"चर्चा मंच" अंक - 144 फिर हाज़िर हूँ आज के कुछ चुने हुए लिंक्स लेकर....वैसे तो आप सभी अपनी पसंद की जगहों पर जा ही चुके होंगे, मैं यहाँ प्रस्तुत कर रही हूँ कुछ मेरी पसंद...आशा है आपको भी पसंद आयेंगे... धन्यवाद... |
एक बिजली, लाखों का नुक्सान! …शास्त्री जे सी फिलिप सुनते हैं कि उत्तर भारत में इन दिनों गर्मी दिन प्रति दिन बढ रही है और कई जगह ४५ के ऊपर पहुंच गई है. प्रभु की दया से केरल में पिछले २ हफ्तों से जम कर पानी बरस रहा है. जम कर से मेरा मतलब है हर शाम एक घंटा बिना रुके. सालों पहले जब ग्वालियर से कोच्चि आकर बसा तो यहां की साल में १६५ दिन की बारिश मेरे लिये अजूबा थी. झंझट भी था. लेकिन जब धर्मपत्नी ने पहली बारिश के समय टोका कि बरसात के समय दूरभाष का प्रयोग न करूं, संगणक आदि बंद कर दूं, तो लगा कि वे मजाक कर रही हैं. लेकिन उसी हफ्ते जब मेरे पडोसी के पेड पर बिजली गिरी तो कान पकड लिये. |
“… .. ….. .. … .. ? ”……डा० अमर कुमार इस पोस्ट के कई शीर्षक दिमाग में घूम रहे थे, टिप्पणी मॉडरेशन से अपना कद कैसे बढ़ाये । कुशल टिप्पणी प्रबँधन से ब्लागरीय सौहाद्र कैसे कायम करें विषयपरक टिप्पणियाँ बहुमूल्य है, इसे बरबाद होने से रोकें स्पैम की आड़ में टिप्पणियाँ और बड़का ब्लागर, मुझे तो कोई जमा नहीं.. आप अपनी सुविधानुसार इनमें कोई एक चुन लें । यदि सभी चुन लेंगे तो भी मेरा क्या ले जायेंगे ? नॉऊ प्रोसीड टू पोस्ट ! लगता है, आज भी इस नाज़ुक मौके पर पोस्ट न लिख पाऊँगा । चिरकालीन विघ्नसँतोषी जीव पँडिताइन का प्रवेश.. वह विश्वामित्र की मेनका न सही, पर अभी तलक कुछ ख़ास हैं । सो, अपने असँयमित होने को सिकोड़ उन्हें तवज़्ज़ों देनी ही पड़ी…. |
क्या मिलिए ऐसे लोगों से जिनकी फितरत छिपी रहे ......सतीश सक्सेना इस उम्र में यह साफगोई, यह जानते हुए कि पिछले वर्षों में ही हिंदी समाज में लगभग ५०००० विद्वान् कीबोर्ड लेकर उनकी प्रतिद्वंद्विता में खड़े हैं , कुछ अधिक ही आत्मविश्वास दीखता है डॉ अरविन्द मिश्रा में ! इसीलिये बदनाम हो महाराज, सुधर जाओ ! |
माफ कीजिएगा, मैं ब्लाग जगत और तथाकथित बौद्धिक जनों की झूठी दलीलों से ऊब गया हूं.... माफ कीजिएगा, मैं ब्लाग जगत और तथाकथित बौद्धिक जनों की झूठी दलीलों से ऊब गया हूं। स्त्री विमर्श, नारी स्वतंत्रता और अधिकार के कोणों से निरूपमा की मौत पर हो रहे सवालों से झुंझलाहट होती है। निरूपमा के लिए हजारों आवाजें बुलंद हो रही हैं। ये महज टीआरपी बढ़ाने का फार्मूला है। यहां हमारा मकसद आनर किलिंग के मुद्दे पर बहस करने का नहीं है, बल्कि निरूपमा के मां बनने की स्थिति तक पहुंचने और उसके बाद उसके जीवन में आये परिवर्तनों को लेकर है। |
सांप जी, अपना धर्म निभाते रहिए...खुशदीप कल मैंने काफ़ी के कप पेश किए थे...पता नहीं किसी सज्जन को काफ़ी का टेस्ट इतना कड़वा लगा कि उन्हें बदहजमी हो गई...शायद उस सज्जन ने ठान लिया था कि मुझे कॉफी पिलाने का मज़ा चखाना ही चखाना है...वो सज्जन मेरी टांग से ऐसे लिपटे, ऐसे लिपटे कि मुझे गिरा कर ही माने...अवधिया जी ने कल अपनी पोस्ट में लिखा था बंदर के हाथ में उस्तरा...और ये उस्तरा और किसी ने नहीं ब्लॉगवाणी ने ही अनजाने में नापसंदगी के चटके की शक्ल में मुहैया कराया है... |
सुपरमार्केट……किशोर अजवानी सुपरमार्केट जाते हैं आप? वो बिग बाज़ार टाइप की एयरकंडिशंड किराने की बड़ी-सी दुकानें जहां छत्तीस तरह की तो टोमेटो सॉस मिलती है? मैं तो हमेशा हार के आता हूं वहां पर। मतलब कोई जुआ नहीं होता है वहां, घर रसोई का सामान ही मिलता है लेकिन मैंने देखा है कि मर्द ऐसी जगहों पर लुट ही जाते हैं। अब उस दिन गया था मैं शेविंग ब्लेड लेने। अपनी पुराने स्टाइल की दुकान होती तो काउंटर पर जाता, शेविंग ब्लेड मांगता और दुकानदार शेविंग ब्लेड दे देता मुझे। लेकिन सुपरमार्केट में घुसा तो चिप्स, सॉस, चॉकलेट, पोछा, बॉटल ओपनर, लाइटर, बाल्टी, मग्गा, साबुन, कंघी, ब्रश, न जाने क्या-क्या ले आया जबकि मेरे वाले शेविंग ब्लेड थे नहीं वहां पर! और इनमें से एक भी चीज़ की ज़रूरत नहीं थी। लेकिन ले डाली। यूं कहिए, माहौल ने ख़रीदवा डाली। बाइगॉड की क़सम ज़्यादातर मर्द ऐसे ही लुटते देखे हैं मैने इन दुकानों पर। लगता है ये सब भी होना चाहिए घर में। घुसते ही लगने लगता है कि बस अभी, |
हिन्दी पुस्तकों का एक खजाना...मुफ्त में……..मसिजीवी शिक्षाविद अरविन्द गुप्ता ने एक पूरा खजाना अपनी वेबसाइट पर हमारे आपके लिए उपलब्ध करवाया है एकबारगी तो विश्वास ही नहीं हुआ कि इतनी शानदार हिन्दी किताबें नेट पर उपलब्ध हैं। खासतौर पर यदि आप शिक्षक हैं या शिक्षा अथवा बच्चों में आपकी कोई रुचि है तो इन किताबों को जरूर देखें कम से कम कुछ को अवश्य पढ़ें तथा अपने बच्चों को पढ़वाऍं। हिन्दी की उपलब्ध किताबों की सूची मैं लिंक सहित नीचे कापी पेस्ट कर रहा हूँ...आप इस पेज को बुकमार्क कर लें तथा इत्मीनान से एक एक कर पढें तथा अरविन्दजी को धन्यवाद दें- |
क्या आपने कभी सुना है.........घुघूती बासूती क्या आपने कभी सुना है कि किसी माता पिता ने अपनी प्रतिष्ठा/सम्मान के लिए अपने...... १. गंजेड़ी, नशेड़ी पुत्र की हत्या कर दी? २.बलात्कारी पुत्र की हत्या कर दी? ३.देशद्रोही पुत्र की हत्या कर दी? ४.आतंकवादी पुत्र की हत्या कर दी? ५.हत्यारे पुत्र की हत्या कर दी? ६.घूसखोर पुत्र की हत्या कर दी? ७.बेईमान पुत्र की हत्या कर दी? ८. चोर,डाकू, जेबकतरे,अपहरणकर्ता पुत्र की हत्या कर दी? |
''लोग क्या कहेंगे?''(लघुकथा)-------------->>>दीपक 'मशाल' 'अ' एक लड़की थी और 'ब' एक लड़का. बचपन से ही दोनों के बीच एक स्वाभाविक आकर्षण था, जिसे बढ़ती उम्र और मेलजोल ने प्रेम के रूप में निखार दिया. दोनों साथ में पढ़ते, घूमते-फिरते, कॉलेज जाते और कला-संगीत के कार्यक्रमों में रुचियाँ लेते. एक दूसरे की रुचियों में समानताएं होने से प्यार सघन होता गया. उनके अटूट से दिखते प्रेम को देख लोगों के दिलों से निकली ईर्ष्या के उबलते ज़हर की गर्मी उनके आसपास के वातावरण को जितना उष्ण करती उनके प्रेम की शीतलता उन्हें उतना ही करीब ले आती. |
मरकस बाबा को याद करते हुए यक्कम - दुइय्यम ,,,,,,,,,,, मरकस बाबा ! .. चौकिये नहीं ( उनके लिए जो संशोधनवाद को गरियाते हुए नाक-भौं सिकोड़े रहते हैं और मार्क्सवाद को छुई-मुई समझकर संशोधनवादियों से बचाने में ही अपने को सबसे बड़ा मार्क्सवादी समझे रहते हैं ) ! .. यह मार्क्स को 'मरकस' मैंने नहीं किया ! .. भला हो राहुल सांकृत्यायन जी का जिन्होंने लोकानुसरण के महत्व को समझते हुए कार्ल मार्क्स को 'बरक्स बाबा' कहा .. नहीं तो कुछ मार्क्सवादियों को लगता यह भी पूंजीवादी साजिश है ! .. आज मरकस बाबा को याद करते हुए कुछ लिखूं , यह विचार आया 'इस पोस्ट' को पढ़ते हुए .. क्या लिखूं ? , सवाल मुसलसल बना रहा .. फिर सोचा कुछ निजी होकर ही लिख जाऊं , इसलिए 'फ्लैश बैक' में झाँकने लगा ! .. कुछ याद आया , उसी को बक दे रहा हूँ :- |
लेकिन मैंने हार न मानी …. (पदम सिंह) राहें कठिन अजानी संघर्षो की अकथ कहानी लेकिन मैंने हार न मानी आशाओं के व्योम अनंतिम स्वप्नों का ढह जाना दिन दिन संबंधों के ताने बाने नातों का अपनापा पल छिन क्रूर थपेड़े संघर्षों के दुर्दिन की मनमानी, |
भावना---जिस के बल पर इन्सान अनन्त ज्ञान और अतुल शक्ति से टक्कर ले रहा है!!!!! पं.डी.के.शर्मा"वत्स" भावना क्या है ? इस प्रश्न का उत्तर भला कौन दे सकता है? भावना सब कुछ है और शायद कुछ भी नहीं। यह समस्त ब्राहमंड अपने असंख्य सूर्यों,चन्द्रमांओं और पृ्थ्वियों सहित किसी रचनाकार की भावना ही तो है, जो मूर्तरूप हो गई है। इन्सान की भावना भी उस रचनाकार की भावना से कुछ कम नहीं। इस पृ्थ्वी के प्रत्येक वाशिन्दे की भावना नें उसके लिए इस असीम संसार को भिन्न भिन्न प्रकार का बना दिया है। जो मेरा संसार है,वो पाठकों में से एक का भी नहीं। यह सच हो सकता है कि सब मनुष्यों के संसार में बहुत कुछ |
बह्र-ए-हज़ज़ मुसम्मन् सालिम पर एक ग़ज़ल तिलक राज कपूर ग़ज़ल हमारे नाम लग जाये, तुम्हारे नाम लग जाये मुहब्बत में न जाने कब कोई इल्ज़ाम लग जाये। तुम्हारी याद ने मिटना है गर इक जाम पीने से कभी पी तो नहीं लेकिन लबों से जाम लग जाये। मेरी हर सॉंस पर लिक्खा तेरा ही नाम है दिलबर दुपहरी थी तुम्हारे नाम पर अब शाम लग जाये। न भाषा की, न मज़्हब की कोई दीवार हो बाकी गले रहमान के तेरे, जो मेरा राम लग जाये। करिश्मा ही कहेंगे लोग, कुदरत का अगर देखें बबूलों में पले इक नीम में गर आम लग जाये। |
शायद झुलसती गर्मी में ही गर्माते हैं रिश्ते.......शिखा वार्ष्णेय यूँ तो भारत जाना हमेशा ही सुखद होता है ..परन्तु इस बार कुछ ज्यादा ही उत्सुकता थी ..काफी सारी योजनायें बना लीं थीं , बहुत सारे मनसूबे बाँध लिए थे....इस आभासी दुनिया के कुछ मित्रों से वास्तविक रूप में मिलने कि उम्मीद थी.....जी हाँ उम्मीद ही कह सकते हैं , क्योंकि भारत पहुँच कर कुछ अपाहिजों जैसी हालत हो जाती है हमारी ,..न रास्तों का ज्ञान , न ही वहां के ट्रेफिक कि समझ कि उठाई कार और चल पड़े .हमेशा पतिदेव के ही रहमो करम पर रहना पड़ता है..(जैसा कि पिछले साल भारत प्रवास के दौरान हुआ था.जब हमें एक साहित्यकारों कि पार्टी में अपने आई टी पति को ले जाना पड़ा था :) ) |
मेरा वेतन ऐसे रानी जैसे गरम तवे पर पानी ... भानु चौधरी |
छलकना गुस्ताख़ी है ज़नाब….ज्ञानदत्त पाण्डेय अपनी हदों में रहो, मन में जो है, सम्हाल कर कहो, जब बुलायें लब, तुम्हें ईशारों से, तभी बहना अपने किनारों से, क्या हो, क्यों इतराते हो, |
नक्सलवाद और पोसम्पा भई पोसम्पा मैं मुहल्ले की तंग गलियों से यह देखने के लिए गुजर रहा हूं कि शायद मुझे कुछ छोटी बच्चियां पोसम्पा भई पोसम्पा खेलते हुए मिल जाएगी,लेकिन शायद मैं अच्छी किस्मत का मालिक नहीं हूं। कस्बे से शहर और फिर शहर से कांक्रीट का जंगल बनते जा रही राजधानी में सब कुछ सिकुड़ गया है। खेल का मैदान सिकुड़ गया है। भावनाओं की चादर सिकुड़ गई और उससे कहीं ज्यादा लोगों का दिल सिकुड़ गया है। मैं एक बच्ची के पिता से पूछता हूं-आपकी बच्ची कौन सा खेल पसन्द करती है। |
आज फिर से रात भर आपकी याद आई ---- अमित शर्मा आज फिर से रात भर आपकी याद आई आज फिर से रात भर हुई नींद से रुसवाई तस्वीर जो देखी आपकी चली फिर से पुरवाई गुजरी हर एक बात दौड़ी आँखों में भर आई जिन्दगी की धूप से जब कभी परेशां हुआ था आप का ही साया मैंने हमेंशा सर पे पाया था साये तो वैसे अब भी जिन्दगी में खूब मिले है पर मिला ना अब तक आप सा हमसाया कोई है |
खरीदना है तो खरीद लो बाबू मैं तिरंगे बेचता हूँ...दिलीप मैं न कोई नेता हूँ, जो मेरे मरने पर तिरंगा झुका दिया जाए.... सैनिक भी नही, की मेरे शव को तीन रंगों मे लिपटा दिया जाए.... मैं कोई ऐसा भी नही की किसी इमारत पे ये तिरंगा फहरा सकूँ.... इतनी फ़ुर्सत भी नही मुझे की कभी इन हाथों से इसे लहरा सकूँ.... |
ये फोटो झक्कास लगी है…..स्वप्निल कुमार 'आतिश' जब से तुम को प्यास लगी है दरियाओं को आस लगी है शर्माने वाली हर इक शय मुझको तो बिंदास लगी है मैं ,तुम, चंदा चल के बैठें मेरे लान में घास लगी है तेरे पांवों की हर ख़ुशबू इन लहरों को खास लगी है |
कहाँ है, बो संजीवनी बूटी ......>>> संजय कुमार संजीवनी बूटी का नाम ध्यान मैं आते ही हमें रामायण की याद आती है ! और ध्यान मैं आता है की, किसतरह बजरंगबली ने युद्ध के दौरान मूर्छित लक्ष्मण के प्राण संजीवनी बूटी द्वारा बचाए थे ! और आज तक हम उस संजीवनी बूटी के महत्व को जानते हैं ! और जान गए आयुर्वेद के गुण ! जी हाँ मैं उस देशी नुस्खे की बात कर रहा हूँ जो हम सब भूल चुके हैं , और भूल चुके हैं उनकी तासीर ! |
एक मित्र के जन्मदिन पर . .गिरिजेश राव एक कदम और.. जीवन सौन्दर्य में भ्रमण को। एक कदम और गुदगुदाहट, किसी भोले इंसान की निश्छ्ल हँसी सा। एक कदम और संगिनी के साथ सुबह की टहल सा एक कदम और बच्चों के साथ स्कूल की बस तक एक कदम और लंच में बाहर धूप में गुनगुने होने सा दोस्तों के साथ हँसी ठठ्ठा सा। |
अच्छा नहीं…….लक्ष्मीनारायण गुप्त मरने के पहले मर जाना जब तक स्वास चल रही प्यारे जीने का तुम लुत्फ़ उठाना जब तक मदिरा है प्याली में पीते जाना, पीते जाना अमृत मिल रहा है जीवन में उसको प्यारे क्यों ठुकराना गरल मिल रहा है तो भी क्या शिव की तरह पान कर जाना भला बुरा जो भी आ जाए सामना तुम करते ही जाना |
अपनी बात ……..निर्मला कपिला आज कुछ समय मिला है। सोचा ब्लाग पर हाजरी लगा लूँ। भारत की बहुत याद आ रही है सच कहूँ अपने देश जैसा सुख कहीं नही है न ही अपने देश जैसी आजादी। विदेश मे तो हर काम को अपनी सीमा मे करना होता है ।सुबह से शाम तक जितने भी व्यक्तिगत काम से ले कर आफिस तक सब की सीमायें बाँध रखी हैं अब देखिये सुबह नित्यक्र्म से निव्रित होने से नहाने तक का समय मुझे अपने लिये तो अभिशाप सा लगता है। मर्जी से अपने शरीर की सफाई भी नही कर सकते। एक कविन्टल शरीर पर फवारा चार बारिश की बून्दों जैसा आभास देता है। वहाँ अपने घर मे बडी सी बाल्टी और एक बडा सा लोटा जितने मर्जी भर भर के लोटे शरीर पर डालो पता चलता था कि हम नहा कर आये हैं और अमेरिका मे एक तरफ से फवारे से नहा कर हटो तब तक दूसरी साईड सूख जाती है। बाथ टब मे बैठ कर नहा तो सकते हैं मगर वो इतना छोटा लगता है कि मेरा तो दम घुटने लगता है। |
यादों से वो गुज़रे ज़माने नहीं जाते….मो सम कौन बात शायद 1994-95 की है। नौकरी के सिलसिले में मैं घर से दूर उ.प्र. के एक शहर में रहता था। तीन-चार दोस्त किराये के मकान में इकट्ठे रहते थे। अनजान जगह पर, वो भी उस दौर में, जब कम्पयूटर अभी इतना आम नहीं हुआ था, हम जैसों के लिये यार-दोस्तों का ही सहारा था और ऐसी ही कुछ सोच यार लोग भी रखते थे। उ.प्र. का एक साधारण सा शहर, घर परिवार और रिश्तेदारों से दूर समय काटने के लिये ताश, सिनेमा जैसी चीजें तो थीं, लेकिन सिनेमाघर कुल चार थे। ले देकर साल में दो महीने के लिये एक नुमाईश आया करती थी जो शहर में दो महीने लगती थी लेकिन चार महीने पहले से और चार महीने बाद तक हमारे जैसे छड़ों के दिमाग में लगी रहती थी। न कोई पार्क, न कोई घूमने की जगह, ले देकर एक स्टेशन ही था जहां रात ग्यारह बजे तक हम घूमते रहते थे। |
प्रेम आखिर पलता कहाँ है ....वाणी गीत प्रेम आखिर पलता कहाँ है ... किसी मृगनयनी के आंसुओं में ... रक्तरंजित कलाई पर गुदे हुए आशिक के नाम में .... हृदयपटल में अवस्थित खामोश तस्वीर में ... संतति के लिए नैसर्गिक आत्मसमर्पण में ... अपना लेने के आकर्षण में ... सिर्फ अधिकार जताने में वाणी गीत |
कुटज तरू सा मेरा मन…..अनामिका की सदाये... मरू भूमि सी ऊष्ण कठोर जिन्दगी की विषम परिस्थितियों से टकराता, गिरता पड़ता चोटिल होता मेरा मन. |
nice
जवाब देंहटाएंचर्चा चैनल यूं तो अच्छा है
जवाब देंहटाएंपर इस प्रसारण में
परिकल्पना ब्लॉगोत्सव 2010 का
एक भी कार्यक्रम नहीं दिखा है
शिकायत नहीं
सूचना है यह।
Lagbhag sabhi achchhi poston ko simete ek kamyaab charcha..
जवाब देंहटाएंabhar
आपकी चर्चा के माध्यम से हिंदी पुस्तकॊ वाला लिंक पता चला, सबसे बड़ी उपलब्धि है मेरे लिये।
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच में स्थान देने के लिये आपका और शास्त्री जी को "मो सम कौन" का धन्यवाद
आभार।
शानदार चर्चा.....बहुत आनन्द आया..अब जा रहे हैं सब लिंक्स पर पारी पारी.
जवाब देंहटाएंअदाजी की अदानुमा बढ़िया चर्चा ...फोटो-शोटो बढ़िया लगाई है ...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे लिंक्स ...मेरी कविता को चर्चा योग्य समझने के लिए आभार ...
बढ़िया चर्चा |
जवाब देंहटाएंअल्ला, चर्चा की ये अदा कैसी इन अदा जी की...
जवाब देंहटाएंइस गाने को अदा जी की मधुर आवाज़ मिल जाए तो इस चर्चा जैसा ही आनंद आ जाए...आभार...
जय हिंद
bahut badhiya charchaa hai .. acchhe link mile ...
जवाब देंहटाएंशानदार चर्चा !
जवाब देंहटाएंबढ़िया चिट्ठाचर्चा
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंवाह जी आज की चर्चा तो नई बयार सी लगी. सुंदर.
जवाब देंहटाएंशानदार चर्चा.....बहुत आनन्द आया.
जवाब देंहटाएं_____________
'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर हम प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटती रचनाओं को प्रस्तुत कर रहे हैं. आपकी रचनाओं का भी हमें इंतजार है. hindi.literature@yahoo.com
बहुत बढिया और सार्थक चर्चा……………काफ़ी लिंक्स मिल गये………॥आभार्।
जवाब देंहटाएंचर्चा में बहुत ही बढ़िया तरीके से पोस्ट्स को पेश किया गया हैं
जवाब देंहटाएंसुन्दर और विस्तारपूर्वक चर्चा करने के लिए आपका धन्यवाद्
बढ़िया चिट्ठाचर्चा के लिए आप का आभार !!
जवाब देंहटाएं"अदाएं 'अदा' की अब चलने लगी है"
यह अदाएं युही चलती रहे यही दुआ है !!
शुभकामनाएं !!
VISTRIT CHARCHA HUI HAI ADA JI ! KAFI SARE LINKS MILE SHUBHKAAMNAYE.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुरूचिपूर्ण एवं उम्दा चर्चा!!
जवाब देंहटाएंकितने संयोग की बात है कि हमने चर्चा के लिए जिन पोस्ट्स का चुनाव किया था...लगभग 90% वही सब पोस्टस आपकी इस चर्चा में सम्मिलित हैं...शायद आपकी पसन्द भी हमारे से बहुत हद तक मिलती जुलती सी है.....
shukriya ada ji hame yaha charcha manch par la bithaya.:)
जवाब देंहटाएंkaffi acchhe links mile padhne ko.
इस चर्चा से नए लिंक्स मिले....बढ़िया चर्चा..शुक्रिया
जवाब देंहटाएंअच्छी रही चर्चा ..
जवाब देंहटाएंअच्छे लिक तक जाना हुआ ..
आभार !
एक से एक बेहतरीन लिंक ढूंढ कर चर्चा में स्थान देना...कमाल ही कहा जाएगा ! शुभकामनायें अदा जी !
जवाब देंहटाएं