आप सबका हार्दिक स्वागत है | आज के इस खास दिन (12-12-12) को मुझे चर्चा लगाने का मौका मिला | इस दिन को यादगार बनाने ने के लिए न जाने कितने लोगों ने अपने होने वाले बच्चे के लिए शल्य प्रक्रिया द्वारा आज का दिन सुनिश्चित करवा रखा है तो कितने ही लोग आज के ही दिन शादी कर रहे हैं और भी न जाने क्या-क्या कर रहे हैं | बारह, बारह, बारह का, अजब गज़ब संयोग | यादगार सबके लिए, न हो कोई वियोग || अब शुरू करते हैं आज की चर्चा:- |
थानेदार कवि - gajendra singh @ लाडनूं अंचल | अरे डॉक्टर यह दिल है मेरा - RAJIV CHATURVEDI @ Impleadment |
माँ- Akash Mishra @ || आकाश के उस पार || माँ जीवन की नैया है, माँ जीवन का सार | माँ की महत्ता जीवन में, जैसे अपरमपार || | क्षितिज के पार (डॉ. माधवी सिंह) - yashoda agrawal @ मेरी धरोहर मन की सीमा नहीं कोई, वह तो है अनंत | सुख-दुख भाग हैं चक्र के, जिसका आदि न अंत || |
हेमन्त ऋतु के दोहे @ अरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ) कार्तिक अगहन पूस ले, आता जब हेमन्त मन की चाहत सोचती, बनूँ निराला पन्त | शाल गुलाबी ओढ़ कर, शरद बने हेमंत | शकुन्तला को ढूँढता , है मन का दुष्यन्त | कोहरा रोके रास्ता , ओस चूमती देह लिपट-चिपट शीतल पवन,जतलाती है नेह | ऊन बेचता हर गली , जलता हुआ अलाव पवन अगहनी मांगती , औने - पौने भाव | |
श्याम मधुशाला - डा. श्याम गुप्त @ एक ब्लॉग सबका देशी हो या हो विदेशी, दारू तो है एक जहर | जन-जीवन ये बिखर है जाता, साँसे जाती हैं ठहर || | लक्ष्य पर नजर रखे - bhuneshwari malot @ भारतीय नारी मेहनत और लगन से ही, होता मंजिल हासिल | जो सागर से डर रह जाते, उनका अंत है साहिल || |
अहंकार - देवेन्द्र पाण्डेय @ ब्लॉग और ब्लॉगर की टिप्पणी | मैं कहाँ शब्दों में बांध पायी हूँ......तुम्हे ......!!! - sushma 'आहुति' @ 'आहुति' |
"झूले कैसे पड़ें बाग में?" - डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’ ![]() आँगन के सब नीम कट गये, पेड़ आम के जले आग में। नस्ल विदेशी उगा रहे सब, झूले कैसे पड़ें बाग में? बात-बात में झगड़ा-दंगा, हुआ आदमी कितना नंगा, समता-ममता रूठ गई है, धुला न मन का द्वेष फाग में। नस्ल विदेशी उगा रहे सब, झूले कैसे पड़ें बाग में?... |
दर्द का रिश्ता - Maheshwari kaneri @ अभिव्यंजना बेटी एक ऐसा शब्द है जिसे सुनते ही बहुत से अहसास मन में उभरने लगते हैं । कुछ दर्द कुछ ममता कुछ चिन्ता कुछ डर कुछ गर्व….अगर बेटी शादीशुदा है और ससुराल में है,चाहे कितनी भी सुखी और संपन्न क्यों न हो ,फिर भी माँ की ममता का छोर भीगा ही रहता है। | Jhootha Mukadma - madhu singh @ Benakab बन मुकदमा एक झूठा खुद जिन्दगी से लड़ती रही खुद बनी अपना वकील ख़ुद से ज़िरह करती रही ख़ुद बनी मुज़रिम इल्जाम ख़ुद पर ही लगाती रही बेडियाँ पावों में डाले अपने, ख़ुद को तलब करती रही |
सह न पाई - Asha Saxena @ Akanksha देख बदहाली उसकी ,मन को लागी ठेस | प्यारा था पहले कितना ,लोक लुभावन वेश || साथ समय के बदल गया ,रूप रंग वह तेज | शरीर ढांचा रह गया ,चेहरा हुआ निस्तेज || | दार्शनिक साँझ - कविता विकास @ काव्य वाटिका क्षितिज पर ढलता सूरज गुलाबी आसमां नारंगी ,मटमैली किरणें क्षीण सी ,निस्तेज धूमिल दिशाएँ कैसी सुन्दर साँझ । |
अफ़ज़ल गुरू -1 - रणधीर सिंह सुमन @ लो क सं घ र्ष ! | हवा का झोंका ! - संतोष त्रिवेदी @ बैसवारी |
।। सम्मान या अभिमान ।। - Neetu Singhal @ NEET-NEET उत्कृष्ट प्रतिभावान को दिया गया पुरस्कार-सम्मान न केवल प्रतिभा को अपितु सम्मान के नाम को भी उत्कृष्ट करता है.., | इस देश की मिट्टी पोली है - उदय वीर सिंह @ उन्नयन इस देश की मिट्टी पोली है हर पौध उगाया करती है - जन्म -मरण,उत्थान -पतन, हर रश्म निभाया करती है - |
ये पहरुवे हैं हमारे पर्यावरण के - Virendra Kumar Sharma @ ram ram bhai सन्देश परक लघु कथा है .ऐसी कथा आप बा -कायदा लिख सकतें हैं बस थोड़ी सी शैली बदल दें .मसलन -वह पेड़ रास्ते को छाया देता था पक्षियों को आश्रय .घनी थी उसकी शाखाएं ,कोटर .कोटर में थे |
ये जीवन है??? - संध्या शर्मा @ मैं और मेरी कविताएं | लॉबिंग का काला कारोबार - जयराम शुक्ल @ दरअसल |
इसे कहते हैं लॉबिंग !!? ![]() - Kirtish Bhatt@ बामुलाहिजा |
पाइरेट होना फ़िल्म 'दीवार' का![]() @ काजल कुमार के कार्टून |
आज की चर्चा यही पे समाप्त करता हूँ | अब प्रदीप को आज्ञा दीजिये | मिलते हैं अगले बुधवार कुछ अन्य लिंक्स के साथ | आभार | |
१२.१२.१२. का अजब गजब संयोग है
ReplyDeleteअच्छी और पर्याप्त लिंक्स पढने के लिए |
मेरी कविता शामिल करने के लिए आभार |
आशा
12.12.12 का अच्छा संयोग है!
ReplyDeleteआपके चर्चा के दिन ही यह करिश्मा हुआ।
बधाई हो।
चर्चा में सभी लिंकों का चयन बहुत उत्तम है।
लिंकों का बहुत अच्छा चयन !
बधाई !!
#
12-12-12 के अद्भुत् संयोग के अवसर पर
लीजिए आनंद ,
कीजिए आस्वादन
वर्ष 2012 के 12वें महीने की 12वीं तारीख को
12 बज कर 12 मिनट 12 सैकंड पर
शस्वरं पर पोस्ट किए
मेरे लिखे 12 दोहों का
:)
मेरी पसंदीदा रचना को यहाँ स्थान दिया गया
ReplyDeleteआभार
बेहतरीन प्रयास.... बहुआयामी सृजन दर्शन बहुत -२ बधाईयाँ जी ... यूँ ही कारवां चलता रहे .....
ReplyDeleteबहुत बहुत बढ़िया....
ReplyDeleteसभी लिंक्स शानदार...
शुक्रिया..
अनु
चर्चा मंच पर चर्चा के लिए उम्दा लिंक !!
ReplyDeletenice
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिंक संकलन... स्थान देने के लिए आभार
ReplyDeleteबढिया लिंक्स्………………सुन्दर चर्चा
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिंक
ReplyDeleteमेरी नई पोस्ट "गजल "
12.12.12 का अच्छा संयोग है!आप सब को बधाई..बहुत अच्छे लिंक दिए मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार...
ReplyDeleteबढिया चर्चा..
ReplyDeleteसुंदर लिंक्स
बहुत सुन्दर सार्थक चर्चा लगाई प्रिय प्रदीप बहुत बहुत शुभकामनाएं
ReplyDelete12.12.12 का अच्छा संयोग बधाई..बहुत अच्छे लिंक..........
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति . बधाई भारत पाक एकीकरण -नहीं कभी नहीं
ReplyDeleteसार्थक चर्चा व् उपयोगी लिंक्स यहाँ प्रस्तुत करने हेतु आपका हार्दिक आभार .
ReplyDeleteहम हिंदी चिट्ठाकार हैं
इस अजब गजब सयोग के दिन मेरी रचना को चर्चा मंच पर स्थान देने पर आपका हार्दिक आभार!
ReplyDeleteमित्रों!
ReplyDelete13 दिसम्बर से 16 दिसम्बर तक देहरादून में प्रवास रहेगा!
उच्चारण पर रचनाएँ शैड्यूल कर दी हैं। रविवार की चर्चा भी लगा दी है!
शुक्रवार की चर्चा बहन राजेश कुमारी जी लगायेंगी, क्योंकि आदरणीय रविकर जी भी प्रवास पर हैं!
सूचनार्थ!
लाबी और लाबींग..सुखद संयोग..
ReplyDeletepradeep ji ,sundar si is CHARCHA MANCH ke liye badhaai aur meri kavita lagane ke liye shukriya.
ReplyDeleteबेहतर लेखन !!
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteप्रदीप जी बहुत अच्छे लिंक्स संजोये हैं आपने .. "अरे डॉक्टर यह दिल है मेरा" राजीव जी की इस कविता का तो दीवाना हो गया मै। "थानेदार कवि" मैं पहले ही पढ़ चूका हूँ ..गजेन्द्र जी द्वारा प्रस्तुत यायावर जी की दोनों ही कवितायेँ ग़जब की लगी।आकाश जी के द्वरा रचित " माँ " की दास्ताँ मन को छु गयी। यशोदा जी द्वारा प्रस्तुत और डॉ. माधवी सिंह द्वारा रचित "क्षितिज के पार..........." क्या कमाल की है। "हेमन्त ऋतू के दोहे" अच्छे लगे। डॉ श्याम जी द्वारा रचित "श्याम मधुशाला " बेहद गजब की लगी, वहीँ "लक्ष्य पर नजर रखे" नामक लघु कथा सार्थक सन्देश देती है। दवेंद्र जी का "अहंकार" पढ़कर खूब मजा आया। सुषमा जी की रचना "मैं कहाँ शब्दों में बांध पाई हूँ ......तुम्हें.....!!!" मैंने पहले पढ़ ली थी, वो हमेशा ही लाजवाब लिखती हैं। "झूले कैसे पड़ें बाग़ में" डॉ 'मयंक' जी की रचना तो इस चर्चा में सोने पर सुहागा है। वीरेन्द्र कुमार शर्मा जी का बहुत आभारी हूँ की उन्होंने अपनी रचना "ये पहरुवे है हमारे पर्यावरण के " में मेरी रचना बेतुकी खुशियाँ को जोड़कर मुझे लेखन कार्य के अनमोल सुझाव भी दिए। "ये जीवन हैं???..." संध्या जी को पहली बार पढ़ कर बहुत अच्छा लगा।
ReplyDeleteआभार
धन्यवाद गेरोला जी....विशद व सार्थक एवं चलताऊ संक्षिप्त की बजाय वास्तविक टिप्पणी हेतु .....
Deleteआस पडोसी अनजाने से.
ReplyDeleteरिश्ते नाते सपनों जैसे,
टीवी पर त्यौहार मनाते
लोग यहाँ के बड़े निराले ?
भाव और विचार सुन्दर ढंग से अभिव्यक्त हुए हैं रचना में .
आस पडोसी अनजाने से.
ReplyDeleteरिश्ते नाते सपनों जैसे,
टीवी पर त्यौहार मनाते
लोग यहाँ के बड़े निराले ?
भाव और विचार सुन्दर ढंग से अभिव्यक्त हुए हैं रचना में .
थानेदार कवि
- gajendra singh
@ लाडनूं अंचल
ReplyDeleteइस पोस्ट ने आज का दिन बना दिया..मुझसे जाने क्या-क्या लिखा दिया!
दीवाना हमें भी बना दिया .
अहंकार
- देवेन्द्र पाण्डेय
@ ब्लॉग और ब्लॉगर की टिप्पणी
काव्य सौन्दर्य ,भाव विचार ,राग ,मल्हार और हेमंत में खान पान की सहज अभिव्यक्ति जन भाषा में .मोहक रूप दोहावली का .आप भी पढ़ें -
ReplyDeleteअरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ)
TUESDAY, DECEMBER 11, 2012
हेमन्त ऋतु के दोहे
कार्तिक अगहन पूस ले, आता जब हेमन्त
मन की चाहत सोचती, बनूँ निराला पन्त |
शाल गुलाबी ओढ़ कर, शरद बने हेमंत |
शकुन्तला को ढूँढता , है मन का दुष्यन्त |
कोहरा रोके रास्ता , ओस चूमती देह
लिपट-चिपट शीतल पवन,जतलाती है नेह |
ऊन बेचता हर गली , जलता हुआ अलाव
पवन अगहनी मांगती , औने - पौने भाव |
मौसम का ले लो मजा, शहरी चोला फेंक
चूल्हे के अंगार में , मूँगफल्लियाँ सेंक |
मक्के की रोटी गरम , खाओ गुड़ के संग
फिर देखो कैसी जगे, तन मन मस्त तरंग |
गर्म पराठे कुरकुरे , मेथी के जब खायँ
चटनी लहसुन मिर्च की,भूले बिना बनायँ |
गाजर का हलुवा कहे, ले लो सेहत स्वाद
हँसते रहना साल भर, मुझको करके याद |
सीताफल हँसने लगा , खिले बेर के फूल
सरसों की अँगड़ाइयाँ, जलता देख बबूल |
भाँति भाँति के कंद ने, दिखलाया है रूप
इस मौसम भाती नहीं, किसे सुनहरी धूप |
मौसम उर्जा बाँटता , है जीवन पर्यंत
संचित तन मन में करो,सदा रहो बलवंत |
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (मध्यप्रदेश)
"गर्म पराठे कुरकुरे , मेथी के जब खायँ."...क्या बात है मज़ा आगया .... कल ही तो खाए थे ..क्या आपको खुशबू आयी हुज़ूर...
Deleteसुन्दर भावाभिव्यक्ति उम्र के पड़ाव की ,ठहराव की .
ReplyDeleteये जीवन है???
- संध्या शर्मा
@ मैं और मेरी कविताएं
ReplyDeleteप्रेरक बोध कथा ,उत्प्रेरक प्रसंग .डॉ .श्याम कई मर्तबा विरोध स्वरूप विरोध पर उतर आतें हैं ऐसी क्या हीन ग्रन्थी है भाई ,उद्धृत दोहे की दूसरी पंक्ति यूं है -बिन साबुन ,पानी बिना निर्मल होत सुभाय .
लक्ष्य पर नजर रखे
- bhuneshwari malot
@ भारतीय नारी
मेहनत और लगन से ही,
होता मंजिल हासिल |
जो सागर से डर रह जाते,
उनका अंत है साहिल ||
----ये विरोध स्वरुप विरोध क्या होता है वीरेन्द्र जी ......शायद आप कहना चाहते हैं "सिर्फ विरोध के लिए विरोध" यही सही वाक्य व कथ्य है.....
Delete----यही अंतर होता है कथन हेतु उपयुक्त शब्दचयन व उनके तात्विक अर्थ समझने में .... इसीप्रकार इंगित स्थान पर समझें .....
बिन साबुन ,पानी बिना निर्मल होत सुभाय ...और मेरे विचार से तो यदि यह पंक्ति सही है तो 'बिना' शब्द की पुनुरोक्ति हुई है ..जो एक दोष हो सकता है....
Deleteलक्ष्य पर नजर रखे
ReplyDelete- bhuneshwari malot
@ भारतीय नारी
मेहनत और लगन से ही,
होता मंजिल हासिल |
जो सागर से डर रह जाते,
उनका अंत है साहिल ||
बढ़िया सन्देश परक रचना -सेहत करती चौपट निसि दिन ,साकी ये तेरी हाला ,यकृत से होकर जायेगी ,मय ,तेरी मदिरा ,हाला .
ReplyDeleteश्याम मधुशाला
- डा. श्याम गुप्त
@ एक ब्लॉग सबका
देशी हो या हो विदेशी,
दारू तो है एक जहर |
जन-जीवन ये बिखर है जाता,
साँसे जाती हैं ठहर ||
bhaut hi khubsurat links diye aapne....
ReplyDeleteरोहितास (रोहतास )भाई रचना तो यह मूलतया आपकी ही थी हमने तो इस पर टिपण्णी ही पोस्ट की है .शुक्रिया आपके खुले और सहज पन का .
ReplyDeleteवीरेन्द्र कुमार शर्मा जी का बहुत आभारी हूँ की उन्होंने अपनी रचना "ये पहरुवे है हमारे पर्यावरण के " में मेरी रचना बेतुकी खुशियाँ को जोड़कर मुझे लेखन कार्य के अनमोल सुझाव भी दिए।
ये पहरुवे हैं हमारे पर्यावरण के
- Virendra Kumar Sharma
@ ram ram bhai
सन्देश परक लघु कथा है .ऐसी कथा आप बा -कायदा लिख सकतें हैं बस थोड़ी सी शैली बदल दें .मसलन -वह पेड़ रास्ते को छाया देता था पक्षियों को आश्रय .घनी थी उसकी शाखाएं ,कोटर .कोटर में थे।।।।।।
मेरे नए ब्लॉग की पहली पोस्ट ने चर्चा मंच में स्थान बनाया यह मेरे लिए बड़ी खुशी की बात है।..आभार।
ReplyDeleteरोहितास (रोहतास )भाई रचना तो यह मूलतया आपकी ही थी हमने तो इस पर टिपण्णी ही पोस्ट की है .शुक्रिया आपके खुले और सहज पन का .
ReplyDeleteवीरेन्द्र कुमार शर्मा जी का बहुत आभारी हूँ की उन्होंने अपनी रचना "ये पहरुवे है हमारे पर्यावरण के " में मेरी रचना बेतुकी खुशियाँ को जोड़कर मुझे लेखन कार्य के अनमोल सुझाव भी दिए।
ये पहरुवे हैं हमारे पर्यावरण के
- Virendra Kumar Sharma
@ ram ram bhai
सन्देश परक लघु कथा है .ऐसी कथा आप बा -कायदा लिख सकतें हैं बस थोड़ी सी शैली बदल दें .मसलन -वह पेड़ रास्ते को छाया देता था पक्षियों को आश्रय .घनी थी उसकी शाखाएं ,कोटर .कोटर में थे।।।।।।
सुंदर लिंक्स संयोजन..
ReplyDeleteरोहितास (रोहतास )भाई रचना तो यह मूलतया आपकी ही थी हमने तो इस पर टिपण्णी ही पोस्ट की है .शुक्रिया आपके खुले और सहज पन का .
ReplyDeleteवीरेन्द्र कुमार शर्मा जी का बहुत आभारी हूँ की उन्होंने अपनी रचना "ये पहरुवे है हमारे पर्यावरण के " में मेरी रचना बेतुकी खुशियाँ को जोड़कर मुझे लेखन कार्य के अनमोल सुझाव भी दिए।
ये पहरुवे हैं हमारे पर्यावरण के
- Virendra Kumar Sharma
@ ram ram bhai
सन्देश परक लघु कथा है .ऐसी कथा आप बा -कायदा लिख सकतें हैं बस थोड़ी सी शैली बदल दें .मसलन -वह पेड़ रास्ते को छाया देता था पक्षियों को आश्रय .घनी थी उसकी शाखाएं ,कोटर .कोटर में थे।।।।।।
रोहितास (रोहतास )भाई रचना तो यह मूलतया आपकी ही थी हमने तो इस पर टिपण्णी ही पोस्ट की है .शुक्रिया आपके खुले और सहज पन का .
ReplyDeleteवीरेन्द्र कुमार शर्मा जी का बहुत आभारी हूँ की उन्होंने अपनी रचना "ये पहरुवे है हमारे पर्यावरण के " में मेरी रचना बेतुकी खुशियाँ को जोड़कर मुझे लेखन कार्य के अनमोल सुझाव भी दिए।
ये पहरुवे हैं हमारे पर्यावरण के
- Virendra Kumar Sharma
@ ram ram bhai
सन्देश परक लघु कथा है .ऐसी कथा आप बा -कायदा लिख सकतें हैं बस थोड़ी सी शैली बदल दें .मसलन -वह पेड़ रास्ते को छाया देता था पक्षियों को आश्रय .घनी थी उसकी शाखाएं ,कोटर .कोटर में थे।।।।।।
रोहितास (रोहतास )भाई रचना तो यह मूलतया आपकी ही थी हमने तो इस पर टिपण्णी ही पोस्ट की है .शुक्रिया आपके खुले और सहज पन का .
ReplyDeleteवीरेन्द्र कुमार शर्मा जी का बहुत आभारी हूँ की उन्होंने अपनी रचना "ये पहरुवे है हमारे पर्यावरण के " में मेरी रचना बेतुकी खुशियाँ को जोड़कर मुझे लेखन कार्य के अनमोल सुझाव भी दिए।
ये पहरुवे हैं हमारे पर्यावरण के
- Virendra Kumar Sharma
@ ram ram bhai
सन्देश परक लघु कथा है .ऐसी कथा आप बा -कायदा लिख सकतें हैं बस थोड़ी सी शैली बदल दें .मसलन -वह पेड़ रास्ते को छाया देता था पक्षियों को आश्रय .घनी थी उसकी शाखाएं ,कोटर .कोटर में थे।।।।।।
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ये पहरुवे हैं हमारे पर्यावरण के
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@ ram ram bhai
सन्देश परक लघु कथा है .ऐसी कथा आप बा -कायदा लिख सकतें हैं बस थोड़ी सी शैली बदल दें .मसलन -वह पेड़ रास्ते को छाया देता था पक्षियों को आश्रय .घनी थी उसकी शाखाएं ,कोटर .कोटर में थे।।।।।।
रोहितास (रोहतास )भाई रचना तो यह मूलतया आपकी ही थी हमने तो इस पर टिपण्णी ही पोस्ट की है .शुक्रिया आपके खुले और सहज पन का .
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ये पहरुवे हैं हमारे पर्यावरण के
- Virendra Kumar Sharma
@ ram ram bhai
सन्देश परक लघु कथा है .ऐसी कथा आप बा -कायदा लिख सकतें हैं बस थोड़ी सी शैली बदल दें .मसलन -वह पेड़ रास्ते को छाया देता था पक्षियों को आश्रय .घनी थी उसकी शाखाएं ,कोटर .कोटर में थे।।।।।।
उम्दा लिंक्स,,,प्रस्तुति
ReplyDeleterecent post हमको रखवालो ने लूटा