मैं कहता आँखिन देखी पर आलोक मोहन कह रहे हैं कि आज एक अलग तरह के आदमी से मुलाकात हुई। उसने बताया बाबूजी प्रदर्शनियां लगती है। उनमें हम मौत का कुंआ बनाते हैं। प्रदर्शनी में एक अस्थायी कुआं बनाया जाता है। उसके पास एक सीड़ी बनाई जाती है। जो करीब सौ फुट की होती है। उस पर मैं चड़ता हूं। अपने विशेष प्रकार के कपड़ों पर आग लगा लेता हूं। नीचे पानी में पेट्रौल डालकर आग लगाई जाती है। और फिर मैं उपर से कूंदता हू। हर रोज अपनी जिंदगी दांव पर लगाता हूं। इसका टिकिट होता हैं। पांच रूपए। वो भी लोगों को मंहगा लगता है।और लड़की नांचे। तो लोग पांच हजार भी लुटा देते हैं।बाबूजी हमारी जिंदगी की कीमत क्या सिर्फ पांच रुपए हैं ? मैं चुप था। जवाब आप दीजिए। रंजना जी बता रही हैं उन्माद सुख .... के बारे में
अपने जन्मजात संस्कार और अभिरुचियों के अतिरिक्त अपने परिवेश में जीवन भर व्यक्ति जो देखता सुनता और समझता है उसीके अनुरूप किसी भी चीज के प्रति उसकी रूचि- अरुचि विकसित होती है.. नशेडियों के बारे में वें लिखती हैं कि एक बार व्यक्ति टुन्नावस्था को प्राप्त हुआ नहीं कि देख लीजिये,अपने सारे मुखौटे अपने हाथ नोचकर वह अपने वास्तविक स्वरुप में आपके सामने उपस्थित हो जायेगा.फिर जी भरकर उसे देखिये परखिये और अपना अभिमत स्थिर कीजिये .मन के सबसे निचले खोह में यत्न पूर्वक संरक्षित दु - सु वृत्तियों ,भावों और स्वार्थों को एकदम प्लेट में सजा वह आपको सादर समर्पित कर देगा फिर आश्वस्त होकर निश्चित कीजिये की सामने वाले को कितना महत्त्व तथा अपने जीवन में स्थान देना है.. | मैं समझता हूँ कि आप फिरदौस खान जी की इस पोस्ट को अवश्य ही पढना चाहेंगें, जिसके जरिए वो बता रही हैं कि जल सेवा : पानी ही अमृत है भारत में हमेशा से ही सेवा की परंपरा रही है। जल सेवा भी इसी संस्कृति से प्रेरित है। उपनिषद में कहा गया है कि 'अमृत वै आप:'यानि पानी ही अमृत है। इसके अलावा पानी को 'शिवतम: रस:' यानि पेय पदार्थों में सबसे ज्यादा कल्याणकारी बताया गया है। गरमी के मौसम में प्यासे राहगीरों को शीतल जल पिलाने की कई मिसालें आसपास ही मिल जाती हैं। पहले जहां राहगीरों के लिए सडक़ों के समीप कुएं खुदवाए जाते थे और जगह-जगह घने दरख्तों के नीचे पानी के मटके रखे जाते थे,वहीं अब पक्के प्याऊ बनाए जाते हैं और कई जगह ठंडे पानी की टंकियां भी रखी जाती हैं। देहात और कस्बों में आज भी पानी के मटके देखे जा सकते हैं। इसके अलावा कुछ लोग अपनी दिनचर्या में से कुछ समय निकालकर राहगीरों को स्वयं पानी पिलाते हैं। चलिए बहुत दिन हो गया, आज आपको मिथिला धाम घुमा देते हैं। यही मिथिलांचल में एगो गाँव है भरवारा। हे... ई देख रहे हैं न पोखर के भीर.... हे... ऊ.... उंचा डीह...वही है न गोनू झा का घर। गोनू झा तो अब रहे नहीं मगर उनका किस्सा सब एक पर एक है। आज देसिल बयना में आपको एगो गोनुए झा के किस्सा सुना देते हैं। | मजहबी कागजो पे नया शोध देखिये। वन्दे मातरम का होता विरोध देखिये। देखिये जरा ये नई भाषाओ का व्याकरण। भारती के अपने ही बेटो का ये आचरण। वन्दे-मातरम नही विषय है विवाद का। मजहबी द्वेष का न ओछे उन्माद का। वन्दे-मातरम पे ये कैसा प्रश्न-चिन्ह है। माँ को मान देने मे औलाद कैसे खिन्न है। बायोलॉजिकल कन्जर्वेशन न्युजलेटर की एक रपट के मुताबिक "चिड़ियों की तरह खाइये, और जंगल बढ़ाइये" कथन के बड़े गहरे मायने उजागर किए,सीधी बात ये है,कि मानव प्रजाति को छोड़कर सभी जीव प्रकृति प्रदत्त वृत्तियों के मुताबिक अपना जीवन जीते है,और यही कारण है, कि जहाँ मनुष्य नही होता है,वहाँ की पारिस्थितकी पूर्ण नियन्त्रण में होती है, ये जीव अपनी आदिम संस्कृति का पालन करते जा रहे है, थोड़े बहुत बदलाव के साथ! | नवक्रान्ति कोई तो होने दो, भारत को अब न सोने दो……(रचनाकार:-दिलीप)
इतिहास की अमर कथाओं में, भूगोल के उन अध्यायों में अर्जुन गांडीव के बाणों में, अट्ठारह व्यास पुराणों में दुर्भाग्य को अपने रोता है, भारत अब छिपकर सोता है कबीर रहीम के दोहों में,भगवदगीता के श्लोकों में मीरा और सूर के गीतों में, उन कृ्ष्म सुदामा मीतों में स्मृ्तियाँ नयीं संजोता है, भारत अब छिपकर सोता है आँखों में भर अंगारों को, बढ तोड सभी दीवारों कों अब काट सिन्धु के ज्वारों को, मत रोक रूधिर की धारों को नवक्रान्ति कोई तो होने दो, भारत को अब न सोने दो………… |
सुना ,दीवारों के होते हैं कान , काश होती आँखें और लब! मै इनसे गुफ्तगू करती, खामोशियाँ गूंजती हैं इतनी, किससे बोलूँ? कोई है ही नही.. आयेंगे हम लौट के,कहनेवाले, बरसों गुज़र गए , लौटे नही , जिनके लिए उम्रभर मसरूफ़ रही, वो हैं मशगूल जीवन में अपनेही, यहाँ से उठे डेरे,फिर बसे नही... | हम क्या थे, क्या हैं, होंगे क्या? अब यही बैठ कर सोच रहाँ हूँ. शिक्षा में ह्रास भिक्षा की आस. हर बात में पश्चिम देख रहा हूँ. आज प्रतिगामी सोच वाले शुक्राचार्यों की भरमार तो सब और है, परन्तु प्रगतिशीलता के पोषक वशिष्ठ, कोण कौटिल्य, कबीर, नानक. विवेकानंद और परशुराम का आभाव क्यों है? नैतिक मूल्यों में ह्रास क्यों है? और भौतिकता की आंधी में अध्यात्मिकता का उपहास क्यों है? |
आज सुबह अख़बार आया! मैंने नींद भरी आँखों से खबरों पर नजर डालनी शुरू करी! मुख्य पृष्ट पर ही एक खबर छपी हैं ---- एक फतवा लडकियों की शिक्षा के नाम!! "फतवा" शब्द बहुत चर्चा में रहता हैं! नए नए फतवे निकलते रहते हैं! फतवों का विरोध भी होता हैं! मीडिया में तो कई फतवों पर लम्बी चौड़ी बहस भी होती रहती हैं! ये ताजातरीन फतवा दारुल उलूम फरंगी महल ने जारी किया हैं! फतवे ने बहुत सारी अच्छी बातें कही हैं इतना सुन्दर फतवा देख कर आप भी यही कहेंगे---- वाह क्या फतवा हैं......शुभानाल्लाह हे प्रभु! कैसा युग आ गया है. संजीव शर्मा मानव द्वारा किए जा रहे कैसे अमानुषिक कृ्त्य के बारे में बता रहे हैं, वो लिखते हैं कि जानवरों के इंजेक्शन से बच्चियां बन रहीं जवान सब्जियों का आकार बढाने और जानवरों से ज्यादा दूध हासिल करने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला ऑक्सीटोसिन का इंजेक्शन अब छोटी बच्चियों को समय से पहले जवान बनाने के लिए लगाया जा रहा है। इससे देशभर के वेश्यावृत्ति के बाजार में नन्हीं लडकियों के शोषण का खतरा बढ गया है। गौरतलब है कि ऑक्सीटोसिन का इस्तेमाल सामान्य तौर पर जानवरों का दूध बढाने के लिए किया जाता है। इसी तरह सब्जियों का आकार और उनका रंग निखारने के लिए भी आजकल इस इंजेक्शन का इस्तेमाल चोरी-छिपे होने लगा है लेकिन अब वेश्यावृत्ति के धंधे में धकेलने से पूर्व मासूम बच्चियों को बडा करने के लिए ऑक्सीटोसिन इंजेक्शन लगाया जाने लगा है। | |
अब ये एक खबर उन लोगों के लिए जो कि ब्लागिंग के जरिए कमाई करने के ख्वाब संजोये बैठे हैं, लेकिन अभी तक कमाई तो बहुत दूर रही, उल्टा नैट क्नैक्शन, बिजली वगैरह पर हर महीने अपनी जेब से पाँच सात सौ ओर खर्च हो जाते हैं…..किन्तु राहुल प्रताप सिँह जी बताए रहे हैं कि घबराईये मत अब हिंदी ब्लोगर्स को भी कमाई का बढ़िया मौका मिलने वाला है
खबर ये है कि हिन्दी ब्लॉगिंग में आर्थिक मॉडल की कमी की शिकायत करने वाले हज़ारों-लाखों लोगों को आगरा की कंपनी ओजस सॉफ्टेक प्राइवेट लिमिटेड ने बड़ा तोहफा दिया है। कंपनी ने अपना 'एफिलेट प्रोग्राम' आरंभ किया है, जिसका इस्तेमाल कर ब्लॉगर आय अर्जित कर सकते हैं। इस आय की कोई सीमा नहीं है,लिहाजा इसे आर्थिक मॉडल बनाने की दिशा में बड़ा कदम माना जा सकता है। अच्छा तो आप लोग खुश हो लीजिए! हम चलते हैं. जरा धर्मपत्नि जी को एक बोल आएं कि एक बढिया मजबूत सा तिरपाल के कपडे का झोला सिल के रखें. अब ब्लाग से नोट बरसा करेंगें तो झोला उन्हे सहेजने के काम आया करेगा :-) |
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चर्चा,
पं.डी.के.शर्मा "वत्स"
बढ़िया चर्चा करी है, पंडितजी, आभार !!
जवाब देंहटाएंabhaar pandit ji
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा मंच सजाई है आपने..बधाई वत्स जी...
जवाब देंहटाएंBehtareen, vats sahaab!
जवाब देंहटाएंBehtareen, vats sahaab!
जवाब देंहटाएंशानदार चर्चा!
जवाब देंहटाएंआज की चर्चा के लिए आभार!
बढिया चर्चा।
जवाब देंहटाएंआज की चर्चा के लिए आभार...!
जवाब देंहटाएंपंडित जी को प्रणाम बढ़िया चर्चा के लिए.
जवाब देंहटाएंये चर्चा बड़ी है मस्त-मस्त
जवाब देंहटाएंवाह-वाह पंडि़तजी,
जवाब देंहटाएंआपकी चर्चा को देखकर तो दिल भर आया.
क्या मार्मिक चर्चा लिखी है आपने.
इतनी मार्मिक की बार-बार आंसू आ जा रहे हैं
वैसे पंडित जी मैंने सुना है कि आप कुंडली वगैरह भी बनाते हैं
सचमुच आपकी पूरी चर्चा में जो ज्योतिष विज्ञान है उसकी झलक भी देखने को मिल जाती है.
आप हर पोस्ट ऐसी ही लेते हैं जो वैज्ञानिक नजरिए से बेहद सार्थक होती है.
आपकी चर्चा के बाद मैं आपका मुंह मीठा करवाना चाहता हूं। बताइए मिठाई कहां भेजूं.
लगभग 20 किलो मिठाई और सौ पानी का पाउच मैं मोहल्ले में भी वितरित करने जा रहा हूं.
आखिर आपकी वैज्ञानिक चर्चा का कुछ तो सम्मान होना चाहिए और फिर आप मेरे सबसे ज्यादा प्रिय है.
बाकी नीचे लिखे शब्दों पर ध्यान दीजिएगा-
1-बढि़या चर्चा
2-आपका आभार
3-हमेशा की तरह अच्छी चर्चा
4-आज की चर्चा के लिए आपका आभार
5- बहुत अच्छे लिंक्स दिए
6-अभी जाता हूं सारे लिक्स पर
7-आपका बहुत-बहुत धन्यवाद
(अब आप टिप्पणी मिटा सकते हैं)
बढ़िया चर्चा करी है, पंडितजी, आभार
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा रही...बधाई
जवाब देंहटाएंशानदार चर्चा!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा!
जवाब देंहटाएंवाह वाह
जवाब देंहटाएंबहुत खूब !
अच्छी चर्चा ...!!
जवाब देंहटाएंbahut badhiya charcha.
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