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सोमवार, दिसंबर 03, 2012

सोमवारीय चर्चामंच-1082

दोस्तों! चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ का नमस्कार! सोमवारीय चर्चामंच पर पेशे-ख़िदमत है आज की चर्चा का-
 लिंक 1- 
सज-धज बैठी गोरड़ी -गजेन्द्र सिंह शेखावत
Gajendra Singh Shekhawat
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लिंक 2-
मेरा फोटो
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लिंक 3-
परिहार -उदय वीर सिंह
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लिंक 4-
प्राइज पेट्रलियम -कुँवर कुसुमेश
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लिंक 5-
मेरा फोटो
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लिंक 6-
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लिंक 7-
My Photo
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लिंक 8-
जीवन -अवन्ती सिंह
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लिंक 9-
"लिंक-लिक्खाड़"
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लिंक 10-
बताओ कैसे उतरें पार? -डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
उच्चारण
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लिंक 11-
बिना किसी सुरक्षा के दिया पहला शॉट -दिव्यादत्ता, प्रस्तोत्री- माधवी शर्मा गुलेरी
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लिंक 12-
राम राम भाई! सेहतनामा -वीरेन्द्र कुमार शर्मा ‘वीरू भाई’
मेरा फोटो
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लिंक 13-
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लिंक 14-
ऑन द स्पॉट बनी रचना -राजेश कुमारी
Rajesh Kumari
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लिंक 15-
दरख्वास्त -रीना मौर्या
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लिंक 16-
मेरे पिता ही मेरी माँ : 2 दिसम्बर जन्मदिन पर विशेष -संजय भास्कर
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लिंक 17-
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लिंक 18-
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लिंक 19-
जीवन-अमृत -कविता विकास
My Photo
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लिंक 20-
काश! -अनीता
My Photo
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और अन्त में
लिंक 21-
ग़ाफ़िल की अमानत

आज के लिए इतना ही, फिर मिलने तक नमस्कार!
_______________

कमेंट बाई फ़ेसबुक आई.डी.

28 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही अच्‍छे लिंक्‍स संयोजित किये हैं आपने मेरी ब्लॉग पोस्ट शामिल करने हेतु बहुत बहुत आभार!...!!!!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मेरे पिता ही मेरी माँ -- 2- दिसम्बर जन्मदिन पर विशेष
      संजय भास्कर
      ...... मुस्कुराहट


      सदा कीजिए नेह की, मंगलमय बरसात ।
      रहें स्वस्थ शुभकामना, हे संजय के तात ।
      हे संजय के तात, भास्कर करे उजाला ।
      संस्कार शुभ श्रेष्ठ, आपने विधिवत पाला ।
      जन्मदिवस पर तात, हमें आशीष दीजिये ।
      रविकर संजय मित्र, नेह यूँ सदा कीजिए ।।

      हटाएं
  2. चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ जी.....आभार इस प्रस्‍तु‍ति के लिये!

    जवाब देंहटाएं
  3. शानदार लिंक्स के साथ शानदार चर्चा

    जवाब देंहटाएं
  4. आदरणीय मिश्र जी आपके द्वारा दिए सभी लिंक बहुत ही अच्छे हैं |आपकी टिप्पणी स्पैम में चली गयी थी हमने अभी प्रकाशित कर दिया |आपका बहुत -बहुत आभार |

    जवाब देंहटाएं
  5. अच्‍छे लिंक्‍स. मेरी पोस्ट शामिल करने हेतु बहुत बहुत आभार.

    जवाब देंहटाएं

  6. ऑन दा स्पॉट बनी रचना
    Rajesh Kumari
    HINDI KAVITAYEN ,AAPKE VICHAAR
    करते हैं खिलवाड़ तो, रचना बने कमाल ।
    शब्द शब्द श्रृंगार रस, चले लहरिया चाल ।
    चले लहरिया चाल, मुक्त मुक्तावलि चमके ।
    पड़ोसिनी लघु-कथा, बदन बिजुली सा दमके ।
    कहीं मोहिनी रूप, काम-रति कहीं विचरते ।
    खुले तीसरा नेत्र, दिखें पर कविता करते ।।

    जवाब देंहटाएं

  7. "बताओ कैसे उतरें पार?" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
    उच्चारण

    छेद नाव में जर्जर-नौका, कभी नहीं नाविक घबराये ।
    जल-जीवन में गहरे गोते, सदा सफलता सहित लगाये ।
    इतना लम्बा जीवन-अनुभव, नाव किनारे पर आएगी -
    पतवारों पर हमें भरोसा, सागर सगरा पार कराये ।।

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत सुन्दर चर्चा पठनीय लिंक्स प्राप्त हुए मेरी आशु कविता को शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार गाफिल जी

    जवाब देंहटाएं
  9. आदरणीय ग़ाफिल सर सूत्रों का संयोजन बेहद उम्दा तरीके से किया है आपने शुक्रिया

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत बढ़िया चर्चा । उम्दा लिंक्स ।
    118वें जन्म दिवस पर डॉ राजेंद्र प्रसाद को शत-शत नमन और हार्दिक श्रद्धांजलि ।

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत सुन्दर लिंक्स संजोये हैं ………बढिया चर्चा

    जवाब देंहटाएं
  12. सभी लिंक्स बढ़िया लगे ग़ाफ़िल सर !:)
    मेरी रचना को स्थान देने का आभार !:)
    ~सादर!!!

    जवाब देंहटाएं
  13. -कुँवर कुसुमेश


    कुछ दिन ही इस साल के,सिर्फ रह गए शेष।

    मँहगाई हावी रही,बदल बदल कर भेष।।

    बदल बदल कर भेष,जिंदगी नरक बना दी।

    और गैस की किल्लत,ने तो धूम मचा दी।।

    इसके कारण हुआ, है जीना नामुमकिन ही।

    झेलो जी यह साल,बचे हैं अब कुछ दिन ही।।

    बहर सूरत गजल आपकी काबिले दाद है .
    अजी आप भी कैसी बातें करते हो .आम आदमी की सरकार है .सरकार का आम आदमी है .सरकार बंधक के साथ जैसा चाहे सुलूक करे .महंगाई बढ़ने से आम आदमी का जीवन ऊपर उठता है .आम आदमी उठता है ज़मीन से ऊपर .

    सरकार का आम आदमी है दोनों साथ साथ उठेंगे .

    जवाब देंहटाएं
  14. बढ़िया चर्चा मंच सजाया है .सेतु एक से एक छाया है .कई पढ़ लिए हैं ,कई बकाया हैं .

    जवाब देंहटाएं
  15. बढ़िया चर्चा मंच सजाया है .सेतु एक से एक छाया है .कई पढ़ लिए हैं ,कई बकाया हैं .

    जवाब देंहटाएं

  16. क्या कह गए मियाँ गाफिल ज़वाब नहीं पेशकश का .

    और अन्त में
    लिंक 21-
    हो रिहा भी किस तरह?

    जवाब देंहटाएं
  17. -कुँवर कुसुमेश


    कुछ दिन ही इस साल के,सिर्फ रह गए शेष।

    मँहगाई हावी रही,बदल बदल कर भेष।।

    बदल बदल कर भेष,जिंदगी नरक बना दी।

    और गैस की किल्लत,ने तो धूम मचा दी।।

    इसके कारण हुआ, है जीना नामुमकिन ही।

    झेलो जी यह साल,बचे हैं अब कुछ दिन ही।।

    बहर सूरत गजल आपकी काबिले दाद है .
    अजी आप भी कैसी बातें करते हो .आम आदमी की सरकार है .सरकार का आम आदमी है .सरकार बंधक के साथ जैसा चाहे सुलूक करे .महंगाई बढ़ने से आम आदमी का जीवन ऊपर उठता है .आम आदमी उठता है ज़मीन से ऊपर .

    सरकार का आम आदमी है दोनों साथ साथ उठेंगे .

    बढ़िया चर्चा मंच सजाया है .सेतु एक से एक छाया है .कई पढ़ लिए हैं ,कई बकाया हैं .

    जवाब देंहटाएं
  18. -कुँवर कुसुमेश


    कुछ दिन ही इस साल के,सिर्फ रह गए शेष।

    मँहगाई हावी रही,बदल बदल कर भेष।।

    बदल बदल कर भेष,जिंदगी नरक बना दी।

    और गैस की किल्लत,ने तो धूम मचा दी।।

    इसके कारण हुआ, है जीना नामुमकिन ही।

    झेलो जी यह साल,बचे हैं अब कुछ दिन ही।।

    बहर सूरत गजल आपकी काबिले दाद है .
    अजी आप भी कैसी बातें करते हो .आम आदमी की सरकार है .सरकार का आम आदमी है .सरकार बंधक के साथ जैसा चाहे सुलूक करे .महंगाई बढ़ने से आम आदमी का जीवन ऊपर उठता है .आम आदमी उठता है ज़मीन से ऊपर .

    सरकार का आम आदमी है दोनों साथ साथ उठेंगे .

    बढ़िया चर्चा मंच सजाया है .सेतु एक से एक छाया है .कई पढ़ लिए हैं ,कई बकाया हैं .

    जवाब देंहटाएं
  19. बहुत सुन्दर स्तरीय चर्चा!
    आपका आभार ग़ाफ़िल जी!

    जवाब देंहटाएं

  20. शानदार लिंक्स के साथ बहुत बढ़िया चर्चा

    जवाब देंहटाएं
  21. सज-धज बैठी गोरड़ी, कर सोल्हा सिणगार ।
    त र सै घट रो मोर मन, सोच -सोच भरतार ।|

    नैण कटारी हिरणी, बाजूबंद री लूम ।
    पतली कमर में खणक रही, झालर झम-झम झूम ।|

    माथे सोहे राखड़ी, दमके ज्यों रोहिड़ा रो फूल।
    कानां बाटा झूल रह्या , सिर सोहे शीशफूल। ||

    झीणी-झीणी ओढ़णी,पायल खणका दार ।
    बलखाती चोटी कमर, गर्दन सुराहीदार ||

    पण पिया बिना न हो सके पूरण यो सिणगार |
    पधारोला कद मारुसा , था बिन अधूरी नार ।|

    सखी- साथिन में ना आवडे., ना भावे कोई कोर ।
    सासरिये में भी ना लगे, यो मन अलबेलो चोर ||

    अपणो दुःख किण सूं कहूँ , कुण जाण म्हारी पीर ।
    अरज सुण नै बेगा आवो, छोट की नणंद का बीर ||

    मरवण था बिन सुख गयी, पिला पड़ ग्याँ गात ।
    दिन तो फेर भी बितज्या, या साल्ल बेरण रात ।|


    लेखक : गजेन्द्र सिंह ककराना


    शब्दार्थ :-1साल्ल = दर्द देना,2. गात = गाल,3. आवडे = चित नहीं लगना,4. अर्ज- पुकार
    5.गोरड़ी = गौरी

    Read more: http://www.gyandarpan.com/2012/12/blog-post.html#ixzz2E0kqbdXP

    जवाब देंहटाएं
  22. अच्छा बांधा है भाव जगत के आलोडन को मंथन को .

    अब तो आरज़ू बन गई है
    अंगार पर चलूँ या आँधियों के मध्य
    चुनौतियों का निमंत्रण हरदम स्वीकारा है
    फिर भी ,हम शतरंज की शह - मात नहीं
    जिंदगी मैंने तुम्हे बेहद प्यार किया है ।
    अनुभवों की भारी पोटली लिए
    मूल्यांकन करती जीवन चक्र का
    जीवन की संध्या ढलता सूर्य भले हो
    पर सुनहरी सुबहा का भी संदेशा है
    फूलों की डालियाँ काँटे भी संजोए है
    यथार्थ यही जीवन अमृत में पाया है ।

    जवाब देंहटाएं
  23. खिंजे- खिंजे से ये तेरे मिजाज क्यों है
    हमसे कोई गीला हुई है तो बता ....

    नजरबंद कर रखा है खुद को क्यूँ ए शोख हँसी
    हमारी नजर से खुद को यूँ ना छुपा ...

    देखने दे जी भर के तेरे सुर्ख होंठो की लाली
    होंठो को यूँ होंठो से ना दबा ...

    बढ़िया शब्द चित्र .छुपने वाले सामने आ ,छुप छुपके मेरा जी न जला ...

    खीजे खीज ,

    लिंक 15-
    दरख्वास्त -रीना मौर्या

    जवाब देंहटाएं
  24. बच्चन जी को पढ़ना गुनना सदैव ही सुखद रहा है मधुशाला /मधुबाला दोनों सस्वर बरसों गाई हैं .

    निशा -निमंत्रण
    दिन जल्दी -जल्दी ढलता है

    हो जाय न पथ में रात कहीं
    मंजिल भी तो है दूर नहीं -
    यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी -जल्दी चलता है
    दिन जल्दी -जल्दी ढलता है

    बच्चे प्रत्याशा में होंगे
    नीड़ों से झांक रहे होंगे -
    यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चंचलता है
    दिन जल्दी -जल्दी ढलता है

    मुझसे मिलने को कौन विकल
    मैं होऊं किसके हित चंचल
    यह प्रश्न शिथिल करता पद को ,भरता उर में विह्वलता है
    दिन जल्दी -जल्दी ढलता है
    लिंक 13-
    लोकप्रिय हिंदी कवि- हरिवंश राय 'बच्चन', मधुशाला और उनकी कुछ अन्य कविताएँ -जयकृष्ण राय तुषार

    जवाब देंहटाएं


  25. स्वार्थी लोग
    मतलब के रिश्ते
    ये ही है जीवन?

    चलायमान मन
    भटकता फिरे
    तकता रहे औरों
    का जीवन

    कड़ी मेहनत
    तन पे चिथड़े
    दो सुखी रोटी
    ये कैसा जीवन ?

    रेशम है तन पर
    थाली में पकवान
    असंतुष्ट है फिर भी
    मन बेईमान,चाहे हमेशा
    और उम्दा जीवन !

    बढ़िया स्वगत कथन सी बोलती हुई पोस्ट (सूखी रोटी )

    क 8-
    जीवन -अवन्ती सिंह

    जवाब देंहटाएं

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