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शनिवार, दिसंबर 01, 2012

एक अहसासों की पोटली और अपनेपन का स्पर्श

आज एक दिसम्बर की चर्चा में आपका स्वागत है………मीठी मीठी ठंड ने दस्तक दे दी है तो हाथ पाँव जल्द गरम हो जायें इसलिये हम सजा लाये हैं आपके लिये चर्चा मंच पर रंग खास खास ………अरे भाई भागेगी सर्दी बस जैसे ही लिंक्स पढने के लिये क्लिक करोगे या कमेंट करने के माउस पकडोगे भूल जाओगे सर्दी ने दी है दस्तक ………तो हाजिर हैं आपके लिये आज के लिंक्स


लघुकथा : फूल और काँटे ...
साथ साथ चलते हैं


परिकल्पना का तीसरा सार्थक कदम

बढे चलो बढे चलो




भगवानने आकर मुझसे कहा
मैं हूँ ना …………अगर समझे तो

 


फेसबुक वालों से इतनी दुश्मनी क्यों ?-- कानून अथवा तानाशाही ?
बिना तानाशाही कौन सा कानून लागू हुआ है 

 


श्रीमद्भगवद्गीता-भाव पद्यानुवाद (४०वीं कड़ी)
एक तू ही तू समाया है


दिन के अंतिम मुहाने पर रखा तेरी चाहत का तिलिस्म

देख तिलिस्म तोडते तोडते मज़ार के दिये भी बुझ गये




हटाओ धूल ये रिश्ते संभाल कर रक्खो

आखिर ज़िन्दगी की तिज़ोरी की यही तो कीमती कुंजी हैं


नज़्म : मर्द और औरत

दो ध्रुव ही रहे


गीतों में कभी कहीं धुप तो कहीं छांव ...

तभी तो मिलेगी ठाँव


दिल से कुछ दूर न हो ...

और तुम पास रहो


चिंतन ...

जरूरी है 

 
लव पैरालल्स ऑन ए ट्रैम्पोलीन
यूँ भी बयाँ होती है मोहब्बत


कविता की सही समालोचना

ऐसे भी होती है


कार्टून कुछ बोलता है- अहम् बैठक


इसमे क्या शक है



दानदाता का नाम..

क्यों बतायें


दुखी हो लेना ही पर्याप्त नहीं है.

तो फिर ?



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पाठकों की हो गयी बल्ले बल्ले


सुनो! मृगांका:27: तारे सब बबुना, धरती बबुनिया

सुन रही है ………तुम कहो


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तकनीक के दर्शन


अब किसी काम नहीं आयेगी

क्यों?


अशोक कुमार पाण्डेय

अहसासों की पोटली और अपनेपन का स्पर्श 


गुस्ताखियों को कहो ज़रा

गुस्ताख होना छोड दें


2012 में इस दुनिया के अंत की संभावना हकीकत है या भ्रम ??(पहली कडी)

 अब तो बता ही दीजिये 

 

 

अनुभव के मोती  हैं

 

 


अच्छा स्कैच है...



आज की चर्चा को अब विराम ……अगले हफ़्ते फिर मिलते हैं ।

20 टिप्‍पणियां:

  1. हेमंत सी सुंदर चर्चा और अच्छे लिंक्स ...
    बधाई एवं शुभकामनायें वंदना जी .....

    जवाब देंहटाएं
  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सार्थक चर्चा | कार्टूनिस्ट मयंक खटीमा के द्वारा डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण) का बनाया स्कैच बहुत भाया | कार्टून कुछ बोलता है- अहम् बैठक भी पसंद आया |

      इसके साथ ही मेरी पोस्ट को स्थान देने के लिए धन्यवाद }

      टिप्स हिंदी में : कोई तो बता दे मेरी पहचान क्या है ?

      हटाएं
  3. चर्चा और चर्चा में मेरा कार्टून शामिल करने हेतु आपका आभार वंदना जी !

    जवाब देंहटाएं
  4. वंदना जी , आपका आभार . शुक्रिया मेरी नज़्म को शामिल करने के लिए. चर्चा मंच बहुत अच्छा बन पड़ा है .. धन्यवाद.

    जवाब देंहटाएं
  5. दुखी हो लेना ही पर्याप्त नहीं है.
    प्रतिभा सक्सेना
    लालित्यम्
    राहें चुन विध्वंस की, मस्त आसुरी शक्ति ।
    धर्म रूप अंकुश कहाँ, जो कर सके विरक्ति ।
    जो कर सके विरक्ति, चाटुकारों की टोली ।
    इर्द-गिर्द थे जमा, एक से थे हमजोली ।
    तोड़ केंद्र बेजोड़, दिया इतिहासिक आहें ।
    चलिए रखें समेट, आज तक पड़ी कराहें ।।

    जवाब देंहटाएं
  6. चर्चा में शामिल होकर चारों ओर के हाल-चाल मिले ,आराम से बैठ कर पढ़नेवाले - धन्यवाद वंदना जी !

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत ही अच्‍छे लिंक्‍स संयोजित किये हैं आपने ... आभार इस प्रस्‍तु‍ति के लिये

    सादर

    जवाब देंहटाएं
  8. सुन्दर लिंक्स...रोचक चर्चा...आभार

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति ..
    आभार!

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत सार्थक चर्चा । अच्छे लिंक्स का संयोजन ।

    जवाब देंहटाएं
  11. मीठा और ठंडा दिसम्बर में आपका स्वागत है :)

    जवाब देंहटाएं
  12. संक्षिप्त टिप्पणियों के साथ बढ़िया चर्चा!
    आभार!

    जवाब देंहटाएं

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