चर्चाकारा ------------वन्दना गुप्ता |
आर के भारद्वाज की कविता - इन्हें किसी के धर्म से क्या पड़ी है posted by Raviratlami at रचनाकार [image: image] मैंने देखा है मैंने देखा है, राम को रहीम को बलजीत को, इब्राहीम को धर्म के लिये, जान देते, प्राण लेते मैंने देखा है मन्दिरों के लिये लड़ते बावरों को गिरजों के लिये, गुरूद्वारों के लि... |
गर्मीयां...... posted by परमजीत सिँह बाली at ******दिशाएं****** पेड़ की ओट में अपने बच्चों को समेटती इन गर्म हवाओं और लू की मार सहती वह गरीब औरत जो राजधानी मे पेट भरने को आई थी परिवार के साथ... सोच रही होगी- इस पूरी गर्मी को.... मेरे कितने बच्चे देख पाएगें? कितने वापिस ... |
ज़रा रहने दो मुझमें भी अभी इतनी सी ग़ैरत तो.... posted by 'अदा' at काव्य मंजूषा - ** हमारी जिंदगी में भी कई बे-नाम रिश्ते हैं उन्हें हम इतनी शिद्दत से न जाने क्यूँ निभाते हैं तुम्हारी हर दगाबाज़ी हमें जी भर रुलाती है सबेरा जब भी होता है तो हम सब भूल जाते हैं यहाँ ये कैसी दुनिय... |
और वह मर गया ......(कविता ) .....कुमार विश्वबंधु posted by हिन्दी साहित्य मंच at हिन्दी साहित्य मंच - उसने चाहा था घर बना मकान खप गयी जिंदगी वह सुखी होना चाहता था इसलिए मारता रहा मच्छर मक्खी, तिलचट्टे ... फांसता रहा चूहे सफर में जैसे डूबा रहे कोई सस्ते उपन्यास में कोई कि यूं ही बेमतलब कट गयी उम्र अनजान... |
अब उठा ही लो कुदाली ..... posted by M VERMA at TRUTH .... (भावनाओं का प्रवाह) - चिडियो ने वतन है छोडा विचरण करते यहाँ अब तो चहुँ ओर काग जी, थोथे हैं पक्षी संरक्षण के आँकड़े ये तो हैं महज कागजी. ************ खयाली घोड़े तुमने तो बहुत कुदा ली, लौट आओ हकीकत में अब उठा ... |
मरता तो सरकार से पैसे ही मिल जाते, मेरे मरने से परिवार के दिन फिर जाते.... posted by दिलीप at दिल की कलम से... - जाने एक नौजवान को क्या सनक चढ़ी... जाने थी क्या खुराफात उसने मन मे गढ़ी... वो जोश मे उठा और तेज़ी से चलने लगा... एक सज्जन का तेज़ी से पीछा करने लगा... बेचारे सज्जन भी ये देखकर बड़ा घबराए... अपने कदम थे उ... |
“खरबूजे का मौसम आया” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक") posted by डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक at नन्हें सुमन पिकनिक करने का मन आया! मोटर में सबको बैठाया!! [image: family_car_250]पहुँच गये जब नदी किनारे! खरबूजे के खेत निहारे!! [image: _44621951_07melon_afp] ककड़ी, खीरा और तरबूजे! कच्चे-पक्के थे खरबूजे!! [image... |
मुस्कान भी अब मेरी थकने लगी है...... May 16, 2010 | Author: अनामिका की सदाये...... | Source: अनामिका की सदाये... मुस्कान भी अब मेरी थकने लगी है मजबूरियाँ जो इतनी निष्ठुर हो चली हैं .. [read more] |
ये कैसा इन्साफ ..... May 16, 2010 | Author: देवेश प्रताप | Source: विचारों का दर्पण देवेश प्रताप [read more] |
प्रमोद भार्गव का बाल कहानी संकलन posted by Raviratlami at रचनाकार - [image: image] *बाल कहानी * *जुहार का वचन* रीवा के राजा रामचन्द्र बघेला की राजसभा में उस समय दो प्रमुख गायक थे एक संगीत सम्राट तानसेन और दूसरे जैन खां। कुछ समय बाद जैन खां राजा रामचन्द्र की राज्यसभा छोडक़.. |
फैशन हो या पोर्नोग्राफी सब बिना किसी शरम के परोसी जा रही हैं--------- मिथिलेश दुबे posted by Mithilesh dubey at Dubey - 15 hours ago अगर ये कहा जाए कि विगत वर्षो में सबसे ज्यादा प्रगति विज्ञान क्षेत्र ने किया तो गलत ना होगा । पिछले पच्चीस वर्षों मे तो इलेक्ट्रानिक्स के क्षेत्र में हुए आविष्कार के कारण सूचनातंत्र का पूरा जंजाल घर-घर में ... |
अलविदा posted by Vijay Kumar Sappatti at THE SOUL OF MY POEMS कविताओं के मन से *सोचता हूँ * *जिन लम्हों को ; * *हमने एक दूसरे के नाम किया है * *शायद वही जिंदगी थी !* *भले ही वो ख्यालों में हो , * *या फिर अनजान ख्वाबो में ..* *या यूँ ही कभी बातें करते हुए ..* *या फिर अपने अपने अक्स को... |
पहचान कौन ? - रणजीत कुमार की कविता posted by आशुतोष दुबे at हिन्दीकुंज - *एक मात्र सवाल और फिर मैं मौन * *पहचान कौन?* *क्या नहीं पहचाना मैं तो हमेशा तुम्हारे साथ * *तुम्हारे ही अंदर रहता हूँ * *और कहता हूँ की कभी तो अंतर्मुखी हो* *मुझसे भी करो मुलाकात * *न सही लंबी चर्चा ... |
तलब (लघुकथा)------------------------------->>> दीपक 'मशाल' posted by दीपक 'मशाल' at मसि-कागद - आँख खुलते ही सुबह-सुबह मुकेश को अपने घर के सामने से थोड़ा बाजू में लोगों का मजमा जुड़ा दिखा. भीड़ में अपनी जानपहिचान के किसी आदमी को देख उसने अपने कमरे की खिड़की से ही आवाज़ देते हुए पूछा- ''क्या हुआ अरव... |
महेन्द्र मिश्र has left a new comment on your post "कोई बैसाखियों के दम पे, अंगद हो नहीं सकता---(चर्चा...": पं.डी.के.शर्मा "वत्स" ""चर्चाकार चर्चा मंच"" अभिवादन , आपके द्वारा चर्चा में जो शीर्षक " कोई वैशाखियो के दम पर अंगद नहीं हो सकता है " को लेकर भाई गिरीश बिल्लौरे जी काफी आहत है और उन्होंने ब्लागिंग को अलबिदा कहने की घोषणा की है . आपके द्वारा जो शीर्षक लिखा गया है वो सीधे उन्हें निशाना बनाकर लिखा गया है यह कदापि उचित नहीं हैं . एक पढ़े लिखे सभी व्यक्ति द्वारा इस तरह की भाषा का प्रयोग किया जाना उचित नहीं हैं . कृपया किसी की भावनाओ को ठेस न पहुंचाए यह निवेदन है अन्यथा भविष्य में आपको भी निशाना बनाया जा सकता है . इस प्रकरण से हम सभी जबलपुर के ब्लागरों को काफी ठेस पहुँची है . ईट का जबाब हम भी पत्थर से देना जानते हैं . आप अभी तक मेरी द्रष्टि में आप सम्मानित ब्लॉगर रहे है पर अब इस प्रकरण से मेरा भ्रम टूट गया हैं . ब्लागजगत में शांति रहें सब एक दूसरे के साथ भाई चारे की भावना के साथ रहे यही हम सब की कामना है और रहेगी . कृपया आप उक्त शीर्षक हटाने का कष्ट करें . महेंद्र मिश्र. जबलपुर. -- यह स्पष्टीकरण नही हकीकत है! : पंडित डी.के.शर्मा "वत्स" शास्त्री जी, नमस्कार्! आपके द्वारा भेजी गई इस मेल को आज ही देख पाया. पढा तो एकदम से ऎसा लगा कि मानो पैरों के नीचे से जमीन निकल गई हो या आसमान फट पडा हो....एक ऎसे व्यक्ति जिसका कि कभी किसी विवाद में कैसा भी कोई सरोकार न रहा हो....ऎसे व्यक्ति को जब किसी मिथ्या आपेक्ष का सामना करना पडे तो उस व्यक्ति पर क्या गुजरेगी, इसका आप कम से कम अन्दाजा तो लगा ही सकते हैं. महेन्द्र मिश्र जी का ये कहना कि हमारे द्वारा चर्चा को जो शीर्षक दिया गया था, वो सीधे गिरीश बिल्लोरे जी को निशाना बनाने के इरादे से किया गया था.जिसके कारण उनकी भावनाएं आहत हुईं और उन्हे ब्लागिंग को छोड कर जाना पडा. आज इस वाकये नें मेरे इस मिथ्या भ्रम को पूरी तरह से खंडित कर डाला कि ब्लागिंग पढे लिखे, बुद्धिमान लोगों की जगह है, सच में यहाँ भी मूर्खों की कोई कमी नहीं है. मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि ऎसे व्यक्ति जिन्हे शब्दों के अर्थ की समझ नहीं, जो खुद को कवि कहलाने का शौक रखते हैं लेकिन दूसरे के लिखे के भाव तक को नहीं समझ पाते ओर पढकर मन ही मन कैसी कैसी भ्रामक कल्पना करने लगता है, उस व्यक्तियों की बुद्धि पर हँसा जाए, क्रोध किया जाए या कि तरस खाया जाए. मिश्र जी से एक बात पूछना चाहूँगा कि भाई गिरीश जी नें मेरी ऎसी कौन सी भैंस खोल ली थी, या उनके साथ मेरी कोई दुश्मनी चल रही है जिसका बदला लेने के लिए मुझे उन्हे आहत करनी की जरूरत महसूस हुई.जिनके साथ मेरा परस्पर कोई सम्बंध नहीं, कभी आपस में कभी संवाद तक नहीं हुआ, किसी विषय में सहमति/असहमति का तो सवाल ही बहुत दूर की बात है...वो इन्सान इस प्रकार का आरोप लगा सकता है! जरा बताईये या गिरीश जी से ही पूछ लीजिएगा कि क्या कभी किसी विषय में उनका मुझ से कोई मतभेद हुआ है, जिसे ध्यान में रखते हुए उन्हे ऎसा आरोप लगाना पडा ? दूसरी बात ये कि चर्चा को जो शीर्षक दिया गया था, वो उस दिन "चन्द्रभान भारद्वाज" नामक किसी रचनाकार की कविता/गजल की एक पंक्ति थी, जो कि पढने पर मुझे अच्छी लगी तो मैने उसे शीर्षक की जगह पर रख दिया. पूरी कविता/गजल चर्चा में लगी हुई है. जरा एक बार पहले पढ लीजिए. फिर आईडिया लगाईये कि हो सकता है कि वो कविता/गजल भी मैने उस कवि/गजलकार को पैसे देकर लिखाई हो ताकि मैं उसे चर्चा में लगाकर यहाँ अपने किसी कट्टर दुश्मन के ह्रदय को आहत कर सकूँ....... "बराबर उसके कद के यों मेरा कद हो नहीं सकता वो तुलसी हो नहीं सकता मैं बरगद हो नहीं सकता मिटा दे लाँघ जाए या कि उसका अतिक्रमण कर ले मैं ऐसी कोई भी कमजोर सरहद हो नहीं सकता जमा कर खुद के पाँवों को चुनौती देनी पड़ती है कोई बैसाखियों के दम पे, अंगद हो नहीं सकता" अभी तक मेरे द्वारा कुल तीन बार चर्चा की गई है...ओर तीनों चर्चाओं में मेरे द्वारा दिया गया शीर्षक किसी न किसी कविता/गजल की कोई पंक्ति ही रही है........ अब अन्तिम बात जो कि मैं यहाँ सभी से कहना चाहूँगा कि मेरी फितरत इस प्रकार के इन्सान की नहीं है कि जिसका मकसद लोगों के दिलों को आहत कर के, फालतू के विवाद खडे करके अपनी टीआरपी बढाना या लोगों का अपनी ओर ध्यानाकर्षण करता फिरूँ..................जिस दिन ऎसी स्थिति आई कि मेरे किसी कृ्त्य के चलते किसी का मन आहत हो एवं उसे यूँ ब्लागिंग से विदा लेना पडे तो उस दिन मैं स्वयं ही इस जगह को छोड देना पसन्द करूँगा...... शास्त्री जी, एक विनती आपसे भी कि कार्य व्यवस्तता के चलते मैं आपके द्वारा सौंपे गए इस चर्चा के उतरदायित्व को निभाने में अपने आप को पूर्णत: असमर्थ पा रहा हूँ.... आपने ये जिम्मेदारी सौंप कर जो मेरा मान बढाया, उसके लिए मैं आपका ह्रदय से आभारी हूँ... किन्तु अब आपसे निवेदन है कि आप मेरी विवशता को समझते हुए मुझे चर्चा के इस जिम्मेदारी भरे कार्यभार से मुक्त करने की कृ्पालता करेंगें....... नमस्कार........ पंडित डी.के.शर्मा "वत्स"जी आपकी भावना नेक थी! कृपया आप चर्चा मंच से दामन न बचाएँ! चर्चा मंच के सभी योगदानकर्ताओं का आपसे निवेदन है! |
कौन है श्रेष्ठ ब्लागरिन ...??? posted by 'अदा' at काव्य मंजूषा - कौन है श्रेष्ठ ब्लागरिन पुरूषों की कैटेगिरी में श्रेष्ठ ब्लागर का चयन हो चुका है। हालांकि अनूप शुक्ला पैनल यह मानने को तैयार ही नहीं था कि उनका सुपड़ा साफ हो चुका है लेकिन फिर भी देशभर के ब्लागरों ने एकमत... |
टुकड़े टुकड़े ख्वाब ....(कविता)............संगीता स्वरुप posted by हिन्दी साहित्य मंच at हिन्दी साहित्य मंच - 1 hour ago गर्भ -गृह से आँखों की खिड़की खोल पलकों की ओट से मेरे ख़्वाबों ने धीरे से बाहर झाँका कोहरे की गहन चादर से सब कुछ ढका हुआ था . धीरे धीरे हकीक़त के ताप ने कम कर दी गहनता कोहरे की और ख़्... |
मौन posted by Sadhana Vaid at नारी का कविता ब्लॉग - मेरे मौन को तुम मत कुरेदो ! यह मौन जिसे मैंने धारण किया है दरअसल मेरा कम औरतुम्हारा ही रक्षा कवच अधिक है !इसे ऐसे ही अछूता रहने दो वरना जिस दिन भी इस अभेद्य कवच को तुम बेधना चाहोगे मेरे मन की प्रत्यंचा से छ... |
दोस्तों! आज की चर्चा को यहीं विराम देती हूँ । मेरे यहाँ ब्लोगवानी नही खुल रहा है! इसलिये प्रयत्न करके ही पोस्ट ही लगा पायी हूँ। |
वाह वंदना जी , अत्युत्तम ...
जवाब देंहटाएंसबसे अच्छी बात हुई है वत्स जी ने अपना पक्ष रखा है ....
और यह बिलकुल सत्य है...मेरे साथ भी ऐसा ही कुछ हो चुका है..इस लिए मैं उनकी पीड़ा समझ सकती हूँ...
बहुत अच्छी चर्चा.....
बहुत बढ़िया चर्चा....अच्छी लगी.
जवाब देंहटाएंसमग्र चर्चा
जवाब देंहटाएंवत्स जी से पुनर्विचार का आग्रह
वन्दना जी की आज की तो बहुत ही बढ़िया चर्चा रही! आभार!
जवाब देंहटाएं--
गिरीश बिल्लोरे जी शिक्षित होने के साथ ही बहुत ही बहुत ही संयत, शान्त और शालीन भी है! मेरे मन में उनके लिए बहुत आदर है! कृपया ब्लॉगिंग छोड़ृने का अपना इरादा स्थगित करें! आपसे यही निवेदन है!
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भाई महेन्द्र निश्र जी आपसे भी प्रार्थना है कि पंडित "वत्स" जी ने तो अपनी चर्चा में किसी ब्लॉगर की पोस्ट का शीर्षक ही लगाय़ा था! आप तो स्वयं भी एक जाने माने चर्चाकार है। कृपया अन्यथा न लें! या सभी चर्चाकार आपस में वार्ता करके तय कर लें कि वे अपनी चर्चा में किसी की भी पोस्ट का शीर्षक नही लगायेंगे!
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पंडित "वत्स" जी से आग्रह है कि वे अपने इस चर्चा मंच को छोड़ने की बात न कहें!
कृपया इसे मेरा व्यक्तिगत निवेदन ही समझें!
वंदना जी एक से बढ़ कर एक पोस्ट..सुंदर रचनाओं से भरी चिट्ठा चर्चा...बहुत बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी एवं सार्थक पोस्ट्स का चयन किया है आपने ! बधाई ! मेरी रचना को इसमें सम्मिलित करने के लिए आपकी ह्रदय से आभारी हूँ ! मेरा धन्यवाद स्वीकार करें !
जवाब देंहटाएंसराहनीय प्रयास और अच्छी चर्चा /
जवाब देंहटाएंgood links of posts / blogs underlined by you, thanks a lot.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चर्चा वन्दना जी !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चर्चा.....आभार
जवाब देंहटाएंएक उम्दा चर्चा पर बधाइयाँ !!
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दर चर्चा...अच्छे लिंक्स के साथ
जवाब देंहटाएंअरे वाह आप लिखती तो लाजवाब है ही , चर्चा भी लाजवाब लगी ।
जवाब देंहटाएंdosto ,
जवाब देंहटाएंaap sabko pranaam ,
meri kavita aur mere blog ke baare me likh kar aap sab ne mujh par badi krupa ki hai .. mera lekhan is layaak to nahi ki ,kahi uski churcha ki jaaye .. par phir bhi aap logo ne mujhe ye pyaar diya . aap sabko mera pranaam ..
namaskar
vijay
बहुत अच्छी चर्चा ...!!
जवाब देंहटाएंमेहनत से की गई अच्छी चर्चा!
जवाब देंहटाएं--
बौराए हैं बाज फिरंगी!
हँसी का टुकड़ा छीनने को,
लेकिन फिर भी इंद्रधनुष के सात रंग मुस्काए!
बेहतरीन चर्चा.....आभार
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा धन्यवाद
जवाब देंहटाएंलो आ गया जलजला (भाग एक)
जवाब देंहटाएंवे ब्लागर जो मुझे टिप्पणी के तौर पर जगह दे रहे हैं उनका आभार. जो यह मानते हैं कि वे मुफ्त में मुझे प्रचार क्यों दें उनका भी आभार. भला एक बेनामी को प्रचार का कितना फायदा मिलेगा यह समझ से परे हैं.
मैंने अपने कमेंट का शीर्षक –लो आ गया जलजला रखा है। इसका यह मतलब तो बिल्कुल भी नहीं निकाला जाना चाहिए कि मैं किसी एकता को खंडित करने का प्रयास कर रहा हूं। मेरा ऐसा ध्येय न पहले था न भविष्य में कभी रहेगा.
ब्लाग जगत में पिछले कुछ दिनों से जो कुछ घट रहा है क्या उसके बाद आप सबको नहीं लगता है कि यह सब कुछ स्वस्थ प्रतिस्पर्धा नहीं होने की वजह से हुआ है. आप अपने घर में बच्चों से तो यह जरूर कहेंगे कि बेटा अब की बार इस परीक्षा में यह नबंर लाना है उस परीक्षा को तुम्हे क्लीयर करना ही है लेकिन जब खुद की परीक्षा का सवाल आया तो सारे के सारे लोग फोन के जरिए एकजुट हो गए और पिल पड़े जलजला को पिलपिला बताने के लिए. बावजूद इसके जलजला को दुख नहीं है क्योंकि जलजला जानता है कि उसने अपने जीवन में कभी भी किसी स्त्री का दिल नहीं दुखाया है। जलजला स्त्री विरोधी नहीं है। अब यह मत कहने लग जाइएगा कि पुरस्कार की राशि को रखकर स्त्री जाति का अपमान किया गया है। कोई ज्ञानू बाबू किसी सक्रिय आदमी को नीचा दिखाकर आत्म उन्नति के मार्ग पर निकल जाता है तब आप लोग को बुरा नहीं लगता.आप लोग तब सिर्फ पोस्ट लिखते हैं और उसे यह नहीं बताते कि हम कानून के जानकार ब्लागरों के द्वारा उसे नोटिस भिजवा रहे हैं। क्या इसे आप अच्छा मानते हैं। यदि मैंने यह सोचा कि क्यों न एक प्रतिस्पर्धा से यह बात साबित की जाए कि महिला ब्लागरों में कौन सर्वश्रेष्ठ है तो क्या गलत किया है। क्या किसी को शालश्रीफल और नगद राशि के साथ प्रमाण देकर सम्मानित करना अपराध है।
यदि सम्मान करना अपराध है तो मैं यह अपराध बार-बार करना चाहूंगा.
ब्लागजगत को लोग सम्मान लेने के पक्षधर नहीं है तो देश में साहित्य, खेल से जुड़ी अनेक विभूतियां है उन्हें सम्मानित करके मुझे खुशी होगी क्योंकि-
दुनिया का कोई भी कानून यह नहीं कहता है कि आप लोगों का सम्मान न करें।
दुनिया का कानून यह भी नहीं कहता है कि आप अपना उपनाम लिखकर अच्छा लिख-पढ़ नहीं सकते हैं. आप लोग विद्धान लोग है मुंशी प्रेमचंद भी कभी नवाबराय के नाम से लिखते थे. देश में अब भी कई लेखक ऐसे हैं जिनका साहित्य़िक नाम कुछ और ही है। भला मैं बेनामी कैसे हो गया।
सुन्दर चित्रों से सजी इस चर्चा में स्थान देने के लिए आभार वंदना मैम..
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