दोस्तों! चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ का नमस्कार! सोमवारीय चर्चामंच पर पेशे-ख़िदमत है आज की चर्चा का-
लिंक 1-
कैसे जानूं मैं -निरन्तर
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लिंक 2-
मेरी सोच के डायरी के पन्ने -अंजू चौधरी
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लिंक 3-
मेरे हाथो की ये चूड़ियाँ न जाने क्या गुनगुना रही हैं -सुषमा आहुति
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लिंक 4-
खुद की तुलना के लिए नौकरी करना क्या ठीक है? -पल्लवी सक्सेना
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लिंक 5-
राम राम भाई! हम असली गाँधीवादी हैं -वीरेन्द्र कुमार शर्मा ‘वीरू भाई’
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लिंक 6-
जय हिन्दी जय भारत -अरुणा कपूर
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लिंक 7-
‘बैंडिट क्वीन’ से शुरुआत -सौरभ शुक्ला, प्रस्तुति- माधवी शर्मा गुलेरी
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लिंक 8-
मिलन की आस -डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’
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लिंक 9-
इक साल -रजनीश तिवारी
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लिंक 10-
साहब की कोठी -मनोज कुमार
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लिंक 11-
भेड़ें कहतीं ले लो बाल मियाँ -गिरीश पाण्डेय
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लिंक 12-
मेरी डगर -डॉ. नूतन डिमरी गैरोला
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लिंक 13-
छोटी सी 'बड़ी बात' -पुरुषोत्तम पाण्डेय
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लिंक 14-
शब्द -ईश मिश्र
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लिंक 15-
आजा री निंदिया रानी तू आजा! -मृदुला हर्षवर्द्धन
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आज के लिए इतना ही, फिर मिलने तक नमस्कार!
कमेंट बाई फ़ेसबुक आई.डी.
बहुत अच्छे पठनीय सूत्रों से सजी चर्चा के लिए बहुत बहुत बधाई गाफिल जी
जवाब देंहटाएंकाफ़ी बढिया लिंक्स संजोये हैं ।
जवाब देंहटाएंबढिया लिंक्स
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा
अच्छे लिंकों के साथ बढ़िया चर्चा!
जवाब देंहटाएंआभार!
लिंक-15
जवाब देंहटाएंस्वप्न सलोने ले आती है, जब आती है निंदिया।
प्रियतम तुम्हें रिझाने को ये, झिलमिल करती बिंदिया।।
लिंक-1
जवाब देंहटाएंदुश्मन की अरु मित्र की, मुश्किल है पहचान।
जो गर्दिश में साथ दे, मित्र उसी को मान।।
लिंक-2
जवाब देंहटाएंअपनी पुस्तक में करो, भावनाओं को व्यक्त।
कोरे कागज को भरो, हो करके अनुरक्त।।
लिंक-3
जवाब देंहटाएंहाथों की ये चूढ़ियाँ, जब करती हैं शोर।
सुन कर इस संगीत को, नाचे मन का मोर।।
लिंक-4
जवाब देंहटाएंदूजों की कर चाकरी, मत होना बदनाम।
भड़कीली छवि देखकर, जग जाता है काम।।
लिंक-5
जवाब देंहटाएंगांधी जी के नाम को, भुना रहे हैं लोग।
गांधी के ही नाम से, चला रहे उद्योग।।
लिंक-6
जवाब देंहटाएंराष्ट्रभाषा हिन्दी की ओर प्रेरित करता बढ़िया लघुआलेख!
लिंक-9
जवाब देंहटाएंचमकेगा अब गगन-भाल।
आने वाला है नया साल।।
आशाएँ सरसती हैं मन में,
खुशियाँ बरसेंगी आँगन में,
सुधरेंगें बिगड़े हुए हाल।
आने वाला है नया साल।।
लिंक-12
जवाब देंहटाएंमन में आशा का संचार करती सुन्दर रचना!
बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार!
बढ़िया चर्चा । सभी लिंक्स बढ़िया ।
जवाब देंहटाएंकैसे जानूं मैं -निरन्तर
जवाब देंहटाएंधीरज ,धर्म, मित्र अरु नारी ,आपद काल परखिये ही चारी .......जो आपके ब्लॉग पे निरंतर आये आप वहां न जाएँ ....निरंतर बस कलम चलायें ....
बिना लाल बत्ती वाला नेता ला -वारिश होता है श्रीमान बत्ती राखिये .....
जवाब देंहटाएं"लालबत्ती मुझे भी चाहिए" (कार्टूनिस्ट मयंक)
बढ़िया आद्र संस्मरण .एहसान हलाली हरेक को आती नहीं है यह एहसान फरामोसों का दौर है पहले लोग -नेकी कर दरिया में डाल ,का फलसफा लिए होते थे आपकी तरह .
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचना है कृपया अनुनासिक /अनुस्वार लगाएं रचना को शुद्ध करें ....मिलाएं कृपया ,आदर और नेहा से ....वीरुभाई ...
जवाब देंहटाएं(हाथों ,हैं ,धडकनें ,)
Sunday, 16 December 2012
मेरे हाथो की ये चूड़ियाँ न जाने क्या गुनगुना रही है....!!
मेरे हाथो की ये चूड़ियाँ न जाने,
क्या गुनगुना रही है....
खनक-खनक मेरे हाथो में,
याद तुम्हारी दिला रही है.....
पूछ न ले कोई सबब इनके खनकने का,
मैं इनको जितना थामती हूँ...
नही मानती मेरी बे-धड़क
शोर मचा रही है,
मेरे हाथो की ये चूड़ियाँ
न जाने क्या गुनगुना रही है.....
मैं कुछ कहूँ न कहूँ मेरा हाल-ए-दिल...
मेरी चूड़ियां सुना रही है.....
आज भी तुम्हारी उँगलियों की छुअन से,
मेरी चूड़ियाँ शरमा रही है...
मेरे हाथो की ये चूड़ियाँ न जाने क्या गुनगुना रही है..
मेरी हाथो से है लिपटी,
एहसास तुम्हारा दिला रही है.....
मैं कब से थाम कर बैठी हूँ,
अपनी धडकनों को....
जब भी खनकती है मेरे हाथो में,
धड़कने तुम्हारी सुना रही है.....
मेरे हाथो की ये चूड़ियाँ न जाने क्या गुनगुना रही है..
तुम्हारी तरह ये मुझसे ये रूठती भी है,
रूठ कर टूटती भी है....
मैं इनको फिर मना रही हूँ....
सहज कर अपने हाथो में सजा रही हूँ,
ये फिर मचल कर तुम्हारी बाते किये जा रही है....
मेरे हाथो की ये चूड़ियाँ न जाने क्या गुनगुना रही है..
Posted by sushma 'आहुति' at 04:26
जवाब देंहटाएंसड़क पे गाड़ी चलाने वाला हिन्दुस्तान में अपने आपको अफलातून समझता है और गाड़ी पुलिस की हो तो अफलातून का भी बाप मान लेता है स्साला खुद को .यह हमारे नागर बोध की एक झलक मात्र हैं पुलिसिया के तो कहने ही क्या .बढ़िया रिपोर्ताज ...
लिंक 10-
साहब की कोठी -मनोज कुमार
लिंक 10-
जवाब देंहटाएंसाहब की कोठी -मनोज कुमार
behtreen links.....
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