नमस्कार मित्रों!
मैं मनोज कुमार एक फिर हाज़िर हूं चर्चा के साथ।
आइए आज पहले बात करें
फिल्म समीक्षा : 7 खून माफ की। यह समीक्षा प्रस्तुत की गई है चवन्नी चैप पर।अजय ब्रह्मात्मज
विशाल भारद्घाज की हर फिल्म में एक अंधेरा रहता है, यह अंधेरा कभी मन को तो कभी समाज का तो कभी रिश्तों का होता है। 7 खून माफ में उसके मन के स्याहकोतों में दबी ख्वाहिशें और प्रतिकार है। वह अपने हर पति में संपूर्णता चाहती है। प्रेम, समर्पण और बराबरी का भाव चाहती है। वह नहीं मिलता तो अपने बचपन की आदत के मुताबिक वह राह नहीं बदलती, कुत्ते का भेजा उड़ा देती है। वह एक-एक कर अपने पतियों से निजात पाती है। फिल्म के आखिरी दृश्यों में वह अरूण से कहती है कि हर बीवी अपनी शादीशुदा जिंदगी में कभी-न-कभी आपने शौहर से छुटकारा चाहती है। विशाल भारद्घाज की 7 खून माफ थोड़े अलग तरीके से उस औरत की कहानी कह जाती है, जो पुरूष प्रधान समाज में वंचनाओं की शिकार है।
अब
करते बात वही काजल की, जी हम नहीं मनोरमा पर श्यामल सुमन। सुनिए उन्हीं के लफ़्ज़ों में इस बेहतरीन ग़ज़ल के दो शे’र …
किसे खबर है अगले पल की
फिर भी सबको चिन्ता कल की
लड़ी न कोई जंग अभी तक
महिमा गाते खुद के बल की
Best collection of short Hindi stories पर Pushpa Saxena बता रही हैं
बाक़ी की कथा वहीं पढिए।
स्वास्थ्य-सबके लिए पर कुमार राधारमण ढूंढ लाए हैं
चुनाव आयोग को एक सुझाव तो भाई हम नहीं यशवन्त माथुर ही दे सकते हैं। क्यों? चलिए उनसे ही पूछ लेते हैं। जवाब आया है -- जो मेरा मन कहे!! बढते इंटरनेट के प्रयोग के इस दौर में अब चुनाव आयोग को ऑनलाइन वोटिंग के विकल्प पर भी विचार करना चाहिए.
आप मिले हैं Kirtish Bhatt, Cartoonist से? अगर मिलें तो आपके मुंह से निकलेगा .. ‘दुनिया इधर की उधर हो जाए यह तो है

शिक्षामित्र दे रहे हैं जानकारी
शिवम् मिश्रा के
अहा! वह था ऐसा सुनहरा पल, आज तक हुआ न जिसका कल।
भारत की पहली 'विश्वविजय' की याद, रहती है हरदम, हर पल॥
राकेश रोहित को हो रही है
गुप्त गोदावरी होकर,
बहो मुझमें
बहो भीतर बहो!
हम उजड़े तट हैं,
अपनी पहचान यही
कंधों पर शव
वक्ष पर चिता है,
पर्वत हैं वे
नदियों को फेंकना-पटकना
आता है इनको
ये पिता हैं,
झरने से झील हो
सर पटकती रहो!
Sonal Rastogi का कहना है ‘
सजदा सुबह शाम करो
तो माथे पर भी निशा पड़ते है
टूटते है जितने ख्वाब
सब मेरे तलवो पे आके गड़ते हैं
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण) जी आप
महावृक्ष है यह सेमल का,
खिली हुई है डाली-डाली।
हरे-हरे फूलों के मुँह पर,
छाई है बसन्त की लाली।।
तुम तुम और तुम... (गीत)--- ( डा श्याम गुप्त )
ज्ञान चेतना मान तुम्ही हो ,जग कारक विज्ञान तुम्ही हो |
तुम जीवन की ज्ञान लहर हो,भाव कर्म शुचि लहर तुम्ही हो |
जग कारक जग धारक तुम हो,तुम तुम तुम तुम, तुम ही तुम हो |
तुम तुम तुम तुम, तुम ही तुम हो,तुम ही तुम हो,तुम ही तुम हो |
Aravind Pandey
अपने ही फैसले से क्यों खुरच रहे हो तुम.
चहरे पे चढ़ा है जो सफेदी का मुलम्मा.
ताकत है बेशुमार दिया जिस अवाम ने.
उसके ही बर-खिलाफ लिख रहे हो फैसले..
आशा जी की सफलता प्रस्तुति
रश्मि प्रभा... की
बहुत कुछ खोना पड़ता है
एकलव्य की तरह
आगे बढ़ने लिये |
राह चुननी पड़ती है
उस पर चलने के लिये |
हम हैं कितने दीवाने तेरे ये तुम्हें क्या पता
हमने की जो भी खता उसके लिए अब न सता
जितना तरसा हूँ उसमें थोड़ा सता लेने तो दो
मुझको इक बार शरारत का मज़ा लेने तो दो
वन्दना को ज़ख्म…जो फूलों ने दिये तो
न अश्क सच्चे होते हैं
न रोना अर्थपूर्ण
मगर असर वो भी
कर ही जाता है
शायद
हकीकत से भी ज्यादा
Sunil Deepak का डिमांड है
DR. PAWAN K MISHRA बता रहे हैं दिल्ली में परवेज़ मुशर्रफ होली खेले आय। दिल्ली में परवेज़ मुशर्रफ होली खेले आय
छोड़ राग कश्मीर का फाग रह्यो सुनाय.
फाग रह्यो सुनाय मनमोहन के आँगन में
गिलानी को लपटाय अडवानी ने बाहन में.
पवन *चंदन*
संतोष त्रिवेदी से मित्रता के मायने ! क्या हैं? बहुत ही संवेदनशील और गंभीर विषय पर बात करने जा रहा हूँ.कई दिनों से मेरे मन में एक मंथन चल रहा है जिसे सबके साथ साझा कर रहा हूँ.मित्र शब्द से ज़ेहन में ऐसी तस्वीर बनती है जिसके आगे हम बिलकुल खुल जाते हैं,बिछ जाते हैं.मित्रता में औपचारिकता नहीं होती,समान विचार कम आलोचना और मतभेद ज्यादा होते हैं. तू - तू , मैं - मैं तो हर कोई करता है
खुद को साबित करने के लिए ही लड़ता है
नफ़रत की इस दीवार को जो तुम ढहा दो
तो मैं मानूँ |
Dr.J.P.Tiwari की तान …
खेतखलिहान में जुटा कृषक भी
गीत - बासंती गुनगुना रहा है
होली गीत का प्यारा सा मुखड़ा
हे सखी! किसे ये सुना रहा है ?
देख सखी! मै सच कहती हूँ..,
मधुमास का ऋतु आ गया है.
अरविन्द सिसोदिया,कोटा, राजस्थान से बता रहे हैं
प्रवीण पाण्डेय के फिर भी जीवन में कुछ तो है! जीवन को पूरा समझ पाना, एक सतत प्रयत्न है, एक अन्तहीन निष्कर्ष भी। पक्ष खुलते हैं, प्रश्न उठते हैं, समस्या आती है, समाधान मिलते हैं। प्रकृति एक कुशल प्रशिक्षक बन आपको एक नये खिलाड़ी की तरह सिखाती रखती है, व्यस्त भी रखती है, जिससे आने वाले खेलों में आप अच्छा प्रदर्शन कर सकें। कोई शब्द नहीं, कोई संप्रेषण नहीं, कोई योजना नहीं, कोई नियम नहीं, बस चाल चल दी जाती है, पाँसे फेक दिये जाते हैं, अब आप निर्धारित कर लें कि आपको क्या करना है?
Sadhana Vaid की प्रस्तुति छज्जू का चौबारा। आज तो आपको 'छज्जू के चौबारे' में लेकर अवश्य जाना है जहाँ कला और साहित्य की निर्मल धारा अविरल प्रवाहित होती है और वहाँ उपस्थित हर एक व्यक्ति उस ज्ञान गंगा में गोते लगा कर पूर्णत: निर्मल एवं पवित्र हो जाता है !
Vijai Mathur बता रहे हैं सीता का विद्रोह। महारानी सीता जो ज्ञान-विज्ञान व पराक्रम तथा बुद्धि में किसी भी प्रकार राम से कम न थीं उनकी हाँ में हाँ नहीं मिला सकती थीं.जब उन्होंने देखा कि राम उनके विरोध की परवाह नहीं करते हैं तो उन्होंने ऋषीवृन्द की पूर्ण सहमति एवं सहयोग से राम-राज्य को ठुकराना ही उचित समझा.राम क़े अधिनायकवाद से विद्रोह कर सीता ने वाल्मीकि मुनि क़े आश्रम में शरण ली वहीं लव-कुश को जन्म दिया और उन्हें वाल्मीकि क़े शिष्यत्व में शिक्षा-दीक्षा प्राप्त करने का अवसर प्रदान किया.
है कहाँ गया कान्हा तेरा यौवन साथी,
हो गये मौन क्यों आज मधुर बंसी के स्वर।
खो गयी कहाँ पर राधा की वह मुक्त हंसी,
लुट गये कहाँ पर सखियों के नूपुर के स्वर।
संगीता पुरी बता रही हैं
Dr (Miss) Sharad Singh का एक और शोधपूर्ण आलेख - प्राचीन भारत में देह-शोषित स्त्रियां। प्राचीन भारत के समाज में गणिकाओं और देवदासियों का भी विशिष्ट स्थान था। ये गणिकाएं और देवदासियां नृत्य, संगीत तथा वादन द्वारा जनसाधारण का मनोरंजन किया करती थीं। गणिकाओं और देवदासियों में अन्तर था, गणिकाएं जिन्हें नगरवधू भी कहा जाता था, नगर के प्रत्येक व्यक्ति के प्रति समर्पित होती थीं जबकि देवदासियां मन्दिर के प्रति समर्पित होती थीं। सिन्धु घाटी से उत्खनन में प्राप्त नर्तकी की मूर्ति के बारे में कुछ विद्वानों का मत है कि यह राजनर्तकी अथवा गणिका की भी हो सकती है। सिन्धु सभ्यता में नृत्य एवं गायन का प्रचलन था अतः इस तथ्य को मानने में कोई दोष दिखाई नहीं देता है कि सैन्धव युग में सार्वजनिक मनोरंजन के लिए जन को समर्पित नर्तकिएं रही होंगी।
आज बस इतना ही।
अगले हफ़्ते फिर मिलेंगे।
आज की चर्चा बहुत बढ़िया रही!
जवाब देंहटाएंमनोज कुमार जी!
आपकी टिप्पणियाँ बहुत महत्वपूर्ण है!
कई आयाम समेटे अच्छी चर्चा |आभार मेरी कविता
जवाब देंहटाएंसम्मिलित करने के लिए |
आशा
भाई आप नि:संदेह बहुत मेहनत से चर्चा तैयार करते हैं. समग्र. साभार.
जवाब देंहटाएंआज की चर्चा कुछ हट कर और बहुत आकर्षक लग रही है ! मेरे संस्मरण को आपने इस लायक समझा और इसमें स्थान दिया इसके लिये आपकी आभारी हूँ ! सभी लिंक्स बहुत ही महत्वपूर्ण हैं और सभीको पढने की तीव्र इच्छा है ! धन्यवाद एवं शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंएक बार फिर महत्वपूर्ण लिक्न्स से सजी चर्चा प्रस्तुत करने के लिए शुक्रिया मनोज भाई साब
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच पर आप लोग वाकई काफी मेहनत कर रहे हैं
साहित्य सेवा के लिए आप सभी का सादर अभिवादन
मनोज जी, नमस्कार!
जवाब देंहटाएंआज की चर्चा वाकई कुछ अलग हट कर है और चयन तो लाजवाब... अभी तो केवल एक नजर शीर्षक पर ही डाला है, विधिवत थोड़ी देर बाद पढूंगा. मेरी रचना को स्थान दिया आपने इस मंच पर, इसके लिए बहुत -बहुत आभार !
मनोयोग से की गयी आज की चर्चा अद्भुत है ...लिंक इस प्रकार सजाये हैं जिनको पढ़ कर सारी ही पोस्ट पढने की उत्सुकता हो रही है ...आभार
जवाब देंहटाएंचुनिन्दा लिंक ले सजी बेहतरीन चर्चा. आबार सहित...
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा ...आभार सहित
जवाब देंहटाएंAchchhee carchaa
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा चर्चा ... मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदरता से सजाया है आपने आज का चर्चा मंच...बहुत सारे उपयोगी लिंक्सों का संकलन....
जवाब देंहटाएंआपका यही अन्दाज़ आपको सबसे अलग करता है……………बेहद खूबसूरत लिंक्स सजाये हैं…………सार्थक चर्चा…………आभार्।
जवाब देंहटाएंBahut achhe links ke saath bahut badiya saarthak charcha prastuti ke liye aabhar.
जवाब देंहटाएंBahut hi mehnat se aap log charchamanch ko sajate hain, iskeliye aapka bahut bahut dhanyavaad!
मनोज जी ने एक बार फिर मेरे लेख को यहाँ स्थान दिया उसके लिए धन्यवाद.एनी अछे-अछे लिक्स से परिचित करने का आभार.
जवाब देंहटाएंआज का चर्चा मंच काफी रोचक और आकर्षक बन पड़ा है। साधुवाद।
जवाब देंहटाएंsarthak charcha-achchhe links .aabhar
जवाब देंहटाएंमनोज जी,
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच के इस रविवासरीय चर्चा में मेरे लेख को शामिल करके आपने मेरे लेखन को जो स्नेह-मान दिया है उसके लिए मैं आपकी अत्यंत आभारी हूं।
आपने बहुत श्रम से बहुत जानकारी भरे लिंक्स प्रस्तुत किए है। साधुवाद है आपको।
चर्चा मंच नि:संदेह एक स्वस्थ-सुंदर वैचारिक धरातल वाला मंच है और इसे यह सुंदर देने का श्रेय आप सभी मंचकारों को है। आपका मंच विभिन्न परिस्थितियों में रहते हुए अभिव्यक्ति प्रकट करने वालों को वैचारिक स्तर पर जोड़ने का पुनीत कार्य कर रहा है। यह यात्रा यूं ही सतत जारी रहे...यही कामना है।
पुन: आभार।
बहुत सुन्दर चर्चा..सुन्दर लिंक्स मिले...मेरी रचना को चर्चा में शामिल करने के लिए धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंस्वास्थ्य-सबके लिए ब्लॉग का आभार स्वीकार किया जाए।
जवाब देंहटाएंप्रायः सबकी पसंद का कुछ न कुछ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्रभावशाली, सतरंगी और सार्थक चर्चा रही आज की ।.....बहुत सोच समझ कर -अनेक रंग लिए हुए है ...आपका आभार...
जवाब देंहटाएंमनोज जी ! बहुत सशक्त चर्चा... अच्छे लिंक्स... मनोज जी समयाभाव की वजह से या फिर ब्रोडबेंड की गडबडी से मै समय पर टिपण्णी भी नहीं कर पाती... और देर से पहुँचती हूँ ... लेकिन देर से भी पहुचने के बाद भी हमें लाभ ही मिलता है...
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