नमस्कार मित्रों!
एक बार फ़िर बुधवासरीय चर्चा में आप सभी का स्वागत है। यह चर्चा देश मे आये भूकम्प यहाँ डोले धरती के बीच भी हो रही है और हमारा ब्लाग जगत भी इसके झटके झेल रहा है। दिव्या जी और कुछ अन्य साथी ब्लागरों के बीच का विवाद गहरा गया और नौबत दिव्या जी के ब्लाग जगत छोड़ने तक की आ चुकी है। जिम्मेदार वह खुद भी हैं, विवाद पैदा करने वालों और अनाप शनाप कमेंट करने वालों से उलझना समय खराब करना ही नही वरन अपनी लेखनी को प्रभावित करना भी है। इसी क्रम में भावनाओं में बह, उन्होने ब्लाग जगत से दूर जाने की बात सोची और विद्वान भारतीय नाम के सज्ज्न ने मजा लेने की। खैर अब वे आयें वापस या न आयें पर विद्वान भारतीय जी रुक जा ओ जाने वाली रुक जा जैसे पोस्ट लगा कर उन्हे और परेशान करने मे जुटे ही हुये हैं। खैर कलम है और दिमाग है तो सदुपयोग, दुरुपयोग हो ही सकता है। रही बात व्यंग्य की तो समय आने पर लिखा ही जा सकता है। खैर हम सभी के लिये उदाहरण है कि मूर्खों की टिप्प्णियों का जवाब देने के चक्कर में हम किन हालातों मे पहुंच सकते हैं।
खैर साहब हमने कह दिया है पितरों से, कौवे की मध्यस्थता पर अड़ोगे तो मामला कैंसल। इसी क्रम में पितृ तृप्तिकरण परियोजना -में -- ललित शर्मा जी ने करारा व्यंग्य लिखा है । आगे ताज़ा समाचार ...है इस प्रकार .... कि सखी मन्नू बहुत ही कमात है महंगाई डायन खाये जात है । इस पर (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक") जी बोले "कहीं अरमान ढलते हैं" तो वंदना जी बोलीं भरम कायम रखने के लिये चश्मो मे नमी तो होनी चाहिये………… इस पर रविकर जी निराले अंदाज मे बोले आज्ञा अनुमति सूचना, शिशु किशोर तरुणेश । विद्या जी का मत था कि कहानी-प्यार की जीत" तो पुसदकर जी बोले बस यही बाकी रह गया है क्या समाचारो के नाम पर? । बरूआ जी बोल पड़े क्या नेता लूस करेक्टर है ??? इस पर प्रमोद जोशी जी का कहना था कि राजनीति में जिसका स्वांग चल जाए वही सफल है ।बात सही भी है चीज से नाचीज होने मे समय क्या लगता है भाई, कल तक जो हमारी बहन ब्लाग जगत में नित योगदान कर रही थी, उनको ऐसा पेश कर दिया गया कि अगर अब वो कुछ पोस्ट करें तो अपराधी बन जायें। खैर अजीत जी जैसे पुराने और सभ्य लोगों का ध्यान जरूर आता है और उनका कामदिल चीज़ क्या है…नाचीज़ क्या है… भी सबसे अलग और खास ही है।
सच कहूं आपसे तो आज ब्लाग जगत में रहते हुये और बाकी ब्लागरों से दूर रह कर अच्छा लिखने वालों की एक नयी पौध खड़ी हो रही है। हमे भी इस परिवर्तन के लिये खुद को तैयार कर समय के हिसाब से परिवर्तन करना ही होगा। ये कुछ लिंक और देख लीजिए!
चलिये अगले हफ़्ते फ़िर मुलाकात होगी!
एक बार फ़िर बुधवासरीय चर्चा में आप सभी का स्वागत है। यह चर्चा देश मे आये भूकम्प यहाँ डोले धरती के बीच भी हो रही है और हमारा ब्लाग जगत भी इसके झटके झेल रहा है। दिव्या जी और कुछ अन्य साथी ब्लागरों के बीच का विवाद गहरा गया और नौबत दिव्या जी के ब्लाग जगत छोड़ने तक की आ चुकी है। जिम्मेदार वह खुद भी हैं, विवाद पैदा करने वालों और अनाप शनाप कमेंट करने वालों से उलझना समय खराब करना ही नही वरन अपनी लेखनी को प्रभावित करना भी है। इसी क्रम में भावनाओं में बह, उन्होने ब्लाग जगत से दूर जाने की बात सोची और विद्वान भारतीय नाम के सज्ज्न ने मजा लेने की। खैर अब वे आयें वापस या न आयें पर विद्वान भारतीय जी रुक जा ओ जाने वाली रुक जा जैसे पोस्ट लगा कर उन्हे और परेशान करने मे जुटे ही हुये हैं। खैर कलम है और दिमाग है तो सदुपयोग, दुरुपयोग हो ही सकता है। रही बात व्यंग्य की तो समय आने पर लिखा ही जा सकता है। खैर हम सभी के लिये उदाहरण है कि मूर्खों की टिप्प्णियों का जवाब देने के चक्कर में हम किन हालातों मे पहुंच सकते हैं।
खैर साहब हमने कह दिया है पितरों से, कौवे की मध्यस्थता पर अड़ोगे तो मामला कैंसल। इसी क्रम में पितृ तृप्तिकरण परियोजना -में -- ललित शर्मा जी ने करारा व्यंग्य लिखा है । आगे ताज़ा समाचार ...है इस प्रकार .... कि सखी मन्नू बहुत ही कमात है महंगाई डायन खाये जात है । इस पर (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक") जी बोले "कहीं अरमान ढलते हैं" तो वंदना जी बोलीं भरम कायम रखने के लिये चश्मो मे नमी तो होनी चाहिये………… इस पर रविकर जी निराले अंदाज मे बोले आज्ञा अनुमति सूचना, शिशु किशोर तरुणेश । विद्या जी का मत था कि कहानी-प्यार की जीत" तो पुसदकर जी बोले बस यही बाकी रह गया है क्या समाचारो के नाम पर? । बरूआ जी बोल पड़े क्या नेता लूस करेक्टर है ??? इस पर प्रमोद जोशी जी का कहना था कि राजनीति में जिसका स्वांग चल जाए वही सफल है ।बात सही भी है चीज से नाचीज होने मे समय क्या लगता है भाई, कल तक जो हमारी बहन ब्लाग जगत में नित योगदान कर रही थी, उनको ऐसा पेश कर दिया गया कि अगर अब वो कुछ पोस्ट करें तो अपराधी बन जायें। खैर अजीत जी जैसे पुराने और सभ्य लोगों का ध्यान जरूर आता है और उनका कामदिल चीज़ क्या है…नाचीज़ क्या है… भी सबसे अलग और खास ही है।
सच कहूं आपसे तो आज ब्लाग जगत में रहते हुये और बाकी ब्लागरों से दूर रह कर अच्छा लिखने वालों की एक नयी पौध खड़ी हो रही है। हमे भी इस परिवर्तन के लिये खुद को तैयार कर समय के हिसाब से परिवर्तन करना ही होगा। ये कुछ लिंक और देख लीजिए!
फुरसतनामा: मेरा जीवन दर्शन संजय महापात्रा
नारद: पत्नी पीड़ित की व्यथा कमल कुमार सिंग
धनंजय कहिन: वाईब्रेंट उपवास धनंजय सिंग
चलिये अगले हफ़्ते फ़िर मुलाकात होगी!
बडे रोचक लिंक सहेजे हैं आपने।
जवाब देंहटाएंआभार।
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मायावी मामा?
रूमानी जज्बों का सागर..
दिलचस्प चर्चा. रोचक प्रस्तुतिकरण . आभार.
जवाब देंहटाएंचर्चा चमके स्वर्ण सी, सरिस धरा पर धूप |
जवाब देंहटाएंअरुण-किरण आकर पड़ीं, चंचल शोख अनूप ||
बहुत सुन्दर चर्चा!
जवाब देंहटाएंआपका चर्चा का अन्दाज सबसे अलग है!
नया अंदाज।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा वाह!
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा!
जवाब देंहटाएंचिश्ती साबरी दरवेश गेरूआ रंग भी इस्तेमाल करते हैं
आपका चर्चा का ये अंदाज़ पसंद आया
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा!
जवाब देंहटाएंआपका चर्चा का अन्दाज सबसे अलग है!
मेरी कहानी को यहाँ स्थान देने के लिए आभार |
बहुत सुन्दर चर्चा!
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक चर्चा...
जवाब देंहटाएंis baar ke link bahut hi sundar hai.chahe wo "कहीं अरमान ढलते हैं" ho ya कहानी-प्यार की जीत" ya दिल चीज़ क्या है…नाचीज़ क्या है… धनंजय कहिन: वाईब्रेंट उपवास sabhi behtareen hai maja aa gaya
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिंक्स ...
जवाब देंहटाएंअंदाज काफी अच्छा लगा .....सार्थक लिंक्स
जवाब देंहटाएंमस्त चर्चा है, जुग जुग जीयो।
जवाब देंहटाएंरोचक चर्चा...
जवाब देंहटाएंआभार.