मित्रों बुधवासरीय चर्चा में आप सभी का स्वागत है। और इस सत्र में मैं आपको कुछ विशेष घटनायें बताने को बाध्य हो चुका हूं। पहली यह कि ब्लाग लेखन पर विशेषाधिकार हनन के तहत संसद में दवे जी की पेशी
हुयी और इसके बाद क्या हुआ वह तो अपेक्षित ही था जेल यात्रा शुभ हो.दो सांसद और जा रहे हैं यात्रा पर
अनिल पुसदकर जी ने लिखा कि साथी ब्लागर के साथ संयोग जुड़ा है। इतने में हमारे नगर के राजकुमार ग्वालानी जी आ गये अमीर सांसदों के लिए गरीबों की कीमत पर खाना मिलता है दवे जी सो आप भी वही खाना। खैर आगे बढ़ा तो संगीता स्वरूप जी ने कहा लक्ष्मण रेखा न आपको त्यागनी चाहिये थी, न महिलाओं को जो इस रेखा को त्यागने के बाद हादसों का शिकार होती हैं। इतने में रविकर जी कूद पड़े लक्ष्मण रेखा मे... हमने कहा भाई बाकि तो ठीक है गलती होने से आदमी रावण थोड़े हो जाता है तो बोले बिन पेंदे का लोटा ही गलती करता है। वरना सही रहो तो अखबारों में "मेरे परिचय के साथ एक गीत" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक") छपता है। वन्दना जी बोलीं रीते बर्तनों की आवाज़ें कौन सुनता है? इतने में स्वराज्य करूण जी ने कहा हेलीकॉप्टर वाले डाकू किसी कि न सुनते हैं, तो शिखा कौशिक जी ने कहा कि नेता जी ने खोजा नया अलंकार कि आज कल जेल ही कीर्ती दायक है। प्रमोद जोशी को राजनीति में ही है राजनीतिक संकट का हल याद आ गयी। पर यशवन्त माथुर जी का मत अलग था कि ये जीवन और वो जीवन-- अलग है भाई और उन्होने सतीश जायसवाल जी की रचना कहीं "मूंगा" की दुर्गति भी "कोसा" की तरह ना हो की याद भी दिलायी। पर सुमन जी अमर मामले मे खुश न थे उनका कहना था कि पुलिस है या डकैत जब वह दो गरीब ट्रक कर्मियों को मार सकती है तो नेता, वे क्यों नही। शिवम् मिश्रा जी का मत अलग था कि सेवा धर्म, राष्ट्र धर्म और अपने धर्म में हम फ़ंस चुके हैं और इस धर्म ने कहीं का ना छोड़ा ... । इतने में आशा जी ने हूँ परेशान में परेशानी जाहिर की तो एम सिंह जी ने चेतावनी ही दे दी कि सावधान रहिएगा माया जी आपने गैर भारतीय को एंटी दलित बुला कर जो अपनी इज्जत पर चार चांद लगाया है, वह विमान से सौ सैंडल मंगाने पर भी कम न होगा। सैंडल से याद आया आजकल महिला उत्थान का जमाना है, सो हम खोजते नारी ब्लाग मे पहुंचे, पर यह क्या कि विवाह जैसी पवित्र चीज पर ही सवाल उठाये जा रहे हैं और तो और उकसाया जा रहा है कि संबंध विच्छेद कर लें। मैने कमेंट किया पर लेखिका ने उसे हटा दिया, मै आम तौर पर कमेंट करता ही नही। पर मेरा सवाल यह था कि किस परिवार मे खटपट नही, किस विवाह मे अड़चन नही पर बिन साथी के जीवन अधूरा भी है और बच्चो के लिये यातना पूर्ण भी। यह भी सही ही है कि कुछ विवाह असफ़ल रहते हैं। पर इसमे दोष व्यक्तियों का होता है, न कि विवाह जैसी पवित्र संस्था का। सो लेखन जोड़ने वाला होना चाहिये न कि तोड़ने वाला। यह बात भी जरूरी है कि मूर्खता पूर्ण लेखन से व्यक्ति समाज को नुकसान ही पहुंचाता है, फ़ायदा नही ।
आखिर में शिक्षा दिवस पर अविनाश वाचस्पति जी की एकदम अद्भुत कला है मास्टरी , उसके बाद केवलकृष्ण जी का ये रंग देखा है कहीं और अन्ततः मुक्त कौन होता है? मे पातालि जी का सुरूची पूर्ण लेखन और जाते जाते संजीव वसुंधरा सम्मान से नवाजे गए गिरिजा शंकर ।
हुयी और इसके बाद क्या हुआ वह तो अपेक्षित ही था जेल यात्रा शुभ हो.दो सांसद और जा रहे हैं यात्रा पर
अनिल पुसदकर जी ने लिखा कि साथी ब्लागर के साथ संयोग जुड़ा है। इतने में हमारे नगर के राजकुमार ग्वालानी जी आ गये अमीर सांसदों के लिए गरीबों की कीमत पर खाना मिलता है दवे जी सो आप भी वही खाना। खैर आगे बढ़ा तो संगीता स्वरूप जी ने कहा लक्ष्मण रेखा न आपको त्यागनी चाहिये थी, न महिलाओं को जो इस रेखा को त्यागने के बाद हादसों का शिकार होती हैं। इतने में रविकर जी कूद पड़े लक्ष्मण रेखा मे... हमने कहा भाई बाकि तो ठीक है गलती होने से आदमी रावण थोड़े हो जाता है तो बोले बिन पेंदे का लोटा ही गलती करता है। वरना सही रहो तो अखबारों में "मेरे परिचय के साथ एक गीत" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक") छपता है। वन्दना जी बोलीं रीते बर्तनों की आवाज़ें कौन सुनता है? इतने में स्वराज्य करूण जी ने कहा हेलीकॉप्टर वाले डाकू किसी कि न सुनते हैं, तो शिखा कौशिक जी ने कहा कि नेता जी ने खोजा नया अलंकार कि आज कल जेल ही कीर्ती दायक है। प्रमोद जोशी को राजनीति में ही है राजनीतिक संकट का हल याद आ गयी। पर यशवन्त माथुर जी का मत अलग था कि ये जीवन और वो जीवन-- अलग है भाई और उन्होने सतीश जायसवाल जी की रचना कहीं "मूंगा" की दुर्गति भी "कोसा" की तरह ना हो की याद भी दिलायी। पर सुमन जी अमर मामले मे खुश न थे उनका कहना था कि पुलिस है या डकैत जब वह दो गरीब ट्रक कर्मियों को मार सकती है तो नेता, वे क्यों नही। शिवम् मिश्रा जी का मत अलग था कि सेवा धर्म, राष्ट्र धर्म और अपने धर्म में हम फ़ंस चुके हैं और इस धर्म ने कहीं का ना छोड़ा ... । इतने में आशा जी ने हूँ परेशान में परेशानी जाहिर की तो एम सिंह जी ने चेतावनी ही दे दी कि सावधान रहिएगा माया जी आपने गैर भारतीय को एंटी दलित बुला कर जो अपनी इज्जत पर चार चांद लगाया है, वह विमान से सौ सैंडल मंगाने पर भी कम न होगा। सैंडल से याद आया आजकल महिला उत्थान का जमाना है, सो हम खोजते नारी ब्लाग मे पहुंचे, पर यह क्या कि विवाह जैसी पवित्र चीज पर ही सवाल उठाये जा रहे हैं और तो और उकसाया जा रहा है कि संबंध विच्छेद कर लें। मैने कमेंट किया पर लेखिका ने उसे हटा दिया, मै आम तौर पर कमेंट करता ही नही। पर मेरा सवाल यह था कि किस परिवार मे खटपट नही, किस विवाह मे अड़चन नही पर बिन साथी के जीवन अधूरा भी है और बच्चो के लिये यातना पूर्ण भी। यह भी सही ही है कि कुछ विवाह असफ़ल रहते हैं। पर इसमे दोष व्यक्तियों का होता है, न कि विवाह जैसी पवित्र संस्था का। सो लेखन जोड़ने वाला होना चाहिये न कि तोड़ने वाला। यह बात भी जरूरी है कि मूर्खता पूर्ण लेखन से व्यक्ति समाज को नुकसान ही पहुंचाता है, फ़ायदा नही ।
आखिर में शिक्षा दिवस पर अविनाश वाचस्पति जी की एकदम अद्भुत कला है मास्टरी , उसके बाद केवलकृष्ण जी का ये रंग देखा है कहीं और अन्ततः मुक्त कौन होता है? मे पातालि जी का सुरूची पूर्ण लेखन और जाते जाते संजीव वसुंधरा सम्मान से नवाजे गए गिरिजा शंकर ।
वाह इत्ते सारे लिँक ?
जवाब देंहटाएंबहुत मजा आया पढ़ कर चर्चा |
जवाब देंहटाएंलिंक्स से बनी चर्चा एक अनूठे अंदाज |बधाई
मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
आशा
itbne badhia links aur meri rachna ko yahan rakhne ke liye abhaar aapka
जवाब देंहटाएंसुंदर एवं सार्थक चर्चा।
जवाब देंहटाएं------
ब्लॉग समीक्षा की 32वीं कड़ी..
पैसे बरसाने वाला भूत...
अनूठी चर्चा ...
जवाब देंहटाएंआभार !
सुन्दर चर्चा ||
जवाब देंहटाएंमेरे दोहे भी पढ़ें ||
अमर दोहे----
Sanjay Dutt, Manyata and Amar Singh
व्यर्थ सिंह मरने गया, झूठ अमर वरदान,
दस जनपथ कैलाश से, सिब-बल अंतरध्यान |
इतना रुपया किसने दिया ?
फुदक-फुदक के खुब किया, मारे कई सियार,
सोचा था खुश होयगा, जन - जंगल सरदार |
जिन्हें लाभ वे कहाँ ??
साम्यवाद के स्वप्न को, दिया बीच से चीर,
बिगड़ी घडी बनाय दी, पर बिगड़ी तदबीर |
परमाणु समझौता
अर्गल गर गल जाय तो, खुलते बन्द कपाट,
जब मालिक विपरीत हो, भले काम पर डांट |
हम तो डूबे, तम्हें भी ---
दुनिया बड़ी कठोर है , एक मुलायम आप,
परहित के बदले मिला, दुर्वासा सा शाप |
मुलायम सा कोई नहीं
खट मुर्गा मरता रहे, अंडा खा सरदार,
पांच साल कर भांगड़ा, जय-जय जय सरकार |
अंदाज अपना अपना
जवाब देंहटाएंbadhiya charcha.
जवाब देंहटाएंaabhar
बड़े अच्छे लिंक दिए आज आपने ! आपका आभार !
जवाब देंहटाएंइस समसामयिक चर्चा के लिए आभार!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चर्चा ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक्स से सजी सार्थक चर्चा।
जवाब देंहटाएंघटनायें तेजी से घट रही हैं, सब सम्हाल ली हैं चर्चा में।
जवाब देंहटाएंइस बुधवार की चर्चा बहुत रोचक रही.सभी प्रविष्ठियों को रोचक-रूप से शामिल किया गया है.
जवाब देंहटाएंचुन -चुन कर लिंक्स लिए हैं आपने .....बेहतरीन और सार्थक चर्चा
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लाग पर चर्चा के लिए आभार।
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