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सोमवार, नवंबर 29, 2010

ठहरी हुई चर्चा...............चर्चा मंच-353

दोस्तों
आज की चर्चा में आपका स्वागत है…………  एशियाड खेल  ख़त्म हो गए हैं और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेला भी ................भारत ने हर जगह अपना नाम रोशन किया है मगर फिर भी ............यूँ लग रहा है जैसे सब ठहर सा गया है ...........तो चलते हैं आज की ठहरी हुई चर्चा की ओर और देखते हैं  कहीं ज़िन्दगी ठहरी तो नहीं ..............



निर्मल सुख की चाह में जीता ये संसार
फिर भी कडवा घूँट पीता ये संसार



तुम ना कहो कुछ तो गम नहीं

बड़बडिया की जुबाँ भी कम नहीं 

तेरे लिए जीती हूँ
 तेरे लिए मरती
आखिर
मदर हूँ मैं !


कौन देस गए सजनवा
पवन री ..संदेसा ले जा !!

तुम भी चलो हम भी चलें
मौजे-ही-मौजे ..... रोमांचक सफ़र !!!
में 

बूझो तो जाने तुम्हें गुरु मानें
"आओ ज्ञान बढ़ाएँ-पहेली:59" (अमर भारती)

मेरा अक्स ही मेरी पहचान है
पहचान कौन चित्र पहेली :- ६


कैसे  आईने में झांकें
तस्वीर.... कहीं बदल ना जाए

तुम शब्द स्म्पदा परिपुष्ट मगर ढाई आखर -- में समायी है
जिसने खोजा तुमको उसने ही प्रीत लगायी है

मेरी आवाज़ ही पहचान है
मैं अब आवाज दूंगा

तुम भी अब आ  जाना

अजीबो गरीब जानकारी
कहीं तेरी कहानी कहीं मेरी

लिख दिया उसने उसका नाम " जिंदगी "

कुछ ऐसे कर दी उसके नाम ज़िन्दगी

दो दिल टूटे , बिखरे टूकड़े सारे

कुछ यहाँ गिरे कुछ वहाँ गिरे

नाम क्या है?
प्यार का मारा

"अब मौसम-ए-बहार का आसार कहाँ है .."

वो कहते हैं हमें उनसे प्यार कहाँ है

जवाँ होती हसीं लड़कियाँ
क्यूँ जवाँ हुयीं क्यूँ हसीं बनीं

नई ग़ज़ल/ फिर बुझी शम्मा जलाई यार ने

फिर दिल की लगी सुनाई यार ने
कुछ ऐसे हमने चोट खाई प्यार में

जिन्दगी के रंग
कभी ज़िन्दगी के संग
कभी ज़िन्दगी के बिन

उभरता ‘साहिल’
मचलता रंग


एक तिल चेहरे पर कयामत ढा देता है

और वो कहते हैं हुस्न बेपर्दा हो गया

ब्लॉग्गिंग से कमाया धन

ब्लॉगिंग को कर दो अर्पण ये अनमोल धन

प्रतिरोध 

अश्क अब बहते नहीं
प्रतिरोध भी करते नहीं


खिल उठें ये कलियाँ

गर तू मुस्कुरा दे
दुनिया चमन बन जाये
गर तू मुस्कुरा दे



भाव सुमन

कर दूं अर्पण श्री चरणों में


कौन कहता है की हमारी मातृभाषा हिंदी है - २

ग़लतफ़हमी की दुनिया है
गफलत में जीती है और
हिंदी को मातृभाषा कहती है

टिशु पेपर हूँ मैं………………
कभी इस हाथ में
कभी उस हाथ में
पड़ता ही रहा हूँ मैं

मेरा सब तेरा ही तो था...
मैं मेरी हसरतें आरजुएं
मेरी नींद मेरे ख्वाब
बता अब कौन सी
जगह है खाली तेरे बिन

लघुकथा - ग़ालिब आखिर पत्थर निकले काम के ... !
किसी काम तो आये

दीनदयाल शर्मा की कविता - समर्पण
ये जीवन , तन और मन
करती रहोगी कब तक समर्पण

खामोशी , चाह , आदत कब बदलती हैं
सब तेरे संग संग चलती हैं
भारतीय काव्यशास्त्र - काव्य के भेद - ध्वनि काव्य
ज्ञानवर्धक जानकारी पाओ 
अपना ज्ञान बढाओ

दुख के सब साथी सुख में ना कोय - अजित गुप्‍ता

फिर भी जान बूझकर कुल्हाड़ी  पर ही पैर मारते हैं


आज एक पुरानी झेलिये .... महेन्द्र .....जिंदगी एक तपस्या है....
 चाहे जैसे कर ले उपासना 
तेरा किया तुझे ही भरना है 

 जीवन दर्शन कराती हैं 
तुमसे तुम्हें मिलाती हैं

यातना, संघर्ष और स्‍वप्‍न का नया सिनेमा : गोवा से

देखोगे तो जानोगे

फ़्लाइओवर के नीचे 
देखो दुनिया का सच

६२२ मील लम्बा रास्ता और उम्र के बीस बरस ...
तय करते करते कहीं ज़िन्दगी फ़ना ना हो जाए
तू मुझसे कहीं फिर से जुदा ना हो जाए 
चलिए दोस्तों अब इजाजत दीजिये ..............अगले हफ्ते फिर मिलती हूँ तब तक आपके विचारों की प्रतीक्षारत ......................

42 टिप्‍पणियां:

  1. चर्चा का यह अन्दाज निराला है
    यूँ लगता है जैसे मनकों की माला है

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर और विस्तृत चर्चा के लिए आभार!
    --
    अच्छे लिंको का चयन किया है आपने!

    जवाब देंहटाएं
  3. अच्छी चर्चा ...
    चर्चा में शामिल किये जाने का शुक्रिया ...
    आभार !

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही सुन्दर चर्चा | अधिकतर तो पढ़ चुका हूँ....
    पहचान कौन चित्र पहेली को शामिल करने के लिए धन्यवाद....

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत बढ़िया चर्चा है ... काफी ढेर सारे पठनीय लिंक मिले .... आभार

    जवाब देंहटाएं
  6. समयचक्र की पोस्ट को चर्चा में सम्मिलित करने के लिए आभारी हूँ....

    जवाब देंहटाएं
  7. सुन्दर और विस्तृत चर्चा के लिए और मेरी पोस्ट को अपने ब्लॉग में जगह देने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  8. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  9. Charcha ki prastutikaran ka andaz nirala. koi gamgeen, koi chintanshiil to kisi ke hotho pe hala. vibhinna pushpon ke sugandh se surbhi aaj ki maala. yah dhand apne aap me kitna bebaak? kitna nirala? shabdon ke fuhaar se viksit arthon ki maala.......

    जवाब देंहटाएं
  10. चर्चा को दिया आपने एक नया आयाम!
    इसी बात पर लीजिए मेरा यह सलाम।

    जवाब देंहटाएं
  11. vanda ji shukriya
    zameen se moti utha leti hai
    registaan me bhi khusbu bhar deti hai //

    जवाब देंहटाएं
  12. meri rachna ko charcha manch me shamil karne ke liye bahut bahut aabhar..........

    जवाब देंहटाएं
  13. charcha ka badala-badala-sa kalevar achchha laga. dhanyvaad ki meri ghazal bhi shamilhui charcha mey.

    जवाब देंहटाएं
  14. बहुत अच्छे लिंक्स के साथ,बहुत ही अच्छी चर्चा.
    मुझे भी स्थान देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.

    सादर

    जवाब देंहटाएं
  15. vibhinna links ka gyanverdhak samanvay dekhne ko mila .dhanyawad aur achhi prastuti ke liye badhai...

    जवाब देंहटाएं
  16. यह चटखा लगा कर दूसरी खिड़की पर लिंक खुलने वाला हुनर सबको बता दे तो बहुत बेहतर ...

    लिंक तो ज्यादातर नहीं पढ़ी अभी तक.. दखिये.. कुछ को तो जरूर पढेंगे..

    जारी रखिये ....

    जवाब देंहटाएं
  17. बहुत बढ़िया चर्चा ...साथ में दी गयी टिप्पणियाँ बहुत बढ़िया हैं ...

    जवाब देंहटाएं
  18. बहुत सुन्दर चर्चा! बढ़िया लगा!

    जवाब देंहटाएं
  19. सुन्दर संयोजन ...बढ़िया चर्चा!
    आभार!

    जवाब देंहटाएं
  20. चर्चा में शामिल करने के लिए धन्यवाद !
    काफी अलग - अलग तरह के लिंक्स पढ़ने को मिले ,कहना नही होगा चयन उत्तम रहा !

    जवाब देंहटाएं
  21. चर्चा बहुत अच्छे लगी... कुछ पढ़े हुए पोस्ट मिले तो कुछ नए पढने को मिले... धन्यवाद...
    और मेरी कविता को इस चर्चा में जगह एवं कुछ और शब्द देने का बहुत-बहुत शुक्रिया...

    जवाब देंहटाएं
  22. Aapne jo charcha manch par jo samagri ekatrit ki hai bahut hi gyanwardhak evam rochak hai.Bhartiya kavya shastra ko charchamanch par lekar iski shobha badhane ke liye aapka aabhar.

    जवाब देंहटाएं
  23. वंदना जी,
    बहुत उम्दा रचनाओं के लिंक्स खोज कर लायीं हैं आप. मुझे शामिल करने का भी शुक्रिया!

    जवाब देंहटाएं
  24. वन्दनाजी,
    आपका आभार...
    विचारों की मेरी सोच को चर्चामंच में स्थान देने के लिये । सच कहूँ तो फिलहाल तो ये मेरी आशाओं से कहीं अधिक बडे पुरस्कार जैसा ही महसूस हुआ है ।
    जो लेख मेरे पढने से छूट गए थे अब उन्हें भी आपकी दी गई लिंक के द्वारा पढना आसान रहेगा । धन्यवाद...

    जवाब देंहटाएं

  25. दो दिल टूटे बिखरे टूकड़े सारे
    तड़प तड़प वो दिन कैसे गुजारे


    वन्दना जी इस गीत/कविता को चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए तहेदिल से शुक्रिया।
    आपका चर्चा मंच को सजाने का अन्दाज बहुत प्यारा है।

    जवाब देंहटाएं
  26. वंदना जी, मेरे पोस्ट को चर्चा में शामिल करने के लिए शुक्रिया..
    आभार आपका.. :)

    जवाब देंहटाएं
  27. वंदना जी ... आपका बहुत बहुत धन्यवाद मेरी रचना चर्चा मंच में शामिल करने के लिए ..

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  28. देरी के लिए क्षमा चाहती हूँ.
    बहुत अच्छी चर्चा.

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  29. yeh manch dekh kar Bahut hi achchha laga . aapne sabhi ek manch me lakar jo kaam kar rahe hai yeh hindi sahitya ke liye bhi bahut hada yaogean hai..

    जवाब देंहटाएं

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