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सोमवार, अगस्त 23, 2010

"बेपनाह ख्वाहिशें…………" (चर्चा मंच-254)


आज की सबसे पहली चर्चा हाजिर है …………आज का सबसे बडा सच भी तो यही है जिसने लोगों का जीना दुश्वार किया हुआ है तो क्यों न इसी से शुरुआत की जाये……………


        

कभी प्यार का इंटरव्यू देखा और सुना है आपने ………नही ना, तो यहाँ आइये और इस रस मे आप भी भीग जाइये……………
       
प्यार का इंटरव्यू ( Interview of Love )


जो चीज़ मिलनी आसान नही उसी को पाना चाह्ते हैं योगेश जी…………देखिये तो


सच्चा प्यार चाहते हैं तो जैसा पाबला जी बता रहे हैं उस पर अमल कीजिये और अपनी ज़िन्दगी सफ़ल कीजिये……………


                       
प्यास ना जाने आज किस किस को कैसी कैसी है मगर तृप्ति फिर भी नही और इसी की तलाश मे इंसान एक उम्र गुज़ार जाता है मगर फिर भी कोई कमी सी रहती है ……………क्या है वो कमी जानिये यहाँ…………



                                                                                         

रचना जी की ये भावभीनी प्रस्तुति बरबस ही मन को भिगो जाती है…………


                                 
ये तो बडा राज़दार पर्दा है ………खुद ही उठाइये



कविता पर कैसे कैसे अत्याचार इंसान कर देता है बिना सोचे समझे मगर उसके दर्द को कभी महसूस नही कर पाता …………अगर जानना है कविता का दर्द तो यहाँ आइये और महसूस कीजिये




शून्य और संगीत मे समाया जीवन दर्शन का अनुभव भी गज़ब का है……



नारी मन की थाह अगर पुरुष पा जाये उसके भावों को समझ जाये तो जीवन सरल ना हो जाये मगर ऐसा कब हो पाया है …………दंभ आगे जो आ जाता है पुरुष का और फिर वहीं से परायेपन का अहसास काबिज़ होने लगता है…………एक चाहत पर नारी के भावों को खूब संजोया है संगीता जी ने………………

नारी मन की थाह



             
                
 ग्राहक कैसे जिम्मेदार हो सकता है प्लास्टिक बैग के लिये …………दुकानदार बेचेगा तो उसे तो लेना ही पडेगा ना


 कुछ बिखरे लम्हे, कुछ बिखरे ख्वाब
बस यही ज़िन्दगी है जनाब
                                                                    

 ज़िन्दगी क्या है
पहेली है या सहेली
खुश्बू है या ख्वाब
आशा है या विश्वास
जानना है तो यहाँ आइये जनाब्………

 ये चाहतों के घेरे
ये उलझनों के सवेरे
हर किसी को हैं घेरे
तभी तो शास्त्री जी
भी डूबे हैं  घनेरे


 ये जाना माना नाम है
ब्लोगिंग को दे रहा
विस्तार है
किसी पह्चान का
ना मोहताज़ है


माना किस्मत का मारा है आदमी
फिर भी हालात से ना हारा है आदमी


बरखा का मतवाला है
छाया मद का प्याला है
कैसे कैसे रंग बिखेर रहा
बिन मदिरा के बहक रहा



भावों की सजाई पोट्ली है
ये निकली वन मे मोरनी है

चन्दन वन में


मत जगाना सोये हुयो को
वरना रात से ठहर जायेंगे
ये बेतरतीब से अहसास
हर ओर बिखर जायेंगे
                                                                                

काव्य की विविधता जान लो
कुछ तो काव्य को पह्चान लो
हर दिल मे बजता संगीत है
ये काव्य का मर्म गीत है
                                                                                                                   

नये सोपान 
गढने दो
कविता को 

नये रंग मे
रंगने दो
इसके आयामो को
जान लो
हर पहलू को
पहचान लो

कविता के नए सोपान (भाग-4)

                                                                                                                               

अधूरी ख्वाहिशों के बिखरे मोती
एक ख़्वाहिश

अब कोई क्या कर सकता है नियति मे तो सभी बँधे हैं………………


कुछ चाहतों को उम्र नही मिलती


और आखिर मे एक बेवफ़ा से भी मिल लीजिये…………
                                                                                                                                         


दोस्तों,




आज की चर्चा को यहीं विराम देती हूँ …………उम्मीद है पसंद आयेगी।


अपने बहुमूल्य विचारों को टिप्पणी के रूप मे पहुँचाईयेगा……………इंतज़ार

रहेगा।




24 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीया वंदना गुप्ता जी
    आज की चर्चा आपके सौम्य व्यक्तित्व और आपकी भाव पूर्ण कविताओं की तरह अत्यंत प्रशंसनीय है ।
    आज चर्चा मंच के विजिटर का शस्वरं पर हार्दिक स्वागत है !

    आ रहे हैं न आप सब ?

    - राजेन्द्र स्वर्णकार

    जवाब देंहटाएं
  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह..वाह...!
    चर्चा बाँचकर तो आनन्द आ गया!
    --
    आज की चर्चा तो बहुत ही अलग अंदाज में की गई है!
    --
    आपके परिश्रम को प्रणाम!

    जवाब देंहटाएं
  4. वंदना ,

    बहुत भाया चर्चा का
    यह अंदाज़ ,
    लिंक भी मिले हैं
    खास खास ...
    चर्चा रही
    पूरी की पूरी
    मनोहारी
    मुझे भी शामिल
    करने के लिए ,
    मैं हूँ
    हृदय से
    आभारी .... :):)

    जवाब देंहटाएं
  5. काव्यमय चर्चा।
    राजभाषा ब्लॉग को शामिल करने के लिए आभार!

    सुंदर प्रस्तुति!
    राष्ट्रीय व्यवहार में हिन्दी को काम में लाना देश की शीघ्र उन्नति के लिए आवश्यक है।

    जवाब देंहटाएं
  6. AApka ye pyasa anbhigy tha, achha laga. meri post isme dikhayee dee, ye bhi mere lie khushi ki baat rahi..

    जवाब देंहटाएं
  7. vandanaji, charchamanch par khud ko pakar behad khush hoon. aapka saadar abhar. khush isliye bhi hoon ki aap jaise famous manishiyon ke beech swayam ko mehsoos kar rahi hoon. dhanyawad

    जवाब देंहटाएं
  8. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  9. vandanaji, charchamanch par khud ko pakar achchha laga. aaj ka sanyojan kafi prabhavshali hai...

    जवाब देंहटाएं
  10. वंदना जी आज का मंच व्यापक रचनाओं से सजी है.. जहाँ कामन वेल्थ खेल से चर्चा शुरू हुई है वही कई रोमांटिक और कई गंभीर कविताओं का सुंदर समन्वय है.. कुछ रचनाएं बेहद प्रभावित करती हैं उनमे .. रचना दीक्षित जी की 'परिणति' संवेदनशील कविता लगी.. अमावस की रात, कविता का दर्द और चन्दन वन में कविता प्रभावित करती है.. ए़क सुंदर चर्चा प्रस्तुत करने के लिए आपको हार्दिक बधाई...

    जवाब देंहटाएं
  11. बेपनाह ख्वाहिशेण... प्यार, पर्दा... कर दिया आज़ुर्दा :( अच्छी चर्चा॥

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  12. वंदना जी मेरी कविता को चर्चा मंच पर स्थान देने के लिय आपकी आभारी हूँ बहुत खूबसूरती से सजाया है ये मंच आपने बधाई स्वीकारे

    जवाब देंहटाएं
  13. अच्छी चर्चा के लिये आभार ,बहुत से लिंक मिले ।

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  14. vividhta ka sundar samavesh.....
    sundar kavitayen....
    vibhinn rachnakaron ko padhkar bahut accha laga!
    charchakaar ko kotisah dhanyavad!
    subhkamnayen:)

    जवाब देंहटाएं

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