चर्चाकार—पं.डी.के.शर्मा “वत्स” |
बाबूजी हमारी जिंदगी की कीमत क्या सिर्फ पांच रूपए हैं। मैं चुप रहा। जवाब आप दीजिए।मैं कहता आँखिन देखी पर आलोक मोहन कह रहे हैं कि आज एक अलग तरह के आदमी से मुलाकात हुई। उसने बताया बाबूजी प्रदर्शनियां लगती है। उनमें हम मौत का कुंआ बनाते हैं। प्रदर्शनी में एक अस्थायी कुआं बनाया जाता है। उसके पास एक सीड़ी बनाई जाती है। जो करीब सौ फुट की होती है। उस पर मैं चड़ता हूं। अपने विशेष प्रकार के कपड़ों पर आग लगा लेता हूं। नीचे पानी में पेट्रौल डालकर आग लगाई जाती है। और फिर मैं उपर से कूंदता हू। हर रोज अपनी जिंदगी दांव पर लगाता हूं। इसका टिकिट होता हैं। पांच रूपए। वो भी लोगों को मंहगा लगता है।और लड़की नांचे। तो लोग पांच हजार भी लुटा देते हैं।बाबूजी हमारी जिंदगी की कीमत क्या सिर्फ पांच रुपए हैं ? मैं चुप था। जवाब आप दीजिए।
भारत में हमेशा से ही सेवा की परंपरा रही है। जल सेवा भी इसी संस्कृति से प्रेरित है। उपनिषद में कहा गया है कि 'अमृत वै आप:'यानि पानी ही अमृत है। इसके अलावा पानी को 'शिवतम: रस:' यानि पेय पदार्थों में सबसे ज्यादा कल्याणकारी बताया गया है। गरमी के मौसम में प्यासे राहगीरों को शीतल जल पिलाने की कई मिसालें आसपास ही मिल जाती हैं। पहले जहां राहगीरों के लिए सडक़ों के समीप कुएं खुदवाए जाते थे और जगह-जगह घने दरख्तों के नीचे पानी के मटके रखे जाते थे,वहीं अब पक्के प्याऊ बनाए जाते हैं और कई जगह ठंडे पानी की टंकियां भी रखी जाती हैं। देहात और कस्बों में आज भी पानी के मटके देखे जा सकते हैं। इसके अलावा कुछ लोग अपनी दिनचर्या में से कुछ समय निकालकर राहगीरों को स्वयं पानी पिलाते हैं।
विनोद विश्नोई की कलम से मजहबी कागजो पे नया शोध देखिये. मजहबी कागजो पे नया शोध देखिये।
इतिहास की अमर कथाओं में, भूगोल के उन अध्यायों में अर्जुन गांडीव के बाणों में, अट्ठारह व्यास पुराणों में दुर्भाग्य को अपने रोता है, भारत अब छिपकर सोता है कबीर रहीम के दोहों में,भगवदगीता के श्लोकों में मीरा और सूर के गीतों में, उन कृ्ष्म सुदामा मीतों में स्मृ्तियाँ नयीं संजोता है, भारत अब छिपकर सोता है आँखों में भर अंगारों को, बढ तोड सभी दीवारों कों अब काट सिन्धु के ज्वारों को, मत रोक रूधिर की धारों को नवक्रान्ति कोई तो होने दो, भारत को अब न सोने दो………… |
दीवारें बोलती नही..(शमा)
सुना ,दीवारों के होते हैं कान , | परशुराम के बहाने सांस्कृतिक विमर्श (डा.जे.पी.तिवारी)हम क्या थे, क्या हैं, होंगे क्या? |
युग क्रान्ति पर यशवन्त मेहता लिखते हैं कि वाह क्या फतवा हैं......शुभानाल्लाहआज सुबह अख़बार आया! मैंने नींद भरी आँखों से खबरों पर नजर डालनी शुरू करी! मुख्य पृष्ट पर ही एक खबर छपी हैं ---- एक फतवा लडकियों की शिक्षा के नाम!! "फतवा" शब्द बहुत चर्चा में रहता हैं! नए नए फतवे निकलते रहते हैं! फतवों का विरोध भी होता हैं! मीडिया में तो कई फतवों पर लम्बी चौड़ी बहस भी होती रहती हैं!ये ताजातरीन फतवा दारुल उलूम फरंगी महल ने जारी किया हैं! फतवे ने बहुत सारी अच्छी बातें कही हैं इतना सुन्दर फतवा देख कर आप भी यही कहेंगे---- वाह क्या फतवा हैं......शुभानाल्लाह
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अब ये एक खबर उन लोगों के लिए जो कि ब्लागिंग के जरिए कमाई करने के ख्वाब संजोये बैठे हैं, लेकिन अभी तक कमाई तो बहुत दूर रही, उल्टा नैट क्नैक्शन, बिजली वगैरह पर हर महीने अपनी जेब से पाँच सात सौ ओर खर्च हो जाते हैं…..किन्तु राहुल प्रताप सिँह जी बताए रहे हैं कि घबराईये मत अब हिंदी ब्लोगर्स को भी कमाई का बढ़िया मौका मिलने वाला है |
ममता ही नहीं ,इन नेताओं का भी घर दिल्ली मैं नहीं है! (कार्टूनिस्ट इरफान) | उल्टा पुल्टा डोट कॉम(कार्टूनिस्ट मनोज) |
बढ़िया चर्चा करी है, पंडितजी, आभार !!
जवाब देंहटाएंabhaar pandit ji
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा मंच सजाई है आपने..बधाई वत्स जी...
जवाब देंहटाएंBehtareen, vats sahaab!
जवाब देंहटाएंBehtareen, vats sahaab!
जवाब देंहटाएंशानदार चर्चा!
जवाब देंहटाएंआज की चर्चा के लिए आभार!
बढिया चर्चा।
जवाब देंहटाएंआज की चर्चा के लिए आभार...!
जवाब देंहटाएंपंडित जी को प्रणाम बढ़िया चर्चा के लिए.
जवाब देंहटाएंये चर्चा बड़ी है मस्त-मस्त
जवाब देंहटाएंवाह-वाह पंडि़तजी,
जवाब देंहटाएंआपकी चर्चा को देखकर तो दिल भर आया.
क्या मार्मिक चर्चा लिखी है आपने.
इतनी मार्मिक की बार-बार आंसू आ जा रहे हैं
वैसे पंडित जी मैंने सुना है कि आप कुंडली वगैरह भी बनाते हैं
सचमुच आपकी पूरी चर्चा में जो ज्योतिष विज्ञान है उसकी झलक भी देखने को मिल जाती है.
आप हर पोस्ट ऐसी ही लेते हैं जो वैज्ञानिक नजरिए से बेहद सार्थक होती है.
आपकी चर्चा के बाद मैं आपका मुंह मीठा करवाना चाहता हूं। बताइए मिठाई कहां भेजूं.
लगभग 20 किलो मिठाई और सौ पानी का पाउच मैं मोहल्ले में भी वितरित करने जा रहा हूं.
आखिर आपकी वैज्ञानिक चर्चा का कुछ तो सम्मान होना चाहिए और फिर आप मेरे सबसे ज्यादा प्रिय है.
बाकी नीचे लिखे शब्दों पर ध्यान दीजिएगा-
1-बढि़या चर्चा
2-आपका आभार
3-हमेशा की तरह अच्छी चर्चा
4-आज की चर्चा के लिए आपका आभार
5- बहुत अच्छे लिंक्स दिए
6-अभी जाता हूं सारे लिक्स पर
7-आपका बहुत-बहुत धन्यवाद
(अब आप टिप्पणी मिटा सकते हैं)
बढ़िया चर्चा करी है, पंडितजी, आभार
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा रही...बधाई
जवाब देंहटाएंशानदार चर्चा!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा!
जवाब देंहटाएंवाह वाह
जवाब देंहटाएंबहुत खूब !
अच्छी चर्चा ...!!
जवाब देंहटाएंbahut badhiya charcha.
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