मित्रों!
साल का अन्त हो रहा है और नया साल दस्तक दे रहा है। ऐसे में सभी का मन छुट्टी मनाने को करता है। हमारे सोमवार के चर्चाकार भाई ग़ाफ़िल साहब अभी यात्रा करके् घर पहुँचे हैं। इसलिए 2012 की अन्तिम चर्चा में अपनी पसंद के कुछ लिंक लगा रहा हूँ!
ग़ाफ़िल साहब ने मुझे बताया है कि वो कल मंगलवार की चर्चा लगा देंगे। क्योंकि मंगलवार की चर्चाकार बहन राजेश कुमारी भी दो सप्ताह के लिए छुट्टी मनाने गयी हुई हैं। |
"मुखौटे राम के"मुखौटे राम के पहने हुए, रावण जमाने में। लुटेरे ओढ़ पीताम्बर, लगे खाने-कमाने में… |
एक संदेश दामिनी के नाम, हर बेटी के नाम गीतांजलि गीत का संदेश दामिनी के नाम, दुनिया की हर बेटी के नाम........ दामिनी तुम्हें शत शत नमन… |
अनुभूति कलश अहसासों को संजोया है मैंने, अनुभूतियों को पिरोया है मैंने, बने सत्य,शिव, सुन्दरम यह कलश,मानस की गंगा में धोया है मैंने.. कुछ पंक्तियाँ दामिनी की स्मृति में …आहत मन से ..लुट रही है अस्मिता, कैसे मनाएं नववर्ष हमहो गईं हैं साँसें भी दफ़न ,कैसे मनाएं नववर्ष हम सौ-सौ दुआएं भी न दे सकीं दामिनी को ज़िंदगी सरकार ने दीन्हा है कफ़न ,कैसे मनाएं नववर्ष हम ।। डॉ रमा द्विवेदी |
कबीरा खडा़ बाज़ार में अतिथि -कविता :दूर कहीं , इक शख्शियत का कत्ल हुआ है जिस वीरांगना ने कुँवारी कन्या ने जिसे हम नव रात्र पर पूजते हैं एक सोये हुए राष्ट्र की चेतना को जगा दिया है उसे राष्ट्रीय सम्मान के साथ हम विदा करें |
दिल की आवाज़ महिला हूँ तो क्या हुआ मैं भी मानव हूँ मुझमें भी दिल व दिमाग है मुझमें भी साहस व शक्ति है अब तक सहती रही बहुत सही अत्याचार ... | ज़िन्दगी…एक खामोश सफ़र क्या संभव है सुदृढ़ इलाज ?????????? - मेरी आत्मा लाइलाज बीमारी से जकडी विवश खडी है इंसानियत के मुहाने पर मुझे भी कुछ पल सुकून के जीने दो लगा गुहार रही है ... |
विख्यात ''ये दुनिया मर्दों की नहीं '' कुंठिंत पुरुष-दंभ की ललकार पर स्त्री घुटने टेककर कैसे कर ले स्वीकार ? जिस कोख में पला;जन्मा पाए जिससे संस्कार उसी स्त्री ... | बलात्कारी के लिए कड़े क़ानून का प्रस्ताव. राजधानी दिल्ली में सामूहिक बलात्कार पीड़िता की मौत को लेकर आक्रोश के बीच कांग्रेस ने महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर रोक…… |
! कौशल ! भारत सरकार को देश व्यवस्थित करना होगा - छोटे से छोटा घर हो या बड़े से बड़ा राष्ट्र समुचित व्यवस्था के बिना अराजकता व् बिखराहट से भरा नज़र आता है .व्यवस्था स्थान रखती है… | ZEAL यह सरकार अब किसी भरोसे या स्पष्टीकरण का अधिकार नहीं रखती जन आक्रोश से बचने के लिये ब्रिटिश सरकार ने भगत सिहँ, सुखदेव और राजगुरु की लाशों को गुप्त तरीके से आधी रात में ही जला दिया था। वह इम्पीरियलिज्म जिस की आज तक... |
यादें याद आते हैं वो, अब बचपन के दिन !!! क्योंकि फुर्सत के हैं, ये अब रात-दिन... - *यादें --*-*अनकही अपने बचपन की ....इनको मैंने * *१५-१६ साल पहले लिखा था और दो साल पहले * *शुरू-शुरू में अपने ब्लॉग पर भी .......* *आज फिर मेरी यादें ,मुझे ... | शंखनाद किधर जा रहा है मेरा देश।। पीडिता का क्या था दोष, क्यों मर रहे है निर्दोष। क्या नहीं संस्कृति रही शेष, किधर जा रहा है मेरा देश।। बदल रहा क्यों पूरा परिवेश, किसने धरा नेताओ का भेष.. |
आधा सच... आप बताएं ! नायक या खलनायक ...- दिल्ली गैंगरेप पीड़ित बेटी की मौत ने देश को हिलाकर रख दिया है। इस पूरे घटनाक्रम को देखता हूं तो मुझे बलात्कारियों से कहीं ज्यादा गुस्सा देश की कमजोर सरकार... | सुनिये मेरी भी.... जाओ लड़की... पर यह दुनिया इतनी बुरी नहीं... - *.* *.* *.* ** * * *अपने छोटे से गाँव से* *उम्मीद की पोटली बाँध* *चली आयीं थी जब तुम* *मुल्क की राजधानी में* *पढ़ने और भविष्य बनाने* *तुम आशावान थी |
अविनाश वाचस्पति इसे मौत नहीं जागृति कहते हैं : मैं कभी नहीं मर सकती (कविता) - मैं कहीं नहीं गई मैं कभी नहीं मरी मैं कभी नहीं मर सकती देखो किसके दिल में नहीं हूँ किसके मानस में नहीं बसेरा मेरा इसे मौत नहीं जागृति कहते हैं ... | अंतर्जाल डॉट इन नववर्ष के वालपेपर डाउनलोड करें अंतर्जाल डॉट इन की ओर से सभी पाठकों को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं… |
Sudhinama कुछ तो करना होगा ‘दामिनी’ अंतिम बार कौंध कर सदा के लिए बादलों के पीछे छिप गयी ! लेकिन उसकी यह कौंध सदियों से गहन अन्धकार में डूबी अपनी शक्ति एवं क्षमताओं से बेखबर नारी जाति... | गीत ग़ज़ल औ गीतिका एक श्रद्धांजलि : हे अनामिके ! [आज 29 दिसम्बर 20012 ,वर्ष का अवसान. अवसान एक अनामिका का,एक दामिनी का एक निर्भया का....उसे नाम की ज़रूरत नहीं ..दरिंदों के वहशीपन की शिकार.....मुक्त हो गई .... |
The Art of Living हे द्रोपदी !! अब तो तलवार उठा लो - हर दिल में आक्रोश है, हर आखों में सिर्फ रोश है, पांडवो की संख्या बढती जा रही है, और बोलते हैं सिर्फ कौरवों का दोष है। शकुनि बिछाये द्युत है, हर राजा यहाँ .. | कागज मेरा मीत है, कलम मेरी सहेली...... दामिनी - " दामिनी " मुझे अपना कहने वालो मेरे आदर्श देश के वासियों अगर तुम्हे जीना है बिना शर्मिंदगी लाचारी और बिना किसी खौफ के तो मेरे मरने को जिन्दा रक्खो अपने... |
दिल्ली तू तो बन बैठी महारानी हैदिल्ली तू तो बन बैठी महारानी हैलुटी सड़क पे मगर तेरी दीवानी है सूख गया क्या आँखों का पानी दिल्ली रहीं बेटियां लुटती तू अनजानी है… | मास्टर्स टेक टिप्स अपनी पसंदीदा ब्लोग्स की सूची अपने ब्लॉग पर लगाएँ। डियर रीडर्स , कुछ दिनों पहले मास्टर्स टैक के एक रीडर ने कमेन्ट के जरिये एक सवाल पूछा था की ''अपने पसंदीदा ब्लोग्स की सूची अपने ब्लॉग पर कैसे लगायें.. |
दामिनी : न पहली, न अन्तिमअपनी गरेबान27 और 28 दिसम्बर के दो दिनो में, याने पूरे 48 घण्टों तक मैंने, टीवी पर कोई समाचार नहीं देखे। आवश्यकता ही अनुभव नहीं हुई। लगा ही नहीं कि मुझसे कुछ छूट रहा है या छूट गया है। कल, 29 दिसम्बर की सुबह भी इसी मनःस्थिति में था। अपनी डाक पेटी खोलते-खोलते, पता नहीं कैसे, फेस बुक खुल गई। उसे बन्द कर, डाक पेटी खोलता, उससे पहले ही इन्दौरवाले अशोकजी मण्डलोई प्रकट हो गए। कह रहे थे - ‘लड़की की मौत से दुःखी हूँ।’ मैंने पूछा - ‘कौन सी लड़की?’ उन्होंने जवाब दिया - ‘वही! दिल्लीवाली। बलात्कार पीड़िता। अपनी दामिनी।’ इसके बाद कुछ भी कहना-सुनना कोई मायने नहीं रखता था। | Tech Prévue · तकनीक दृष्टा Blog बनाने से पहले Blogging Platforms की जानकारी तो चाहिए Learn About Available Blogging Platforms [image: Blogging Platforms] 1990 के आस-पास ब्लॉगिंग अस्तित्त्व में आयी तबसे लेकर अब तक इसमें कई परिवर्तन हुए और निरंतर... |
हम रहे इन्सान कितना......हम रहे इन्सान कितना, कह नहीं सकते- गिर सकता है इन्सान कितना, कह नहीं सकते- मिट गयी है लक्षमण रेखा कायम कबूल थी बिक सकता है ईमान कितना, कह नहीं सकते - एक नारी ने माँगा समाज से प्यार की दौलत मिला है उसको मान कितना कह नहीं सकते- खो गयी जमीं जिसे वो दहलीज कह रही थी , पाया है आसमान कितना, कह नहीं सकते… |
मेरी भावनायें... उसके नाम - शुभकामनायें- नया साल तुम्हारी जिजीविषा को विजिगीषा बनाये तुम्हारी रगों में वो सारी शक्तियां दौड़ें जो दुर्गा की रचना में सभी देवताओं ने दी थी चंड मुंड शुम्भ निशुम... |
रायटोक्रेट कुमारेन्द्र नववर्ष मनाने वाला उत्साह बचा रखना, अभी गंदगी बाकी है मेरे दोस्त आने के ही साथ जगत में कहलाया जाने वाला’ बच्चन जी की मधुशाला की ये पंक्ति इस संसार मे सभी पर एकसमान रूप से लागू होती हैं |
ये साल कुछ इस तरह से बीत गया
*भाई विजेंद्र शर्मा की ये वो पंक्तियाँ है जिसकी वजह से मेरी आज की ये कविता बनी ..... शर्मसार तो कर गया ,जाते जाते ये साल आने वाले साल में ,कैसा होगा हाल || (इस उम्मीद के साथ की आने वाले साल में ऐसा दिसम्बर ना आए ) विजेंद्र शर्मा * * * *सरकार की पनाह में और कानून की छतरी तले दाल महंगी हो गई और सपने अधूरे रहे गए कुछ लोग रोटी को मोहताज रहने को मजबूर हो गए हुकूमत के ही सब रंग ही बस क्यों,गाढ़े और गाढ़े हो जाते हैं बाकि क्यों सब कुछ धूमिल सा रह जाता है ?* *सरकार की पनाह में और कानून की छतरी तले अस्मत के लुटेरे हर गुनाह के बाद बन कर चूहे, छिप जाते हैं ...
अन्त में देखिए ये कार्टून! |
काजल कुमार के कार्टून कार्टून :- आज नीरो की बॉंसुरी का दिन है - |
कार्टूनिस्ट-मयंक खटीमा (CARTOONIST-MAYANK) "जन-जन की है यही पुकार" (कार्टूननिस्ट-मयंक) |