देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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वायदों की गंध तो फैली हुई है दूर तक
पहुँच पाती है कहाँ कोई योजना मजबूर तक !!
आ गया है खेत तक खादी में लिपटा अजनबी ।
आज उसकी पहुँच जाने क्यों हुई मजदूर तक...
हालात आजकल पर प्रवेश कुमार सिंह
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कतरा कतरा
कभी जिन यादो से दिन,
खिल कर संवर जाता था..
आज सोचता हूँ वही बचपन,
वही स्पर्श, वही नाते,
उतारता हूँ जब दिल के कागज पर...
--आचमन अब हो चुका बस दक्षिणा अब शेष है
धरती की खनक छीनी,
फूलों की महक छीनी,
छीनी जनता की भावनायें,
छीन लिया अधिकार...
अभिनव रचना पर ममता त्रिपाठी
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दर्द
दर्द जब दरिंदों ने उसको आग लगाई होगी ।
उंगलियाँ लोगों ने उस पे ही उठाई होगी ।।
खास अंदाज में थिरके थे उसके पाँव बहुत ।
काँच के टुकड़ों पे घुघरू को बजाई होगी...
तीखी कलम से पर
Naveen Mani Tripathi
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आजादी के बाद मुसलमानों की अग्नि-परीक्षा !!
" साभार - श्री पुण्य प्रसुन वाजपेयी "
PITAMBER DUTT SHARMA
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... पहले से उजाले -- क्षमा जी :)
छोड़ दिया देखना कब से
अपना आईना हमने!
बड़ा बेदर्द हो गया है,
पलट के पूछता है हमसे
कौन हो,हो कौन तुम...
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आकाश
जितना तुम्हें दिखता है,
आकाश सिर्फ़ उतना ही नहीं है.
आकाश तो बहुत विशाल है,
बहुत सुन्दर,विविधता से भरा...
कविताएँ पर Onkar
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कूड़ा हर जगह होता है
उस पर हर कोई नहीं कहता है
एक दल में एक होता है और
एक दल में एक होता है
क्यों दुखी होता है कुछ नहीं होता है
किसी जमाने में ये या वो होता था
अब सब कुछ बस एक होता है...
उलूक टाइम्स पर सुशील कुमार जोशी
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एडोबी क्रिएटिव क्लाउड:
तकनीक के जरिए
गुलाम बनाने का तरीका
इसके तहत आपको सॉफ्टवेयर इस्तेमाल करने का मासिक शुल्क देना होगा
(जो कि वर्तमान में २७०० रुपए मासिक या ३२४०० रुपए वार्षिक है)।
अगर आपने देना बंद कर दिया तो सॉफ्टवेयर काम करना ही बंद कर देगा..
अंतर्जाल डॉट इन
तकनीक के जरिए
गुलाम बनाने का तरीका
इसके तहत आपको सॉफ्टवेयर इस्तेमाल करने का मासिक शुल्क देना होगा
(जो कि वर्तमान में २७०० रुपए मासिक या ३२४०० रुपए वार्षिक है)।
अगर आपने देना बंद कर दिया तो सॉफ्टवेयर काम करना ही बंद कर देगा..
अंतर्जाल डॉट इन
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झूठा ब्लॉगर -
अगर सादी-बियाह का न्यौता से आने के बाद
कोनो अदमी दुल्हा-दुल्हिन का जिकिर नहीं करके,
पकवान का जिकिर करे
त समझ जाइये कि आप कोलकाता में हैं...
चला बिहारी ब्लॉगर बनने
अगर सादी-बियाह का न्यौता से आने के बाद
कोनो अदमी दुल्हा-दुल्हिन का जिकिर नहीं करके,
पकवान का जिकिर करे
त समझ जाइये कि आप कोलकाता में हैं...
चला बिहारी ब्लॉगर बनने
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सामाजिक स्वीकार्यता से मिलेगा
गरिमामयी जीवन जीने का अधिकार
एक ऐतिहासिक और मानवीय फैसले में भारतीय उच्चतम न्यायालय ने किन्नरों को थर्ड जेंडर यानि कि तीसरी लिंग श्रेणी की मान्यता दी है। संवेदनशील और मनुष्यता का मान करने वाले इस फैसले के बाद भारत दुनिया के ऐसे इक्के-दुक्के देशों में शामिल हो जायेगा जहां ट्रांसजेंडर्स को यह दर्ज़ा मिला है। शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे बुनियादी अधिकारों से भी वंचित इस तबके लिए यह निर्णय यकीनन मानवीय गरिमा की प्रतिष्ठा करने वाला है...
परवाज़...शब्दों के पंख
गरिमामयी जीवन जीने का अधिकार
एक ऐतिहासिक और मानवीय फैसले में भारतीय उच्चतम न्यायालय ने किन्नरों को थर्ड जेंडर यानि कि तीसरी लिंग श्रेणी की मान्यता दी है। संवेदनशील और मनुष्यता का मान करने वाले इस फैसले के बाद भारत दुनिया के ऐसे इक्के-दुक्के देशों में शामिल हो जायेगा जहां ट्रांसजेंडर्स को यह दर्ज़ा मिला है। शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे बुनियादी अधिकारों से भी वंचित इस तबके लिए यह निर्णय यकीनन मानवीय गरिमा की प्रतिष्ठा करने वाला है...
परवाज़...शब्दों के पंख
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ग़ज़ल : अरुन शर्मा 'अनन्त'
परस्पर प्रेम का नाता पुरातन छोड़ आया हूँ,
नगर की चाह में मैं गाँव पावन छोड़ आया हूँ...
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जनाब ’सरवर’ की एक ग़ज़ल :
अजीब कैफ़-ओ-सुकूँ.....
अजीब कैफ़-ओ-सुकूँ तेरी जुस्तजू में था
गुमां-नवर्द मैं सेहरा-ए-आरज़ू में था
न शायरी में,न ही जाम-ए-मुश्कबू में था
वो लुत्फ़ जो तिरे अन्दाज़-ए-गुफ़्तगू में था...
उर्दू से हिंदी
अजीब कैफ़-ओ-सुकूँ.....
अजीब कैफ़-ओ-सुकूँ तेरी जुस्तजू में था
गुमां-नवर्द मैं सेहरा-ए-आरज़ू में था
न शायरी में,न ही जाम-ए-मुश्कबू में था
वो लुत्फ़ जो तिरे अन्दाज़-ए-गुफ़्तगू में था...
उर्दू से हिंदी
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रात की लहरों पर चढती उतरती कोई अरदास
प्रेम तो मानो तेरे मेरे होठों की कोई अबूझी प्यास
दिन की नर्तन करती परछाइयों का कोई शहर
प्रेम तो मानो तेरे मेरे प्रेम की कोई भटकी लहर...
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व्यंग्य : आम आदमी -
रविवार का दिन था। शर्मा जी अपने घर के बड़े से लोहे के गेट के सामने खड़े एक चैड़ी सी लकड़ी की तख्ती टांगने में लगे थे। साथ में एक पेंटर ब्रुश और पेंट का डिब्बा लिए खड़ा था। शर्मा जी इस उधेड़ बुन में थे कि इस तख्ती को ऐसे कोण से लगाया जाए कि घर के सामने से गुजरने वाले हर शख्स को वह दिखाई दे..
विभावसु तिवारी अपनी पीढ़ी के सशक्त व्यंग्यकार हैं। आपके व्यंग्य हमारे समय का यथार्थ प्रस्तुत करते हैं। और यह भी कि ये व्यंग्य अपनी एक नयी दुनिया बसाते है और इस दुनिया का एक कॉमन पात्र है - शर्माजी। शर्माजी एक आम आदमी का किरदार निभाते हैं। यह किरदार नैतिकता-अनैतिकता के पारंपरिक बोध को नए ढंग से पेश करता हैं। विभावसु तिवारी का जन्म 12 अगस्त, 1951 को दिल्ली में हुआ। आप 36 वर्ष तक दिल्ली के नवभारत टाइम्स समाचार पत्र (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ग्रुप) में समाचार संकलन, सम्पादन और लेखन कार्य करते रहे। विभिन्न पत्र- प़ित्रकाओं के सलाहकार सम्पादक रहे। सम्पर्क: टी- 8 ग्रीन पार्क एक्स्टेंशन, नई दिल्ली- 110016। ई-मेल: vtiwari12@gmail.com
पूर्वाभास
रविवार का दिन था। शर्मा जी अपने घर के बड़े से लोहे के गेट के सामने खड़े एक चैड़ी सी लकड़ी की तख्ती टांगने में लगे थे। साथ में एक पेंटर ब्रुश और पेंट का डिब्बा लिए खड़ा था। शर्मा जी इस उधेड़ बुन में थे कि इस तख्ती को ऐसे कोण से लगाया जाए कि घर के सामने से गुजरने वाले हर शख्स को वह दिखाई दे..
विभावसु तिवारी अपनी पीढ़ी के सशक्त व्यंग्यकार हैं। आपके व्यंग्य हमारे समय का यथार्थ प्रस्तुत करते हैं। और यह भी कि ये व्यंग्य अपनी एक नयी दुनिया बसाते है और इस दुनिया का एक कॉमन पात्र है - शर्माजी। शर्माजी एक आम आदमी का किरदार निभाते हैं। यह किरदार नैतिकता-अनैतिकता के पारंपरिक बोध को नए ढंग से पेश करता हैं। विभावसु तिवारी का जन्म 12 अगस्त, 1951 को दिल्ली में हुआ। आप 36 वर्ष तक दिल्ली के नवभारत टाइम्स समाचार पत्र (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ग्रुप) में समाचार संकलन, सम्पादन और लेखन कार्य करते रहे। विभिन्न पत्र- प़ित्रकाओं के सलाहकार सम्पादक रहे। सम्पर्क: टी- 8 ग्रीन पार्क एक्स्टेंशन, नई दिल्ली- 110016। ई-मेल: vtiwari12@gmail.com
पूर्वाभास
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युग परिवर्तन की बेला में—
युग परिवर्तन की बेला में हमारे व्दारा जन्म जमी पर लिया गया
प्रकृति कृपा समाजिक सहयोग से पारिवारिककर्ता पद प्रदान किया
तब से डाली नींव हमने राज्य की प्रजातंत्र को प्रथम स्थान दिया
गर बचानी होआबरू तो रहें नाममात्र के राष्ट्रपति ऐसा हुक्म हुआ..
पथिकअनजाना-
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"मेरे तीन पुराने गीत"
-१-
मेरे गाँव, गली-आँगन में, अपनापन ही अपनापन है।
देश-वेश-परिवेश सभी में, कहीं नही बेगानापन है..
गाँवों की गलियाँ, चौबारे, याद बहुत आते हैं।
कच्चे-घर और ठाकुरद्वारे, याद बहुत आते हैं...
-३-
जब भी सुखद-सलोने सपने, नयनों में छा आते हैं।
गाँवों के निश्छल जीवन की, हमको याद दिलाते हैं...
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंअच्छी रचनाओं का प्रस्तुतिकरण
आभार
सादर
आपने मेरे ब्लॉग को यहाँ शामिल किया.
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत आभार आप का .
सभी लिंक अच्छे हैं .आपका श्रम प्रशंसनीय है.
एक लम्बे अंतराल के पश्चात मेरे ब्लॉग को यहाँ स्थान मिला, यह मेरे लिये गौरव का विषय है. आभारी हूँ शास्त्री जी आपका और प्रशंसा करता हूँ आपके कठिन श्रम से सँजोई इस चर्चा का! सभी सम्मिलित ब्लॉगरों को मेरी शुभकामनाएँ!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन अभिव्यक्तियों के लिंक्स संजोये हैं।
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई
आदरणीय ''शालिनी कौशिक'' जी द्वारा रचित लेख ''उल्लू बनाना बंद करे मोदी जी''
बहुत सटीक और सार्थक। हमें इस मनुष्य की असलियत को नहीं भूलना चाहिए। जितना पैसा आज इसके पीछे ऐड पे बहाया जा रहा है, मुझे लगता है उसमें काम से काम ३ कारखाने खुल सकते थे।
क्या चुनाव के बाद ये सारे पैसे बीजेपी रिकवर करने की नहीं सोचेगी।
वाकई में मुझे भी यही लग रहा है की ये मोदी भी सिर्फ उल्लू बना रहे हैं।
सार्थक और बेवाकी से लिखने हेतु
हार्दिक बधाई ''शालिनी जी''
सादर
सुंदर चर्चा सुंदर सूत्र । सलिल जी को बधाई ब्लागिंग के चार वर्ष सतत और स्तरीय लेखन के लिये वो भी बिहारी बाबू की तरह :) । 'उलूक' का आभार रचना 'कूड़ा हर जगह होता है उस पर हर कोई नहीं कहता है' को स्थान देने के लिये ।
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा लिंक्स मिले ...शामिल करने का आभार
जवाब देंहटाएंअच्छी रचनाओं का प्रस्तुतिकरण
जवाब देंहटाएंKYAA BAAT HAI JI AAPKI PASAND HAMARI SABKI PASAND BANTI JAA RAHI HAI !! YAANI HAM BHI SAYANE HO RAHE HAIN !!AAP KA DHANYWAAD !! ITNI BADHIYA RASHNAON TALAK PANHUCHANE HETU !!
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति व लिंक्स , आ. शास्त्री जी व मंच को धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंनवीन प्रकाशन - घरेलू उपचार ( नुस्खे ) - भाग - ८
~ ज़िन्दगी मेरे साथ - बोलो बिंदास ! ~ ( एक ऐसा ब्लॉग -जो जिंदगी से जुड़ी हर समस्या का समाधान बताता है )
sarthak links sanjoye hain aapne .monika sharma ji kee post sahi kahti hai bagair samjaik sweekriti ke kanoon se kuchh hasil hone vala nahi hai .meri post ko yahan sthan dene aur abhishek ji dwara us par apni pratikriya dene hetu hardik dhanyawad .
जवाब देंहटाएंबेहतरीन सूत्र समायोजन। एक से बढ़कर एक लेख।...आभार सयोँजक महोदय
जवाब देंहटाएंबेहतरीन सूत्र .......... खुद को पाकर अच्छा लगा !!
जवाब देंहटाएंमान्यवर शास्त्री जी का ह्रदय से आभारी हूँ कि उन्होंने मेरी रचना को सराहा एवं चर्चा हेतु प्रस्तुत किया | पुनः आभार |
जवाब देंहटाएं