मारा बेटा नेक, हुआ आतंकी हमला ,
कातिल मरणासन्न, भूलते अब्बू बदला |
जज्बा तुझे सलाम, जतन से शत्रु संभालत,
मानो करते माफ़, खुदा की बड़ी अदालत |
(जनता आतंकी हमलों की आदी हो चुकी है)
-सुबोधकांत सहाय संसद की अवमानना, मचती खुब चिल्ल-पों,
जनता की अवमानना, करते रहते क्यों ?
करते रहते क्यो, हमेशा मंत्रि-कबीना |
जीने का अधिकार, आम-जनता से छीना ?
सत्ता-मद में चूर, बढ़ी बेशरमी बेहद,
आतंकी फिर कहीं, उड़ा न जाएँ संसद |
--रविकर
(माफ़ करिएगा, चर्चा-मंच पर ही रच गई है, हमेशा की तरह)
(बिगत चर्चा में अपने-पुत्र का ब्लॉग शामिल किया था --माफ़ करें)
(माफ़ करिएगा, चर्चा-मंच पर ही रच गई है, हमेशा की तरह)
(बिगत चर्चा में अपने-पुत्र का ब्लॉग शामिल किया था --माफ़ करें)
आतंकवाद रोकने के लियें देश में अलग से आतंकवाद निरोधक मंत्रालय स्थापित करना आवश्यक
पत्रकार-अख्तर खान "अकेला"
दोस्तों देश में सभी सुरक्षा प्रयासों के बाद भी अगर आये दिन अचानक बम विस्फोट से निर्दोषों की म़ोत होने लगे और यह सिलसिला इतने शक्तिशाली परमानुधारक देश में रोज़ की घटना बन जाए तो फिर तो हमे नींद से जागना होगा देश के आतंकवाद कारण जानकार उसकी तह तक पहुंच कर या तो आतंकवाद पनपने के कारणों को बातचीत से खत्म करना होगा और जो लोग बातचीत की भाषा नहीं जानते हैं उन्हें हमारे देश में हो तो यहाँ और दुसरे देश में हों तो वहां खोज खोज कर मारना होगा ........दोस्तों हमारा देश और हमारे देश के लोग रोज़ रोज़ के इस युद्ध से तंग आ गये हैं पर्दे के पीछे रहकर निर्दोषों की हत्या एक जघन्य काण्ड है और यह माफ़ी के लायक नहीं
श्री गणेश वंदना हरिगीतिका छन्द में
=====================================================
वन्दहुँ विनायक, विधि विधायक, ऋद्धि-सिद्धि प्रदायकं।
गजकर्ण, लम्बोदर, गजानन, वक्रतुंड, सुनायकं।।
श्री एकदंत, विकट, उमासुत, भालचन्द्र भजामिहं।
विघ्नेश, सुख-लाभेश, गणपति, श्री गणेश नमामिहं ।।
(1)
- राज शिवम
- मेरा उद्देश्य ज्योतिष शास्त्र और परम गोपनीय मंत्र साधना के माध्यम से जनमानस का कल्याण करना है। हर पल "पीताम्बरा माई" से प्रार्थना है कि सच्चे और अच्छे लोगों का समस्या समाधान मेरी गुरु दया से होती रहे। मै जन्मपत्रिका और हस्तरेखा के माध्यम से ग्रह के शुभ अशुभ प्रभाव से जातक के कष्ट निवारण के लिए युक्ति ढ़ुँढ़ता हूँ।"दशमहाविद्या" एवं दिव्य मंत्र साधना से शीघ्र अनुभूति कराता हूँ।
(२)एक अजन्मी बच्ची की बातें : words of a baby girl .....माँ ! माँ ! सुन रही हो? सुनो ना माँ! अरे इधर उधर मत देखो माँ ! -- कनु-प्रिया''भारतीय नारी'' ब्लॉग पर सितम्बर माह में चर्चा के मुख्य विषय रहेंगें - *कामकाजी महिलाओं की समस्याएं . *नारी श्रद्धेय या प्रदर्शनीय *कन्या-भ्रूण हत्या *पहनावे पर नारी को पुनर्विचार की आवश्यकता ? *परम्परा-पालन का उतरदायित्व नारी पर ही क्यों ? योगदानकर्ता अपना अमूल्य सहयोग प्रदान करेंगे ऐसी आशा है || -- शिखा कौशिक मैं बेटी का हक मांगूगी.[क्यूट बेबी से साभार ] क्यूँ किया पता हे ! मात-पिता? कि कोख में मैं एक कन्या हूँ. उस पर ये गर्भ पात निर्णय सुनकर मैं कितनी चिंतित हूँ? |
| दो टिप्पणी - विगत शुक्रवारीय चर्चा अर्थात चर्चा-मंच 625 का शीर्षक था -- | दुर्दशा पर देश की मिटती नहीं कौन दोषी है, छिपा बैठा कहीं |
कुँवर कुसुमेश
राजनीति में घुस गए,कुछ अपराधी लोग.
करें जुर्म के वास्ते , कुर्सी का उपयोग.
जाने कैसा आ गया, भारत में भूचाल.
नेता माला माल हैं,जनता है कंगाल.
(३)
आतंकियों का दोष कहाँ, नेताओं की शय है दोस्त.
वन्दे मातरम दोस्तों,जब हत्यारों को हम, दामाद की मानिंद पालेंगे,
नेतागण वोटों की खातिर, जब तक इन्हें बचालेंगे.
तब तक ऐसे हमलों में, नित लोग मरेंगे तय है दोस्त,
आतंकियों का दोष कहाँ, नेताओं की शय है दोस्त.
(४)बेचैनी सीने में हर पल....सौ उम्र कटी हों जैसेतुम बिन बीते दिन-रातों में कभी मरी, कभी दफ्न कभी राख़ हुई मैं उन बेबस, खामोश हालातों में |
(५)
नायक किस मिट्टी से बनते हैं - ३
posted by स्मार्ट इंडियन at * An Indian in Pittsburgh - पिट्सबर्ग में एक भारतीय *-सवा लाख से एक लड़ाने की बात हो या वानरों से राक्षस तुड़ाने की, नायकों की कार्यसिद्धि में अस्त्र-शस्त्र से अधिक महत्वपूर्ण भूमिका उनके मनोबल की होती है। संकल्प और दृढ इच्छाशक्ति के बिना नायक बन पाना असम्भव सा ही है। गृहमंत्री के रूप में सरदार पटेल आज तक याद किये जाते हैं क्योंकि भारत के एकीकरण में उनकी इच्छाशक्ति का बडा योगदान रहा। अशिक्षा, ग़रीबी, आतंकवाद, भेद-भाव, सूखा, बाढ, कश्मीर आदि के मुद्दे आज तक हमें सता रहे हैं क्योंकि नेतृत्व में इच्छाशक्ति न होने पर सब संसाधन बेकार हैं।
(७)राधा गोकुल में नीर बहाए: मोहे गोकुल ऐसो भायो सखी
|
(विशेष-१)
स्व...
मेरी प्रवृतिभागने की नही
पर कृष्ण को देवत्व मिला
सिद्धार्थ को बुद्धत्व मिला
कभी तो मैं भी पा लूँगा
अपना
"स्व"
जात - पांत न देखता, न ही रिश्तेदारी, लिंक नए नित खोजता, लगी यही बीमारी | लगी यही बीमारी, चर्चा - मंच सजाता, सात-आठ टिप्पणी, आज भी नहिहै पाता | पर अच्छे कुछ ब्लॉग, तरसते एक नजर को, चलिए इन पर रोज, देखिये स्वयं असर को || निवेदन: लिंकपर टिप्पणी करें || ----रविकर | भ्रूण-हत्या के महापाप में -चर्चा-मंच : 632- बम धमाकों से निकले खून के छींटों ने बदल दिया शीर्षक || भ्रूण-हत्या के महापाप में- बन्द करो माँ !! भागे-दारी, मारा - मारी | न रो नारी ! अपनी भी है--जिम्मेदारी || |
काव्य प्रबंध खण्ड
डा. शंकर लाल 'सुधाकर'तत्कालीन वित्त मंत्री श्री मनमोहन सिंह जी के हाथों 'सेवा श्री' सम्मान प्राप्त डा. शंकर लाल 'सुधाकर' द्वारा विरचित प्रबंध खण्ड काव्य 'काश्मीर के प्रति से उद्धृत कुछ पंक्तियाँ:-
मुमताज-ताज गोविन्दसिंह, जसवंत सिंह, रणजीत वीर |
हरिसिंह बहादुर शाह चले, खेलन जननी-भू हो अधीर ||
हरी-ऋषि-ग्रह-विधु* ईसा सन का, तीन दिसंबर था पुनीत |
पाकेश भेड़िये पिंगल ने, भारत पर ठानी तब अनीत ||[१९८१]
हरिसिंह बहादुर शाह चले, खेलन जननी-भू हो अधीर ||
हरी-ऋषि-ग्रह-विधु* ईसा सन का, तीन दिसंबर था पुनीत |
पाकेश भेड़िये पिंगल ने, भारत पर ठानी तब अनीत ||[१९८१]
आगरा, छम्ब अमृतसर में, बरसाये दुश्मन ने गोले |
जम्बू जसवंत बहादुर की, नगरी में छाये थे गोले ||
छाया पति सत्वर भाग गये, स्तब्ध हुआ सैनिक प्रदेश |
मारो उस दुष्ट भेड़िये को, बौखुला भारत अशेष ||
मूंछों पर पहुंचे वीर हस्त, संगीन शतघ्नी के चालक |
भूंखे बाघों से गरज पड़े, भू जल वायु अनि पालक||
जम्बू जसवंत बहादुर की, नगरी में छाये थे गोले ||
छाया पति सत्वर भाग गये, स्तब्ध हुआ सैनिक प्रदेश |
मारो उस दुष्ट भेड़िये को, बौखुला भारत अशेष ||
मूंछों पर पहुंचे वीर हस्त, संगीन शतघ्नी के चालक |
भूंखे बाघों से गरज पड़े, भू जल वायु अनि पालक||
कवि परिचय और इस अद्भुत ऐतिहासिक पबंध खण्ड काव्य पुस्तक को
|
भारत माँ रो रही अपने ही लालों की कारस्तानियाँ देखकर जिसके कपूत खुश हो रहे अपने ही देश को लूटकर जहाँ देखो घोटाले हो रहे ,भ्रस्टाचारी सीना तान कर जी रहे देश का पैसा विदेशी बैंकों में काले धन के रूप में जमा कर रहे देश के पालनहार ह़ी देश की कर रहे बर्बादी भारत माँ शर्मशार हो रही देखकर इनकी कारगुजारी निर्दोष लोगों की जान से खेल जातें हैं नेता घायलों को देखने अस्पताल जातें हैं मृतकों के परिवारवालों को कुछ पैसे दिखाते हैं |
(११)"मातृभाषा हमारी बिरानी नहीं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")ये हमारी तरह है सरल औ' सुगम, सारे संसार में इसका सानी नहीं। |
नहीं रही है यह मिशन
नहीं रही है गुरु में गुरुता
लेकिन
शिष्यों में भी
कहाँ रही है
पहले-सी शिष्यता
अंगूठा कटवाना तो दूर
अंगूठा दिखाते हैं
(१२)एक बार एक लड़का था !एक बार एक लड़का था ! जो एक लड़की को अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करता था ! उसके परिवार वालो ने भी उसका कभी साथ नहीं दिया ,फिर भी वो उस लड़की को प्यार करता रहा लेकिन लड़की कुछ देख नहीं सकती थी मतलब अंधी थी ! लड़की हमेशा लड़के से कहती रहती थी की तुम मुझे इतना प्यार क्यूँ करते हो ! में तुम्हारे किसी काम नहीं आ सकती में तुम्हे वो प्यार नहीं दे सकती जो कोई और देगा लेकिन वो लड़का उसे हमेशा दिलाषा देता रहता की तुम ठीक हो जोगी तुम्ही मेरा पहला प्यार हो और रहोगी फिर कुछ साल ये सिलसिला चलता रहता है लड़का अपने पैसे से लड़की का ऑपरेशन करवाता है लड़की ऑपरेशन के बाद अब सब कुछ देख सब सकती थी---आगे की कथा जान्ने के लिए जाइए--- |
(१३)कभी मेरा निशाना थाहवाएं गीत जो गाएं, कभी मेरा फ़साना था।फ़जाएं मस्त हो जाएं, मेरे मय का बहाना था।। |
(१४)सिसकते शब्द तन्हाई के आलम में रहते रहते शब्द भी मेरे बिखर के रह गये। सोच की धरा पर जो भावों के पुल बने मेरे शब्द पानी पर नदी के उतराते जैसे रह गये। |
(१५)क्या प्रेम और आकर्षण में भिन्नता नहीं कर पाती हैं नारियां ?फ़र्क़ है तो बस शोध का फ़र्क़ है।हम जिस बात को मानना चाहते हैं बस यूं ही मान लेते हैं किसी के बताने भर से। |
(१६)गोस्वामी जी का युगबोध ...कहते हैं एक बार अकबर ने सूरदास जी से पूछा कि वे और गोस्वामी जी दोनों ही तो एक ही विष्णु के भिन्न अवतारों को मानते हुए कविता रचते हैं, तो अपने मत से बताएं कि दोनों में से किसकी कविता अधिक सुन्दर और श्रेष्ठ है. सूरदास जी ने तपाके उत्तर दिया कि कविता की पूछें तो कविता तो मेरी ही श्रेष्ठ है..अकबर सूरदास जी से इस उत्तर अपेक्षा नहीं रखते थे,मन तिक्त हो गया उनका...मन ही मन सोचने लगे , कहने को तो ये इतने पहुंचे हुए संत हैं,पर आत्ममुग्धता के रोग ने इन्हें भी नहीं बख्शा..माना कि अपनी कृति या संतान सभी को संसार में सर्वाधिक प्रिय और उत्तम लगते हैं,पर संत की बड़ाई तो इसी में है कि वह सदा स्वयं को लघु और दूसरे को गुरु माने. रंजना |
(१७)मैं शक्ति हूँ !मुझमें अपार ऊर्जा समाहित है असीमित संसाधन हैं मेरे पास हर अस्त्र से सुसज्जित हूँ मैं हर वार का प्रत्युत्तर हूँ ! मेरी शक्तियाँ अखंड और प्रचंड हैं मैं निरंतर और सनातन हूँ ! |
(विशेष-३)
- हरीश प्रकाश गुप्त
आँच के नियमित अंकों में प्रायः काव्य और गद्य रचनाओं पर चर्चा होती रही है। कुछ प्रंसग शास्त्रीय चर्चा के भी आए हैं। कभी पाठकों की जिज्ञासा के समाधान के लिए तो कभी आलोचना कर्म और पाठक के बीच की प्रच्छन्न रिक्ति की पूर्ति के लिए। बलात अधिरोपण के लिए नहीं बल्कि विषय को सहज, सरल और ग्राह्य बनाने के संकल्प के साथ। आज का अंक भी उसी दिशा में एक चरण मात्र है।(१८)मैं क्या लिखूंगामुझे हमनफस अब शायर न कहिये आँखों के प्यालों को मैं क्या लिखूंगा घनी शाम जुल्फें घटा या के बादाल लटों और बालों को मैं क्या लिखूंगा क्यूँ करिए जमाने में रुसवा हमे अब लबों और गालों को मैं क्या लिखूंगा बहुत खुश है मिलकर 'चक्रेश' लेकिन कदमों के छालों को मैं क्या लिखूंगा |
(१९)तुम मुझे पंत कहो, मैं तुम्हें निराला.....मैं जानता हूं कि ये लेख मेरे लिए आत्महत्या करने से कम नहीं है, क्योंकि इससे लोग नाराज हो सकते हैं, उन्हें लग सकता है कि ये लेख उनकी आलोचना करने के लिए लिखा गया है। लेकिन सच बताऊं इसमें किसी की आलोचना नहीं है। पांच छह महीनों में व्लाग पर जो कुछ देख रहा हूं, उसके बारे में ये मेरी व्यक्तिगत राय है। मिंत्रों मैं जो सोचता हूं, उसे अंजाम तक पहुंचाए बगैर चैन की नींद सो ही नहीं पाता हूं। इसलिए आज बात करुंगा ब्लागर्स की, जिसे मैं एक परिवार मानता हूं, इसलिए आप कह सकते हैं बात होगी पूरे ब्लाग परिवार की। mahendra srivastavaमैं पत्रकार हूं, लंबे समय तक प्रिंट में काम करने के बाद फिलहाल न्यूज चैनल से जुड़ा हूं। मीडिया से होने के कारण मुझे सत्ता के नुमाइंदों को काफी करीब से देखने का मौका मिला। कहते है ना हमाम में सब.....। इसी पीड़ा को शब्दों में ढालने की कोशिश करता हूं। किस्मत वालों को मिलती है "तिहाड़".जिस प्रकार संविधान निर्माताओं ने यह नहीं सोचा था किसंविधान का पाला एक दिन दस नंबरियों से पड़ेगा वैसे ही तिहाड़ के निर्माताओं ने यह कहाँ सोचा था कि एक दिन तमाम "वीआईपीज़ "तिहाड़ के अहाते में आजायेंगें और तिहाड़ एक लघु संसद में तबदील हो जायेगी .एक लघु सचिवालय भी यहाँ बनाना पड़ेगा .और दिल्ली विधान -सभाई क्षेत्र भी ।(21) एक गीत -सोयी है यह राजव्यवस्था
सोयी है यह राजव्यवस्था मुँह पर पानी डालो | खून हमारा बर्फ़ हो रहा कोई इसे उबालो | --जयकृष्ण राय तुषार |
स्तरीय चर्चा!
जवाब देंहटाएंरविकर जी!
आपके ज़ज़्बे और श्रम को सलाम!
भाई रविकर जी बहुत सुंदर तरीके से आपने चर्चा मंच को सजाया है|बधाई और शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंभाई रविकर जी बहुत सुंदर तरीके से आपने चर्चा मंच को सजाया है|बधाई और शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंरविकर जी बहुत सुंदर तरीके से आपने चर्चा मंच को सजाया है|
जवाब देंहटाएंबधाई और शुभकामनायें
अच्छी चर्चा.
जवाब देंहटाएंमुझे स्थान दिया,आभार.
कुंडलियाँ बहुत पसन्द आयीं। आभार!
जवाब देंहटाएंbahut achchi lagi.......
जवाब देंहटाएंआभार ||
जवाब देंहटाएंसरकार को शायर की जरुरत-Apply On-Line
कायर की चेतावनी, बढ़िया मिली मिसाल,
कड़ी सजा दूंगा उन्हें, करे जमीं जो लाल |
करे जमीं जो लाल, मिटायेंगे हम जड़ से,
संघी पर फिर दोष, लगा देते हैं तड़ से |
रटे - रटाये शेर, रखो इक काबिल-शायर,
कम से कम हर बार, नयापन होगा कायर ||
bahut badiya links ke saath samyik ghatnakramon par chintan-manan hetu prerit karti saathak charcha prastuti hetu aabhar!
जवाब देंहटाएंभाई रविकर जी, मेरे लेख का मकसद ये नहीं था, जो मैं यहां देख रहा हूं। पर आपने प्रमुखता इसे स्थान दिया, इससे संबंधित लोगों तक संदेश तो पहुंच ही जाएगा।
जवाब देंहटाएंये पब्लिक है, सब जानती है.......
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा और नए नए लिंक रविकर जी ...बधाई ...
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच का बिछौना बहुत आकर्षक संवाद करता रहा ,करवाता रहा सभी लिनक्स के साथ .आभार और बधाई सार्थक श्रम साध्य चयन के लिए .
जवाब देंहटाएंइस चर्चा की सबसे अच्छी बात यह है कि इसमें हमारा लिंक भी है ।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया कहने के लिए इतना काफ़ी है ।
अच्छी चर्चा.
जवाब देंहटाएंमुझे स्थान दिया,आभार.
the best
जवाब देंहटाएंसार्थक और विस्तृत चर्चा ,......
जवाब देंहटाएंनमस्कार रविकर जी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मेरी रचना को यहाँ स्थान देने के लिए
आप बुलाएं और हम ना आयें....ह़ो नहीं सकता
मसरूफियत की वजह से देर से आई हूँ
आपके कमेन्ट मेरे ब्लॉग पे मुझे और बेहतर लिखने को प्रेरित करते हैं
आभार
नाज़
बढ़िया चर्चा . कुछ लिंक्स तो बहुत ही बढ़िया हैं. मज़ा आ गया
जवाब देंहटाएंसही मायनों में सार्थक चर्चा...
जवाब देंहटाएंबहुत सारा लिंक देखने को मिला।आपने मेरा पोस्ट लिया उसके लिए धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंरविकरजी आपने बहुत ही सुंदर और बहुत ही मेहनत से चर्चा-मंच को सजाया है /मेरी रचना "भारत माँ रो रही "को शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभार आपका /बहुत अच्छे लिनक्स से परिचय कराया आपने /बहुत धन्यवाद और बहुत बधाई आपको /
जवाब देंहटाएंram ram bhai
जवाब देंहटाएंशनिवार, १० सितम्बर २०११
अब वो अन्ना से तो पल्ल्ला छुडा रहें हैं .
राघोगढ़ के राजा दिग्विजय सिंह जी ने अन्ना जी के बारे में अपना रुख यकायक बदल लिया है .अब वह कहतें हैं उन्होंने अन्नाजी को आर एस एस का मुखोटा कहा ही नहीं .वह अन्ना जी का सम्मान करतें हैं .बहरहाल उन्होंने अपने इस ख्याल परिवर्तन का कारण नहीं बताया ।
कहीं उनको यह तो पता नहीं चल गया कि अन्ना जी उन्हें दो बार पागल कह चुकें हैं तीसरी बार कह दिया तो वह मान्यता प्राप्त पागल कहलायेंगें ।
देश को इंतज़ार है दिग्विजय सिंह जी आर एस एस के बारे में अपने विचार कब बदलेंगें ?
एक दुष्ट जो अकसर भारत धर्मी समाज का अपमान करता है यदि आर एस एस के गांधी टोपी पहनन से अपनी दुष्टता छोड़ता है तो भारत धर्मी वृहद् समाज इस पेश कश पर विचार कर सकता है .आर एस एस अपनी कुछ प्रिय चीज़ें छोड़ सकता है .काली टोपी पहननी भी छोड़ देगा ।आइन्दा गांधी टोपी पहनेगा .
कब कब कह कर दिग्विजय अपने ही कहे को मुकरेंगें .आर एस एस तो एक संस्था है वह उन्हें संश्था गत नोटिस भी भेज सकती है .यह भारत धर्मी समाज की अहिंसक जनता नहीं है जो अपना मन मसोस के रह जाती है और यह आदमी गाहे बगाहे एक राष्ट्र की मेधा का अपमान करता रहता है ।
बेहतर हो यह आदमी संभल जाए .
वगरना नोटिस तो किधर से भी आ सकता है. (संशोधित संस्करण गत पोस्ट में प्रकाशित ग़ज़ल का )0
शान सत्ता की फकत ,एक लम्हे में जाती रही ।
इस कदर बदतर हुए ,हालात मेरे देश में ,
लोग अनशन पे सियासत ,मौज से खाती रही ।
एक तरफ मीठी जुबाँ तो, दूसरी जानिब यहाँ ,
सोये थे सत्याग्रही ,वो लाठी चलवाती रही ।
हक़ की बातें बोलना अब ,धरना देना है गुनाह ,
ऐसी आवाजें सियासी ,कूंचों से आती रहीं ।
हम कहें जो है वही सच ,बाकी बे -बुनियाद है ,
हुक्मरां के खेमे से ,ऐसी खबर आती रही ।
ख़ास तबकों के लियें हैं खूब ,सुविधाएं यहाँ ,
कर्ज़ में डूबी गरीबी ,अश्क बरसाती रही ,
चल चलें 'हसरत 'कहीं ऐसे ही दरबार में ,
इंसानियत की एक जुबाँ ,हर हाल में गाती रही ।
गज़लकार :सुशील 'हसरत 'नरेलवी,चंडीगढ़ .