एक आलसी का चिट्ठा पर अथ ब्लॉगर जनगणना चालू आहे! गिरीजेश जी बता रहे हैं कि आज हमारे गाँव में जनगणना का प्रथम चक्र प्रारम्भ हुआ। नए प्रावधान के अनुसार हम 4 प्राणियों को फॉर्म 2 में प्रवेश दे सदा सदा के लिए हमारी जड़ काट दी गई। मुझे आज दुहरा दु:ख है --जड़ से कट जाने का कम और गाँव जवार में राजपूतों की संख्या में 4 की कमी का अधिक । मैंने यह पता लगाने को कहा है कि जो जनगणना करने आया था वह किस जाति का था (बहुत गहरा पेंच है इसमें,आप लोग समझ रहे होंगे)? आगे वो लिखते है कि आज मुझे सूझा कि क्यों न ब्लॉगरों की भी जाति आधारित गणना की जाय ? अब सबसे पूछना ठीक नहीं (मुई अभी तक इस मामले में सीखी गई शरम नहीं गई जब कि मास्साब लोग गली मोहल्ले एकदम बेहिचक पूछे जा रहे हैं -का हो ज्ञान चचा !तोहार जात का है?) । इसलिए अनुमान के आधार पर सूची लगा रहे हैं। जिन्हें आपत्ति हो वे अपनी आपत्ति टिप्पणियों के माध्यम से दर्ज करा सकते हैं।उनकी जाति 'बदल'मेरा मतलब 'सही' कर दी जाएगी अन्त मे इस ब्लागर जनगणना का क्या परिणाम निकला..ये जानने के लिए आप चिट्ठे पर जाकर खुद ही पढ लीजिए…… |
बैठे ठाले अनुराग मुस्कान जी अपनी दुखभरी दास्तान सुना रहे है कि अगर घर वालों नें रोका न होता तो आज नौ साल का करियर हो गया होता अपना बाबागीरी में। भगवान तो भगवान,भगवान का गुणगान करने वालों की भी कम ऐश नहीं है। आपने कभी जिस महाराज का नाम तक नहीं सुना वो भी कथा बांचने के लिए एक साथ हज़ारों भक्तों को क्रूज़ पर ले जाते हैं। लंदन, पेरिस और न्यूयार्क की हवाई यात्राएं कराते हैं। कोई क्रूज़ पर कथा बांच रहा है तो कोई 50,000 हज़ार फीट की उचांई पर भजन कीर्तन कर रहा है। नारायण...नारायण। जो कभी किसी चैनल पर प्रवचन करते थे उन्होने वो चैनल ही खरीद मारे। जो कभी भगवान के वंदन के साथ इस फील्ड में उतरे थे, वो ख़ुद ही भगवान बन बैठे। परमपूज्यपाद हो गए, प्रातःस्मरणीय कहलाने लगे।आज बड़ा अफ़सोस होता है भाई। नौ साल का करियर हो गया होता अपना बाबागीरी में। मस्त लाइफ़ कट रही होती। और हां, धन-दौलत, ऐश-ओ-आराम और वैभव देखकर शायद मां को भी कोई शिकायत नहीं होती। वो नौ साल पहले भी मेरी मां थी और आज भी मेरी मां है। आस्था का प्रपोज़ल मान लिया होता तो वो भी सिर्फ मां ना रहती। अरे भाई गुरूमां हो गई होती। क्या ख़्याल है आपका...? |
बहुत ज्यादा खर्चीली महिलाओं के लिए मृ्गेन्द्र पांडे जी बता रहे हैं पैसा बचाने के 10 तरीके ऐसे बहुत से लोग है जिनकी आमदनी अच्छी-खासी है, लेकिन उन्हे पता भी नहीं चलता और आश्चर्यजनक ढंग से उनका पैसा समाप्त हो जाता है, जबकि बहुत से काम और अगली आमदनी के कई दिन बाकी रहते हैं। यह सिर्फ आपकी जेब...ऐसे बहुत से लोग है जिनकी आमदनी अच्छी-खासी है, लेकिन उन्हे पता भी नहीं चलता और आश्चर्यजनक ढंग से उनका पैसा समाप्त हो जाता है, जबकि बहुत से काम और अगली आमदनी के कई दिन बाकी रहते हैं। यह सिर्फ आपकी जेब में छेद होने से ही नही,आपकी गलत आदतों का भी परिणाम होता है। जानिए बचत के कुछ टिप्स--- |
सामूहिक पागलपन की स्थिति में लोग सामूहिक रूप से किसी भी काल्पनिक विचार या बात को सच समझ लेते हैं और सही बात को समझने के लिए अपनी सामान्य बुद्धि का प्रयोग भी नहीं करते. बात चाहे ख़ुशी की हो या गम की पर होती बड़ी मामूली सी है लेकिन लोग उसे खींच खींच कर बहुत बड़ा बना देते हैं. कोई आदमी एक बात कहता है,चाहे वो सच हो या झूठ,महत्वपूर्ण हो या मामूली सभी उसी पर पिल पड़ते हैं और बात का बतंगड़ बन जाता है. मैं जब से ब्लॉग जगत से जुड़ा हूँ, मैंने अक्सर ही यहाँ पर ब्लोग्गेर्स में ऐसे ही सामूहिक पागलपन के दौरे पड़ते देखे हैं…..
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जय कुमार झा जी कितनी खरी बात कह रहे है कि अपने बच्चों को रतन टाटा और मुकेश अम्बानी बनाने के बजाय शहीद भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद जैसा बनाने कि कोशिस कीजिये --------? आज पैसा बोलता है ,पैसा चुप रखता है ,पैसा किसी कि जान बचाता है ,पैसा किसी कि जान लेता है ,पैसा रिश्ते बनता और उखारता है ,पैसा मीडिया को सामाजिक सरोकार से दूर कर चुका है ,पैसा मंत्रियों को समाज व इंसानियत से दूर ले जाकर भ्रष्ट और अय्यास बना चुका है ,पैसा इंसानियत को अपने पैरों तले ह़र वक्त कुचल रहा है और यही नहीं पैसे कि भूख ने ना जाने किन किन गम्भीर सामाजिक पतन को जन्म दिया है / इन सब बातों के मद्दे नजर हम क्या कोई भी यह कह सकता है कि यह पैसों कि वे वजह भूख सिर्फ और सिर्फ हमें इंसान से हैवान ही बना सकती है / पैसों कि भूख ने ज्यादातर बच्चों को इंसानी उसूलों से दूर धकेल दिया है और बच्चे अपने माता पिता का आदर करने के वजाय उनकी हत्या कि सुपारी देने लगे हैं ओर ये एक छोटी सी पोस्ट हमारी भी…लगता है ब्लागजगत अब समझौतावादी हो गया है.... मुझे लग रहा है कि अब इस ब्लागजगत में मठाधीशी, अनामी-बेनामी ब्लागर, तेरा धर्म-मेरा धर्म जैसी टपोरपंथी, अन्याय, वगैरह से लडने की शक्ति बिल्कुल ही चूक गई है, तभी तो कितने दिन हो गए ऎसी कोई धमाकेदार सी किसी को गरियाती हुई कोई पोस्ट नहीं दिखाई पडी. विश्वास नहीं हो रहा कि ये वही बीते कल वाला ब्लागजगत ही है या कि हम ही गलती से किसी ओर जगह चले आए हैं. | |
दूधवा लाईव पर बेजुबान प्राणी और इन्सान के बीच के रिश्ते को दर्शाती एक सच्ची घटना से परिचय करा रहे हैं—आशीष त्रिपाठी-- बेटा देकर जा रहा हूँ भाई….ख्याल रखना नफरत की दुनिया को छोड़कर प्यार की दुनिया में...खुश रहना मेरे यार। राजेश खन्ना अभिनीत फिल्म हाथी मेरे साथी का यह गीत लोगों को भुलाए नहीं भूलता। इन दिनों आप दुधवा में देख सकते हैं कि ऐसे रिश्ते केवल फिल्मों में ही नहीं होते। यह रिश्ते यथार्थ भी हैं। लखनउ चिड़ियाघर से दुधवा भेजे गए बुजुर्ग हाथी सुमित के साथ किशन का ऐसा प्यार भरा रिश्ता है। यह बिछोह की घड़ियां हैं। किशन एक-दो दिन में ही सुमित को छोड़कर दुधवा से चले जाएंगे। इन दिनों उनका दिल जार-जार रोता है। दिन में कई-कई बार वह सुमित को सहलाते हैं, पुचकारते हैं। सुमित भी उनके कंधे पर सूंड़ रख देता है;इन दिनों किशन का गमछा नम रहता है आंखों को पोछते-पोछते। दुधवा में सुमित की देखरेख का जिम्मा महावत अयूब को दिया गया है। रोज ही किशन अयूब से कहते हैं, अपना बेटा देकर तुम्हे जा रहा हूं....खयाल रखना। |
अब टिकते नहीं फिसलते हैं मुख पर जाकर मेरे दो दृग.
पहले रहती थी नीड़ बना लज्जा, अब रहते चंचल मृग.
चुपचाप चहकती थी लज्जा बाहर होती थी चहल-पहल.
चख चख चख चख देखा करते कोणों को करके अदल-बदल. | रोशन थे आँखों में,वो उजाले कहाँ गए आखिर,हमारे चाहने वाले कहाँ गए रिश्तों पे देख,पड़ गया अफवाहों का असर वाबस्तगी के सारे हवाले कहाँ गए गम दूसरों के बाँटके,खुशयां बिखेर दें थे ऐसे कितने लोग निराले,कहाँ गए |
(कार्टूनिस्ट इरफान) | (कार्टूनिस्ट मस्तान सिँह) |
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चर्चा,
पं.डी.के.शर्मा "वत्स"
सुगढ़ एवं बढ़िया चर्चा.आभार.
जवाब देंहटाएंare GOOD GOODER GOODEST....
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा!
जवाब देंहटाएंहम तो चले गढ़-सम्भल की ओर!
भानजे की शादी है!
3 दिन तो लग ही जायेंगे!
nice
जवाब देंहटाएंबढ़िया पोस्टों की भरमार..सुंदर चिट्ठा चर्चा..बधाई पंडित जी
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा.....बढ़ाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा है ... अच्छे लिंक मिले ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा ......आभार.
जवाब देंहटाएंसुगढ़ एवं बढ़िया चर्चा, अच्छे लिंक मिले
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा, बढ़िया लिंक्स्॥इसे स्ब्स्क्राइब करने का कोई जुगाड़ नहीं दीख रहा कि ई मेल में पोस्ट का पता मिल जाए।
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