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शुक्रवार, मई 07, 2010

हुज़ूर आप फर्ज़ भी निभाइए,मगर जरा…..(चर्चा मंच-146)

panditastro(डी.के.शर्मा“वत्स”) पिछले चन्द दिनों से यही देखने में आ रहा है कि समूचा ब्लागजगत सिर्फ निरूपमा राय और अफजल कसाब पर ही केन्द्रित होकर गया है.जहाँ अधिकतर जागरूक एवं बुद्धिजीवी टाईप के ब्लागर इन दोनों मुद्दों का अपनी अपनी समझ अनुसार पोस्टमार्टम करने में लगे हुए हैं…वहीं कुछ हमारे जैसे ब्लागर जिन्हे कि देश और दुनिया की बात तो बहुत दूर रही,ये तक भी नहीं पता होता कि अपने खुद के पडोस में क्या चल रहा है---वो बेचारे अपने में ही निमग्न,ब्लाग पर कविता,कहानियाँ छापकर ही आनन्दित हुए जा रहे हैं……खैर जो है, सो है….आप तो ये लिंक्स देखिए….
anujयहाँ देखिए अनुज खरे जी कैसे शराफत की केंचुली उतारने में लगे हैं.उनका कहना है कि देश में मूल रूप से शराफत की दो किस्में पाई जाती हैं। एक अभी वाली,एक पुराने जमाने वाली। पुराने जमाने वाली में एक अतिरिक्त समस्या यह भी थी कि उसे लगातार ओढ़े रहना पड़ता था। लगातार ओढ़े-ओढ़े एक दिन शराफत कवच की तरह शरीर से चिपक जाती थी। फिर आदमी भले ही उसे छोड़ना चाहे,शराफत उसे नहीं छोड़ती थी।लेकिन अब वक्त बदल चुका है। वर्तमान में शराफत की जरूरत थोड़ी अलग तरह की है। अब शरीफ दिखना सब चाहते हैं,होना कोई नहीं चाहता।

                                     एक निडर लड़की का समाज के नाम खुला पत्र…सुश्री फौजिया रियाज84930027

समाज!

  

सुना है आज कल तुम मुझसे बहुत परेशान हो. मेरी दिन ब दिन बढ़ती हिम्मत ने तुम्हारी नीदें उड़ा दी हैं तो सोचा आज आमने सामने बात हो ही जाए. तुम कहाँ से शुरू हुए इसका कुछ सीधा-सीधा पता तो है नहीं मगर कहते हैं जब औरत और मर्द ने साथ रहना शुरू किया तुम्हारी नीव वहीँ पड़ी. तुम्हे मुझसे बहुत सी शिकायतें हैं और वक़्त बेवक्त तुमने इन शिकायतों के चलते मुझ पर अनगिनत वार भी किये हैं.

वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता मे:श्रीविनोद कुमार पांडेय
 

जूता-चप्पल का महत्व,इस युग मे रंग जमाया है,

लोकतंत्र के गुरुओं ने, जूता,चप्पल अपनाया है,


संसद की रंगत बन कर,सबको मनोरंजन बाट रहें,
कभी काटते थे पैरों को,आज ये चाँदी काट रहें,
गाँव,गली कस्बे से लेकर संसद तक आबाद है ये,

 

कही लगा कुछ दिल को भारी,जूता जिंदाबाद है ये,

   शहर में गालिब की आबरू क्या है         श्री प्रभात रंजन       prabhat_small

गरीबी का अपना एक अलग सौन्दर्य होता है-ऐसा सुना है । आजकल देख रहा हूं । सौन्दर्य भी ऐसा कि कलेजा मुंह को आता है और हाथ हड़बड़ाहट में कलेजे तक जाता है। पूरा मोहल्ला उसे देखने की बाट जोहता रहता है। दिख जाए तो आफत ना दिखे तो आफत। बस यूं समझें कि कमबख्त दिल को चैन नहीं है किसी तरह-वाली पोज में मोहल्ला पलक पावड़े बिछाए रहता है।

आखें, आप इन्हें पंद्रह मिनट दें ये आपका उम्र भर साथ देंगी.…गगन शर्मा

Image0792[4]लगातार कंप्यूटर आदि पर काम करने से आंखों के गोलकों पर भारी दवाब पड़ता है जिससे छोटी-छोटी नाजुक शिरायें क्षतिग्रस्त हो जाती हैं इससे खून का दौरा बाधित हो नुक्सान पहुंचाता है और मजे की बात यह कि इतना सब घट रहा होता है पर पता नहीं चलता।डाक्टरों का कहना है कि लोग काम में ड़ूब कर पलकें झपकाना ही भूल जाते हैं जो की आंखों की बिमारी का एक बड़ा कारण है।

 

इंटरनेट की लत ने कराई माँ की हत्या......! ललित शर्मा

mail-1इंटरनेट की लत से बड़ी समस्या पैदा हो गयी है! एक नौजवान ने अपनी माँ को इसलिए मार डाला क्योंकि उसकी हर समय इंटरनेट पर लगे रहने की आदत से परेशान था। इसलिए दक्षिण कोरि्या की सरकार ने लोगों की इंटरनेट की लत से छुटकारा दिलाने के लिए विशेष अभियान चलाया है जिसमें विशेषज्ञ के साथ काउंसलिंग सेवा भी शामिल है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

जात मज़हब एह इश्क़ ना पुछदा, इश्क़ शरा दा वैरी(फ़िरदौस ख़ान)                  

बुल्ले शाह पंजाबी के प्रसिध्द सूफ़ी कवि हैं। उनके जन्म स्थान और समय को लेकर विद्वान एक मत नहीं हैं,लेकिन ज़्यादातर विद्वानों ने उनका जीवनकाल 1680ईस्वी से 1758 ईस्वी तक माना है। तारीख़े-नफ़े उल्साल्कीन के मुताबिक़ बुल्ले शाह का जन्म सिंध (पाकिस्तान)के उछ गीलानीयां गांव में सखि शाह मुहम्मद दरवेश के घर हुआ था। बुल्ले शा

ह मज़हब

के सख्त नियमों को ग़ैर ज़रूरी मानते थे। उनका मानना था कि इस तरह के नियम व्यक्ति को सांसारिक बनाने का काम करते हैं। वे तो ईश्वर को पाना चाहते हैं और इसके लिए उन्होंने प्रेम के मार्ग को अपनाया,क्योंकि प्रेम किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं करता।वे कहते हैं--

करम शर दे धरम बतावन

संगल पावन पैरी।

 

जात मज़हब एह इश्क़ ना पुछदा

इश्क़

शरा दा वैरी॥

 

भद्र समाज इन्हें बुरी औरत एवं कुल्टा के रूप में देखता है----------(मिथिलेश दुबे)

DSCN5435नारी का अर्थ यदि सृजन,प्रकृति और सम्पूर्णता है तो आज बाजार में तीनों नीलाम हो रहे हैं। और,यह नीलामी जीवन की नसतोड़ यंत्रणाओं और भुखमरी की कोख से उपजती है, जाने कैसे एक आम धारणा लोगों में है कि वेश्याएँ बहुत ठाट-बाट से रहने के लिए यह रास्ता अपनी इच्छा से पकड़ती हैं। यह सत्य उतना ही है जितना पहाड़ के सामने राई। 85 प्रतिशत वेश्यावृत्ति जीवन की चरम त्रासदी में भूख के मोर्चे के विरुद्ध अपनाई जाती है। 10 प्रतिशत वेश्यावृत्ति धोखाधड़ी से उपजती है,यह धोखाधड़ी प्रेम के झूठे वादे,नौकरी प्रलोभन,शहरी चकाचौंध से लेकर एक उच्च और सम्मानित जीवन के सब्ज़बाग दिखाने तक होती है। असन्तुलित विकास, बेकारी, उजड़ते गाँव पारम्परिक शिल्प और घरेलू उद्योगों के विलुप्त हो जाने से शहरों की तरफ बढ़ता पलायन....आदि संभावनापूर्ण ‘इनपुट’हैं इन लालबत्ती इलाकों के।

                                  'अपराध उद्योग' को हार्दिक शुभ-कामनाये ! बाँट रहे हैं श्री पी.सी.गौदियालDSC02736

यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि हम हिन्दुस्तानियों में स्वजागृति की हमेशा कमी रही है, और जो बात हम डंडे के बल पर ज्यादा अच्छे ढंग से समझ पाते है, वह प्यार-प्रेम से नहीं समझ पाते ! ( We deserve to be ruled ) और काफी हद तक वो कहावत भी हम पर चरितार्थ होती है “उंगली पकड़कर पौंचा पकड़ना"!और इस देश में एक आदमी को भले ही दो जून की रोटी ठीक से न मिलती हो, मगर जेलों में तो खाने की गुणवत्ता चेक करने के लिए भी निरीक्षक है ,डाक्टर लगे है !हा-हा ,ज्यादा न कहकर बस यही कहूंगा कि भगवान् बचाए इस देश को !

मैं साधु….विशाल कश्यप                                                                                   3081836966_7945315150   मैं साधु था चला साधने, जीवन के गलियारों को

                                            मंजीरा हथियार बना, केसरिया ध्वज फहराने को

                                            जटा सुशोभित मस्तक पर है, प्रकाश पुंज फैलाने को

                                            मैं साधु था चला मापने, ईश्वर के पैमाने को
                                                                                           
इधर स्मार्ट इन्डियन अनुराग शर्मा जी सीरिया की शराब और देवासुर संग्राम में
कोई आपसी सम्बंध खोजने में लगे हुए हैं…..
 anurag-sharma-gm

इतिहासकारों के हिसाब से सुरस्थान के उत्तर में उनका पड़ोसी राष्ट्र था असुरस्थान. कभी यह द्विग्म सुरिस्तान-असुरिस्तान कहलाया तो कभी सीरिया-असीरिया.असीरिया के निवासी असीरियन,असुर या अशुर हुए और सुरिस्तान के निवासी विभिन्न नामों से प्रसिद्ध हुए. जिनमें एक नाम सूरी भी था जिसका मिस्री भाषा में एक रूप हूरी भी हुआ. संस्कृत/असंस्कृत का स और ह का आपस में बदल जाना तो आपको याद ही होगा.तो हमारा अंदाज़ ऐसा है कि अरबी परम्पराओं की हूर का सम्बन्ध इंद्रलोक की अप्सराओं से है ज़रूर.

है चेतावनी !......सुश्री संगीता स्वरूप

 


पुरुष ! तुम सावधान रहना ,
बस है चेतावनी कि…..

तुम अब ! सावधान रहना .
पूजनीय कह नारी को
महिमा- मंडित करते हो
उसके मान का हनन कर
प्रतिमा खंडित करते हो

शहर की हवाएँ बदलने लगी हैं ....

सुश्री स्वपन मंजुषा शैल ‘अदा’
 

ज़िन्दगी की तह अब उतरने लगी है

 

 

अश्कों की तासीर बदलने लगी है

 

वो जो हरारत सी हमको हुई थी 
उन्हें देख तबियत सम्हलने लगी है

 

ना झाँका करो झरोखे से बाहर

 

शहर की हवा अब बदलने लगी है

गज़ल……गजलकार जनाब सर्वत एम.

 

 

भला ये कोई ढंग है, मिला के हाथ देखिए  

 

तमीज़ तो यही है ना कि पहले ज़ात देखिए 

Picture 072

 

हुज़ूर आप फर्ज़ भी निभाइए मगर जरा 

 

ये थैलियाँ भी देखिए, तअल्लुकात देखिए 

 

कहीं भी सर झुका दिया,नया खुदा बना लिया 

 

गुलाम कौम को मिलेगी कब निजात, देखिए

मुझे नही पता ,आप ही बताइये यह जीवन क्या हैं ?…पूछ रहे हैं शरद कोकास

red laugh आप कहेंगे यह भी कोई सवाल है । सही है आप में से ऐसा कोई नहीं होगा जिसने कभी इस प्रश्न के बारे में न सोचा हो । अभी इस सवाल के उत्तर में आप धड़ाधड़ लिखना शुरू कर देंगे । कोई कहेगा ज़िन्दगी एक पहेली है कोई कहेगा जीवन पानी का बुलबुला है ,जीवन एक उड़ती हुई पतंग है,जीवन एक साँप है,जीवन एक सज़ा है ,एक उड़ता हुआ पंछी है,वगैरह वगैरह ।


                                                                   कार्टून
जब कसाब को फांसी क़ी सजा सुनाई गयी तब ज़रदारी के चमचे ने उनसे क्या कहा?देखिये..कार्टूनिस्ट इरफान

कार्टून : कसाब तो बच्चा है जी
    बामुलाहिजा
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आइये स्वागत करें अपनी बहिन-बेटी के अविवाहित मातृत्व का..रायटोक्रेट कुमारेन्द्र

untitled शीर्षक देखकर चौंक गये होंगे पर चौंकिये नहीं,अब यही होने वाला है समाज में अगले कुछ वर्षों में। हाल के कुछ वर्षों में हमने समाज में जिस तरह से शारीरिक सम्बन्धों के स्वरूप को जिस प्रकार से मान्यता देने का काम किया है उसके अनुसार ऐसा होना आश्चर्य भरा नहीं लगता है।शारीरिकता को,सेक्स को प्रमुखता देने वाले समाज में अभी अधिसंख्यक लोग नहीं हो सके हैं किन्तु प्रत्यक्ष रूप से सेक्स का,आपसी सम्बन्धों में खुलेपन का,शारीरिक सम्बन्धों के किसी भी स्वरूप का समर्थन करने वालों की संख्या पर्याप्त है। विद्रूपता यह है कि इस तरह के लोगों का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन करने वालों के कारण इनकी तादाद अधिसंख्यक के रूप में सामने आने लगेगी।

 

 

 

साहस उतना ही दिखाना चाहिए जितना हममे है ....विचारों का बवंडर उठा है सुश्री वाणी गीत के मन में

pic00759 नारी सम्मान पर बड़ी-बड़ी बातें करने वालों से मैं पूछना चाहती हूँ कि....यदि उनकी भाभी/चाची या और कोई महिला सदस्य जो उनके परिवार में ब्याह कर आई हैं...यदि अपने पति द्वारा प्रताड़ित हैं...और उसके खिलाफ कानूनी कार्यवाही करना चाहती है...तब भी क्या वे अपने परिवार के विरुद्ध उस महिला के पक्ष में खड़े होने का साहस दिखा सकते/सकती हैं....नहीं....कोई नहीं करता ऐसा...नहीं कर सकता ऐसा...साहस उतना ही दिखाना चाहिए जितना आपमें है...यदि आप नारी सम्मान की शुरुआत अपने परिवार से नहीं कर सकते तो गाल बजाना छोड़ दे....
इसलिए ही मेरा जोर इस बात पर रहता है कि हमें वही होना चाहिए जो हम दिखाना चाहते हैं...हमारी कथनी और करनी का दोगलापन ही सड़ांध मारती इस व्यवस्था का प्रमुख कारण है...आज जो बड़े-बड़े गुरु महात्माओं का असली सच सामने आ रहा है....वह इसी दोहरेपन की विसंगति है...

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18 टिप्‍पणियां:

  1. खूब चुन-चुन के लाये हैं हर किस्म की पोस्ट. विविधता बनाए रखने के लिए धन्यवाद!

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  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  3. अच्छी चर्चा है , अच्छे लिंक मिले

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  4. वाह पंडितजी आप तो इस विधा के भी माहिर हैं. बहुत लाजवाब चर्चा की आपने. आजकल चर्चामंच ही एक ऐसा मंच है जहां नियमित चर्चा होती है. इसके लिये शाश्त्रीजी को भी बहुत धन्यवाद.

    रामराम.

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  5. बहुत बढ़िया चर्चा है ... ढेर सारे अच्छे लिंक मिले और अच्छी रचनाओं को पढ़ पाने का सौभाग्य हुआ

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  6. सुंदर चिट्ठा चर्चा के लिए हार्दिक बधाई

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  7. सुंदर चिट्ठा चर्चा के लिए हार्दिक बधाई !!

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  8. बहुत बढ़िया चर्चा पंडित जी.बढ़िया लिंक मिले.

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