"चर्चा मंच" अंक - 143 |
क्षमा करें! इण्टरनेट समस्या के कारण चर्चा प्रकाशित होने में कुछ विलम्ब हो सकता है! आइए आज के "चर्चा मंच" को सजाते हैं- आज सबसे पहले देखिए आओ सीखें हिंदी में-“ कितने सुन्दर हैं ये बच्चे, कितने प्यारे, बड़े निराले” |
आओ सीखें हिंदी इनके संग तुम जी कर देखो - कितने सुन्दर हैं ये बच्चे, कितने प्यारे, बड़े निराले, इनके संग तुम घुल मिल खेलो, मन के सारे दुःख हर लेंगे। इनके मन के भाव निराले, चंचल, निर्मल, कुछ मतवाल... |
ताऊजी डॉट कॉम में देखिए- वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता मे : श्री राजेंद्र मीना - प्रिय ब्लागर मित्रगणों, सभी प्रतिभागियों का वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता में भाग लेने के लिये हार्दिक आभार. इस प्रतियोगिता में सभी पाठकों का भी अपार स्नेह औ... |
चौराहा मजदूर और मजबूर....मीडिया - * > दोस्तों, > फोकस टेलिविजन में मेरे वरिष्ठ, हिंदी आउटपुट डेस्क के प्रमुख प्रमोद कुमार प्रवीण ने मज़दूर दिवस पर एक कविता लिखी। अभिव्यक्ति और प्रतीकों के ल.. | साहित्य योग बाला...... - वैसे हाला और मधुशाला पर बहुत कुछ लिखा गाया है पर मेरी कोशिश आज यहाँ मधुशाला को दूसरे रूप में जिन्दा करना है. बाला जो की यहाँ मन के रूप में होगी, मधुशाला देव... |
काव्य मंजूषा में आनन्द लीजिए टिप्पणी माता की आरती का- जय टिप्पणी माता, मईया जय टिप्पणी माता..... - जय टिप्पणी माता मईया जय टिप्पणी माता तुम्हरे कारण अपना....2 हर पोस्ट ही हिट जाता जय टिप्पणी माता .... दर्शन तेरे होते ही, हर कष्ट निपट जाता मईया हर कष्ट... |
मानवीय सरोकार राजनैतिक हारमोन - -डॉ० डंडा लखनवी देखते ही देखते वो, एक फ्लावर हो गए। सिर्फ़ हम ही क्या सभी उ... | जज़्बात अपनी रोटी छीन ~~ - एक–दो–तीन अपनी रोटी छीन . बाजुएँ उठा क्यूँ है तूँ दीन . बिखर गये हैं फिर से उनको बीन . नज़रें तूँ खोल मत हो इतना लीन . खिसकने न दे पैरों तले... |
नवगीत की पाठशाला ०५ : कैसे मन मुस्काए?: संगीता स्वरूप - कैसे मन मुस्काए? रोटी समझ चाँद को बच्चा मन ही मन ललचाए। आशा भरकर वो यह देखे - माँ कब रोटी लाए। दशा देखकर उस बच्चे की कैसे मन मुस्काए? घर के बाहर चलना दूभर... |
ह्रदय पुष्प हरियल छोड़ गए धरती - हरियल छोड़ गए धरती फिर लौट के पैर रखा भुमि नाँही रैन को छोड़ गई चकवी और कंथ को समझत शत्रु के माँहि ऐसे ही दानी हो आप प्रभु मेरे पति आगे आइ पसारे क्यों बा... | कुछ इधर की, कुछ उधर की हिन्दी ब्लागिंग और टिप्पणियों का हिसाब-किताब (हास्य कथा) - (दरवाजे पर दस्तक की आवाज) ललित शर्मा:- अरी ओर भगवान! जरा देखना तो सही कौन नासपीटा इतनी सुबह सुबह दरवाजा खटकटा रहा है। (इतनी देर में फिर से दरवाजे पर ठक ठक क... |
युवा दखल पुस्तक लोकार्पण और परिचर्चा की रिपोर्ट - पुस्तक लोकार्पण का दृश्य समाजवाद मानव की मुक्ति का महाआख्यान है। पूंजीवाद की आलोचना का आधार सिर्फ़ उसकी आर्थिक प्रणाली नहीं बल्कि उसके सामाजिक-सांस्कृतिक आ... |
मटुकजूली -पिंजर प्रेम प्रकासिया himachal pradesh ke bandhu ki kavita - हे मटुकनाथ जी... जूली का साथ जी.. सच्चा प्यार का बंधन... वाह क्या बात जी.. हे मटुकनाथ जी... १. आपने कथनी करनी से जो खींच दी रेखा... प्रेम की इस परिभाषा.... | कुछ मेरी कलम से kuch meri kalam se ** अपने अपने प्यार की परिभाषा - ना जाने किसकी तलाश में जन्मों से भटकती रही हूँ मैं अपनी रूह से तेरे दिल की धड़कन तक अपना नाम पढ़ती रही हूँ मैं.... लिखा जब भी कोई गीत या ग़ज़ल तू ही लफ़्ज़... |
शरद कोकास तुम्हे मेरी दाढ़ी अच्छी लगती है .. - शरद बिल्लोरे की एक कविता *शरद* और मैं भोपाल के रीजनल कॉलेज में साथ साथ थे । कविता लिखने की शुरुआत के साथ साथ बहुत सारी बदमस्तियाँ हमने कीं । मैं सोच रह... |
मेरी भावनायें... ऐसा क्यूँ? - कई लोग के ब्लॉग खुलते नहीं, जब भी खोलती हूँ warning आता है, जिसमें फिलहाल राज भाटिया जी, वंदना जी(आज ऐसा शुरू हुआ) और कुछ और परिचित ब्लॉग हैं...ऐसा क्यूँ? | के.सी.वर्मा अधूरी ...!!! - प्यार की अभिव्क्ति साधन मौन मन से इच्छाओं की तरंग पल-पल चलती जाती गन्तव्य की ओर दम तोड़ जाती वहीं नही मिलता सामजस्य उस अनुभूति का जो थी इधर इस किन... |
मुझे शिकायत हे. Mujhe Sikayaat Hay. कुछ ऎसी यादे जो बरबस ही मुस्कुराहटे ला देती है.... - अजी बात कुछ पुरानी है, पिछले साल की जब हम मां से मिलने आखरी बार गये थे, घर से बच्चे हमे उडान से दो घंटे पहले एयर पोर्ट छोड आये, टिकट वगेरा तो मेने पहले ही... |
गत्यात्मक चिंतन एक बार बेईमानी करने से जीवनभर का लाभ समाप्त हो जाता है !! - कुछ जरूरी चीजों को लेने के लिए आज मैं बाजार निकली , मेरे पर्स में बिल्कुल पैसे नहीं थे , सो एटी एम की ओर बढी। काफी भीड की वजह से लगी लंबी लाइन में लगकर मै... | Bikhare sitare...! बिखरे सितारे:अध्याय २: 16 हर खुशी हो वहाँ.. - अबतक के संस्मरण का सारांश:कहानी शुरू होती है पूजा-तमन्ना के जनम से..लक्ष्मी पूजन का जनम इसलिए उसके दादा ने तमन्ना नाम के साथ पूजा जोड़ दिया..बच्ची सभी के.. |
देशनामा कॉफी के कप...खुशदीप - एमबीए छात्रों का एक बैच पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने अपने करियर में अच्छी तरह सैटल हो गया...एमबीए कॉलेज में फंक्शन के दौरान उस बैच के सारे छात्रों को न्योता... |
पिताजी दिल्ली विश्वविद्यालय का एक कॉलेज - क्या आप सिर्फ एक को पहचान सकते हैं - पहचानिए इस चित्र में कौन कौन हैं यह चित्र कहां का है यह चित्र कौन से महीने का है बहुत आसान है आप इन सबको जानते हैं सिर्फ एक को नहीं जानते जिनको नहीं जानते उ... | बुरा भला उपचार से बेहतर है बचाव - समय पर टीका शिशुओं को रखे दुरुस्त - उपचार से बेहतर है बचाव। इसी वाक्य से प्रेरित होकर बच्चों के स्वस्थ भविष्य के लिए विभिन्न टीके (वैक्सीन्स) उपलब्ध है। बी.सी.जी., डी.पी.टी., पोलियो ड्रॉप्स... |
संघ की मजबूरी है : शिबू सोरेन जरूरी | Author: LIMTY KHARE लिमटी खरे | Source: नुक्कड़ संघ की मजबूरी है : शिबू सोरेन जरूरी है | तमन्ना है बस एक मुसलसल तमन्ना... Author: दर्पण साह 'दर्शन' | Source: ...प्राची के पार ! नयी चाहतों की बदलती तमन्ना. खिले दिल, धड़कते गुलों सी तमन्ना. |
ग़ज़ल Author: अभिलाषा | Source: सप्तरंगी प्रेम 'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर आज प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटती जय कृष्ण राय 'तुषार' की ग़ज़ल. आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा... | "सुमन हमें सिखलाते हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री मयंक) May 4, 2010 | Author: डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक | Source: नन्हें सुमन “शिक्षाप्रद बाल-कविता” |
“संस्मरण-शृंखला-2” | Source: मयंक “बाबा नागार्जुन के संस्मरण-2” | ब्लॉग उत्सव 2010 | Source: लो क सं घ र्ष ! सम्मानीय चिट्ठाकार बन्धुओं, |
आ गई गर्मी की छुट्टियाँ पाखी की दुनिया कितने दिन से इंतजार था इस दिन का ... आ ही गया। अब 1 मई से गर्मी की दो महीने की छुट्टी हो गई. गर्मी भी कोई अच्छी लगने वाली चीज है, पर जब इसके साथ इत्ती छुट्टियाँ जुडी हुई हों तो फिर मजा तो आयेगा ही. अब अपने घर आज़मगढ़ और ननिहाल गाजीपुर घूमने जाऊँगी. | कसाब, हम और हमारा क़ानून- कुछ सवाल पी.सी.गोदियाल | Source: अंधड़ ! कल मैंने कसाब पर एक छोटा सा लेख लिखा था ! और उसमे जो लिखा था वह उस एक आम भारतीय के नजरिये से था, जो यह मानता है कि इस दरिन्दे ने अनेक निर्दोष मासूमों की जिन्दगी छीन ली ! मगर एक दूसरा पहलू भी है, ... |
बिखरे मोतीखलिश होती है तो यूँ ही बयां होती है हर शेर जैसे सीप से निकला हुआ मोती हैएक चुपशोखियाँ जो बोलीं वो भी बेबसी ही थी , उदासी भी थी कुछ ज़मीं के फासलों से , यूँ तो था नहीं कोई दरम्याँ हमारे, बस एक चुप थी जो मन को बहुत सालती थी.... |
और अन्त में दो पोस्ट ये भी देख लीजिए- ज़िन्दगी बस एक बार आजा जानाँ.................. - तेरी मेरी मोहब्बत खाक हो जाती गर तू वादा ना करती इसी जन्म में मिलने का एक अरसा हुआ तेरे वादे पर ऐतबार करते - करते पल- छिन्न युगों से लम्बे हो गए हैं मगर... यशस्वी पेशावर कांड के नायक थे चन्द्र सिंह गढ़वाली - चन्द्र सिंह गढ़वाली का जन्म 25 दिसम्बर 1891 में हुआ था। चन्द्रसिंह के पूर्वज चौहान वंश के थे जो मुरादाबाद में रहते थे पर काफी समय पहले ही वह गढ़वाल की राजध... |
कल बृहस्पतिवार है और बृहस्पतिवार की चर्चा अपने वादे के मुताबिक आदरणीय पं.डी.के.शर्मा “वत्स” जी लगायेंगे! |
सुंदर चर्चा.......
जवाब देंहटाएंसुन्दर एवं सुरूचिपूर्ण चर्चा!!
जवाब देंहटाएंदेखते हैं, बृ्हस्पतिवार आने तो दीजिए :-)
शास्त्री जी, आपकी चर्चा साधना बेमिसाल है...मेरी पोस्ट को स्थान देने के लिए आभार...
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
समग्र
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा.
जवाब देंहटाएंविस्तृत और अच्छी चर्चा...आभार..
जवाब देंहटाएंAti sundar saargarbhit prasututi... Aabhar
जवाब देंहटाएंविस्तृत और अच्छी चर्चा,शास्त्री जी !
जवाब देंहटाएंविस्तृत और अच्छी चर्चा.........आभार.
जवाब देंहटाएंखुशदीप भाई ने मेरे मन की बात कह दी !! सच में आपकी लगन से हम सब बहुत कुछ सीख सकते है ! बहुत बहुत आभार और हार्दिक शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंkhushdeep ji ne aur shivam ji ne mere man ki baat kah di...
जवाब देंहटाएंmain to hamesha hi nat mastak hun...
सुंदर चर्चा.......
जवाब देंहटाएंबढिया है।
जवाब देंहटाएंआज भी मुझे कई अच्छे लिंक मिले हैं यहाँ!
जवाब देंहटाएं--
मैं तो वहाँ टिप्पणी करने जा रहा हूँ!
--
प्यार से ... ... .
मेरा मन मुस्काया!
--
संपादक : सरस पायस