मित्रों।
दिन गुजरते हैं शाम होती है।
ज़िन्दग़ी यूँ ही तमाम होती है।।
सोमवार की चर्चा में मेरी पसंद के लिंक देखिए।
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वतन आज भी उदास है
ये कल भी उदास था
वतन आज भी उदास है -
कल दूसरों के पास था
आज अपनों के पास है-
कल अपाहिजों के सिर सजा ताज था..
वतन आज भी उदास है -
कल दूसरों के पास था
आज अपनों के पास है-
कल अपाहिजों के सिर सजा ताज था..
उन्नयन पर udaya veer singh
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"फोटो फीचर-बिजली कड़की पानी आया"
उमड़-घुमड़ कर बादल आये।
घटाटोप अँधियारा लाये।।
काँव-काँव कौआ चिल्लाया।
लू-गरमी का हुआ सफाया।।
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मन वैरागी
दस तांका
१.
हृदय गंगोत्री
प्रेम की गंगा
बही धारा
पावन समेट रही छल
जीत रही है बल|
२.
मन वैरागी
स्मृतियों का कानन
करे मगन
चुनो सुहाने पल
महकेगा आँचल...
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वह रोज़ दिख जाता है..
कहीं न कहीं
किसी न किसी के बनते मकान के बाहर
फैली रेत और मौरंग से
अपने सपनों को बनाते
कभी मिटाते हुए .....
Yashwant Yash
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कह मुकरियाँ
“कह- मुकरी”एक बहुत ही पुरातन और लुप्तप्राय: काव्य विधा है!
हज़रत अमीर खुसरो द्वारा विकसित
इस विधा पर भारतेंदु हरिश्चंद्र ने भी
स्तरीय काव्य-सृजन किया है..
"कह-मुकरी" अर्थात ’कह कर मुकर जाना’ !
ये अत्यंत लालित्यपूर्ण और चुलबुली सी लोकविधा है...
अभिव्यंजना पर Maheshwari kaneri
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हाथ लगा पृथ्वी का जुड़वाँ संगी
जिसके पास अपना पर्याप्त गुरुत्व भी है नैजिक वायुमंडल को थामे रखने में समर्थ ,सम्भवतया जिसकी ठोस सतह पर जल और जीवन भी है ऐसा ग्रह सौर मंडल के पार खगोल विज्ञानियों ने अपने प्रेक्षण में लिया है...
Virendra Kumar Sharma
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दूर तलक पीछा करती है
बचपन को मिली बद-सुलूकी
साइंसदानों ने पता लगाया है
उम्र के पांचवे दशक में भी
बचपन में हुई बद- सुलूकी के नतीजे भुगतने पड़ सकते हैं
अवसाद की सौगात के रूप में...
आपका ब्लॉग पर
Virendra Kumar Sharma
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दहकते शोलों पर जिंदगी
दहकते अंगारों पर नंगे पैर चलकर अग्नि-परीक्षा देने का चलन दुनियां के बहुत से हिस्सों में सदियों से चला आ रहा है.भारत,स्पेन,बुल्गारिया और फिजी के अनेक संप्रदायों में यह धार्मिक क्रियाकलापों का एक अंग है.आत्मशुद्धि और व्याधियों के उपचार के तरीके और श्रद्धा के प्रतीक रूप में दहकते अंगारों पर नंगे पैर चलना सदियों से यूनान और दुनियां के कुछ अन्य देशों में देवताओं की पूजा के साथ जुड़ा है...
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वोट देना है जरूरी
बहुत महंगा वोट हो रहा है
बहुत ज्यादा नहीं
बस थोड़ा बहुत ही तो हो रहा है
कहीं कुछ हो रहा है
तभी तो थोड़ा सा खर्चा भी हो रहा है
आय व्यय लेखा जोखा
कोई कहीं भी बो रहा है
तुझे किस बात की परेशानी है
तू किस के टके पैसे के लिये
रो धो रहा है...
उलूक टाइम्स पर सुशील कुमार जोशी
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तन्द्रा में क्यों पड़े हो, हिन्द के निवासियों,
सहने का वक्त अब नही, भारत के वासियों,
सौदागरों की बात पर बिल्कुल न ध्यान दो।
मुर्दों की तरह, बुज-दिली के मत निशान दो...
सहने का वक्त अब नही, भारत के वासियों,
सौदागरों की बात पर बिल्कुल न ध्यान दो।
मुर्दों की तरह, बुज-दिली के मत निशान दो...
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जिंदगी कितनी हसीन है.....
ख्वाब पलने लगे आंखों में.....
बरबस गुनगुना उठे लब....
तुम्हारा इसरार करना
बार-बार याद आता रहा...
रूप-अरूप
ख्वाब पलने लगे आंखों में.....
बरबस गुनगुना उठे लब....
तुम्हारा इसरार करना
बार-बार याद आता रहा...
रूप-अरूप
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पुस्तक - चंद आँसू, चंद अल्फ़ाज़
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पुस्तक - चंद आँसू, चंद अल्फ़ाज़
वर्ष 2005 में
मेरा ग़ज़लनुमा कविताओं का संग्रह प्रकाशित हुआ था ,
मैं इसे PDF FILE के रूप में
यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ
अगर आप इसे पढ़ना चाहें तो
इसे डाउनलोड़ कर सकते हैं...
साहित्य सुरभि--
सृजन की प्राथमिकता, ब्लॉगिंग और हम...
ब्लॉग हमारे लिए अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम है, इसे अभिव्यक्ति की नयी खोज भी कहा जाता रहा है. कुछ ब्लॉगर साथी इसे अभिव्यक्ति की नयी क्रान्ति भी कहते हैं. ब्लॉग के विषय में चाहे जितने भी मत और धारणाएं प्रचलन में हों, लेकिन यह सच है कि ब्लॉग जैसे माध्यम से अभिव्यक्ति को एक नया आयाम मिला है, सृजन को नयी दिशा और चिंतन को एक नयी राह मिली है. ऐसे में ब्लॉग की प्रासंगिकता और बढ़ जाती है. क्योँकि ब्लॉग ने सृजन के परिदृश्य पर व्यापक प्रभाव डाला है ...
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चलते -चलते ....
ब्लॉग हमारे लिए अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम है, इसे अभिव्यक्ति की नयी खोज भी कहा जाता रहा है. कुछ ब्लॉगर साथी इसे अभिव्यक्ति की नयी क्रान्ति भी कहते हैं. ब्लॉग के विषय में चाहे जितने भी मत और धारणाएं प्रचलन में हों, लेकिन यह सच है कि ब्लॉग जैसे माध्यम से अभिव्यक्ति को एक नया आयाम मिला है, सृजन को नयी दिशा और चिंतन को एक नयी राह मिली है. ऐसे में ब्लॉग की प्रासंगिकता और बढ़ जाती है. क्योँकि ब्लॉग ने सृजन के परिदृश्य पर व्यापक प्रभाव डाला है ...
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एक ग़ज़ल :
आज फिर से मुहब्बत की बातें करो
आज फिर से मुहब्बत की बातें करो
दिल है तन्हा रफ़ाक़त की बातें करो
ये हवाई उड़ाने बहुत हो चुकीं
अब ज़मीनी हक़ीक़त की बातें करो...
दिल है तन्हा रफ़ाक़त की बातें करो
ये हवाई उड़ाने बहुत हो चुकीं
अब ज़मीनी हक़ीक़त की बातें करो...
आपका ब्लॉगपरआनन्द पाठक
--किस्से तो बहुत होते है प्यार के यहाँ..
नीशीत जोशी
स्पर्धा
हम और तुम -ज्यूँ --नदी के ये तट
Divya Shukla
--मतलब...
छोटे-छोटे दुःख सुनना
न मुझे पसंद है न तुम्हें
यूँ कभी तुमने भी मना नहीं किया कि न बताऊँ
पर जिस अनमने भाव से सब सुनते हो
समझ आ जाता है कि तुमको पसंद नहीं आ रहा...
लम्हों का सफ़र पर डॉ. जेन्नी शबनम
--चलते -चलते ....
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सुप्रभात
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच बहुत सम्रद्ध है |
बहुआयामीन लिनक्स से सजा है
पढ़ने का अलग ही मजा है |
मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
शुभ प्रभात भाई
जवाब देंहटाएंअच्छे लिंक्स में मिली अच्छी रचनाएँ
आभार
सादर
सुंदर सूत्रों से सजी आज की सोमवारीय चर्चा में 'उलूक' के सूत्र 'वोट देना है जरूरी बहुत महंगा वोट हो
जवाब देंहटाएंरहा है को स्थान देने के लिये आभार ।
बहुत बहुत धन्यवाद सर!
जवाब देंहटाएंसादर
शुभ प्रभात.. अच्छे लिंक्स अच्छी चर्चा ....मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर एवं पठनीय सूत्र ! मेरी प्रस्तुति को सम्मिलित करने के लिये आपका बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार !
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा.
जवाब देंहटाएंमेरे पोस्ट को शामिल करने के लिए आभार.
सुप्रभात..बहुत अच्छी चर्चा सजाई आपने....मेरी पोस्ट को शामिल करने का शुक्रिया.......
जवाब देंहटाएंबढ़िया सूत्रों के साथ बढ़िया चर्चा , शास्त्री जी व मंच को धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंनवीन प्रकाशन - घरेलू उपचार ( नुस्खे ) -भाग - ८
बीता प्रकाशन - जिंदगी हँसने गाने के लिए है पल - दो पल !
bahut achchhe links .badhai
जवाब देंहटाएंbahut khoob aabhar shastri ji!
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा
जवाब देंहटाएंआभार
मेरी पुस्तक को आप इस लिंक पर जाकर भी पढ़ सकते हैं -
http://content.yudu.com/Library/A2tg1p/20140419153339/resources/index.htm?referrerUrl=http%3A%2F%2Ffree.yudu.com%2Fpublish%2Ffinish_now%2F1717427
बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति ... आभार!
जवाब देंहटाएंसादर धन्यवाद
जवाब देंहटाएंमार्मिक विडम्बना देश की वर्तमान दुर्दशा पर :
जवाब देंहटाएंवतन आज भी उदास है
ये कल भी उदास था
वतन आज भी उदास है -
कल दूसरों के पास था
आज अपनों के पास है-
कल अपाहिजों के सिर सजा ताज था
आज वहशियों का आतंकवाद है
कल शोलों का उजास था
आज अंधेरों का वास है-
कल लूटा गया अपनों के निमंत्रण पर
तिल तिल कर जीता आज भी षडयन्त्रों पर-
कल जाति का झंझावात था
आज मजहबों का अधिवास है -
कल रोई थी जोधा दुर्गावती अपनी तकदीर पर
फैसले लिए गए कीमत आबरू और जागीर पर -
कल प्रवंचना और प्रलाप था
आज हारे जुआरी का संताप है -
कल था एकलव्य व द्रोण,संबूक-श्रीराम का द्वंद
अशहिष्णुता का उद्भव कर्त्तव्य परायणता का अंत-
कल भोग्या थी वनवास था
नारी आज अबला है संत्रास है-
कल भी वतन उदास था
आज भी वतन उदास है -
आत्म - मुग्धता में जी लेते
अशेष माजी परिहास है -
- उदय वीर सिंह
एक ग़ज़ल :
जवाब देंहटाएंआज फिर से मुहब्बत की बातें करो
आज फिर से मुहब्बत की बातें करो
दिल है तन्हा रफ़ाक़त की बातें करो
ये हवाई उड़ाने बहुत हो चुकीं
अब ज़मीनी हक़ीक़त की बातें करो...
आपका ब्लॉगपरआनन्द पाठक
बेहतरीन ग़ज़ल कही है आनंद साहब !मानी बतलाएं :रफाकत ,माह -ओ -अंजुम ,मक़ासिद ,मयारी आदि लफ़्ज़ों के तो और भी लुत्फ़ उठाया जाए जनाब की ग़ज़ल का।
विचारणीय बिंदु परोसे हैं चिठ्ठे की बाबत। चिठ्ठा बे -बाक ,निर्बंध होता है ,भाव निबंध होता है। बढ़िया विमर्श चल रहा है चिठ्ठाकारी पर ,चिठ्ठा लिखाड़ियों पर।
जवाब देंहटाएंसाहित्य सुरभि
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सृजन की प्राथमिकता, ब्लॉगिंग और हम...
ब्लॉग हमारे लिए अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम है, इसे अभिव्यक्ति की नयी खोज भी कहा जाता रहा है. कुछ ब्लॉगर साथी इसे अभिव्यक्ति की नयी क्रान्ति भी कहते हैं. ब्लॉग के विषय में चाहे जितने भी मत और धारणाएं प्रचलन में हों, लेकिन यह सच है कि ब्लॉग जैसे माध्यम से अभिव्यक्ति को एक नया आयाम मिला है, सृजन को नयी दिशा और चिंतन को एक नयी राह मिली है. ऐसे में ब्लॉग की प्रासंगिकता और बढ़ जाती है. क्योँकि ब्लॉग ने सृजन के परिदृश्य पर व्यापक प्रभाव डाला है ...
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कीमती एहसास सजाये हैं पुस्तक में गज़लनुमा कवियताएं बेहतरीन प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंवर्ष 2005 में
मेरा ग़ज़लनुमा कविताओं का संग्रह प्रकाशित हुआ था ,
मैं इसे PDF FILE के रूप में
यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ
अगर आप इसे पढ़ना चाहें तो
इसे डाउनलोड़ कर सकते हैं...
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पुस्तक - चंद आँसू, चंद अल्फ़ाज़
कुछ ज्यादा हो गया है राजनीतिक कूड़ा -करकट इस देश में :
जवाब देंहटाएंइसके प्रबंधन के लिए टेंडर्स इनवाइट करने पड़ेंगे।
बढ़िया अप्रस्तुति है भाई सुशील जी सशक्त राजनीतिक हास परिहास व्यंग्य विडंबन
कूड़ा हर जगह होता है उस पर हर कोई नहीं कहता है
एक दल में
एक होता है
एक दल में
एक होता है
क्यों दुखी होता है
कुछ नहीं होता है
किसी जमाने में
ये या वो होता था
अब सब कुछ
बस एक होता है
दलगत से बहुत
ही दूर होता है
दलदल जरूर होता है
कुछ इधर उसका
भी होता है
कुछ उधर इसका
भी होता है
डूबना खुद नहीं
होता है
डुबौने को
तैयार होता है
भाव -प्रबंध से सुन्दर गीत :
जवाब देंहटाएंमेरे गाँव, गली-आँगन में, अपनापन ही अपनापन है।
देश-वेश-परिवेश सभी में, कहीं नही बेगानापन है।।
"याद बहुत आते हैं"
गाँवों की गलियाँ, चौबारे, याद बहुत आते हैं।
कच्चे-घर और ठाकुरद्वारे, याद बहुत आते हैं।।
शुक्रवार, 26 मार्च 2010
“हमको याद दिलाते हैं”
जब भी सुखद-सलोने सपने, नयनों में छा आते हैं।
गाँवों के निश्छल जीवन की, हमको याद दिलाते हैं।
नीड़ में मेरे कभी, इक बार आओ तो सही
जवाब देंहटाएंकुछ हमारी भी सुनो, अपनी सुनाओ तो सही
भावपूर्ण सशक्त अभिव्यंजना