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मंगलवार, अप्रैल 01, 2014

"आज तो मूर्ख भी दिवस है न!" (चर्चा मंच-1569)

मित्रों।
नवसम्वतसर ‌२०७१ में
मंगहलवार की चर्चा में 
मेरी पसंद के लिंक देखिए।


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दीवाली सी जगमग होती , 
तम से भरी रात भी देखो  
बाती सँग तेल भी सार्थक होता , 
जी भर कर तुम जल कर देखो...
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लोग कुछ यहाँ पर किस्मत की बाट जोहते हैं 
लोग मेहनतकणों को स्वर्ण मुद्रा में खोजते हैं...
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दिलों में खुशी की कोंपल नहीं, 
फिर ये मौसमे बहार क्यों है? 
सूखे पड़े हैं पेड़ यहाँ, इ
नन्हें परिंदों का इंतज़ार क्यों है...
simte lamhen पर kshama
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कितने प्यारे रंग रंगीले।
उपवन के हैं सुमन सजीले।। 
 
भोलेपन से भरमाते हैं।
ये खुलकर हँसते-गाते हैं।।
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रह्'मतों से ख़ुदा की मिले मुहब्बत 
ये रिवायत है तुमने बदल दिया है 
मार डाला हमें जग हँसाई ने अब 
हर सुबह शाम हमने ज़हर पिया है...
अभिषेक कुमार अभी
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सन १९७४ में भवानीप्रसादजी को दिल का प्राणघातक दौरा पड़ा था. तब वे एक कवि-सम्मलेन में शिरकत करने कानपुर गए थे. इस हृदयाघात से उनकी प्राण-रक्षा तो हुई, लेकिन उसके बाद वे अपना नहीं, पेसमेकर का जीवन जीते रहे. किन्तु, इस आघात का उनके मन-प्राण पर कोई आतंक नहीं था. उनकी मस्ती-प्रफुल्लता क्षीण नहीं हुई थी. देश-भर में उनकी दौड़ में कोई कमी नहीं आयी थी. काव्य-सम्मेलनों, साहित्यिक आयोजनों, व्याख्यान-समारोहों में वे सम्मिलित होते रहे, कविताएँ सुनाते रहे अपनी उसी जानी-पहचानी बेफिक्री के साथ...
आनन्द वर्धन ओझा 
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अच्छे ब्लॉग के लक्षणों और आवश्यकताओं पर गुणीजन पहले ही बहुत कुछ लिख चुके हैं। इस दिशा में इतना काम हो चुका है कि एक नज़र देखने पर शायद एक और ब्लॉग प्रविष्टि की आवश्यकता ही समझ न आये। लेकिन फिर भी मैं लिखने का साहस कर पा रहा हूँ क्योंकि कुछ चीज़ें सायास ही छूट गयी दिखती हैं। जैसा कि शीर्षक से स्पष्ट है, यह बिन्दु किसी भी ब्लॉग की ज़रूरत नहीं हैं। मतलब यह कि इनके न होने से आपके ब्लॉग की पहचान में कोई कमी नहीं आयेगी। हाँ यदि आप पहचान और ज़रूरत से आगे की बात सोचने में विश्वास रखते हैं तो आगे अवश्य पढिये। अवलोकन करके अपनी बहुमूल्य टिप्पणी अवश्य दीजिये ताकि इस आलेख को और उपयोगी बनाया जा सके...
Anurag Sharma
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अंजुमन पर डा. गायत्री गुप्ता 'गुंजन'
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बैनर पोस्टर का महीना 
फ़ाइल फोल्डर का महीना 
पड़ते पर्चों का महीना 
छपते चर्चों का महीना...
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मौसम ने ली अंगडाई 
सर्दी ने पीठ दिखाई 
धूप के तेवर बदले 
वे भी लगे बदले बदले..
पर Asha Saxena
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हाड़ कंपाने वाली ठंड में 
सूट-बूट पहनकर ए.सी. में बैठकर 
इस्की-व्हिस्की चढ़ाकर 
किसी को हलाल कर 
ओटी-बोटी चाभ कर नाचते-झूमते 
संपन्नता की नुमाइश करने के लिए आता है 
अंग्रेजी नववर्ष...

बेचैन आत्मा पर देवेन्द्र पाण्डेय

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नारी, देवी और नवरात्रि.. 
श्रध्दा, प्रेम, भक्ति, सेवा, समानता की प्रतीक नारी पवित्र, निष्कलंक, सदाचार से सुशोभित, ह्रदय को पवित्र करने वाली, लौकिकता युक्त, कुटिलता से अनभिज्ञ, निष्पाप, उत्तम, यशस्वी, नित्य उत्तम कार्य की इच्छा करने वाली, कर्मण्य और सत्य व्यवहार करने वाली देवी है।


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मेरी मूर्खता 
"मेरी मूर्खता.."  
बुद्धिमान बुद्धू बनें, मूर्ख दिवस है आज।
देवदत्त प्रसून भी, नाच रहे बिन साज..

9 टिप्‍पणियां:

  1. पहली अप्रैल की चर्चा 'उलूक' की अपनी चर्चा आभार सूत्र "अपने खेत की खरपतवार को, देखिये जरा,
    देश से बड़ा बता रहा है" भी कहीं पर दिखा !

    जवाब देंहटाएं
  2. बढ़िया सूत्र व अच्छी प्रस्तुति के साथ बढ़िया चर्चा , शास्त्री जी व मंच को धन्यवाद !
    ⓘⓐⓢⓘⓗ ( हिन्दी में जानकारियाँ )

    जवाब देंहटाएं
  3. कवि भवानीप्रसाद मिश्रजी पर मेरे संस्मरण की चर्चा मंच पर ले आने का शुक्रिया...! अनेक महत्व के सूत्र भी मिले...! आभार...!

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति।
    आभार!

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत लाज़वाब चर्चा में आपने बहुत खूब लिंक्स को समाहित किया आदरणीय सर।
    आपका हार्दिक धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  6. नव सम्बत्सर पर हार्दिक शुभ कामनाएं |
    मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
    आशा

    जवाब देंहटाएं
  7. बढ़िया व बेहतर प्रस्तुति , धन्यवाद !
    ऐसे ही लिखते रहें.
    शुभ हो आपके लिए.

    जवाब देंहटाएं

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