जल्दी-जल्दी में चर्चा लगा रहे हैं! इण्टरनेट समस्या के कारण चर्चा प्रकाशित होने में आज कुछ विलम्ब हो गया है! आइए आज के "चर्चा मंच" को सजाते हैं- आज सबसे पहले देखिए- “अदा” जी की दो पोस्ट- |
ताऊजी डॉट कॉम वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता मे : सुश्री स्वप्न मंजूषा शैल 'अदा' - आज वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता में सुश्री स्वप्न मंजूषा शैल 'अदा' की रचना पढिये. लेखिका परिचय पूरा नाम : स्वप्न मंजूषा शैल 'अदा' शिक्षा : विज्ञानं में स्... |
काव्य मंजूषा एकादशानन.......रावण का ग्यारहवाँ चेहरा... - (पुनः प्रकाशित) अक्सर मेरे विचार, बार बार जनक के खेत तक जाते हैं परन्तु हर बार मेरे विचार, कुछ और उलझ से जाते हैं जनक अगर सदेह थे, तो विदेह क्योँ कहाते ह... |
मुझे शिकायत हे. Mujhe Sikayaat Hay. छाज तो बोले, छलनी भी क्या बोले, जिसमें सत्तर छेद - आज मैं अन्तर सोहिल शिकायत लेकर आया हूं, श्री नवीन जोशी जी के लिये। राज भाटिया जी तकरीबन 30 वर्षों से विदेश में रह रहे हैं। उनको जर्मनी की नागरिकता मिली हु... |
मसि-कागद आयरनमैन(लघुकथा)------------------>>>दीपक 'मशाल', - 'तड़ाक... तड़ाक... तड़ाक...' तीन-चार तमाचों की तेज़ आवाज़ और गालियों के साथ किसी के गर्जन को सुन बरात के बीच से नन्हे मुग्ध का ध्यान अचानक डांस से हट... |
साहित्य-सहवास मुबारक हो कसाब, तू जीत गया..... - मुबारक हो..... मुबारक हो कसाब, तू जीत गया भाग्य हमारा खराब, तू जीत गया तू जीत गया हरामज़ादे ! भारत हार कर बैठा है क्योंकि लोकतंत्र हमारा कुंडली मार ... Albelakhatri.com अक्षय कत्यानी की बीमारी, इलाज और हम ब्लोगर्स..... रौशनी बदनाम न हो जाये इसलिए रख दिया हमने दीया तूफ़ान के आगे - अविनाश वाचस्पति जी, दीपक मशाल जी, एवं वे सभी मित्र जन जिन्होंने अक्षय कत्यानी के इलाज सम्बन्धी मसले पर मुझसे बात की मैं आप सबको विश्वास दिलाना चाहता हू... Hasyakavi Albela Khatri क्यों कैसी रही पाबला जी ? जवाब ठीक है न ? - मैं एक दिन सुबह सुबह सर पर तोता बैठा कर जा रहा था कि रास्ते में बी एस पाबला जी ने पूछ लिया - ये कौन सा जानवर है भाई ? तोता बोला - आदमी है साला........ |
साहित्य योग बाला...नये रूप में.......`तेज` - वैसे हाला और मधुशाला पर बहुत कुछ लिखा गाया है पर मेरी कोशिश आज यहाँ मधुशाला को दूसरे रूप में जिन्दा करना है. "बाला" जो की यहाँ "मन" के रूप में होगी, "मधुशाल... |
युवा दखल मैं और क्या करुं निरुपमा? - निरुपमा केवल उस लड़की का नाम नहीं रहा अब जो एक पत्रकार थी, जिसके लिये उसका परिवार बेहद प्रिय था, जो प्रेम करती थी…जिसे प्रेम करने की सज़ा मिली… हमें माफ़ क... |
नवगीत की पाठशाला ०८ : कई शिव चाहिए : निर्मल सिद्धू - कई शिव चाहिए आँगन में उतरे जो साए, विस्फोटों से दिल दहलाए। तड़-तड़ करके ऐसे चीखे, घरवालों को मौत सुलाए। पाँव बड़े आतंक के देखे, रह गए सारे हक्के-बक्के। ख़ू... |
जो लिखा नहीं गया......... दुष्यंत कुमार का गीत - कौन यहाँ आया था, कौन दीया बाल गया! सूनी घर-देहरी में ज्योति से उजाल गया. पूजा की बेदी पर गंगाजल भरा कलश रक्खा था , पर झुककर कोई कौतूहलवश बच्चों की तरह ,... |
गीत............... है चेतावनी !...... - पुरुष ! तुम सावधान रहना , बस है चेतावनी कि तुम अब ! सावधान रहना . पूजनीय कह नारी को महिमा- मंडित करते हो उसके मान का हनन कर प्रतिमा खंडित करते ह... |
नीरज किताबों की दुनिया 30 - जावेद अख्तर साहब ने फिल्म सरहद के लिए एक गीत लिखा था "पंछी नदियाँ पवन के झोंके कोई सरहद न इन्हें रोके..." पंछी नदियाँ पवन के झोंकों के अलावा और भी बहुत कुछ... |
saMVAdGhar संवादघर पुरूष की मुट्ठी में बंद है नारी-मुक्ति की उक्ति-1 - प्रशंसा सुनकर गद-गद होना या झूठी तारीफ सुनकर दूसरों का काम तुरत-फुरत कर देना-एक ऐसी कमजोरी है, जो ज्यादातर लोगों में पाई जाती है । मगर जिस वर्ग को इस विध... |
उड़न तश्तरी .... ४०० वीं पोस्ट और एक गज़ल - आज सुबह किसी कार्यवश ओकविल (मेरे घर से करीब १०० किमी) जाना हुआ. जिस दफ्तर में काम था, उसके समने ही मेन रोड थी, जिस पर साईड वाक बनने का कार्य जोर शोर से च... |
ताऊ डॉट इन हिन्दी ब्लॉगरों से एक विनम्र अपील : जीवनधन से बड़ा कोई धन नहीं - हिन्दी ब्लॉगरों से एक विनम्र अपील : जीवनधन से बड़ा कोई धन नहीं (अविनाश वाचस्पति) पहले अपनी एक बात कि वर्ष 2005 में मैं गंभीर रूप से बीमार हुआ था। अपोलो ... |
लावण्यम्` ~अन्तर्मन्` एक अमरीकी , भारत प्रेमी लेख़क से मिलिए, जिनका नाम है, श्री रोबेर्ट आर्नेट - एक अमरीकी , भारत प्रेमी लेख़क से मिलिए, जिनका नाम है, श्री रोबेर्ट आर्नेट : " India Unveiled " / भारत की छवि , बे नकाब सी " के लेख़क " INDIA UNVEILED " कुछ... | उच्चारण “परिजन : CARL STANDBURG” (अनुवाद-डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”) - *KIN A POEM: Carl Sandburg* *अनुवादक-डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”* सागरतल की गहराई में ज्वाला बनकर धधक रही हूँ, हुए हजारों साल, आज भी मैं वैसे ही …. | अंतर्मंथन कोबाल्ट ६० --इंसान का दोस्त भी , दुश्मन भी --- - पिछले दिनों दिल्ली के मायापुरी क्षेत्र की कबाड़ की मार्केट में एक अत्यंत भयानक हादसा हुआ । हुआ यूँ कि दिल्ली विश्वविध्यालय के केमिस्ट्री विभाग ने २५ साल से... |
my own creation मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये! - प्रिय दोस्तों, आज किसी ने मुझे एक हास्य कविता भेजी तो मैंने सोचा क्यों न इसे अपने ब्लॉगर मित्रो से सांझा की जाए! मुझे नहीं मालूम की ये कविता किसने लिखी है स... | बुरा भला लो जी आ गयी - जेटाबाइट्स यानी डिजिटल माप की सबसे बड़ी इकाई - जेटाबाइट्स को डिजिटल माप की सबसे बड़ी इकाई घोषित किया गया है। इससे पहले पेटाबाइट्स को सबसे बड़ी इकाई माना जाता था। डेली टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक एक ... | गीत सुनहरे नारी - नारी सौंदर्य भरा अनंत अथाह, इस सागर की कोई न थाह . कैसे नापूँ इसकी गहनता, अंतस बहता अनंत प्रवाह . ज्योति प्रभा से उर आप्लावित, प्राण सहज करुणा से द्रावित ... |
अंधड़ ! भई आखिर इंडिया ससुर जी की प्रोपर्टी जो ठहरी, ऊपर से सालो की कृतज्ञंता भी काबिले-तारीफ़ ! - उनके लिए हैदराबाद क्रिकेट एसोशियेशन बोले तो साले लोगो की जमात, और जिमखाना बोले तो ससुर जी की प्रोपर्टी ! जी गलत मत समझिये, बिलकुल सही कह रहा हूँ ! कुछ ऐंस... | आरंभ Aarambha आनलाईन भारतीय आदिम लोक संसार - हिन्दी साहित्य की बहुत सी किताबें पीडीएफ फारमेट में पहले से ही उपलब्ध हैं जिसके संबंध में समय समय पर साथियों के द्वारा जानकारी प्रदान की जाती रही है. ह... | simte lamhen एक धमाका ऐसा भी.... - उन दिनों हम लोग विदर्भ में थे. मैंने सुन रखा था,की, गढ़चिरौली के आदिवासी चटाई बुनते हैं.एक गैर सरकारी संस्था को मै इस बारेमे वाकिफ़ कराना ... |
कबीरा खडा़ बाज़ार में तेवरी : बाँहों में साँप रहे पाल ----'सलिल'. - तेवरी बाँहों में साँप रहे पाल संजीव वर्मा 'सलिल' * बाँहों में साँप रहे पाल. और कहें मौत रहे टाल.. नक्सल-आतंक सहें मौन. सत्ता पर कुरबां कर लाल.. नीति... | Alag sa आखें, आप इन्हें पंद्रह मिनट दें ये आपका उम्र भर साथ देंगी. - किताबें, कंप्यूटर, लैपटाप, सेलफोन, धूल-मिट्टी, तनाव और भी ना जाने क्या-क्या, यह सब धीरे-धीरे हमारी आंखों के दुश्मन बनते जा रहे हैं। पहले जरा से साफ पानी के... | देशनामा कौन बड़ा ?...खुशदीप - एक शराबी टुन्न होकर घर लौट रहा था...रास्ते में मंदिर के बाहर एक पुजारी दिखाई दिए... शराबी ठहरा शराबी, पुजारी से ही पंगा लेने को तैयार...पूछ बैठा...*सबसे... |
पेट में चूहे कूद रहे थे ~~ Author: M VERMA | Source: यूरेका पेट में चूहे कूद रहे थे - पेट में चूहे कूद रहे थे मैं चूहों के पीछे भाग रही थी अब तो कुछ सुस्ता लूँ दो दिन से मैं जाग रही थी |
आंच पर है लक्षणा शक्ति Author: करण समस्तीपुरी | Source: मनोज रमेश जोशी के आवास पर संक्षिप्त परिचर्चा थी। कुछ लोग बहुत से लोगों की प्रतीक्षा में थे। तभी एक एक व्यक्ति विशेष के परिचय की पुष्टि के लिए, डॉ रणजीत ने कह दिया, "तथाकथित माताजी"। मंजू वेंकट का चौंकना अस्वाभाविक नहीं था क्यूंकि जिनके विषय में यह कहा गया था वे वास्तव में एक आमंत्रित की माता जी थी। फिर इश्वर चन्द्र मिश्र ने स्थिति स्पष्ट किया, "डॉ रणजीत के "तथाकथित" का अर्थ व्यंजना से नहीं अभिधा से लगाया क्यूंकि उस समुदाय के अधिकाँश लोग उन्हें माता जी कह कर ही संबोधित करते हैं, इसीलिये.... तथाकथित - जैसा कहा जाता है।……… |
Author: Suman | Source: लो क सं घ र्ष ! |
और अन्त में यह कार्टून भी देख लीजिए- Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून कार्टून:- खेल की दुनिया के खेल. - |
बहुत सुंदर और विस्तृत चर्चा। ढ़ेर सारे लिंक मिले।
जवाब देंहटाएंबढ़िया लगी चर्चा ।
जवाब देंहटाएंइतने अच्छे लिंक्स और चर्चा में जगह देने के लिए आभार...
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
लगा था कि कवर हो गया...मगर अब अहसास हुआ कि बड़े सारे लिंक्स छूट गये हैं..आपका आभार!!
जवाब देंहटाएंare!! aisa kyun ho gaya kahin meri vajah se to nahi gadbad ho gayi ..shastri ji..
जवाब देंहटाएंhamesha ki taraf lajwaab hai..
aapka aabhaar...
वाह वाह जी...........
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया चर्चा सजी..............
अच्छा, छलनी से शुरूआत।
जवाब देंहटाएंछाज तो बोले, छलनी भी क्या बोले, जिसमें सत्तर छेद -
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट के विषय मे इतना ही कहना चाहूंगी कि अगर राज भाटिया के हिंदी लेखन पर ऊँगली उठी हैं तो इसमे नया क्या हैं । खुद राज भाटिया के ब्लॉग पर जब ये ब्लॉग शुरू हुआ था बलविंदर ने नारी ब्लॉग कि एक ब्लॉगर पर इसी तरज कि बात कि थी और राज भाटिया ने उसको छापा भी था । अगर आप अपने ब्लॉग पर दुसरो कि शिकायत दर्ज करके उनका मजाक उड़ाते हैं तो आप को अपना मज़ाक उद्वाने के लिये भी तैयार रहना चाहिये । और जो लोग इस समय राज भाटिया कि पोस्ट पर नविन का प्रतिकार कर रहे हैं उनमे से कम से कम एक तो ऐसे हैं जो जगह जगह दुसरो कि हिंदी कि टंकण कि गलतियां सुधारते है । नैतिकता का नियम अपने और दुसरो के लिये एक ही रखे
and if you need a proof please check 2008 april / may archives of raj bhatia blog
जवाब देंहटाएंचर्चा में जगह देने के लिए और इतने अच्छे लिंक्स के लिए आभार !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और बढ़िया चर्चा। ढ़ेर सारे लिंक मिले।
जवाब देंहटाएंविस्तृत और बढ़िया चर्चा...आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और बढ़िया चर्चा।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और बढ़िया चर्चा।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और बढ़िया चर्चा।
जवाब देंहटाएंबढिया चर्चा शास्त्री जी!!
जवाब देंहटाएंहमने भी आज एक संध्याकालीन चर्चा सैट की हुई है...शाम 4 बजे के समय पर......
कैसे है शास्त्री जी,
जवाब देंहटाएंप्रणाम
आज आपकी चर्चा में फिर अचानक पहुंच गया। आपको आपकी मेहनत के लिए बधाई।
बढिया है।
जवाब देंहटाएं--------
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