चर्चाकारा -------------वन्दना गुप्ता |
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(कविता) - वसीयत अपनी माटी |
मैं मर्द हूं .... तुम औरत..!!![]() मैं भेड़िया, गीदड़, कुत्ता जो भी कह लो, हूं. मुझे नोचना अच्छा लगता है. खसोटना अच्छा लगता है. मुझसे तुम्हारा मांसल शरीर बर्दाश्त नहीं होता. तुम्हारे उभरे हुए वक्ष.. देखकर मेरा खून रफ़्तार पकड़ लेता हूं. मैं कुत्ता हूं. तो क्या, अगर तुमने मुझे जनम दिया है. तो क्या, अगर तुम मुझे हर साल राखी बांधती हो. तो क्या, अगर तुम मेरी बेटी हो. तो क्या, अगर तुम मेरी बीबी हो. तुम चाहे जो भी हो मुझे फ़र्क़ नहीं पड़ता. मेरी क्या ग़लती है? घर में बहन की गदरायी जवानी देखता हूं, पर कुछ कर नहीं पाता. तो तुमपर अपनी हवस उतार लेता हूं. घोड़ा घास से दोस्ती करे, तो खायेगा क्या? मुझे तुमपर कोई रहम नहीं आता. कोई तरस नहीं आता. मैं भूखा हूं. या तो प्यार से लुट जाओ, या अपनी ताक़त से मैं लूट लूंगा. |
सोचकर तो देखेंकभी सोचते हैं हमफाइव-स्टार होटलों मेंछप्पन-भोग खाने से पहलेकि कितने ही लोगएक जून रोटी के बगैरतड़प-तड़प के मरते हैं ।कभी सोचते हैं हमआलीशान मालों मेंकीमती कपड़े खरीदने से पहलेकि कितने बच्चे और बूढेफटे -चीथड़े लपेटेगर्मी में झुलसतेसर्दी में ठिठुरते हैंfeminist poems |
खूंटियों पर टंगी श्लीलता .......कविता अगर आपके मानसपटल पर बज्रपात नहीं करती तो महज आपके विचारों का तहखाना बनकर रह जाती है ....पिछले दिनों ब्लॉग जगत के कुछ युवा रचनाकारों ने सर्जना के प्रांगण में नए धरातलों को छूने का प्रयास किया है .... मुद्दत बाद पिछले दिनों चेतना - मंथन वाली कुछ ऐसी…………Harkirat Heer |
मात्र एक डोरगीत............... |
अपने ही समाज के बीच से निकलती हुई दो-दो लाइनों की कुछ फुलझड़ियाँ-5-----(विनोद कुमार पांडेय)मुस्कुराते पल-कुछ सच कुछ सपने |
औरत : आज 01-मई की सुबह, ज्ञानदत्त पाण्डेय जी की 30 अप्रैल की पोस्ट से प्रेरित, आभार सहितSANGAM TEERE |
उदगार नहीं यह प्रश्नपत्र हैउदगार नहीं यह प्रश्नपत्र हैpragyan-vigyan |
स्त्री पर ही क्यों किये गांधी ने प्रयोग?![]() बात मेरे मन की नुक्कड़ - * (उपदेश सक्सेना)* महात्मा के नाम से संबोधित किये जाने वाले गांधीजी की स्त्री के प्रति आसक्ति को लेकर उनकी शहादत के कई दशकों के बाद अब एक बार फिर बहस चल रही है।यह ग... |
नारी जीवन - तेरी यही कहानी! posted by रेखा श्रीवास्तव at नारी का कविता ब्लॉग - जीवन जिया, मंजिलें भी मिली, एक के बाद एक बस नहीं मिला तो समय नहीं मिला। कुछ ऐसे क्षण खोजती ही रही , जो अपने और सिर्फ अपने लिए जिए होते तो अच्छा होता। जब समझा अपने को कुछ बड़े मिले कुछ छोटे मिले कुछ आदेश और क... |
दोस्तों, आज की चर्चा को यहीँ विराम देती हूँ। अपनी तरफ़ से कुछ हट्कर देने की कोशिश कर रही हूँ हर बार्……………आपकी कसौटी पर खरी उतरने की कोशिश कर रही हूँ फिर भी किसी भूल-चूक के लिये क्षमाप्रार्थिनी हूँ। |
वन्दना जी को इस उम्दा चर्चा के लिए बहुत बधाई.
जवाब देंहटाएंसारगर्भित चर्चा के लिए वन्दना जी को बधाई!
जवाब देंहटाएंसुंदर चिट्ठा चर्चा..वंदना जी बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंरामराम.
सुंदर चिट्ठा चर्चा..
जवाब देंहटाएंवंदना जी बधाई....
महत्त्वपूर्ण लिंक्स देने के लिए शुक्रिया...अच्छी चर्चा के लिए वंदना जी को बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत मेहनत से की है आपने चर्चा
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