आज की चर्चा में आपका स्वागत है ………देखिये लिंक्स की भरमार है ………आज थोडा परिचय साथ है ताकि आपको पोस्ट का पता चले उसमें अन्दर क्या है उम्मीद है पसन्द आयेगा ये अन्दाज़ भी ………
प्रतिभाओं की कमी नहीं अवलोकन 2012 (6)
इसमें क्या शक है ………
इसमें क्या शक है ………
अलग अलग भावों का दिग्दर्शन कीजिये ………
एक लकीर ने विभाजित कर दिया एक देश को
खीच के सरहद ,कर दिए हिस्से, जमीन के साथ इंसानों के भी,
कर भाई को भाई से जुदा,
बना दिया भगवान को यहाँ इश्वर वहां खुदा
अब चाहे लकीर हो या गंगा का तट ………विचारों का रेला आदमकद हो गया है
एक गंगा !
चांदनी बिछती थी जिस पर,
कुछ काल पहले ........... आज धुंधली हो गयी है.
हो भले ही,
मैल तुझमें,
आरती हर रोज होती,
एक आशा मन बसी ........... तुम साफ़ होगी.
दिन फिरें,
है यही दरकार ........... ए सरकार ! मेरे.
व्यक्तित्व - सदा की कलम से
मिलिये जरूर ………… एक विशिष्ट हस्ती से
पिछले लगभग दो दशक से हिन्दी में निरंतर लेखन करते हुए इनके अब तक दो उपन्यास, एक काव्य संग्रह, दो गजल संग्रह, दो संपादित पुस्तक और एक ब्लॉगिंग का इतिहास प्रकाशित हो चुकी हैं आप सिर्फ कुशल रचनाकार ही नहीं बल्कि ब्लॉगजगत के प्रति आपका योगदान सराहनीय व सम्माननीय भी है आपने अथक परिश्रम से एक मिसाल भी क़ायम की है एक प्रसिद्ध ब्लॉग विश्लेषक के रूप में, यह मैं ही नहीं आप सब भी जानते हैं इतना आसान काम नहीं है विश्लेषण करना यदि एक या दो व्यक्ति होते अथवा होती गिनती की कोई सीमा पर यहां तो अनगिनत ब्लॉगर मेरे जैसे व्यक्ति का एक नज़रिया कह रही हूँ
जानना जरूरी है ………एक दीर्घ फ़ैले व्यास को
लगता ही नहीं कि कोई दुरूह साहित्य पढ़ रहा है कोई! कहीं कहीं पर आध्यात्म और दर्शन का पुट भी देखने को मिलता है जब वो ओशो की तरह जीने की कला छोड़कर कहने लगते हैं कि मैं मृत्यु सिखाता हूँ. उपन्यासिका के कुछ अंश दिल को छू जाते हैं, कुछ व्यथित करते हैं, कुछ गुदगुदाते हैं, कुछ सोचने पर मजबूर करते हैं.
"मन दर्पण": "नाटक-नींद और मेरा रोज़"
कभी कभी सताना जरूरी होता है ………
और कहती हूँ क्यूँ सताती है तू मुझे.... रोज़....
आती नहीं है आँखों में नखरे हैं तेरे.... रोज़...
फिर मना ही लेती है आखिर नींद मुझे .... रोज़....
कुण्डलिया : प्रेम पात सब झर गये
फिर भी हम बच गये ………तेरे लिये छाँह गहे अब कौन , नहीं रहि छाया शीतलरहा रात भर खाँस, अब सठिया गया पीपल
सात रास्ते
कागज़ की नाव बना कर उसे पानी में छोड़ दें, और आँख बंद करके सोचें, कि यह उस तक जाय।
पहचाने मेरा कौन सा ……कहीं तो होगी मंज़िल
कागज़ की नाव बना कर उसे पानी में छोड़ दें, और आँख बंद करके सोचें, कि यह उस तक जाय।
3.मन में सोचें, कि यदि वह आपको मिल गया तो आप क्या करेंगे, और नहीं मिला तो क्या करेंगे।
4. जानें कि आपसे मिल कर उसे क्या फायदा या नुकसान होगा।
उपनिषद् सन्देश 4 प्रस्तावना 4
कौन है दृष्टा जो निद्रा में भी देता चेतना ………गूढ प्रश्न का गूढ उत्तरयह आत्मन प्रकाशों का प्रकाशक है, यह सतत , स्थायी, आलोक है, जो न जीता है न जन्मता है न मरता है । न यह गतिशील है, न स्थावर है , न परिवर्तनशील है न अपरिवर्तनीय है । यह अव्यक्त, अचिन्त्य और अविकारी है । यह द्रष्टा भी है और दृश्य भी । यह साक्षी है और साक्ष्य भी ।
और अब एक खास व्यक्तित्व पर एक नज़र यहाँ जरूर डालें व्यक्तित्व - सदा की कलम से (2)
अपना परिचय आप हैं …………
क्या आप जानते हैं ? इनके बारे में ! साईं मोरे बाबा एक ऐसी पारिवारिक फिल्म , जिसमें आध्यात्मिक आत्मा है . जन्म से लेकर मृत्यु तक - हम जो चाहते हैं , उससे अलग होते हैं रास्ते .. इसकी लेखिका भी रश्मि जी ही हैं यह फिल्म आज 7 दिसम्बर को रिलीज होने जा रही है यह प्रारंभ जोड़ता है साहित्य की साधना में उनके लिये स्वर्णिम युग का प्रहला पन्ना ...कुछ ऐसा भी होगा अभी निश्चित तौर पर जो मेरे द्वारा अनकहा होगा ... आपके नाम के साथ अनेको सम्मान जुड़ चुके हैं द संडे इंडियन द्वारा 21वीं सदी की 111 लेखिकाओं में भी आपका नाम शामिल है ..
"वो पात-पात निकले" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘म...
हम डाल डाल निकले
परदेशियों के आगे, घुटने वो टेकते हैं,
वो देश से दलाली, करने की बात निकले।
निर्धन का जो अभी तक, दामन भी सिल न पाये,
हथियाने को वतन का, वो स्वर्णथाल निकले।
हम डाल डाल निकले
परदेशियों के आगे, घुटने वो टेकते हैं,
वो देश से दलाली, करने की बात निकले।
निर्धन का जो अभी तक, दामन भी सिल न पाये,
हथियाने को वतन का, वो स्वर्णथाल निकले।
नज़्म से प्रेम तक.....
अधरों पर उसने
मैं गीत हुई....
एक ख्याल बन समा गया कोई
दर्द ही दवा है बता गया कोई
दो लफ्ज़ रखेअधरों पर उसने
मैं गीत हुई....
एक गली संकरी सी
यादें जहाँ महकती हैं ………
एक गली है संकरी सी
कोई नाम पता कहीं नहीं
बस प्रेम की सुगंध है
यादों की ईटों से बनी
दर्द के कोलतार से ढकी
महकती रहती है.
स्त्रियों का पुराण
एक नया अध्याय आओ शुरु करें ……
बस गुजारिश है
अब तुम भी
खुद को
देवता साबित करने में
लगे रहो...लगे रहो...उम्र भर !!
रामकृष्ण परमहंस और फेसबुक
प्रेम का महा मंत्र
"पहला
जो 'साधारण' प्रेम है उसमें प्रेमी केवल अपना ही सुख देखता है। वह इस बात की
चिन्ता नहीं करता कि दूसरे व्यक्ति को भी उससे सुख है अथवा नहीं। इस प्रकार का
प्रेम चन्द्रावली का श्रीकृष्ण के प्रति था।
दूसरा प्रेम जो 'सामंजस्य' रूप होता है उसमें दोनों एक-दूसरे के सुख के इच्छुक
होते हैं।यह एक ऊँचे दर्जे का प्रेम है।
परन्तु तीसरा प्रेम सबसे उच्च है। इस समर्थ प्रेम में प्रेमी अपनी प्रेमिका से
कहता है तुम सुखी रहो ,मुझे चाहे कुछ भी हो। राधा में यह प्रेम विद्यमान था।
श्रीकृष्ण के सुख में उन्हें सुख था
भाव की झंकार ही संगीत है
प्रीत की जागी नयी रीत हैशब्द भी है नाद भी है, आत्मा भी
नृत्य करता अहिर्निशि परमात्मा भी
भाव की झंकार ही संगीत है
अब अकेले का जगत ही मीत है
आने वाला समय भारतीय खुदरा बाज़ार के लिए दुश्वारी भरा होगा
झेलने के अलावा चारा ही क्या है :(
आने वाला समय भारतीय खुदरा बाज़ार के लिए दुश्वारी भरा होगा। छोटे व्यापारी जो आज स्वाबलंबी हैं वे कल रिटेल स्टोर के मैनेजर भर होंगे।
पलायन
किसका और किससे ?कृष्ण रणछोर?
बैक फुट पर आना
मैदान छोड़ना?
या पूर्ण आवेग से?
लौटना लक्ष्य की ओर
एक मुहीम अनुसार
नए छितिज की तलाश?
मोड़ भी हैं बहुत
मगर मुडना किधर है यही अज्ञात है
मोड़ भी हैं बहुत ,रास्ते भी बहुत ,
मंजिल कहाँ है बताये किसी ने-
अरुणिमा
एक आगाज़ …………
अरुणिमा यूँ तो उम्र में मुझसे बहुत छोटी थी, मगर बाकी हर चीझ में मुझसे बडी थी, मुझे कोई भी परेशानी हो - छोटी या बडी , उसके पास हर परेशानी का कोई ना कोई हल जरूर होता था।
एक आगाज़ …………
अरुणिमा यूँ तो उम्र में मुझसे बहुत छोटी थी, मगर बाकी हर चीझ में मुझसे बडी थी, मुझे कोई भी परेशानी हो - छोटी या बडी , उसके पास हर परेशानी का कोई ना कोई हल जरूर होता था।
यह जीवन यूँ ही चलेगा
फिर भी कुछ ना कुछ कहेगा
बदल गयी है सभी प्रथाएं बदली बदली सी सभी निगाहें उगने लगी है अब अन्याय की खेती मुट्ठी में बस रह गयी है रेती पर यह जीवन तब भी चलेगा लिखा वक़्त का कैसा ट्लेगा खो गये सब गीत बारहमासी ख़्यालो में रह गये अब पुनू -ससी अर्थ खो रही हैं सब बाते...
डिंपल मिश्र ने बदला मीडिया और फेसबुक का इतिहास
सोशल मीडिया का ये है सदुपयोग………
उसने महिलाओं के आत्मसम्मान को जगाया है. धन्य हो तुम क्योंकि तुम भारत की नारी हो. डिंपल मिश्र तुम्हें बार बार सलाम, तुम देश के उन लाखों नारियों की प्रेरणा स्रोत हो जो अन्याय और उत्पीड़न का शिकार होकर घर में घुटने को मजबूर हैं.
सोशल मीडिया का ये है सदुपयोग………
उसने महिलाओं के आत्मसम्मान को जगाया है. धन्य हो तुम क्योंकि तुम भारत की नारी हो. डिंपल मिश्र तुम्हें बार बार सलाम, तुम देश के उन लाखों नारियों की प्रेरणा स्रोत हो जो अन्याय और उत्पीड़न का शिकार होकर घर में घुटने को मजबूर हैं.
तेरे मौसम
रोज़ क्यूँ बदलते हैं ………
रीते रंग वाले लब सिकुड्ते हैं ,
सूख जाता है चुप्पी का बांध ,
चूने लगता है नाम तेरा....
रोज़ क्यूँ बदलते हैं ………
रीते रंग वाले लब सिकुड्ते हैं ,
सूख जाता है चुप्पी का बांध ,
चूने लगता है नाम तेरा....
गर बच सके तो "कुछ" बचा लो
एक सिक्के के दो पहलू
आज टके भाव भी न बिकते हैं
फिर भी आने वाली पीढ़ी के लिए
ईमान के इस खजाने को
नेस्तनाबूद होने से पहले
गर बच सके तो
"कुछ" बचा लो
सब कुछ मिटने से पहले
संस्कृति, संस्कार और सभ्यताएक सिक्के के दो पहलू
आज टके भाव भी न बिकते हैं
फिर भी आने वाली पीढ़ी के लिए
ईमान के इस खजाने को
नेस्तनाबूद होने से पहले
गर बच सके तो
"कुछ" बचा लो
दोस्तों
अब आज्ञा दीजिये ………अगले शनिवार फिर रु-ब-रु होंगे कुछ नये चेहरों के साथ कुछ नयी बातों के साथ ………तब तक के लिये शुभ विदा!
अच्छे लिंकों के साथ सधी हुई चर्चा!
जवाब देंहटाएंआपका आभार!
सुंदर सूत्र, व्यवस्थित चर्चामंच...आभार !!
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट सूत्र ....गहन चर्चा ...शुभकामनायें वंदना जी ।
जवाब देंहटाएंप्रिय वंदना जी बहुत सुन्दर सूक्ष्म समीक्षा के साथ सभी पोस्ट की चर्चा बहुत पसंद आई मेरी ग़ज़ल को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार और सुन्दर चर्चामंच हेतु बहुत बहुत बधाइयां
जवाब देंहटाएंशुभप्रभात वंदना जी :))
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर चर्चामंच प्रस्तुत करने के लिए बहुत बहुत बधाई !!
Aapka chayan santulit hai,silsilewar hai,jigyasa ke saath tartamya rakhne wala hai. Aabhar.
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा
जवाब देंहटाएंबढिया लिंक्स
vandana ji - thanks. :)
जवाब देंहटाएं@goodh uttar - uttar mere nahi hain - upanishadon se hain ...
चर्चा में कुछ वित्र-वित्र भी हो जाए तो कोई बुराई नहीं
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति .आभार
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट लेखन !!
जवाब देंहटाएंnice charcha
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच पर आपका अंदाज पसंद आता है !!
जवाब देंहटाएंसुन्दर और रोचक चर्चा...
जवाब देंहटाएंहर तरह की रोचक व पठनीय सामग्री से सुसज्जित सुंदर लिंक्स.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सूत्र संकलन
जवाब देंहटाएंविलम्ब के लिए क्षमा चाहती हूँ वंदना...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा है...
हमारी रचना को स्थान देने का शुक्रिया....
सस्नेह
अनु