मित्रों!
आदरणीय रविकर जी 29 दिसम्बर तक प्रवास पर हैं और इण्टरनेट सेवा से दूर हैं। इसलिए शुक्रवार के चर्चामंच को सजाने का दायित्व मुझ पर ही है।
प्रस्तुत कर रहा हूँ अपनी पसंद के कुछ लिंक…
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वटवृक्ष शहर के बीच में ये घोंसले नहीं होते… कब्र में ज़िंदगी के हौंसले नहीं होते… सरहदों पे यहाँ, घोंसले नहीं होते… चबा रहे हैं ज़मीं, आसमाँ, फ़िज़ा सारी… यहाँ इंसान कभी पोपले नहीं होते…. |
औरतऔरत क्यों सुरक्षित नहीं, आज भी घर बाहर बाहर दरिन्दे लूटते, घर में अपनों का डर । घर में अपनों का डर, कहीं जला न दे कोई दहेज़ दानव हुआ, ये कैसी किस्मत हुई । भ्रूण-हत्या, बलात्कार, विर्क हो रहे यहाँ नित्त उपर से दुःख यही , औरत को सताए औरत । |
पंखुरी Times ... ! Its the celebration time again...........!! सारी व्यस्तताओं के बीच हमें आज तो समय निकालना ही था.वरना हम खुद ही अपने को माफ़ न कर पाते. देखते ही देखते वक्त ने पंख लगाये उड़ान भरी और… |
तोहफा जन्मदिन काप्रिय शिखा के जन्मदिन पर .... कुछ हाइकु रचनाएँजन्मदिन का नन्हा सा है तोहफा मेरी ओर से |
माँ और बेटीयहाँ आपको मिलेंगी सिर्फ़ अपनों की तस्वीरें जिन्हें आप सँजोना चाहते हैं यादों में.... ऐसी पारिवारिक तस्वीरें जो आपको अपनों के और करीब लाएगी हमेशा... | जनाक्रोश या निर्वीर्यों द्वारा पुंसत्व का उद्घोष?विषय: अपनी गरेबानमर्मान्तक पीड़ा और उतनी ही शर्मिन्दगी से यह सब लिख रहा हूँ। रुका नहीं जा रहा। पीड़ा इसलिए कि सहा नहीं जा रहा और शर्म इसलिए कि इस सबमें मैं भी बराबर से शरीक हूँ…. |
" कल हो न हो..........."दिनांक २१.१२.१२ को दुनिया खत्म हो जायेगी | कोई पिंड हमारी धरती से टकराएगा और हम खंड खंड हो बिखर जायेंगे | ऐसी भविष्यवाणी की गई है | कहते हैं 'माया कलेंडर' में २१.१२.१२ के बाद की तिथि ही अंकित नहीं है… | छलका-छलका हो ज़ाम साकीमाथे पर आई,वक्त की लकीरों कोपढ---जीना है बाकी-- साल-दर-साल,बढती झुर्रियों में जिंदगी की इबारत को,पढना है,बाकी अब तक,जीते रहे’बहाने’ जीने के लिये अब, मकसद के रात-दिन,जीना है बाकी अक्सर,कहते हैं लोग---- |
Tech Prévue · तकनीक दृष्टा Blog Post Title Limit और Search Engines -Post Title Importance in terms of Search Engine Results. [image: Blogger Post Title SEO] पोस्ट शीर्षक (Blog Post Title) का आपके ब्लॉग का ऑरगैनिक ट्रैफ़िक.. | मास्टर्स टेक टिप्स Live T.V Software- डियर रीडर्स , आज मै जिस सोफ्टवेयर के बारे में बता रहा हूँ ये एक ऐसा सोफ्टवेयर है जिसे आप अपने कंप्यूटर में डाऊनलोड और इनस्टॉल करने के बाद लाइव टीवी चैनल दिखाई देने लगेंगे... |
Tarun's Diary-"तरुण की डायरी से .कुछ पन्ने.." रुको मैं आती हूँ , तुम्हारी जगदम्बा ! | बतंगड़-हर्षवर्धन त्रिपाठी फांसी! |
ज़ख्म…जो फूलों ने दिये क्योंकि........ हूँ बलात्कारियों के साथ तब तक - हम थोथे चने हैं सिर्फ शोर मचाना जानते हैं एक घटना का घटित होना ... | बाल सजग शीर्षक : स्त्री - भारत की राजधानी दिल्ली में । घटी एक भयानक घटना ।। पढ़ी - किखी समाज की लड़की को । उन दानव ने जिंदगी कर दी बर्बाद ।। ... | अनवरत अपनी राजनीति खुद करनी होगी दिन भर अदालत में रहना होता है। लगभग रोज ही जलूस… |
मेरा बचपन बचपन के पल - गुड़िया जैसी प्यारी हूँ मैं, इधर-उधर मंडराऊँ मैं । कभी चढ़ूँ पापा की गोदी, कभी छिटक इतराऊँ मैं… | हमारे तीर्थ स्थान और मंदिर श्री गीता जी की जन्मस्थली ज्योतिसर - कुरुक्षेत्र की रणभूमि में जहां पर गोविंद ने अपने मोहग्रस्त सखा पार्थ (अर्जुन) को गीता ज्ञान.. | | आकाश के उस पार || दादा - एक गीत - 'माली दादा' , काफी प्रचलित शब्द है | ज्यादातर घरों में आप माली को दादा कहते हुए सुनेंगे | एक माली हमारे घरों में भी होते हैं… |
अशोक पुनमिया का ब्लॉग !!! यही हमारी दिल्ली है !!! | वीर बलात्कारी पुरुष भारत भूमि में जहाँ स्त्री को इतना सम्मान दिया जाता था, वहीँ आज स्त्री को मात्र उपभोग की... | गीत अंतरात्मा के - स्त्री होना ही सर्व नाश का कारण बना शायद ---- |
वटवृक्ष बीडी जला... | काव्य का संसार परिधान-पर दो ध्यान आदमी का पहनावा , .. | मेरे अरमान.. मेरे सपने.. ऐसी जिन्दगी तो चाही नहीं थी मैनें .....? |
जीवन धारा कहां सुरक्षित है महिलाएं......? *दिल्ली में चलती बस में युवती के साथ हुए घिनौने दुष्कर्म की घटना ने सभी को डरा दिया है । इस ... | काव्य मंजूषा क्या बुराई थी उसमें ? - (आज जो भी लिख रही हूँ, शायद उसका ओर-छोर आपको समझ ना आये, क्योंकि मन बहुत विचलित है।) क्या बुराई थी उसमें..? | परिकल्पना रिश्ते ... हैं तो ज़िन्दगी नहीं तो मिटटी खून के संबंध खट्टे हों या मीठे कहते हैं लोग- टूटता नहीं... |
न जाने किस किस बात पर हंगामा हो गया नीलांश लेखनी की प्रभा से गुंजन करते कुछ गीत हैं न जाने किस किस बात पर हंगामा हो गया क्यूँ बिखरे हुए हालात पर हंगामा हो गया … |
41. बलात्कार की स्त्रीवादी परिभाषाडॉ.जेन्नी शबनम अजीब होती है हमारी ज़िंदगी । शांत सुकून देने वाला दिन बीत रहा होता है कि अचानक ऐसा हादसा हो जाता की हम सभी स्तब्ध हो जाते हैं । हर कोई किसी न किसी दुर्घटना के पूर्वानुमान से सदैव आशंकित और आतंकित रहता है । कब कौन-सा वक़्त देखने को मिले कोई नहीं जानता न भविष्यवाणी कर सकता है । कई बार यूँ लगता है जैसे हम सभी किसी भयानक दुर्घटना के इंतज़ार में रहते हैं, और जब तक ऐसा कुछ हो न जाए तब तक उस पर विमर्श और बचाव के उपाय भी नहीं करते हैं … |
माइआ अंजालो की कविता पढ़ते-पढ़ते कोई दो साल पहले यह अनुवाद 'नई बात' ब्लॉग पर प्रकाशित हुआ था. आज इसे फिर से साझा करने का मन हुआ.. |
प्रस्तार कहाँ से लाऊँ ... anupama's sukrity!: बस सुबह की धूप .....!! आज फिर चली जा रही हूँ ... बढ़ी जा रही हूँ ..... आस से संत्रास तक ..... खिँची खिँची ... नदिया किनारे .... कुछ यक्ष प्रश्न लिए ... डूबता हुआ सूरज देखने .... पंछी लौटते हुए .. ...अपने नीड़.... मेरे हृदय में भरी जाने क्या पीर .... कहाँ है मेरी आँखों में नीर ....? |
फाँसी :पूर्ण समाधान नहीं भारतीय नारी दिल्ली ''भारत का दिल ''आज वहशी दरिंदों का ''बिल'' बनती नज़र आ रही है .महिलाओं के लिए यहाँ रहना शायद आरा मशीन में लकड़ी या चारे की तरह रहना हो गया है कि हर हाल में कटना ही कटना है .दिल ही क्या दहला मुट्ठियाँ व् दांत भी भिंच गए हैं रविवार रात का दरिंदगी की घटना पर ,हर ओर से यही आवाजें उठ रही हैं कि दरिंदों को फाँसी की सजा होनी चाहिए क्योंकि ... |
एक प्रयास " नदी हूँ फिर भी प्यासी " - * **ए .....ले चलो **मुझे मधुशाला ** **देखो **कितनी प्यासी है मेरी रूह * *युग युगांतर से * *पपडाए चेहरे की दरारें * *अपनी कहानी आप कर रही हैं * *कहीं तुमने ... | धधकी ज्वाला - हाइगा मेंदेखें, समझेंअपने उद्गारों को व्यक्त भी करें| |
मिसफिट:सीधीबात रैपिस्ट मस्ट बी हैंग टिल डैथ - | शासन सीधा और सोनिया का चलता जब दिल्ली में ,शासन सीधा और सोनिया का जब चलता दिल्ली मेंशासन सीधा और सोनिया का चलता जब दिल्ली में , सरे आम अब रैप से फटतीं ,अंतड़ियां अब दिल्ली में …. |
तुम्हारे लिए मैं आज भी वही पुराने ज़माने की माँ हूँ मेरी बेटी तुम चाहे मुझसे कितना भी नाराज़ हो लो तुम्हारे लिए मेरी हिदायतें और पाबंदियाँ आज भी वही रहेंगी जो सौ साल पहले थीं क्योंकि हमारा समाज, हमारे आस-पास के लोग, औरत के प्रति उनकी सोच, उनका नज़रिया और उनकी मानसिकता आज भी वही है जो कदाचित आदिम युग में हुआ करती थी ! आज कोई भी .
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आओ बच्चों आज मैं तुम्ह्रें बकरी के बच्चे की एक कहानी सुनाती हूँ जिसने मुसिबत में हिम्मत से काम लिया बिल्कुल नही घबराया.. ….तो चलो सुनते है ये कहानी.. ..
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"दोहा सप्तक"
जिसमें हो शालीनता, पहनो वो परिधान।
सीमित हो व्यव्हार तो, बना रहे सम्मान।...
छपते-छपतेमैं ग़ाफ़िल यूँ भी ख़ुश हूँ |
बहुत ही अच्छे लिंक्स शास्त्री जी| बहुत -बहुत आभार |
जवाब देंहटाएंबहुत ही उत्कृष्ट चर्चा लिंक्स मिले |आपका बहुत -बहुत आभार शास्त्री जी |
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार शास्त्री जी इतने सुन्दर लिंक्स के साथ मेरी रचना के चयन के लिए ! सभी सूत्र पठनीय एवं सार्थक हैं ! आपका धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंकोटिश: धन्यवाद और आभार मयंकजी। कृतज्ञ हूँ।
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा, अच्छे लिंक्स,आभार शास्त्री जी !
जवाब देंहटाएंkafi achchi charcha....kripya is post par bhi vichar karen www.jeevanmag.blogspot.in/2012/12/blog-post_20.html
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर सूत्र सजाये हैं।
जवाब देंहटाएंआपका आभार!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक्स्…………बढिया चर्चा
जवाब देंहटाएंविविधता से भरी सुन्दर चर्चा मंच -बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट :गांधारी के राज में नारी !
चर्चा चढ़ी मंच पर अरु प्रकट करे आभार ।
जवाब देंहटाएंचर्चा को पाठक मिले सहित हर्ष साभार ।।
आदरणीय मंच समन्वयक श्री मयंक शास्त्री जी , एवं समस्त मंच मंडली को , प्रणाम
धन्यवाद एवं शुभकामनाये
जय हिन्द !
आदरणीय शास्त्री सर बहुत ही सुन्दर मंच सजा है अच्छे लिंक्स के साथ.
जवाब देंहटाएंआभार "जीवनधारा" को चर्चामंच पर शामिल करने के लिए । सामयकिता के प्रभाव से अछुते नही है आज के लिंक । अच्छी प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंआपने पोस्ट में भले सही सटीक मुद्दे उठाए हैं लेकिन सबसे सहमत होना मुश्किल है जिस देश में सरकार क़ानून का पालन करवाना भूल चुकी हो ,क़ानून कानूनी तौर पे नहीं सामने वाले का मुंह देख
के लागू होता हो ,वाड्रा क़ानून अलग ,गडकरी अलग ,कलावती क़ानून अलग , देश में ऐसा आइन्दा भी होता रहेगा .
जनाक्रोश या निर्वीर्यों द्वारा पुंसत्व का उद्घोष?
विषय: अपनी गरेबान
मर्मान्तक पीड़ा और उतनी ही शर्मिन्दगी से यह सब लिख रहा हूँ। रुका नहीं जा रहा। पीड़ा इसलिए कि सहा नहीं जा रहा और शर्म इसलिए कि इस सबमें मैं भी बराबर से शरीक हूँ….
शुक्रिया। बेहतर चुनाव किया गया है।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब गाफिल साहब .
जवाब देंहटाएंमैं ग़ाफ़िल यूँ भी ख़ुश हूँ
जवाब देंहटाएंनंगापन फैशन बना, इससे रहना दूर।
क्षणिक वासना के लिए, मत होना मजबूर।४।
महिलाएँ कर चाकरी, हो जाती बदनाम।
भड़कीली पौशाक में, करती काम तमाम।५।
जिसमें हो शालीनता, पहनो वो परिधान।
सीमित हो व्यव्हार तो, बना रहे सम्मान।६।
दोहावली अच्छी है लेकिन प्रस्तावना से आपकी विमत .
सारी शालीनता औरत के लिए आदमी वैचारिक स्तर पर लम्पट रहे .परिधान की आड़ लेके बलात्कृत करे पेशीय बलहीनाओं को ? परिधान तो द्वापर में चोली अंगरखा था ........क्या गोपिकाएं कृष्ण को आमंत्रित करती थीं ?
अन्त में कुछ दोहे
"दोहा सप्तक"
जवाब देंहटाएंधनी रोटियाँ फेंकता ,दीन हीन मोहताज़
बढ़िया प्रस्तुति .
बढ़िया सांगीतिक कहानी बकरी की .
बाल मन की राहें.....बच्चों का ब्लांग
भेड़िया और बकरी का बच्चा ( गीतो भरी कहानी)
आओ बच्चों आज मैं तुम्ह्रें बकरी के बच्चे की एक कहानी सुनाती हूँ जिसने मुसिबत में हिम्मत से काम लिया बिल्कुल नही घबराया.. ….तो चलो सुनते है ये कहानी.. .
जवाब देंहटाएंडॉ .अनवर ज़माल आप विषय ही ,पोस्ट की प्रस्तावना ही अदबदाके बदल रहें हैं .एक माँ की दुश्चिंता बेटी के प्रति है यहाँ रही बात कन्या भ्रूण हत्या की ,पत्नी के गर्भ धारण की ,इस पर आज भी
पुरुष का ही वर्चस्व है ,एक माँ की दुश्चिंता बूझने के लिए ,माँ बनना पड़ेगा
पुराने ज़माने की माँ
Sudhinama
तुम्हारे लिए मैं आज भी वही पुराने ज़माने की माँ हूँ मेरी बेटी तुम चाहे मुझसे कितना भी नाराज़ हो लो तुम्हारे लिए मेरी हिदायतें और पाबंदियाँ आज भी वही रहेंगी जो सौ साल पहले थीं क्योंकि हमारा समाज, हमारे आस-पास के लोग, औरत के प्रति उनकी सोच, उनका नज़रिया और उनकी मानसिकता आज भी वही है जो कदाचित आदिम युग में हुआ करती थी ! आज कोई भी .
सार्थक लिनक्स संजोये हैं .मेरी पोस्ट को स्थान देने हेतु आभार फाँसी : पूर्ण समाधान नहीं
जवाब देंहटाएंशीला सोनिया तमाम सांसद और उनके बच्चे इस देश में सुरक्षित हैं वी आई पी दर्जा है इनका ,आम आदमी के साथ सिर्फ कांग्रेस का दिखाऊ हाथ है, सुरक्षा नहीं .सभी नारियां दलित पद दलित नहीं
जवाब देंहटाएंहैं .यहाँ सुरक्षा सिर्फ नेताओं के लिए है बाकी सब विकलांग हैं .किसी के पास जेड सिक्युरिटी है किसी के पास जेड प्लस ,क्या खतरा है इन ललुवों को ,इनके एक दर्जन लाल और लालियों को ?क्या
खतरा है प्रियंका गांधी को ?और अगर नहीं है तो क्यों नहीं है ?.क्यों एक सामन्य सुरक्षा भी देश की आधी आबादी को उपलब्ध नहीं है .बुनियादी सवाल पुलिस सुरक्षा का एक तरफ़ा इस्तेमाल है
700
सांसदों और हजारों विधायकों द्वारा ,विषम इस्तेमाल है यह सुरक्षा उपकरण का ,आदमी एक सुरक्षा कर्मी पचास .आदमी है या नर पिशाच ?
एक प्रतिक्रिया ब्लॉग पोस्ट :
पुराने ज़माने की माँ
Sudhinama
तुम्हारे लिए मैं आज भी वही पुराने ज़माने की माँ हूँ मेरी बेटी तुम चाहे मुझसे कितना भी नाराज़ हो लो तुम्हारे लिए मेरी हिदायतें और पाबंदियाँ आज भी वही रहेंगी जो सौ साल पहले थीं क्योंकि हमारा समाज, हमारे आस-पास के लोग, औरत के प्रति उनकी सोच, उनका नज़रिया और उनकी मानसिकता आज भी वही है जो कदाचित आदिम युग में हुआ करती थी ! आज कोई भी .
नारियां हमारे समाज में महत्वपूर्ण पारिवारिक इकाई रहीं हैं .चाहे वह किसी वंश या कुल की हों .उनकी मर्यादा रक्षा की सामन्य धारणा हर पुरुष के मन में होती थी .उसकी रक्षा करते समय कोई
जवाब देंहटाएंशीलवान पुरुष उनकी जाती नहीं पूछा करता था .भारतीय मन की इस मर्यादा को अगर किसी ने खंडित किया है तो उन राजनीतिक व्यक्तियों ने चाहे वह पुरुष हों या नारी ,जो अपनी सुरक्षा के लिए
पचासों अंग रक्षक साथ लेकर चलतें हैं .उन्हें ऐसे नैतिक मुद्दों पर घडयाली आंसू बहाने और आश्वासन देने का कोई हक़ हासिल नहीं है .चाहे फिर वह शीला दीक्षित हों या फिर सोनिया गांधी .उन बबुओं
के बारे में क्या कहा जाए जो भारत भर के युवाओं से मिलते घूम रहें हैं .क्या सिर्फ वोट के लिए युवाओं के बीच में घूमना बस यही उद्देश्य है ?उस कथित युवा सम्राट की अब तक तो कोई टिपण्णी भी नहीं
आई .
एक प्रतिक्रिया ब्लॉग पोस्ट :41. बलात्कार की स्त्रीवादी परिभाषा
डॉ.जेन्नी शबनम
अजीब होती है हमारी ज़िंदगी । शांत सुकून देने वाला दिन बीत रहा होता है कि अचानक ऐसा हादसा हो जाता की हम सभी स्तब्ध हो जाते हैं । हर कोई किसी न किसी दुर्घटना के पूर्वानुमान से सदैव आशंकित और आतंकित रहता है । कब कौन-सा वक़्त देखने को मिले कोई नहीं जानता न भविष्यवाणी कर सकता है । कई बार यूँ लगता है जैसे हम सभी किसी भयानक दुर्घटना के इंतज़ार में रहते हैं, और जब तक ऐसा कुछ हो न जाए तब तक उस पर विमर्श और बचाव के उपाय भी नहीं करते हैं …
बेहतर चुनाव, बढ़िया प्रस्तुति.....
जवाब देंहटाएंMost appreciated discussion... chow!
जवाब देंहटाएंअच्छे लिंकों के साथ के सुंदर चर्चा,,,,,
जवाब देंहटाएंबलात्कारियों के लिए जनता की मांग फांसी है , जबकि पुलिस उसने लिए उम्रकैद की मांग कर रही है ताकि वो इस गुंडों को खिला-पिला कर मोटा कर सके और तगड़े होकर बाहर आये ताकि अनेक और मासूमों की जिंदगी से खिलवाड़ कर सकें ! लड़की की तो ज़िन्दगी बर्बाद कर दी , उसकी पूरी आंत निकाल दी गयी है , अब वो कभी खाना भी नहीं खा सकेगी मुंह से ! इंटरा-वीनस फीड देना पड़ेगा। किसी भी अंग में यदि गैंग्रीन हो गया तो उसे भी काट कर अलग कर दिया जाएगा। वेंटिलेटर पर है , खुद से सांस भी नहीं ले सकती ! लड़की तो तिल-तिल मर रही है और बदले में अपराधी जेल में मुफ्त की रोटी तोड़ेंगे ?
जवाब देंहटाएंइन बलात्कारियों को गोली से भून दो या फांसी पर लटकाओ ! समाज से गन्दगी हटाओ ! एक पल भी बर्दाश्त नहीं हैं ऐसे लोग समाज में !
Thanks for providing great links.
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बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंआभार!
शुक्रवार छुट्टी के कारण देर से आने के लिए माफ़ी चाहता हूँ। चर्चा आज भी हमेशां की तरह बेहतर रही। कई लिंक्स ऐसे हैं जहाँ मै पहली बार गया। इस तरह की ब्लोग्स का परिचय करवाने के लिए शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे सूत्र संजोये हैं बहुत बहुत बधाई पूरे दिन व्यस्तता के कारण अभी चर्चा मंच खोला है
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर चर्चा | सारे लिंक्स अच्छे |
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग को यहाँ शामिल करने के लिए धन्यवाद.
जवाब देंहटाएं