संस्मरण |
डा. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’ सुना रहे हैं कि वे बाबा नगार्जुन के साथ काव्य-पाठ करने वाले सौभाग्यशाली थे। हुआ यों कि महर्षि दयान्द विद्या मन्दिर, टनकपुर के प्रबन्धक/संचालक राम देव आर्य बाबा से मिलने के लिए खटीमा आये। उन्होने बाबा से प्रभावित होकर उनके सम्मान में एक गोष्ठी अपने विद्यालय में रख दी। उन्हें टनकपुर ले जाने का दायित्व शास्त्री जी को दिया गया। खटीमा से टनकपुर की दूरी 25 कि.मी. की थी। मस्त मौला बाबा को स्कूटर की सवारी करनी थी। बाबा के जिद्दी स्वभाव के आगे शास्त्री जी की एक न चली। शास्त्री जी को उन्हें स्कूटर पर ही ले जाना पड़ा। … और काव्य गोष्ठी में बाबा ने सुनाया शास्त्री जी कवि गोष्ठी में आपने क्या सुनाया था, ये भी तो बताते। |
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जो भी हो शेफाली जी ने ठीक से कॉपी जांची। परिणामस्वरूप उसके पचास में से उन्चास नंबर आए। यदि छात्र ऐसा नहीं लिखता तो शायद उसके इतने नंबर नहीं आते। छात्र की आशंका निर्मूल नहीं निकली। अंग्रेज़ी, अर्थशास्त्र एवं शिक्षा-शास्त्र (एम. एड.) विषयों से स्नातकोत्तर, लेकिन जिसके प्राण हिंदी में बसते हैं, उस शिक्षक की कलम से गणित अंग्रेज़ी दोऊ खड़े शीर्षक संस्मरण के द्वारा जानिए आज की शिक्षा पद्धति पर उनके विचार। |
![]() बताती हैं कि ट्रेन के सफ़र में वह उनकी सामने वाले सीट पर बैठी थी। उनके साथ उनकी १२-१३ वर्ष की मानसिक विकलांग बेटी भी थे। उनकी बेटी स्तुति आँखें बंद किये बैठी थी और बार बार आने बालों में अँगुलियों से कंघी कर रही थी। पहले रेखा जी समझी की ये नेत्रहीन है लेकिन बाद में पता चला कि वह सिर्फ मानसिक विकलांग है। उसको अकेले संभालना आसन काम नहीं था। रेखा जी ने बड़े संकोच के साथ उनसे पूछा की क्या आपकी बेटी को कोई प्रॉब्लम है? मां का जवाब था यूँ तो मां वन्दनीय होती ही हैं रेखा जी - मगर आपने जो कहानी बतायीं ऐसी मां वरेण्य हैं। |
![]() माँ का रूप ईश्वर का रूप होता है। ये न सिर्फ हम इंसानों पर बल्कि पशुओं पर भी लागू होता है एवं सभी माएं चाहे वे मनुष्य हों या जीव जंतु अपनी संतान को दुष्टों से बचाना चाहती है। इस बात को प्रमाणित करने के लिए वे कुछ चित्रों के माध्यम से एक माँ का दिल बता रहे हैं। जयपुर में एक बन्दर की एक मोटर साइकिल से टक्कर हो गयी। उसके बाद वो छोटा बन्दर खड़े होने की भी हालत में नहीं था। पर मां बंदर ने उसकी कैसे रक्षा की वह तो आप इस पोस्ट पर देखिए। फिलहाल एक छवि। ![]() |
आलेख |
एक प्रतिक्रिया आई है हमारा कीमती धन उन उस पर जाया नहीं होना चाहिए और उसे जल्द से जल्द उसे फांसी पर लटका दिया जाना चाहिए तभी इस सारी न्याय प्रक्रिया का कोई ओचित्य सिद्ध होगा। वर्ना तो सब बेकार है।आपका क्या कहना है? |
किसी भी भाषा में मुहावरे और लोकोक्तियों का स्थान महत्वपूर्ण है। ये भाषा को रुचिर और संश्लिष्ट तो बनाते ही हैं उनके प्रभाव को भी तीब्रता देते हैं। हिंदी का विशाल मुहावरा कोश वस्तुतः लक्षणा वृति से ही प्रसूत है। कुछ मुहावरों की व्याख्या व्यंजना शक्ति के आधार पर की जाती है। आरम्भ से काव्य में चले आ रहे लक्षक शब्द व्यापक अर्थ ग्रहण कर मुहावरा बन गए और इनके क़ोश में निरंतर वृद्धि होती रही। |
मनोज वाणी पर आपके कंप्यूटर के लिए सबसे अच्छे और मुफ्त सॉफ्टवेयरों का संग्रह, जिन्हें इस पोट के लेखक ने लंबे समयतक प्रयोगमें लाया है, प्रस्तुत है। यक़ीन मानिए ये एक संग्रहणीय पोस्ट है। खास कर उनके लिए जिन्हें तकनिकी जानकारी कम है। |
योग आदि द्वारा सुद्रड़ व निर्मल अहं में कुसंस्कारों का उन्मूलन व सुसंस्कारों का प्रतिष्ठापन व श्रृद्धा, भक्ति आदि भावों के संचार किये जा सकते हैं। भक्ति द्वारा ईश्वर को आत्म समर्पण में इसी अहं को नष्ट किया जाता है। ईश्वर चिंतन व अध्यात्म, आत्म-ज्ञान द्वारा इसी अहं को सुद्रड़, सन्तुष्ट व सुकृत किया जाता है। अंतःकरण के इन चारों स्तरों से छन कर ही मानव के विचार कार्य रूप में परिणत होते हैं| ईश्वर,ज्ञान, योग, भक्ति, परहित चिंतन आदि का उद्देश्य चेतना केप्रत्येक स्तर को सुद्रिड, सबल , निर्मल व अमल बनाकर अहं को नियमित करना है ,ताकि कर्म का प्रतिफलन सुकर्म के रूप में ही प्रवाहित व प्रस्फुटित हो, औरमानव का उत्तरोत्तर विकास हो | यही अध्यात्म वृत्तियों की महत्ता है। |
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आज अचानक बीस साल बाद का कोई दिन कल्पना में दौड उठा है ,जब हर महानगरीय घरों में बेटियां कह रही होंगी कि हमने अपनीपसंद का साथी चुन लिया है , न सिर्फ़ चुन लिया है बल्कि उसकेसाथ जीवन के सभी पल बिता लिए हैं , तो ऐसे में खडा उसका बापउसकी मां क्या करेंगे , आखिर कितनी निरूपमाओं को कत्ल कियाजाएगा ? लेकिन बीस साल से पहले तो निरूपमाओं को अपनाजीवन बचाए रखना ही होगा न सिर्फ़ अपने बाप से , अपनी मां सेबल्कि ऐसे सभी प्रियभांशुओं से भी जो उनकी मौत के बास प्रपंचप्रलाप ही कर सकते हैं ॥ |
अभी दो चार दिनो से मै "निरुपमा " के बारे मै पढ रहा हुं, कोई उस के मां बाप को दोषी करार दे रहा है, गालिया दे रहा है, कोई उस के दोस्त को दोषी करार दे रहा है, हमारी पुलिस हवा मै हाथ पैर मार रही है, ओर मिडिया ने उस परिवार को उस के दोस्त को कही भी मुंह दिखाने लायक नही छोडा, यह सब कमजोरी हमारी पुलिस की है जो पता नही कैसे पुलिस बन गई... अरे पुलिस हो तो पुलिस की तरह काम करो गुंडो की तरह से क्यो हर किसी को पकड कर वाह वाही लूट रहे है, ओर क्यो मीडिया को बेकार की बकवास करने के लिये मोका देते हो....मीडिया आज ओरो की बाते उछाल रहा है, भगवान ना करे कल हमारे साथ कुछ ऎसा हुआ तो यही मिडिया हमारी भी खिल्ली इसी तरह से उडायेगा, "निरुपमा" के संग क्या हुआ, क्या नही हुआ किसी को नही पता, तो क्यो हम बेकार मै सभी को दोषी की नजर से देखे, हो सकता है मां बाप ने डांट हो?ओर उस ने आत्महत्या कर ली हो? अगर मेरी या आप की बेटी ऎसी खबर देगी तो क्या आप उसे शावाशी देगे? मै मारुंगा तो नही लेकिन शावाशी भी नही दुंगा... उसे डांटूंगा तो जरुर |
मेरी मां मम्मा अगर यह आलेख मुझे पढना होता तो सिर्फ़ इन पंक्तियों के लिए पढता … एक बार स्वामी विवेकानंद से किसी ने पूछा कि हमेशा माँ को इतना महत्त्व क्यों दिया जाता है तो उन्होंने उस व्यक्ति दे कहा कि ये दो किलो का पत्थर लो और इसे अपने पेट पर बांधकर शाम तक घूमों.जब तुम वापस आओगे तब मैं इसका उत्तर दूँगा.शाम को जब वह व्यक्ति वापस आया तो उसकी हालत खराब थी उसने कहाँ स्वामीजी आपकी शर्त ने तो मेरे प्राण ही निकल दिए तब विवेकानंद ने कहाँ सोचो यदि एस भर के साथ दिन भर में तुम्हारी हालत खराब हो गए तो तुम्हारी माँ ने तो एस भर को पूरे नौ माह तक खुशी –खुशी बर्दाश्त किया है इसलिए माँ कि महानता को सबसे ऊंचा दर्ज़ा हासिल है. संजीव मीडिया कि दुनिया में बीते दो दशकों से सक्रिय हैं और विश्व मातृत्व दिवस पर जुगाली पर पोस्ट लगा कर कहते हैं माँ के बारे में मशहूर शायर मुनब्बर राणा ने लिखा है: लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती बस एक माँ है जो मुझसे खफा नहीं होती मेरी ख्वाहिश है कि में फिर से फरिश्ता हो जाऊँ माँ से इस तरह लिपट जाऊँ कि फिर से बच्चा बन जाऊँ |
कविताएं |
![]() इतिहास ने जिसे बहुत क्रूर और कपटी बताया है संसार में न कोई भला है न बुरा, केवल विचार ही उसे भला-बुरा बना देते हैं। वैसे इस कविता को पढकर कुछ लोग तो इसे कंस के कृत्य को जस्टीफाई करने वाली बात मनते हैं तो कुछ कहते हैं कि मासूमों का नृशंस हत्यारा कभी प्यारा भाई नहीं हो सकता। |
मेरी छोटी सी दुनिया पर पी.डी. ने बहुत ख़ूबसूरत गीत ओ देश से आने वाले बता “पैग़ाम-ए-मोहब्बत”! पोअट किया है। यह मुजफ्फर अली द्वारा कम्पोज किया हुआ एवं आबिदा परबीन द्वारा गया हुआ, "पैगाम-ए-मुहब्बत एल्बम से लिया गया है। ओ देश किस हाल में है यार-ए-वतन वो बाग-ए-वतन, फ़िरदौस-ए-वतन क्या अब भी वहां के बागों में मस्तानी हवाऐं आती हैं क्या अब भी वहां के पर्वत पर घनघोर घटाऐं छाती हैं क्या अब भी वहां की बरखाऐं ऐसे ही दिलों को भाती हैं ओ देश से आने वाले बता पढिए और सुनिए भी। |
![]() वो टोकना वो प्यार सेइस धरा पर मां ईश्वर की प्रतिनिधि है, कितना भी कहें शब्द कम पढ़ जाते हैं। मदर्स डे को समर्पित इस कविता की भावनाओं की गहराई एवं मां को नमन! |
मां को याद करते शिवांगी जी उन्मुक्त पर कहती हैं M for मम्मी! जीवन की धूप कभी पड़ने न दी मुझ पर, तुम थी हमेशा मौजूद मेरी छाया बनकर, बचपन के दिन करती हूँ आज भी याद, पूछ पूछकर की ये क्या और वो क्या, किया करती थी तुमको परेशान, याद है पल पल लेती थी, सब्र का इम्तिहान, |
हरीश प्रकाश गुप्त की एक भाव-भीनी कविता पढिए विश्व मातृ-दिवस पर - माँ तुझे सलाम !! माँ बहुत अच्छी लगती है जब सहलाती है देह छोटे सेबड़े होने और बड़े हो जाने तक अपने बेटे की, इस क्रम में मां की संवेदना उसकी अंगुलियों के पोरों से होती हुयी उतर जाती है कलेजे में, और समा जाती है धड़कनों में। |
![]() आपा-धापी, धूप-छाओं हर हाल में खुश रहती माँ। घर से आंगन, आंगन से घर दिनभर चलती रहती माँ। सबको दुःख में कान्धा देती अपने दुःख खुद पी लेती, पत्नी, बेटी, सास, बहु कितने हिस्सों में बटती माँ। चूल्हा, चक्की, नाते, रिश्ते सारे काज निभाती है, रोली, केसर, चन्दन, टीका जाने क्या-क्या बन जाती माँ। पूजा, पथ, नियम, धरम सब कुछ औरों की खातिर ही, हरछट, तीजा, करवा, कजली सारे पर्व मनाती माँ। ईश्वर जाने कैसा होगा, माँ कहती वह नेक बहुत, जब-जब वक़्त बुरा आया खुद ही नेकी बन जाती माँ। |
![]() आज तक न जान पाया उसका दर्द जो मेरे सृजन में भोगा उसने वो हमेशा ही रही मुस्कुराती और कराहती थी सिर्फ मेरे दर्द पर |
अरविन्द मिश्र जी दुविधा में हैं -- कौरव कौन कौन पांडव! सौ. श्री अटल विहारी वाजपेई प्रस्तुत करते हैं कौरव कौन कौन पांडव, टेढ़ा सवाल है| दोनों ओर शकुनि का फैला कूटजाल है| धर्मराज ने छोड़ी नहीं जुए की लत है| हर पंचायत में पांचाली अपमानित है| बिना कृष्ण के आज महाभारत होना है, कोई राजा बने, रंक को तो रोना है| |
आतंक का साया हो तो शब्द और निखर जाते हैं। पढिए सधे शब्दों का कमाल नव गीत की पाठशाला में शशि पाधा की रचना कैसी यह हवा चली ? डरी-डरी चौपाल है, काँपती है हर गली। कैसी यह हवा चली ? किस दिशा से आ रही बारूद की दग्ध गंध, कब किसी ने तोड़ दी प्रेम की पावन सौगंध? भस्म सद्भाव है, संवेदना घुली-गली। कैसी यह हवा चली? |
सिलवट सिलवट चाँद पड़ा है, हर कोने पे तारे हैं , कुछ उल्काएं हैं जो गिरी हैं बिस्तर के सिरहाने से , ओस की बूंदे सुलग रही हैं बिस्तर के पाए के पास , तकिये के नीचे इक मिल्की वे कि साँसे अटकी हैं... जाने किसके साथ गुजारी रात ने अपनी रात यहाँ ...! |
![]() हाँ , मैंने खुशबू को क़ैद कर लिया तेरी सोमरस छलकाती बातों को मीठी -मीठी मुस्कानों को हिरनी से चंचल नैनों की चितवन को बिजली से मचलते पैरों की थिरकन को तेरे मिश्री घुले मधुर अल्फाजों को मधुर- मधुर गुंजार करते गीतों को |
जो भाग्य को सर्वोपरी मानते है और हालात से जूझते नहीं वे जीवन को पहेली तो मानते है पर उसे कदापि बूझते नहीं । |
ग़ज़लें |
![]() दुश्मनों से भी निभाना चाहते हैं दोस्त मेरे क्या पता क्या चाहते हैं साँस लेना सीख लें पहले धुएं में जो हमें जीना सिखाना चाहते हैं 2. रोज कोई कहीं हादसा देखना अब तो आदत में है ये फजां देखना उन दरख्तों की मुरझा गयी कोपलें जिनको आँखों ने चाहा हरा देखना 3. सारा आलम बस्ती का जंगल जैसा ही है बदला क्या है आज, सभी कुछ कल जैसा ही है गमलों में ही पनप रही है सारी हरियाली बाकी सारा मंजर तो मरुथल जैसा ही है 4. थोड़ी मस्ती थोड़ा सा ईमान बचा पाया हूं ये क्या कम है मैं अपनी पहचान बचा पाया हूं खुशबू के अहसास सभी रंगों ने छीन लिए हैं जैसे-तैसे फूलों की मुस्कान बचा पाया हूं 5. तय तो करना था सफर हमको सवेरों की तरफ ले गये लेकिन उजाले ही अंधेरों की तरफ साँप ने काटा जिसे उसकी तरफ कोई नहीं लोग साँपों की तरफ हैं या सपेरों की तरफ |
कहानी |
![]() तुम लड़कियां कोई अच्छी बात पूरा क्यों नहीं करने देती ? श्रीकांत सवाल करता है क्योंकि हम उसके बाद उसमें बंध जाते हैं श्रीकांत तो क्या तुम्हें बंधना पसंद नहीं ? श्रीकांत की बेसब्री बढ़ जाती है है ना ! अच्छा चलो पानी में दोनों एक साथ अपनी परछाई देखते हैं.... श्रीकांत ने हामी भरी... दोनों ने पानी में एक साथ झाँका, कुएं का पानी बड़ा साफ़ था. अभावों के दिन थे पर एक ही फ्रेम में दोनों आ गए... परछाई में दोनों ने एक एक-दूसरे को देखा... साक्षी ने अपने तरीके से श्रीकांत को माँगा और श्रीकांत ने अपने जहां का कोना-कोना साक्षी को दे डाला... और इसी पल की तस्वीर दोनों के मन में सदा-सदा के लिए खिंच गए. |
बस..!!
इस बार इतना ही…!!!
और अंत में ….. |
रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो छिटकाय।टूटे तो फिर ना मिले मिले गांठ पड़ जाय।रहीम कहते हैं कि एक बार प्रेम का जुड़ाव हो जाए तो उसे तोड़ना नहीं चाहिए । जब प्रेम टूट जाता है तो फिर मिलता नहीं । और मिलता है तो गांठ पड़ ही जाती है । |
nice
ReplyDeleteमनोज कुमार जी !
ReplyDeleteसुन्दर चर्चा के लिए बहुत-बहुत बधाई!
मनोज जी,
ReplyDeleteआपने इतनी अच्छी चर्चा कि है कि क्या बताऊँ...
सही मायने में चर्चा यही है..हमलोग जो करते हैं वो सिर्फ लिंक दे देते हैं ..
सच में बहुत ही अच्छा लगा...
आपका आभार...
शास्त्री जी मदर्स डे पर माँ को अर्पित ढेर सारी रचनाओं को समेटे यह चिट्ठा चर्चा और भी खास लगी...बधाई शास्त्री जी
ReplyDeletenice
ReplyDeleteबढ़िया और विस्तृत चर्चा के लिए आभार
ReplyDeletebehad achhi charcha..maa par dher sari rachnaon ka pata diya hai..bahut bahut shuqriya manoj ji...
ReplyDeleteMatri divas ki hardik shubhkamnayen
Ada di se ekmat hoon
ReplyDeleteमेहनत, लगन और निष्ठा से की गई उत्तम चर्चा।
ReplyDeleteमनोज कुमार जी !
ReplyDeleteसुन्दर चर्चा के लिए बहुत-बहुत बधाई!
Bahut Shandaar Sanklan!!!
ReplyDelete"RAM"
रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो छिटकाय। (chatkaye)
ReplyDeleteटूटे तो फिर ना मिले (jude) मिले (jude) गांठ पड़ जाय।
lakin ye panktiyan sahi nahin hai.
bahut hi sundar aur sahi tarike se charcha ki hai aapne jaise karni chahiye..........aabhar aapka........kafi links to yahin mil gaye.
ReplyDeleteबहुत विस्तृत और सुरुचिपुर्ण चर्चा, बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
विस्त्रित और सुसज्जित चर्चा ।
ReplyDeleteबहुत ही बढिया चर्चा मनोज जी!
ReplyDeleteआभार्!
आपकी चर्चा का आज का अंदाज़ बहुत अच्छा है!
ReplyDelete--
सबसे प्यारा होता है : अपनी माँ का मुखड़ा!
सुन्दर चर्चा के लिए बहुत-बहुत बधाई!
ReplyDeleteमातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ !!
वन्दे मातरम !!
मनोज जी , सुन्दर प्रस्तुति, बधाई---हां एक सुधार----
ReplyDelete---अशोक रावत की ये ५ गज़लें नहीं हैं अपितु "कतए" हैं।