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शनिवार, दिसंबर 22, 2012

अति के ज़माने में इति कहाँ होती है?

 दोस्तों

 शायद ही कोई ऐसा शख्स होगा जिसका मन आज शांत होगा जब हम और हमारा देश, हमारा समाज ऐसे घटना चक्रों से गुजर रहा हो जहाँ हमारी वर्तमान और आने वाली पीढियाँ सुरक्षित ना हों तो कुछ कहने का मन नहीं करता इसलिये आज की चर्चा में सिर्फ़ शीर्षकों पर ही कमेंट लिख रही हूँ ………अन्यथा ना लीजियेगा

 

क्योंकि तख्ता पलट यूँ ही नहीं हुआ करते ...........

एक चिंगारी जरूरी है…………



"पड़ने वाले नये साल के हैं कदम" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

और ज़िन्दगी सवाल बन खडी है………



सारी रात मेरे शब्द जलते रहे ...तुम पत्थर से मोम बनते रहे

काश ! हकीकत में ये संभव हो पाता……



न+इति

अति के ज़माने में इति कहाँ होती है?

 

 

चिंतन

आज जरूरी है……

 


''चाहिए एक विभीषण'' .......

लंका दहन के लिये ……

 

 

जहाँ नारी का अपमान होता है....

नहीं रहते वहाँ देवता ………सुना करते थे मगर आज तो ये सच नहीं दिखता 

 


साम्भर झील और शाकुम्भरी माता

चलिये इस सफ़र पर भी…………



केन्द्रीय साहित्य अकादेमी सम्मान-2012:हमारे समय के सबसे बड़े कवियों में से हैं चंद्रकांत देवताले जी

साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर गिने चुने ही हैं 



सोचो दोस्तों..........( बहुत पुरानी पंक्तियाँ)

जो आज भी प्रासंगिक हैं 

 

 

ज़िंदगी ज़िंदा रही

क्या सच में ?

 

 

शब्दों के चाक पर - अंक 22

कुछ धूप को गुनगुनाने दो 

 

 

यहां की औरतें मांग में सिंदूर नहीं, मिट्टी भरती है !

रस्मो रिवाज़ अपने - अपने

 

 

Blogger Posts में Google+ Mention कैसे प्रयोग करें? 

जानिये इस तरीके को भी 



रमई पाट में गर्भवती सीता ........ ललित शर्मा 

एक अवलोकन यहाँ भी



वो लड़की रौंद दी जाती है अस्मत जिसकी

क्या सच में वो ज़िन्दा होकर भी ज़िन्दा होती है ?

 


ब्लागर बीवी

करे धमाल 

रोटी का है बुरा हाल



काँची...

होगी कोई हमारे आस- पास



जीवन चदरिया...संध्या शर्मा

झीनी होती जाये रे ………



एक आवाज़ उठेगी तो सौ संग में जुड़ जाएँगी.........

फिर तो क्रांति आ जायेगी………



बेबस दिल्ली

सिर्फ़ दो आँसू बहा सकती है अपने हाल पर 



कविता नहीं .... डर

डर ………अन्दर और बाहर दोनों तरफ़ 

बराबरी से दस्तक दे रहा है आज ……



केवल भ्रम है...

ना जाने कब सच होगा ?

 

 

ज़िन्दगी - जितने चेहरे ,उतने रंग

मुखौटे जो लगे हैं


संवेदनहीनता की पराकाष्ठा....

अब और क्या बचा ?


खुश नसीब

कौन है आज ?


सवाल सबके है और वाजिब हैं .....जवाब ???

जवाब तो नदारद ही होंगे



उस दिन के लिए तैयार रहना..तुम!....

क्या होगी इतनी हिम्मत ?



एक गृहिणी.......

इससे इतर एक नारी भी है


आज की चर्चा को यहीं विश्राम देती हूँ ………अब आज्ञा।

 

14 टिप्‍पणियां:

  1. शुभप्रभात वन्दना जी :))
    सराहनीय प्रयास !!
    शुभकामनायें !!

    जवाब देंहटाएं
  2. संवेदनाओं को झकझोरती और सवाल करती हुयी चर्चा !!

    जवाब देंहटाएं
  3. प्रभावशाली लिंक संकलन... स्थान देने के लिए आभार

    जवाब देंहटाएं
  4. वन्दना जी, आज की चर्चा में सभी शीर्षकों पर आपने बहुत सटीक टिप्पणियाँ की हैं..बधाई व आभार !

    जवाब देंहटाएं
  5. सटीक सार्थक टिप्पणियों के साथ एक गंभीर सूत्र संकलन बहुत अच्छी चर्चा के लिए बधाई

    जवाब देंहटाएं
  6. बेहतर लेखनी, बधाई !!

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत बढ़िया लिंक्स के साथ चर्चा प्रस्तुति के लिय एबाह्र!

    जवाब देंहटाएं
  8. हमारे देश में यदि किसी घर में लड़के का जन्म होता है तो
    उसे आँखों में धर लेते हैं , जब वह धुटने पर चलने लगता है
    तो उसे कंधे पर धर लेते हैं, और जब वो खड़ा होता है तो
    उसे खुले 'सांड' के जैसे खुला छोड़ देते हैं.....

    जवाब देंहटाएं
  9. सतरंगी रचनाये .......
    वंदना जी .........चिंतन से भरपूर अभिव्यक्तियों को मानसिक भोज के रूप में परोसने के लिए और मेरी रचना को इस पटल पर स्थान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  10. वन्दना जी आज का चर्चा बहुत ही अच्छा हैँ आपने कइ ऐसे ब्लाँग के लिँक आज जोडे हैँ जिसके बहुत दिनोँ से लिँक नही आ रहे थे ...
    बहुत ही अच्छी प्रस्तुती

    जवाब देंहटाएं
  11. बढ़िया लिंक्स वंदना जी ...........

    जवाब देंहटाएं

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