूँ ...मेरा घर मेरा वतन साथ चलता है ....जिस तक पहुँचते मेरे पाँव थके ....वह तो सिर्फ मकां ही होगा ....और कई बार यूँ भी चलना अच्छा लगता है
- RaniVishal-सच कहा अदाजी आपने, अपनी अदा में की "प्रगति" एक निरंतर चलते रहने वाली प्रक्रिया है अतएव प्रगतिशील मनुष्य कभी रुक नहीं सकता !!सुन्दर वर्णन
- मनोज कुमार-बेहतरीन।
- गिरिजेश राव-बड़के भैया नहीं सुनाए,मैं सुना देता हूँ। रॉबर्ट फ्रॉस्ट की कविता का यह मेरा अनुवाद:"गहन एकांत वन तिमिर शांतपरंतु प्रतिज्ञाएँ पड़ी उद्भ्रांतऔर
- जी.के. अवधिया-"निरंतर....हम चलते ही रहते हैं,"चलना ही जिंदगी है ...
- 'अदा'-गिरिजेश जी ,बहुत अच्छी कविता पढ़वा दी आपने..अजी आपका अनुवाद क्या कहें ...एकदम लाजवाब...The woods are lovely, dark and deep,But I have promises to
- Kusum Thakur-प्रगति की परिभाषा अच्छी लगी .....!!
- Udan Tashtari-हम चलते ही रहते हैं,घर, कभी नहीं आता,शायद 'प्रगति' इसे ही कहते हैं...-बहुत सही कहा...ऐसा ही है!!शानदार रचना!
- VICHARO KA DARPAN-bahut badhiya .....chalte rhena hi zindagi ka naam hai
- Mithilesh dubey-अच्छा लगा प्रगति की व्याख्यान , बहुत खुब ।
- Apanatva-Bahut sunder rachana aur ye hee hai aaj ka jeevan darshan peeche na rah jane kee chah kadam thamne nahee detee.
- पी.सी.गोदियाल-बिना रुके लगातार, निरंतर....हम चलते ही रहते हैं,घर, कभी नहीं आता,शायद 'प्रगति' इसे ही कहते हैंसुन्दर रचना अदा जी,
| Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून कार्टून :- आस्ट्रेलिया के खींच के ट्विट्टर मारूंगा.. अनूप शुक्ल said... जय हो! क्या खींचा है, क्या मारा है। January 27, 2010 7:54 AM ताऊ रामपुरिया said... बहुत सटीक दिया.:) रामराम. January 27, 2010 8:49 AM Udan Tashtari said... सही!!!!!!!!!!!! January 27, 2010 9:14 AM निर्मला कपिला said... वाह बहुत बडिया January 27, 2010 9:32 AM seema gupta said... ha ha ha ha regards January 27, 2010 9:53 AM पी.सी.गोदियाल said... हा-हा , इससे ज्यादा कुछ कर भी नहीं सकते ! January 27, 2010 9:59 AM संजय बेंगाणी said... अब ऑस्ट्रेलिया की ऐसी-तेसी हुई समझो. January 27, 2010 11:00 AM भारतीय नागरिक - Indian Citizen said... very nice. kam se kam ye to kar sakte hain. January 27, 2010 11:47 AM राज भाटिय़ा said... :)जल्दी मारो अभी तक सोच रहे हो:) January 27, 2010 3:29 PM |
- संगीता पुरी
- बोकारो, झारखंड, India
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अन्तर सोहिल ने कहा… -
कोशिश करेंगें जी 29-30 को 4 बजे से 6 बजे के बीच शायद दिल्ली में हम भी देख पायें यह नजारा (अगर नंगी आंखों से देखा जा सका तो) इस जानकारी के लिये धन्यवाद प्रणाम स्वीकार करें - २७ जनवरी २०१० ३:२८ PM
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वन्दना ने कहा… -
bahut hi badhiya jankari di sath hi gyan bhi badha........shukriya. - २७ जनवरी २०१० ४:२२ PM
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राज भाटिय़ा ने कहा… -
अरे दो तीन दिन बाद होता तो हम भी देख लेते, हमारे यहां तो बर्फ़ गिर रही है ओर पिछले तीन महीनो मे सुर्य देवता के दर्शन भी एक दो बार ही हुये है तो इस नजारे को कहा देख पायेगे?लेकिन बहुत अच्छी जानकारी, बहुत से लोग जिन्हे नही पता था अब उन्हे भी पता चल गया. धन्यवाद - २७ जनवरी २०१० ४:२९ PM
| भारतीय नागरिक - Indian Citizen चित्र पहेली का उत्तर कुछ अन्य चित्रों के साथ 2 comments: -
अमृत कुमार तिवारी said... -
दोस्त बेहद प्रसन्नता हो रही है कि आप मेरे ब्लॉग का रुख किए। क्योंकि उसी के बदौलत आप के ब्लॉग पर आकर मेरी हौसला आफजाई हुई है। आप जैसे लोग ये प्रेरणा देते हैं कि अभी थकना नहीं है। जब तक जीवित रहना है प्रतिरोध करते रहना है। अराजकता और अव्यवस्था के खिलाफ। धन्यवाद - January 27, 2010 3:44 PM
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राज भाटिय़ा said... -
सव्ही विजेतओ को बधाई, लेकिन इन ट्रक वालो के बिरुध कार्यवाही क्यो नही होती? जब कि सब इन्हे सरे आम देखते है - January 27, 2010 4:23 PM
आज के लिए
- केवल इतना ही…
कल फिर किसी
- नये अन्दाज से
चर्चा करूँगा!
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एक नया ही तरीका इजाद कर दिया आपने... अच्छा लगा.. बधाई..
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
ये भी खूब अंदाज रहा चर्चा का मय टिप्पणी..वाह!! जारी रहिये!
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया चर्चा-शास्त्री जी, शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंजायका बदलते रहने से रूचि बनी रहती है
बी एस पाबला
ये नया अंदाज़ बहुत पसंद आया धन्यवाद
जवाब देंहटाएंहिन्दी ब्लॉग जगत के लिए आपकी मेहनत काबिले तारीफ है !!
जवाब देंहटाएंटिप्पणियों के साथ चर्चा करना अच्छा लगा। बधाई।
जवाब देंहटाएंBahut Bahut Aabhar..!!
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी, टिप्पणीमयी चर्चा का ये अन्दाज भी मन भाया!
जवाब देंहटाएंआभार्!
शास्त्री जी आपने इतने सुन्दर रूप से टिप्पणियों के साथ साथ चर्चा किया है कि आपकी इस मेहनत की जितनी भी तारीफ़ की जाये कम है! बहुत बहुत बधाई!
जवाब देंहटाएंShastri ji,
जवाब देंहटाएंbahut hi bdhiya rahi aapki charcha..
meri prsvishthi ko sthaan diy aapne..
hriday se abbhar..
itnee badhiya charcha hai...tippaniyon ke tadke ke saath...maza aa gaya....
जवाब देंहटाएंwaah waah shastriji
जवाब देंहटाएंbahut hi mehnat ki hai aur ye naya andaz to bahut hi badhiya laga..........shukriya.
अरे वाह बहुत खूब लगा आपका ये नया अंदाज ।
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