सभी पाठकों को डी.के.शर्मा”वत्स” की ओर से राम-राम, नमस्ते, सलाम, सत श्री अकाल,जय हिन्द….आज समय की कमी के चलते बिना आपसे कुछ कहे सुने सीधे चर्चा शुरू करते हैं….अपने द्वारा पढी गई चन्द पोस्टस को एकत्रित कर आज का ये चर्चा मंच सजा दिया है…..आप पढिए और आनन्द लीजिए……जै राम जी की! |
इहाँ देखिए भईया मनोज कुमार जी देसिल बयना में क्या मजेदार रचना पोस्ट किए हैं…….आनन्द लीजिए…क्या अँधा के जागे और क्या अंधा के सोये.!! |
ये देखिए अपने छुटके भईया मिथिलेश दुबे अपने वही पुराने तेवरों के साथ जमे हुए हैं. लिखते हैं कि…आजादी का अर्थ निरंकुशता और अनुशासनहीनता कतई नहीं है--मिथिलेश दुबे आजादी का सीधा अर्थ होता है किसी पर निर्भर न होना,आत्मसम्मान के साथ सर उठा कर जीना। लेकिन आज लोग अपने निजी स्वार्थो के लिए आजादी को मनचाहे ढंग से परिभाषित करते हैं। दूसरों की असुविधा को ध्यान में रखे बिना हर काम अपनी मनमर्जी से करने, अनुशासन के नियमों को तोडने और पश्चिमी सम्यता का अंधानुकरण करते हुए शरीर दिखाने वाले कपडे पहनने को आजादी कतई नहीं माना जा सकता। |
यहाँ गौदियाल जी बता रहे हैं कि लव-जेहाद में नया ट्विस्ट लाएगा इलाहाबाद उच्च न्यायालय का यह महत्वपूर्ण निर्णय ! लव-जेहाद की मानसिकता के लोगो के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय का यह निर्णय अभी भले ही उतना अहम् न लगता हो, क्योंकि उनका मकसद तो सिर्फ दूसरे धर्म की लड़कियों को बर्बाद करना मात्र है ,मगर इस निर्णय के बाद उन गैर-इस्लामिक लड़कियों और महिलाओ को सचेत हो जाना चाहिए,जो भावनाओं में बहकर अपने लिए मुसीबते खडी करने से नहीं हिचकिचाती। |
अजय झा जी नें आज मुददा उठाया है कि असंवेदनशील और गैर जिम्मेदार होते विद्यालय प्रशासन आखिर कब तक मासूम बच्चों की जान को जोखिम में डालते रहेंगें ? आज सबसे अहम समस्या ये है कि शिक्षा अब व्यवसाय का रूप ले चुकी है। आज जिस तरह से स्कूलों में दाखिले से लेकर ,विद्यार्थियों की वर्दी, उनकी पुस्तकें, आवागमन के साधन और जाने किस किस नाम पर अभिभावकों से पैसे वसूलने का जुगाड बनाया जा रहा है उससे ये स्पष्ट दिखता है कि आज शिक्षा सिर्फ़ पैसा कमाने का एक साधन बन गया है.शिक्षण के इस व्यापारिक होते रूप पर चिंता यदि न भी की जाए तो कल को देश का भविष्य बनने वाले बच्चों के प्रति खासकर उनकी सुरक्षा के प्रति इतना गैर जिम्मेदार रुख कैसे अख्तियार किया जा सकता है ? |
अनुपम मिश्रा जी की सीख,सरीखत और विनाशकारी विचार
वक्त इतना नहीं बीता कि, अभी सब कुछ ठीक न हो सके। सबकुछ समेटा जा सकता है। बहुआयामी विकास के जिस चेहरे और मोहरे को गढ़ने के चलते हमने बहुत कुछ खो दिया है। वो हम फिर से पा सकते है। भारत की विकास दर पर भले ही हल्ला होता है । लेकिन विकास की आड़ में बढ़ती विनाश दर ने ज़िंदगी के मायने ही बदल दिए हैं।कंकड़ों के जंगल से लेकर हरी घास के मैदानों तक भारत थोथे विकास का एक ऐसा जामा ओढ़े हुए है। जिसका भविष्य सिर्फ शून्य है। विकास की अंधी में विनाश का चेहरा बड़ा भयावह हो जाता है। और यही हमारी समझ में नहीं आता । या यूं कहें बुद्धिजीवी होते हुए भी समझने की चेष्ठा नहीं करते। यही हमारा दुर्भाग्य भी है। |
इधर ये अविनाश वाचस्पति जी कुछ कह रहे हैं-- इसे नहीं पढ़ा तो क्या पढ़ा समझो ब्लॉगिंग निरर्थक गई…जाईये पढ लीजिए जीवन में जब सब कुछ एक साथ और जल्दी-जल्दी करने की इच्छा होती है, सब कुछ तेजी से पा लेने की इच्छा होती है ,और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी कम पड़ते हैं ,उस समय ये बोध कथा," काँच की बरनी और दो कप चाय" हमें याद आती है |
अब पता नहीं ये मानवी स्वभाव है या कि भारतीय परम्परा, कि यहाँ जैसे ही किसी व्यक्ति को कोई जिम्मेदारी भरा कार्य सौंपा नहीं कि वो भला आदमी तुरन्त इस जुगाड में लग जाता है कि कहाँ-कहाँ और किस-किस जरिए से अपना खुद का ऊल्लू सीधा किया जाए.सो, चर्चाकार होने के नाते इतना फायदा तो हम भी उठा ही सकते हैं कि अपनी एक पोस्ट ही लगा दें. लीजिए पढ लीजिए वैदिक ज्योतिष और बृ्हस्पति ग्रह गुरू यानि बृ्हस्पति ग्रह जो कि हमारे इस सौरमंडल के सभी ग्रहों में सबसे बडा ग्रह है । यही कारण है कि श्रेष्ठ व विद्वान इस अर्थ में हमेशा "गुरू" शब्द का प्रयोग किया जाता है ।"गुरू" जो कि दो शब्दों के मेल से बना है----"गु" और "रू"। "गु" का अर्थ है अंधेरा या अज्ञान ओर "रू" यानि प्रकाश या ज्ञान। अर्थात "गुरू" वो हुआ जो कि हमारे अज्ञान को मिटाकर हम कौन हैं ?, कहां से आए हैं ? जन्म लेने का हमारा उदेश्य क्या है ? हमारे कर्तव्य कर्म क्या हैं ? मृ्त्यु पश्चात इस आत्म तत्व को कहाँ जाना है ? धर्म/अधर्म,नीति/अनीति का भेद इत्यादि प्रश्नों पर प्रकाश डालता है। |
आज वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता मे :सुश्री शेफाली पांडे जी की एक बहुत ही बढिया व्यंग्य रचना प्रस्तुत की गई है. जाईये पढिए और आनन्द लीजिए…… कतिपय अध्यापक और उनकी शिष्याओं के मध्य गणित और विज्ञान जैसे नीरस विषयों में ही प्रेम की सरस धार बहने लगती है,रेखागणित पढ़ते और पढ़ाते हाथों की रेखा का मिलान शुरू हो जाता है ,विज्ञान के वादन में दिलों में रासायनिक क्रियाएं होने लगती हैं.मुझे याद है कि हमारे स्कूल में एक बार एक जवान और खूबसूरत गणित का अध्यापक आया ,उसका दिल एक रेखा नामक कन्या पर आ गया ,जब वह सारी कक्षा से कहता था कि अपनी अपनी कापियों में इस सवाल को हल करो ,तब सभी लड़किया उसे सुलझाने में उलझ जाती थी ,और ठीक इसी दौरान वह रेखा नाम्नी कन्या अपने सिर ऊपर उठाती थी ,और दोनों एक दूसरे को तरह - तरह के कोण जैसे - समकोण -और नयूनकोण बनाकर निहारने लगते थे.साल ख़त्म होते होते रेखा के दिमाग में बीजगणित तो नहीं घुसी लेकिन पेट में प्यार का बीज पनपने लगा |
ब्लागोत्सव 2010 में पढिए निर्मला कपिला की कहानी :बेटियों की माँ सुनार के सामने बैठी हूं । भारी मन से गहनों की पोटली पर्स मे से निकाल कर कुछ देर हाथ में पकड़े रखती हूं । मन में बहुत कुछ उमड़ घमुड़ कर बाहर आने को आतुर है । कितन प्यार था इन जेवरों से । जब कभी किसी शादी व्याह पर पहनती तो देखने वाले देखते रह जाते । किसी राजकुमारी से कम नही लगती थी ।
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कार्टून:-ब्लागिंग की नई सावधानियां | कौन सा डिटर्जेंट लगाया जाये |
wah, badhiya charcha, kai links mile,
जवाब देंहटाएंshukriya
एक अपील ;)
हिंदी सेवा(राजनीति) करते रहें????????
;)
महाराज,
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका, अपनी चर्चा में शामिल करने के लिए !!
बाकी चर्चा तो हमेशा की ही तरह बढ़िया है ही ...........उसमे कोनो शक है का ??
उत्तम चर्चा के लिए एक बार फिर आभार वत्स जी..
जवाब देंहटाएंbahut acchi charcha hui hai vats ji..
जवाब देंहटाएंdhnywaad..
nice
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा ...!!
जवाब देंहटाएंचर्चा अच्छी लगी!
जवाब देंहटाएंएक विनम्र अपील:
कृपया किसी के प्रति कोई गलत धारणा न बनायें.
शायद लेखक की कुछ मजबूरियाँ होंगी, उन्हें क्षमा करते हुए अपने आसपास इस वजह से उठ रहे विवादों को नजर अंदाज कर निस्वार्थ हिन्दी की सेवा करते रहें, यही समय की मांग है.
हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में आपका योगदान अनुकरणीय है, साधुवाद एवं अनेक शुभकामनाएँ.
-समीर लाल ’समीर’
महत्वपूर्ण लिंक मिले!
जवाब देंहटाएंचर्चा के लिए आभार!
उत्तम चर्चा!
जवाब देंहटाएंबढ़िया पोस्टों की भरमार..सुंदर चर्चा..बधाई शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चर्चा.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बेहतरीन चर्चा.
जवाब देंहटाएंचर्चा बढिया रही...
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया चर्चा की है………आभार्।
जवाब देंहटाएंएक ही चर्चा में सभी रंग दिख जाते हैं..बधाई.
जवाब देंहटाएंलाजबाब, वत्स साहब !
जवाब देंहटाएंमहाराज की जय हो।
जवाब देंहटाएंआप तो कमाल का काम कर रहे हैं।
अच्छी चर्चा के लिए आभार।
चर्चा अच्छी लगी!
जवाब देंहटाएंअंगद को बैसाखियों की ज़रूरत हो तो बताइये जी क्या करें माहौल ऐसा ही हो गया है
जवाब देंहटाएंपं.डी.के.शर्मा "वत्स"
जवाब देंहटाएं""चर्चाकार चर्चा मंच""
अभिवादन ,
आपके द्वारा चर्चा में जो शीर्षक " कोई वैशाखियो के दम पर अंगद नहीं हो सकता है " को लेकर भाई गिरीश बिल्लौरे जी काफी आहत है और उन्होंने ब्लागिंग को अलबिदा कहने की घोषणा की है . आपके द्वारा जो शीर्षक लिखा गया है वो सीधे उन्हें निशाना बनाकर लिखा गया है यह कदापि उचित नहीं हैं . एक पढ़े लिखे सभी व्यक्ति द्वारा इस तरह की भाषा का प्रयोग किया जाना उचित नहीं हैं . कृपया किसी की भावनाओ को ठेस न पहुंचाए यह निवेदन है अन्यथा भविष्य में आपको भी निशाना बनाया जा सकता है . इस प्रकरण से हम सभी जबलपुर के ब्लागरों को काफी ठेस पहुँची है . ईट का जबाब हम भी पत्थर से देना जानते हैं . आप अभी तक मेरी द्रष्टि में आप सम्मानित ब्लॉगर रहे है पर अब इस प्रकरण से मेरा भ्रम टूट गया हैं . ब्लागजगत में शांति रहें सब एक दूसरे के साथ भाई चारे की भावना के साथ रहे यही हम सब की कामना है और रहेगी . कृपया आप उक्त शीर्षक हटाने का कष्ट करें .
महेंद्र मिश्र
जबलपुर.
पं.डी.के.शर्मा "वत्स"
जवाब देंहटाएं""चर्चाकार चर्चा मंच""
अभिवादन ,
आपके द्वारा चर्चा में जो शीर्षक " कोई वैशाखियो के दम पर अंगद नहीं हो सकता है " को लेकर भाई गिरीश बिल्लौरे जी काफी आहत है और उन्होंने ब्लागिंग को अलबिदा कहने की घोषणा की है . आपके द्वारा जो शीर्षक लिखा गया है वो सीधे उन्हें निशाना बनाकर लिखा गया है यह कदापि उचित नहीं हैं . एक पढ़े लिखे सभी व्यक्ति द्वारा इस तरह की भाषा का प्रयोग किया जाना उचित नहीं हैं . कृपया किसी की भावनाओ को ठेस न पहुंचाए यह निवेदन है अन्यथा भविष्य में आपको भी निशाना बनाया जा सकता है . इस प्रकरण से हम सभी जबलपुर के ब्लागरों को काफी ठेस पहुँची है . ईट का जबाब हम भी पत्थर से देना जानते हैं . आप अभी तक मेरी द्रष्टि में आप सम्मानित ब्लॉगर रहे है पर अब इस प्रकरण से मेरा भ्रम टूट गया हैं . ब्लागजगत में शांति रहें सब एक दूसरे के साथ भाई चारे की भावना के साथ रहे यही हम सब की कामना है और रहेगी . कृपया आप उक्त शीर्षक हटाने का कष्ट करें .
महेंद्र मिश्र
जबलपुर.