आज मुझे प्रातःकल ही चर्चा लगानी थी
परन्तु मैं किसी आवश्यक कार्य से
अपने गाँव चला गया था!
इसलिए मैं मनोज कुमार आज की
सांध्यकालीन चर्चा आपकी सेवा में
प्रस्तुत कर रहा हूँ!
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ज़िंदगी के लिये मौत की छलांग! जी हां ये सच है और उस छलांग की कीमत भी कितनी? आप कल्पना भी नही कर सकते कि इंसान की ज़िंदगी इतनी सस्ती है। ज़िंदगी को दांव पर लगाने की क्या मज़बूरी होगी ये तो सवाल सामने है ही एक और सवाल सामने है क्या सच मे इंसान की ज़िंदगी इतनी सस्ती है?
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बेचैन आत्मा प्रस्तुत करते हैं नव गीत जिस में शब्द है, प्रवाह है, अर्थ है, अर्थात सारे नियमों को पूरा करती हुई एक सम्पूर्ण कविता जो बहुत सुन्दर है और जिसमें शब्द और भाव का अच्छा संयोजन है।
रिश्तों के सब तार बह गएहम नदिया की धार बह गए. बहुत कठिन है नैया अपनी धारा के विपरीत चलाना अरे..! कहाँ संभव है प्यारे बिन डूबे मोती पा जाना मंजिल के लघु पथ कटान में जीवन के सब सार बह गए. |
२९ मई पत्रकारिता दिवस पर अरुणेश मिश्र की लाजवाब प्रस्तुति जो कम शब्दों में ...अच्छा सन्देश दे रही है ! इसे ही गागर में सागर कहते है .आज हिन्दी पत्रकारिता दिवस परअखरे जो बार बारउसे अखबार कहते हैं । सरके जो बार बार उसे सरकार कहते हैं । समाचारों को बेचकर खरीद ले जो कार उसे पत्रकार कहते हैं । |
बहुत कुछ कह गए एम. वर्मा जी एक दस्तक तुम्हारे दरवाज़े के नाम कविता के माध्यम से। यह कविता हालात और उसके अंदरूनी द्वन्द को दिखा रही है। इस कविता की अभिव्यक्ति बहुत ही सहज है।
भेजा था मैनें,
उस दिन एक दस्तक
तुम्हारे दरवाजे के नाम
और तुम्हारा दरवाजा
अनसुना कर गया था;
तभी तो
खुलने से मना कर गया था.
मुझे पता है
यह हौसला
दरवाजे का नहीं हो सकता
वह उन दिनों
तुम्हारे 'फैसले' की सोहबत में था.
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शुरू करो उपवास रे जोगी Sulabh Jaiswalसुलभ § Sulabh जब तक चले श्वास रे जोगी रहना नज़र के पास रे जोगी बंधाकर सबको आस रे जोगी कौन चला बनवास रे जोगी हर सूँ फ़र्ज़ से सुरभित रहे घर दफ्तर न्यास रे जोगी सदियों तक ना प्यास जगे यूँ बुझाओ प्यास रे जोगी |
एक खुशखबरी:-हिंदी ब्लॉग्गिंग को मिला 'परमाणु' शिवम् मिश्रा प्रस्तुत करते हैं बुरा भला – 1पर और कहते हैं जी हाँ, दोस्तों यह १००% सच है ...................हमारे और आपके बीच एक नए ब्लॉगर आ गए है ............ श्री शलभ शर्मा 'परमाणु' | मेरे काफी पुराने मित्र है और आज कल नॉएडा में रहते है | |
आप के यहाँ भी बी.एस. एन. एल. है, भाई आप भी हिम्मती हैं. Gagan Sharma, Kuchh Alag sa पर बताते हैं कुछ दिनों पहले सरकारी फोन 45 दिन तक कोमा में रहा था। डेस्क-डेस्क, केबिन-केबिन के यंत्रं पर पुकार लगायी पर वे भी तो अपने आकाओं से कम कहां है, सब मशीनी आवाज लिए बैठे होते हैं। सब को हिलाया, डुलाया, झिंझोड़ा पर …? |
हिन्दी ब्लोगिंग में सघंठन क्यों ??? मिथिलेश दुबे पूछ रहे हैं Mithilesh dubey Dubey –पर और कहते हैं कि अभी हाल ही में दिल्ली में इंटरनेशनल ब्लोगिंग सम्मेलन का सफल आयोजन किया गया , इसके लिए आयोजको को बहुत-बहुत बधाई । सम्मेलन में अधिक से अधिक ब्लोगरो ने पहुँच कर इस सम्मेलन को सफल बनाने में अपनी भूमिका अदा की । |
दोस्त.....................(कविता).................अनुराधा शेषाद्री हिन्दी साहित्य मंच पर हिन्दी साहित्य मंच - ऐ दोस्त तेरी दोस्ती का रिश्ता बहुत गहरा है न जाने किस उम्मीद पर दिल ठहरा है ऐ दोस्त यह रूह से रूह की गहराईयों का रिश्ता है जो रिश्तों से परे मोहब्बत की डोर से बंधा है ऐ दोस्त यह एक प्यारा सा मासूमियत का रिश्ता... |
आईये आज आप को अपने गांव के अंदर घुमा लाये भाग अन्तिम राज भाटिय़ा की प्रस्तुति पराया देश – पर कल हम ने यही पर यह कडी छोडी थी, अभी हम यहां के कब्रिस्थान मै ही है, यह गांग के दुसरी ओर के कुछ घर है यह मुर्तियां एक पुरी दिवार जितनी है, शायद जब किसी को दफ़नाने आते हो तो यहां सब मिल कर कोई पुजा वगेरा करत... |
यात्रा क्षेपक पढिए इयत्ता – पर ह रिशंकर राढ़ी की प्रस्तुति। मैं अपनी यात्रा जारी रखता किन्तु न जाने इस बार मेरा सोचा ठीक से चल नहीं रहा है। व्यवधान हैं कि चिपक कर बैठ गए हैं। खैर, मैं कोडाईकैनाल से मदुराई पहुँचूँ और आगे की यात्रा का अनुभव आपसे बांटू... |
वेदांश...... की प्रस्तुतिदरख़्तभीड़ में बैठा अक्सर देखा करता हूँ ......हाड़-मांस के कुछ दरख्तों को, सूखे से,सीना ताने.. अपनों के बीच बेगाने से, लहू कबका सूख चुका है, बचे हैं सिर्फ कुछ.. निशां... सुर्ख से, क्या ये ??? साँस लेते होंगे.... हाँ ,दिल तो है, पर धड़कन कहीं गम हो चुकी है, स्याह,अँधेरी रात कि गहराईयों में , इन दरख्तों के वीरान जंगल से.. जो भी गुज़रता है, वो तब्ब्दील हो जाता है इन दरख्तों में ... |
मत करो टांग खिंचाई-होती है जग हंसाई राजकुमार ग्वालानी की प्रस्तुति राजतन्त्र – पर पढिए। वे कहते हैं हम ब्लाग बिरादरी में पिछले एक साल से ज्यादा समय से देख रहे हैं कि यहां भी टांग खिंचाई हो रही है। ब्लाग जगत में टांग खिंचाई हो रही है तो उसके पीछे कारण यही है कि लोग एक-दूजे को भाई जैसा नहीं मानते हैं। |
भय और सच रश्मि प्रभा की प्रस्तुति मेरी भावनायें... – पर सुबह आँखें मलते सूरज को देखते मैं सच को टटोलती हूँ ये मैं , मेरे बच्चे और मेरी ज़िन्दगी फिर एक लम्बी सांस लेती हूँ सारे सच अपनी जगह हैं अविश्वास नहीं एक अनजाना भय कहो इसे हाँ भय उन्हीं आँधियों का |
ग्लोबेलाइजेशन विद ड्यू रिस्पेक्ट टू प्रिंसेज़ डायना...खुशदीप खुशदीप सहगल की प्रस्तुति देशनामा – पर *ग्लोबेलाइज़ेशन या वैश्वीकरण क्या है...* पिछले दो दशक से हम ग्लोबेलाइज़ेशन की हवा देश में बहते देखते आ रहे हैं...लेकिन मुझे इसकी सही परिभाषा अब जाकर समझ आई है...वो भी *ब्रिटेन* की मरहूम *प्रिंसेज डायना कॊ। |
धागा हूँ मैं वन्दना की प्रस्तुति ज़ख्म…जो फूलों ने दिये – पर धागा हूँ मैं मुझे माला बना प्रीत के मनके पिरो नेह की गाँठें लगा खुद को सुमरनी का मोती बना मेरे किनारों को स्वयं से मिला कुछ इस तरह धागे को माला बना अस्तित्व धागे का माला बने माला की सम्पूर्णता में |
फ़रिश्ते posted by 'उदय' at कडुवा सच - 1 day ago आज पहली बार नया चेहरा साहब मत पूछो मां बीमार, भाई थाने में गरीब हूं, असहाय हूं मां मर न जाये भाई जेल में सड न जाये मैं अनाथ न हो जाऊं इसलिये यहां खडी हूं जब कुछ रहेगा ही नहीं तब इस जिस्म का क्या अचार डालूं.. |
आज के लिए बस इतना ही- अगले रविवार को कुछ और ब्लाग्स की चर्चा लेकर आपकी सेवा में उपस्थित हो जाऊँगा! |
सुन्दर चर्चा!
जवाब देंहटाएंआपकी नियमितता देखकर अभिभूत हूँ!
बहुत अच्छी और विस्तृत चर्चा
जवाब देंहटाएंgazab ki charcha ki hai manoj ji........hamesha ki tarah lajawaab.
जवाब देंहटाएंविस्तृत उम्दा चर्चा!
जवाब देंहटाएंनए लिंक की जानकारी के लिए धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति, बेहतरीन चर्चा !
जवाब देंहटाएंहमारा ब्लॉग भी आपका इन्तजार कर रहा है -
http://sureshcartoonist.blogspot.com/2010/05/blog-post_30.html#comments
उम्दा चर्चा
जवाब देंहटाएंअन्दाज बहुत प्यारा
आकर्षक और महत्त्वपूर्ण चर्चा!
जवाब देंहटाएं....प्रसंशनीय चर्चा !!!
जवाब देंहटाएंआभार, अच्छे लिंक्स देकर अच्छी रचनाएँ पढ़वाने का।
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