नई गरीबी रेख से, कर गरीब-उत्थान |
अ-सरदार कहने लगे, भारत देश महान ||
अ-सरदार कहने लगे, भारत देश महान ||
बत्तीसी दिखलाय के, पच्चीस कमवाय के
आयोग आगे आय के, खूब हलफाता है |
दवा दारु नेचर से, कपडे फटीचर से
मुफ्तखोर टीचर से, बच्चा पढवाता है |
सेहत शिक्षा मिलै तो , कपडा लत्ता सिलै तो
छत तनिक हिलै तो, काहे घबराता है ?
गरीबी हटाओ बोल, इंदिरा भी गईं डोल,
सरकारी झाल-झोल, गरीब घटाता है ||
आयोग आगे आय के, खूब हलफाता है |
दवा दारु नेचर से, कपडे फटीचर से
मुफ्तखोर टीचर से, बच्चा पढवाता है |
सेहत शिक्षा मिलै तो , कपडा लत्ता सिलै तो
छत तनिक हिलै तो, काहे घबराता है ?
गरीबी हटाओ बोल, इंदिरा भी गईं डोल,
सरकारी झाल-झोल, गरीब घटाता है ||
हुई गरीबी भुखमरी, बत्तिस में बदनाम |
बने अमीरी आज फ़क्त, एक रुपैया दाम |मैं तेरी सूरजमुखी...ओ मेरे सूरजमैं तेरी सूरजमुखी (सूर्यमुखी) बाट जोहते जोहते मुर्झाने लगी, कई दिनों से तू आया नहीं जाने कौन सी राह पकड़ ली तूने कौन ले गया तुझे? |
(4)
पगड़ी ही चमकदार कर के ................
अब वो दिन दूर नहीं जब आम जनता इन सबको घर से निकाल निकाल कर ...........३२ रूपये प्रतिदिन कमाने वाला व्यक्ति गरीब नहीं है...ये हरामखोर गरीबी मिटने की जगह गरीबो को ही मिटाने पर तुले है..तो आज से भारतवासियों के लिए ३२ रूपये रोज की अमीरी ...........
भारत देश के दो सरदारों का पागलपन पुरे देश ने आज देखा सुना ये दोनों सरदार ३२ रूपों मैं अपनी पगड़ी ही चमकदार कर के
साफ़ करा ले यही बहुत है अब वो दिन दूर नहीं जब आम जनता इन सबको घर से निकाल निकाल कर ...........
जय बाबा बनारस.....
(5)
!! लाल और बवाल --- जुगलबन्दी !!हुस्ने-क़ुद्रत
मैं हुस्ने-क़ुद्रत बयाँ करूँ क्या ?
असर में होशो-हवास खोया !
नज़ारे जन्नत के इस ज़मीं पर,
सभी हैं मेरे ही पास गोया !!
--- बवाल |
(8)हमने तो बस गरल पिया है !
तुमने जो संताप दिए हैं,
हमने तो चुपचाप सहे हैं,
जब हमने पत्थर खाए हैं,
तुमने केवल रास किया है,
हमने तो बस गरल पिया है !१!
|
(विशेष)
होम्योपैथी बेजोड़ है
'डॉ. अनवर जमाल
एक प्रसिध्द अमेरिकी एलोपैथ डा. सी हेरिंग ने होम्योपैथी को बेकार सिध्द करने के लिए एक शोध प्रबन्ध लिखने की जिम्मेदारी ली। वे गम्भीरता से होम्योपैथी का अध्ययन करने लगे। एक दूषित शव के परीक्षण के दौरान उनकी एक ऊंगली सड़ चुकी थी। होम्योपैथिक उपचार से उनकी अंगुली कटने से बच गई। इस घटना के बाद उन्होंने होम्योपैथी के खिलाफ अपना शोध प्रबन्ध फेंक दिया।
(10)मीनाक्षी'वाणी और व्यवहार'"क्लीनलीनेस इज़ नैक्स्ट टु गॉडलीनेस - क्लीनलीनेस इज़ नैक्स्ट टु गॉडलीनेस" पाठ सुन्दर है... हिन्दी में इस का अर्थ यह हुआ कि "शुचिता देवत्व की छोटी बहन है" मेरा ध्यान अपनी किताब से उचट कर मुन्ना की ओर लग जाता है. पाठ याद हो गया. मुन्ना के मित्र बाहर से बुला रहे हैं. मुन्ना पैर में चप्पल डाल कर सपाटे से बाहर निकल जाते हैं. उनके खेलने का समय हो गया है. अब कमरे में बिटिया आती हैं. भाई पर बहुत लाड़ है इनका. मुन्ना सात समुन्दर पार की भाषा पढ़ रहे हैं इसलिए भाई का आदर भी करती हैं. बिटिया अंग्रेज़ी नहीं पढ़ती. मेज़ के पास पहुँच कर बिटिया निशान के लिए काग़ज़ लगाकर मुन्ना की किताब बन्द करती हैं; किताबों-कॉपियों के बेतरतीब ढेर को सँवारकर करीने से चुनती हैं; खुले पड़े पेन की टोपी बंद करती हैं; गीला कपड़ा लाकर स्याही के दाग़ धब्बे पोंछती हैं और कुर्सी को कायदे से रखकर चुपचाप चली जाती हैं. |
(12)अंग-वस्त्रकुछ भेद था -, भद्रता - अभद्रता में , अश्लीलता व शालीनता में , मर्यादा एवं वर्जना , देवियों व गणीकाओं में , आज विकास की राह पर स्वछंदता ,स्वतंत्रता ,अभिव्यक्ति , पर्याय बन गए हैं ---- नग्नता ,अश्लीलता ,अतिक्रमण सदाचार का / |
(13)
हर व्यक्ति जरूरी होता है - अजित गुप्तानिर्मम पतझड़ का आक्रमण! हरे-भरे पत्तों का पीत-पात में परिवर्तन! कभी तने से जुड़े हुए थे और अब झड़ के अलग हो गए हैं! वातावरण में वीरानी सी छायी है। सड़कों पर पीत-पत्र फैले हैं। बेतरतीब इधर-उधर उड़े जा रहे हैं। वृक्ष मानों शर्म हया छोड़कर नग्न हो गए हैं। भ्रम होने लगता है कि कहीं जीवन तो विदा नहीं हो गया? ठूंठ बने वृक्ष पर कौवा आकर कॉव-कॉव करने लगता है। सूखे श्रीहीन वृक्ष पर कैसा कर्कश स्वर है? लेकिन यही नियति है। निर्मम पतझड़ ने सबकुछ तो उजाड़ दिया है। क्यों किया उसने ऐसा? यह पतझड़ ही खराब है, चारों तरफ से आवाजें आने लगी हैं। हवाएं भी चीत्कार उठी हैं, सांय-सांय बस चलती रहती हैं। माहौल गर्मा गया, हरियाली विलोप हो गयी। आँखों का सुकून कहीं बिसरा गया। प्रकृति का ऐसा मित्र? नहीं हमें जरूरत नहीं ऐसे मित्र की। पशु-पक्षी सभी ने मुनादी घुमा दी, नहीं चाहिए हमें पतझड़।(विशेष)मेरी टिप्पणियां और लिंक ||पत्नी पीड़ित की व्यथादर्द से जब छटपटा कर,आह भरती है जुबाँ |लगता है रविकर वाह सुनतीहैं हमारी मेहरबाँ ||चर्चित बाबा के चक्कर में..
चर्चित बाबा |
चंचल बाला |शैतानों की-- लगती खाला || प्रेम नजरजो उसने डाला -- खतरे में है कंठी माला || परचित बाबा खोलो ताला | नया ज़माना खुद को ढाला |
आन्नद ही आन्नद
:- योजना आयोग ने करोडो भारतीयों को तत्काल अमीर बना दिया. जंगल में चलकर रहो, सूखी टहनी बीन | चावल दो मुट्ठी भरो, कर लो झट नमकीन | कर लो झट नमकीन, माड़ से भरो कटोरा | माड़ - भात परसाय, खिलाऊ छोरी-छोरा | डब्लू एच ओ जाय, बता दो सब कुछ मंगल | चार साल के बाद, यही तो होइहैं नक्सल || |
(14)संकट मोचन की मंगला आरती।मैं बनारस में पैदा हुआ, असंख्य बार संकट मोचन मंदिर गया लेकिन कभी मंगला आरती नहीं देखी। मंगला आरती सुबह साढ़े चार बजे होती है। समय इतना कठिन है कि सुबह उठकर स्नान ध्यान के पश्चात सारनाथ से संकट मोचन ( लगभग 15 किमी दूर ) जाना कभी संभव न लगा। विगत दो माह से बच्चों की पढ़ाई के चक्कर में लंका में ही किराये का कमरा लेकर रह रहा हूँ। कल जब श्री कैलाश तिवारी ने हमेशा की तरह कहा कि तू कब्बो मंगला आरती में संकट मोचन नाहीं गइला अउर हमें देखा तs हम तोहरे से भी 10 किमी दूर रहिला लेकिन आज 25 साल से ऐसन एक्को मंगल ना भयल कि हमार आरती छूट गयल हो !देवेन्द्र पाण्डेय |
(विशेष)
विषधर
शहरी हवा
कुछ इस तरह चली है
कि इन्सां सारे
सांप हो गए हैं ,
साँपों की भी होती हैं
अलग अलग किस्में
पर इंसान तो सब
एक किस्म के हो गए हैं .
साँप देख लोंग
संभल तो जाते हैं
पर इंसानी साँप
कभी दिखता भी नहीं है ..
ये इश्क़ जगाता क्यों है ?पूछा है तो सुनो,अब सो जाओ लेकिन थकना मस्ट है पहले थकने के लिए चाहो तो जागो चाहो तो भागो |
(विशेष)
" क्षमा न करता कभी ज़माना" ( डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
जीवन एक मुसाफिरखाना
जो आया है, उसको जाना
झूठी काया, झूठी छाया
माया में मत मन भरमाना
कबाब और अंडा खिलाने की तो जेल मैनुअल मे प्रावधान है कि विदेशी कैदियो को विशेष सुविधाएं दी जाती है यह प्रावधान अंग्रेजो के काल मे यूरोपीय कैदियों को ध्यान मे रखकर बनाया गया था । ये क्या पूरा संविधान ही उस समय के कानूनो से भरा पड़ा है ।
|
(17)
उठती-सी नज़र
फ़क्त,
उठती-सी नज़र, कुछ कह-सा गयी, उसकी आखों की चमक, कुछ कह-सा गयी, दिया मेरे, दिल को जला, रोशनी, अब हो सी गयी, |
(18)
posted by Surendra shukla" Bhramar"5 at BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN -
आइये थोडा हट के कुछ देखें २६ और ३२ रुपये में दिन भर खाना खा लें बच्चों को पढ़ा लें संसार चला लें प्यार कर लें हनीमून भी मना लें ………कैसा है ये प्यार ………………. क्या आयोग मंत्री तंत्री नेता के दिल और दिमाग नहीं .(19)मन और झील कभी नहीं भरती...
पता नहीं क्यों मुझे
झील और मानव मन बराबर लगते हैं.
जैसे खाली बैठे-बैठे मन अशांत हो उठता हैं,
और
गर्मी बितते-बितते झील सूख ज़ाती है बिगत चर्चा मंच की दो विशिष्ट टिप्पणियां
|
बहुत ही श्रम से सजाई गयी पोस्ट।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया, इन बेहतरीन लिंक्स के लिए।
------
मायावी मामा?
रूमानी जज्बों का सागर है प्रतिभा की दुनिया।
अच्छी और सुन्दर ढंग से सजी लिंक्स |बधाई |
जवाब देंहटाएंआशा
बढ़िया चर्चा. धन्यवाद्
जवाब देंहटाएंरविकर जी की कलम से, निखरा चर्चा मंच।
जवाब देंहटाएंचर्चा के अन्दाज़ में, कोई नहीं प्रपंच।।
रविकर जी की कृपा से ,हम भी तशरीफ़ ले आए हैं,
जवाब देंहटाएंचर्चा-मंच को आप सार्थक पोस्टों से सजाये हैं !!
बहुत आभार !
बड़े अच्छे-अच्छे लिंक दिख रहे हैं। शाम को फुर्सत में पढ़ुंगा।
जवाब देंहटाएंरविकर चर्चा मंच की प्रस्तुति अति अनूप
जवाब देंहटाएंज्यों बरखा के संग में लुक-छुप खेले धूप.
बढ़िया चर्चा के लिए] शुक्रिया.
बहुत ही श्रम से सजाई गयी पोस्ट।
बहुत श्रमसाध्य कार्य आप कर रहे हैं, आभार। यहाँ आकर ही कई छूट गए लिंक मिले।
जवाब देंहटाएंबड़े अच्छे-अच्छे लिंक दिख रहे हैं। शाम को फुर्सत में पढ़ुंगा।
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छे लिंक्स दिये हैं आपने ... इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिये आभार ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक्स से सजा चर्चा मंच्।
जवाब देंहटाएंगुरुदेव नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआप भी गजब गजब लिंक तलाश कर लाते हो।
बहुतै अच्छा लिख गए हे रविकर कविराय
जवाब देंहटाएंअब कुछ ऐसा सूत्र बताओ भाग गरीबी जाय....
बड़ी ही सुन्दर चर्चा।
जवाब देंहटाएंबहुत मेहनत से सजी गई बहुत बढ़िया चर्चा |
जवाब देंहटाएंबधाई रविकर जी |
Vishaal Charchchit said...
जवाब देंहटाएं@ बहुतै अच्छा लिख गए हे रविकर कविराय
अब कुछ ऐसा सूत्र बताओ भाग गरीबी जाय....
रेखा-फीगर शून्य हो,
बने करीना कैट |
गौण गरीबी गुमे गम,
बोलो हाउज-दैट ||
आपसभी का सादर अभिनन्दन ||
आभार ।|
बढ़िया चर्चा........आभार
जवाब देंहटाएंRavikar ji,
जवाब देंहटाएंbahut achchche achchche links aur prastutikaran bhi laajawaab. mujhe yahan sthaan dene keliye aabhar.
पर ये अमीरी में लिपी पुती सारी की सारी अंकल
जवाब देंहटाएंयहाँ प्याज का नहीं ठिकाना तुम कहते हो पकोड़े तल......???
@रेखा-फीगर शून्य हो,
जवाब देंहटाएंबने करीना कैट |
गौण गरीबी गुमे गम,
बोलो हाउज-दैट ||
पर ये अमीरी में लिपी पुती सारी की सारी अंकल
यहाँ प्याज का नहीं ठिकाना तुम कहते हो पकोड़े तल......
सुन्दर चर्चा ...निराले अंदाज में
जवाब देंहटाएंआदरणीय रविकर जी बहुत ही प्यारी रचनाएं और आप का ये मेहनत भरा काम देख मन बाग़ बाग़ हो गया कुछ ही पढ़ पाया अभी सभी कवी मित्रों को और आप को ढेर सारी बधाई ...आप यों ही पुष्प बिखेरते चलें और ये बगिया महकती रहे ...मेरी भी एक रचना अश्क नैन ले मोती रही बचाती को आप ने संजोया ख़ुशी हुयी
जवाब देंहटाएंआभार
भ्रमर ५
bahut achhe links
जवाब देंहटाएंpadhkar achha laga:)
best charcha
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा.
जवाब देंहटाएंअलग हट कर चर्चा। बढिया लिंक्स।
जवाब देंहटाएंVishaal Charchchit said...
जवाब देंहटाएं@ बहुतै अच्छा लिख गए हे रविकर कविराय
अब कुछ ऐसा सूत्र बताओ भाग गरीबी जाय....
RAVIKAR SAID--
रेखा-फीगर शून्य हो,
बने करीना कैट |
गौण गरीबी गुमे गम,
बोलो हाउज-दैट ||
Vishaal Charchchit said...
पर ये अमीरी में लिपी पुती सारी की सारी अंकल
यहाँ प्याज का नहीं ठिकाना, कहते हो पकोड़े तल|
Ravikar said---
बड़ी हरेरी है चढ़ी, बत्तिस रूपया पाय |
फोटो देखो प्याज का, सुन बचुआ चितलाय ||
बड़ी ही सुन्दर चर्चा।
जवाब देंहटाएंआप सत्य कहते हैं।
जवाब देंहटाएंहम सत्संग के दौरान जानेंगे कि गरीबी और अमीरी जैसे हम अग्यान और ज्ञान सत्य और असत्य हमारे मनुष्य जीवन में।