कभी तुमने कहा था
इधर एक चलन और हुआ है
फाइलें इसलिए गोल-गोल घूमती है कि या तो, सच्चाई को दबाना चाहते हैं। या फिर कुछ कमाना चाहते हैं। |
छत्तीसगढ़ का फिल्म जगत एक खतरनाक मोड़ से तो गुजर ही रहा है। उस खतरनाक मोड़ से जहां सामने घना जंगल है और गहरी खाई भी। थोड़ा पैसा लगाकर फिल्म बनाने वाले नवधनाढ्य लोगों ने इस खाई को दलदल की शक्ल भी दे डाली है। छत्तीसगढ़ में कई फिल्मे इन दिनों फ्लोर में है लेकिन किसी से पूछिएगा कि हिरोइन कहां मिलेगी तो जवाब मिलेगा-अभी आती ही होगी एसटीडी पीसीओ से निकलकर। कम्प्यूटर सेंटर से निकलकर। एक फोन करो.. जब बोलो वहां बुला लेंगे। ऐसा भी नहीं है कि छत्तीसगढ़ी फिल्मों की हिरोइने प्रतिभाशाली नहीं है लेकिन इनकी संख्या बेहद कम है और इन क्षेत्रीय हिरोइनों पर अभी मां-बाप का पहरा खत्म नहीं हुआ है। छत्तीसगढ़ के फिल्म जगत का सच एक काली दुनिया का नंगा सच है। बिगुल पर राजकुमार सोनी जी विस्तार से बता रहे हैं। वैसे तो लगता है "छालीवुड" भी "हालीवुड व बालीवुड" की राह चल पडा है परन्तु अगर गौर से देखें तो ये सब शुरुवाती समस्यायें है..आगे चलकर बढ़िया होगा। इस तरह के प्रयासों से क्षेत्रिय सिनेमा को |
इंटरनेशनल ब्लॉगर मिलन दिल्ली में रविवार 23 मई को सांय 3 बजे से 6 तकअविनाश वाचस्पति कहते हैं इसे व्यक्तिगत बुलावे की मान्यता प्रदान करें। यह सिर्फ सूचना है। जिसमें ब्लॉगर समुदाय के सभी सक्रिय, निष्क्रिय, टंकी धारक, बेटंकी ब्लॉगर सभी आमंत्रित हैं। पूर्ण विवरण के लिए नुक्कड़ की पोस्टें देखते रहिये। अपनी संभावना बतलाते रहिए। यह एक ऐतिहासिक पल है। |
ताऊ डाट इन पर तीन तीन खुशियां एक साथ!!!ताऊ रामपुरिया कहते हैं सबसे पहले तो आदरणीय गुरुद्वय श्री समीरलाल जी "समीर" और डाँ. अमर कुमार जी को सादर परणाम, जिनके आशीर्वाद से आज यह पोस्ट लिखने का अवसर आया है. और उसके बाद प्रिय बहणों, भाईयों, भतिजियों और भतीजों को घणी रामराम. आज बहुत ही खुशी का मौका है. यानि तिहरी खुशी का …. वाह !
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भगजोगनी .....काव्य मंजूषा 'अदा' जुल्फें सियाह खोल दूँ तो मौसम हो बिजलियों के देखूं तेरी तकदीर में हैं साए कितने रकीबों के मेरा देर से आना औ तेरे रुख़ की वो उलझी शिकन फिर खुलेगा दफ़्तर वही हज़ार शिकायतों के तुम्हें जाँ बना लिया मगर अभी सोचना होगा मुझे मेरी तक़दीर में हो जाने कितने अज़ाब क़यामतों के आँखे तो बस पत्थर हुई तेरा इंतज़ार लिपट गया थिरक उठे हसीं लम्हें ज्यूँ हुज़ूम हो जुगनुओं के |
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मैं तो हर मोड़ पर तुझको दूँगा सदा
मिलवा रहे हैं नक़्श लायलपुरी (मुम्बई 2005) से। नक्श लायलपुरी की शायरी में ज़बान की मिठास, एहसास की शिद्दत और इज़हार का दिलकश अंदाज़ मिलता है । उनकी ग़ज़ल का चेहरा दर्द के शोले में लिपटे हुए शबनमी एहसास की लज़्ज़त से तरबतर है। शायरी के इस समंदर में एक तरफ़ फ़िक्र की ऊँची-ऊँची लहरें हैं तो दूसरी तरफ़ इंसानी जज़्बात की ऐसी गहराई है जिसमें डूब जाने को मन करता है । नक़्श साहब की शायरी में पंजाब की मिट्टी की महक, लखनऊ की नफ़ासत और मुंबई के समंदर का धीमा-धीमा संगीत है- मेरी पहचान है शेरो-सुख़न से मैं अपनी क़द्रो क़ीमत जानता हूं ज़िंदगी के तजुरबात ने उनके लफ़्ज़ों को निखारा संवारा और शायरी के धागे में इस सलीक़े से पिरो दिया कि उनके शेर ग़ज़ल की आबरु बन गए । फ़िल्मी नग़मों में भी जब उनके लफ़्ज़ गुनगुनाए गए तो उनमें भी अदब बोलता और रस घोलता दिखाई दिया – · रस्मे-उल्फ़त को निभाएं तो निभाएं कैसे- · / मैं तो हर मोड़ पर तुझको दूँगा सदा- ·/ यह मुलाक़ात इक बहाना है- · उल्फ़त में ज़माने की हर रस्म को ठुकराओ- · माना तेरी नज़र में तेरा प्यार हम नहीं- · तुम्हें देखती हूँ तो लगता है ऐसे- · तुम्हें हो न हो पर मुझे तो यकीं है- · कई सदियों से,कई जनमों से,तेरे प्यार को तरसे मेरा मन- · न जाने क्या हुआ,जो तूने छू लिया,खिला गुलाब की तरह मेरा बदन- · चाँदनी रात में इक बार तुझे देखा है,ख़ुद पे इतराते हुए,ख़ुद से शरमाते हुए- |
वो वसंत की चितचोर डाली............KAVITARAWAT कविता रावत कुछ शर्माती कुछ सकुचाती
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कार्टून:- संगीत सिर में गूमड़ दे सकता है, सावधान. |
.और इंसान बन ही गया भगवान...ज़रा इसे पढ़ें तो ......Arvind Mishra जी बता रहे हैं सचमुच इंसान अब भगवान हो गया .वैज्ञनिकों ने प्रयोगशाला में जीव बना लिया .कुदरत के धंधे को अपनाकर उसे बेरोजगार करने की दिशा में बढ चला ...और यह कारनामा दिखाया है मानव जीनोम को अनावृत करने वाले क्रैग वेंटर की टीम ने ....विश्वप्रसिद्ध विज्ञान जर्नल साईंस में छपे इस लेख ने तहलका मचा दिया है। |
डिस्को डांसर मिथुन चक्रवर्तीravish kumar कहते हं मिथुन चक्रवर्ती को सबसे पहले मृगया में देखा था। उसके बाद हम पांच में। पतला दुबला एक लड़का जल्दी ही बालीवुड का पहला डांसिंग स्टार बन गया। मिथुन से पहले डांस के नाम पर शम्मी कपूर की छवि सामने आती थी। उन्होंने गानों को ऐसी रफ्ताशर दी कि लोग सिनेमा घरों से लौट कर डांस करने का अभ्यास करने लगे। मिथुन दा के बोलने का अंदाज़, बाहर निकली शर्ट,और झूलते बाल। |
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जी हाँ! मैं टिप्पणियाँ बेचता हूँ,मैं तरह-तरह की,हर किस्म की टिप्पणियाँ बेचता हूँ.
जी हाँ! मैं टिप्पणियाँ बेचता हूँ / मैं तरह-तरह की / हर रंग की / टिप्पणियाँ बेचता हूँ. / कुछ ज्वलनशील हैं / जला के रख देंगी / थोड़े दिनों की नींद उड़ा के रख देंगी / ज्यादा नींद आती हो तो दिखला दूं / नहीं तो अगली के बारे में बतला दूं / कुछ सुनामी हैं दिखने में सादी हैं |
घड़ा का उपयोग प्रजनन काल में स्वर-अनुनादक के रूप में और समागम के लिए होता हैं
तेजी से बहते पानी में भी ये अच्छे तैराक हैं, परंतु जमीन पर पेट के सहारे चलते हैं। मादा नदी के किनारे बालू के घोंसलों में अंडे देती है, उन्हें सेती है तथा शिशुओं को अण्डों से निकलने में सहायता करती है और उसके बाद छिछले पानी में अपने मुँह में कोमलता से पकड़ कर ले जाती है और वहाँ भी परभक्षियों यथा बड़ा कछुआ, बड़ी मछली तथा चील आदि से उनकी रक्षा करती है। इसके शीर्ष पर कार्टिलेज की घडानुमा संरचना बनी होती है जिसके कारण इसका नाम “घडियाल” पड़ा है। नर में यह घड़ा बड़ा होता है जिसका उपयोग प्रजनन काल में स्वर-अनुनादक के रूप में और समागम के लिए होता है। घड़ियाल का थूथना पतला और लम्बा होता है। वयस्क घड़ियाल अपने शरीर के तापमान नियंत्रण के लिए नदी किनारे अथवा नदी के बीच टापूओं पर धूप सेंकते हैं। इनका मुख्य आहार मछली है। |
कहीं आतिश के जुर्मों की नहीं होती है सुनवाईकोना एक रुबाई का पर स्वप्निल कुमार 'आतिश' लेकर आए हैं
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कबीर भोजपुरी के आदिकवि
आगरा में शनिवार से विश्व भोजपुरी सम्मेलन होने जा रहा है। दुनिया भर के तमाम देशों से और देश के कोने-कोने से भोजपुरी के विद्वान साधक ताज के शहर में आ डटे हैं। इस मौके पर हिंदी और भोजपुरी के बारे में मशहूर साहित्यकार और हिंदी के अप्रतिम विद्वान हजारी प्रसाद द्विवेदी के विचार जानकर आप को अच्छा महसूस होगा। 1976 में अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के अधिवेशन में हजारी प्रसाद द्विवेदी ने भोजपुरी में जो भाषण दिया था, उसके अंश यहां हिंदी में दिये जा रहे हैं …
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आत्महत्या!!राजभाषा हिंदी पर मनोज कुमार बताते हैं बीतते समय के साथ हमारी जीवन शैली बदल गई है। हम तरह-तरह के प्रयास करते हैं ताकि स्वस्थ रह सकें। इसके साथ ही हम पाते हैं कि तरह-तरह की नई-नई बीमारियां भी हम पर हमला कर रही हैं। रोगियों की संख्यां में काफ़ी बढ़ोत्तरी हो रही है। लोगों का समुचित ईलाज हो सके उस दृष्टि से देखें तो हम पाते हैं कि इस परिस्थिति में हमारे सरकारी अस्पताल अब भी साधनहीन हैं। लोग अत्याधुनिक उपकरणों से लैस निजी क्लीनिकों और पांचतारा होटलों जैसे दिखने वाले अस्पतालों की ओर रूख कर रहे हैं। महानगर तो महानगर मझोले और छोटे शहरों में भी अत्याधुनकि उपकरणों से लैस अनेकों अस्पताल खुल गए हैं जिनमें श्रेष्ठ चिकित्सकों के सेवाएं उपलब्ध हैं। |
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सरकार के लिए क्या लाया |
गर की बोर्ड बने जूँ?कुछ हम कहें कह रही हैं anitakumar कि एप्रिल का पहला ह्फ़्ता—अख्बारों की सुर्खियां--- 76 CRPF के जवान नक्सलवाद की बली चढ़ गये मन स्तब्ध, गहरा सदमा सब की नजरें सरकार की ओर—पार्लियामेंट में भी हंगामा, मुंबई की 26/11 के बाद मीडिया को मिली एक और बड़ी कहानी भुनाने के लिए, साक्ष्तकारों और बहसों का दौर- नक्सलवाद क्युं, कौन जिम्मेदार- कांग्रेस या बीजेपी या कोई और( उड़ती उड़ती खबर ये भी है कि इसमें विदेशियों का यानि की पाकिस्तान का हाथ है), कैसे रोका जाए-सुझाव-ग्रहमंत्री हवाई निरिक्षण करें-(क्या दिखेगा- जंगलों से सलाम करते नक्सली और हवाई जहाज से हाथ जोड़ वोट मांगते मंत्री।) टेबलटेनिस का खेल चल रहा है- बॉल एक पाले से दूसरे पाले में पिंग पोंग, पिंग पोंग! लेकिन सुना है कि एक और एक ग्यारह भी होते हैं। क्या हम सब मिल कर कोई ऐसा रास्ता नहीं सोच सकते जिससे ये अर्थहीन हिंसा खत्म करने के लिए सरकार को मजबूर किया जा सके, ये वोटों की राजनीति को नकारा जा सके। हमारा जोर किसी और प्रकार के मीडिया पर नहीं पर सिटिजन जर्नलिस्म पर तो है। सुना है सिटिजन जर्नलिस्म में बहुत ताकत है। हमारे पास नेट की सुविधा है, आप सब लोग इतना अच्छा लिखते हैं, आप के पास की बोर्ड की ताकत भी है और अभिव्यक्ति भी, क्युं न हम सब ( खासकर रोज पोस्ट ठेलने वाले) मिल कर रोज एक ही विषय पर लिखें- ये आतंकवाद/नक्सलवाद के खिलाफ़ मोर्चा। अगर अलग अलग शहरों से, अलग अलग प्रोफ़ेशन से आने वाले लोग एक ही मुद्दे से त्रस्त दिखाई दिए तो क्या सरकार के कानों पर जूं न रेंगेगी? क्या आप का की बोर्ड वो जूं बनेगा? |
मेरे सिद्धांत और मेरा करियर !
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जो चाहे वो पाये... यह हे ब्लांग जगतराज भाटिय़ा कहते हैं आप माने या ना माने, यह हिन्दी ब्लांग जगत एक जादू का पिटारा है, हम सब अंजान लोगो के लिये, इस से बहुत सा समय पैसा ओर वक्त हम सब का बचता है, ओर काम भी फ़टा फ़ट हो रहा है,कल मैने एक पोस्ट डाली थी.एक तकनीक मदद चाहिये...ओर उस से पहले परेशान था कि मैने बेटे का कीमती मोबाईल भी ले लिया, लेकिन मेरे काम नही आया, ओर फ़िर अपने परेशानी मैने इस पोस्ट मै डाली, ओर अब मेरे मोबाईल पर हिन्दी की सभी साईडे चल रही है, अगर मै इसे यहां कम्पनी को भेजता तो जरुर बिल बहुत ज्यादा आता, ओर काम नही होता, बहुत से लोगो से पुछा सब ने मना कर दिया. ओर आज सुबह देखा तो हमारे प्रवीण त्रिवेदी ╬ PRAVEEN TRIVEDI जी की यह टिपण्णी आई हुयी थी,
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सीख................(गजल).................श्यामल सुमनहिन्दी साहित्य मंच पर रो कर मैंने हँसना सीखा, गिरकर उठना सीख लिया।
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बहुत सुन्दर और विस्तृत चर्चा!
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा के लिए धन्यवाद मनोज जी. कुछ नई पोस्टों की जानकारी भी मिली.
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंसुंदर चिट्ठा चर्चा..मनोज जी बधाई
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा ...!!
जवाब देंहटाएंआप लोग मेरी वजह से ब्लागर मीट में आने का कार्यक्रम न छोड़े. वह तो अविनाश वाचस्पति साहब ने ही अपनी पोस्ट में लिखा था कि जलजला मौजूद रहेगा इसलिए मैं दिल्ली पहुंच गया था. अब लौट रहा हूं. आप सभी लोग लाल-पीली-नीली जिस तरह की टीशर्ट संदूक से मिले वह पहनकर कार्यक्रम में पहुंच सकते हैं.
जवाब देंहटाएंयह दुनिया बड़ी विचित्र है..... पहले तो कहते हैं कि सामने आओ... सामने आओ, और फिर जब कोई सामने आने के लिए तैयार हो जाता है तो कहते हैं हम नहीं आएंगे. जरा दिल से सोचिएगा कि मैंने अब तक किसी को क्या नुकसान पहुंचाया है. किसकी भैंस खोल दी है। आप लोग न अच्छा मजाक सह सकते हैं और न ही आप लोगों को सच अच्छा लगता है.जलजला ने अपनी किसी भी टिप्पणी में किसी की अवमानना करने का प्रयास कभी नहीं किया. मैं तो आप सब लोगों को जानता हूं लेकिन मुझे जाने बगैर आप लोगों ने मुझे फिरकापरस्त, पिलपिला, पानी का जला, बुलबुला और भी न जाने कितनी विचित्र किस्म की गालियां दी है. क्या मेरा अपराध सिर्फ यही है कि मैंने ज्ञानचंद विवाद से आप लोगों का ध्यान हटाने का प्रयास किया। क्या मेरा अपराध यही है कि मैंने सम्मान देने की बात कही. क्या मेरा यह प्रयास लोगों के दिलों में नफरत का बीज बोने का प्रयास है. क्या इतने कमजोर है आप लोग कि आप लोगों का मन भारी हो जाएगा. जलजला भी इसी देश का नागरिक है और बीमार तो कतई नहीं है कि उसे रांची भेजने की जरूरत पड़े. आप लोगों की एक बार फिर से शुभकामनाएं. मेरा यकीन मानिए मैं सम्मेलन को हर हाल में सफल होते हुए ही देखना चाहता हूं. आप सब यदि मुझे सम्मेलन में सबसे अंत में श्रद्धाजंलि देते हुए याद करेंगे तो मैं आपका आभारी रहूंगा. मैं लाल टीशर्ट पहनकर आया था और अपनी काली कार से वापस जा रहा हूं. मेरा लैपटाप मेरा साथ दे रहा है.
बढ़िया चर्चा.....नए लिंक्स के लिए आभार
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा के लिए धन्यवाद मनोज जी. कुछ नई पोस्टों की जानकारी भी मिली...नए लिंक्स के लिए आभार
जवाब देंहटाएंमनोज जी की चर्चा
जवाब देंहटाएंदिन-पर-दिन निखरती जा रही है!
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हम भी उड़ते
हँसी का टुकड़ा पाने को,
क्योंकि हम सब की आँखों के तारे!
बहुत सुन्दर और विस्तृत चर्चा बहुत सुन्दर और विस्तृत चर्चा
जवाब देंहटाएंसाधु साधु
जवाब देंहटाएं