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बुधवार, अप्रैल 30, 2014

"सत्ता की बागडोर भी तो उस्तरा ही है " (चर्चा मंच-1598)

 मित्रों!
आदरणीय रविकर जी अवकाश पर हैं।
इसलिए उन्हीं के स्टाइल पर
बुधवार की चर्चा प्रस्तुत कर रहा हूँ।
देखिए मेरी पसंद के किुछ लिंक।

 रविकर हैं अवकाश पर, कोई नहीं प्रपंच।
सूना-सूना सा लगे, हमको चर्चा मंच।
हमको चर्चा मंच, बहुत ही पड़ता भारी।
मुर्झायी सी लगती, कानन की फुलवारी।
कह मयंक कविराय, बात को अपनी खुलकर।
इतने मत अवकाश करो, हे प्यारे रविकर।।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 
--
मधु सिंह : महफूज़ चिंगारी रहे
ता- कयामत  हुश्न  की महफ़ूज़  चिंगारी रहे
दिल पे काबिज आपके हुश्न की मुख्तारी रहे

कल ही तो मैंने तुमको आँखों से छू के  देखा
लबों  पे मुस्कुराहट का सिलसिला जारी रहे..
चित्र प्रदर्शित नहीं किया गया
बेनकाब

...पहचान हो सत लक्ष्य की
आवर्त,पथ के
भास फिर शूल न हों
प्रिय लगे
खोखली जय-गूंज से परे
स्नेह भीगी नाद नीरव
My Photo
मैं,वन्दना तिवारी प्रेम और चिर सत्ता का मर्म जानने को प्रयत्नशील हूं।पुस्तकों के आश्रय से,प्रकृति के सानिध्य में और अब आपके सहयोग से शायद निर्दिष्ट लक्ष्य के कुछ समीप पहुंच सकूं।इसी आशा के साथ-''मैं नन्हा सा पथिक,विश्व के पथ पर चलना सीख रहा हूं'' अंग्रेजी साहित्य की छात्रा होने के नाते साहित्य मे विशेष रूचि है,पढ़ने की लालसा बढ़ती ही जा रही है।कभी कभी उद्गारों को शब्दों मे उतारने का प्रयास तो करती हूं पर अत्यन्त साधारण होने के कारण लोकप्रियता का शूल ज्यादा चुभता नहीं,बस आपके सम्पर्क को स्वागतोत्सुक हूं। -विन्दु
Wings of Fancy पर Vindu Babu 

आज, बीता हुआ कल और आने वाला कल, 
कितना कुछ बह जाता है 
समय के इस अंतराल में 
और कितना कुछ जुड़ जाता है 
मन के किसी एकाकी कोने में. 
उम्र कि पगडंडी पर 
कुछ लम्हे जुगनू से चमकते हैं ...
स्वप्न मेरे..पर Digamber Naswa

MyBigGuide पर 
Abhimanyu Bhardwaj

हिंदी कविता की दुनिया में *अरुण श्री *का अभी अभी पदार्पण हुआ है. और संतोष की बात यह कि वह भाषा और परम्परा दोनों की न्यूनतम आवश्यक तैयारी से लैस लगते हैं जिसका इन दिनों काफी अभाव दिखता है. उनकी कविताएँ निजी अनुभवों को सार्वजनिक विस्तार देती सी हैं....
असुविधा....पर Ashok Kumar Pandey

My Photo
अंतर्मंथन पर डॉ टी एस दराल 

दबे पाँव पीछे से आना 
आँखों पर हाथ रख चौंकाना 
सहज भाव से ता कहना 
लगते तुम मेरे कान्हां...
AkankshaपरAsha Saxena 
  
बेशक आधे अधूरे हैं पर ...कभी तो 
कैसे तो पहुंचे शब्द मेरे तुझ तक ...
शब्द अनवरत...!!!परआशा बिष्ट

सबकी क्षुधा मिटाने का दावा तो कर दिया 
चाँवल का घर में एक भी दाना तो है नहीं  
सत्ता की बागडोर भी तो उस्तरा ही है 
बन्दर के हाथ इसको थमाना तो है नहीं


Randhir Singh Suman   


ये कहाँ ले आये नरेंद्र मोदी

! कौशल !परShalini Kaushik 

आपका ब्लॉगपरVirendra Kumar Sharma

विपरीत प्रकृति के खाद्यों का एक साथ गलत अनुपात ,में सेवन करना न सिर्फ हमारे स्वास्थ्य को चौपट कर सकता है हमें एलर्जिक रिएक्शंस ,अपच ,आधा शीशी के पूरे दर्द की ओर भी धकेल सकता है खतरनाक किस्म के कैंसर समूह के रोगों की ओर भी ले जा सकता है...
Virendra Kumar Sharma 


गुमसुम ये हवा 

(स्त्री पर 7 हाइकु)

बहुत दूर
आसमान ख़्वाबों का
स्त्रियों का सच ...
लम्हों का सफ़रपरडॉ. जेन्नी शबनम

संस्कृति मनुष्य की स्वयंकी सृष्टि  है, 
इसका स्थायित्वव्यक्तियों द्वारा 
अतीत की विरासत के 
प्रतीकात्मक संचार पर निर्भर है। 
क्योंकि इसका आधार, जन्मदाता 
मनुष्य स्वयं परिवर्तनशील है
  

बढ़ते विकल्प....भ्रमित जीवन...!!! 


 Computer Tips & Tricks पर Faiyaz Ahmad

आओ करें हिसाब, क्या पाया क्या खोया हमने। 
कैसे-कैसे जुल्म सहे, किस-किस पर रोया हमने... 
कविता मंच पर Rajesh Tripathi

उत्तर सिक्किम में ला चुंग के रास्ते का वह सुन्दर झरना जैसे आमंत्रित कर रहा था. एक दिन की ट्रेन यात्रा और एक दिन गंगटोक में बिताने के पश्चात् हम सत्तर मील का रास्ता तय कर फूलों की घाटी के प्रवेश द्वार ला चुंग जा पहुंचे थे. गंगटोक से ला चुंग का रास्ता बहुत बीहड़ था. कई जगह तो बस कच्चा सा. उत्तर सिक्किम हाईवे कई जगह निर्माणाधीन अवस्था में था....
समालोचनपर arun dev



"मोटा-झोटा कात रहा हूँ"

रुई पुरानी मुझे मिली है, 
मोटा-झोटा कात रहा हूँ।
मेरी झोली में जो कुछ है, 
वही प्यार से बाँट रहा हूँ।।

खोटे सिक्के जमा किये थे, 
मीत अजनबी बना लिए थे,
सम्बन्धों की खाई को मैं
खुर्पी लेकर पाट रहा हूँ...

हार्ट अटैक आने से कुछ दिन पहले 

बॉडी देने लगती है संकेत 

हार्ट अटैक आने से कुछ दिन पहले बॉडी देने लगती है संकेत

उलूक टाइम्स
उलूक टाइम्सपरसुशील कुमार जोशी
  
vandana gupta

तेरी याद छुपाकर सीने में 
मजा आने लगा है जीने में 
मैकदे की तरफ भेजा जिसने 
बुराई दिखती उसे पीने में ...
दिलबाग विर्क

उसकी आखिरी रात में 

साँसों का चलना 
और 
साँसों का रुकना 
इसी के बीच 
रुक-रुक के चलती जिंदगी 
पर वो 
जिंदगी की आखिरी रात 
सो कर नहीं बिताना चाहती... 
Anju (Anu) Chaudhary 

कुल्लु नफ्सिन ज़ायक़तुल मौत -अल-क़ुर्'आन 
हर जान को मौत का ज़ायक़ा चखना है. 
हमारे वालिद जनाब मसूद अनवर ख़ान यूसुफ़ ज़ई साहब का इंतेक़ाल (देहावसान) हो गया है जुमा (26 अप्रैल 2014) और शनिवार (27 अप्रैल 2014)की दरमियानी रात मे 7:25 PM पर. उनकी उम्र तक़रीबन 69 साल थी...
Blog News पर DR. ANWER JAMAL 

10 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया लिंक्स लिए चर्चा...... धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  3. पर्याप्त लिंक्स पढ़ने के लिए आज |मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति .....आभार!

    जवाब देंहटाएं
  5. भ्रष्ट तंत्र ही राज तंत्र है

    जवाब देंहटाएं
  6. बढ़िया सूत्र व प्रस्तुति , आ. रविकर व शास्त्री सर और मंच को सदः ही धन्यवाद है !
    Information and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )

    जवाब देंहटाएं
  7. विस्तृत चर्चा सूत्र ...
    शुक्रिया मुझे भी शामिल करने का इस चर्चा में ...

    जवाब देंहटाएं
  8. सभी भाई बहनों तक जानकारी पहुँचाने के लिए शुक्रिया.

    जवाब देंहटाएं
  9. रविकर जी की कमी वाकई खल रही है और आज की चर्चा का वही अंदाज है । 'उलूक' का आभार है 'अपनी अक्ल के हिसाब से ही तो कोई हिसाब किताब लगा पायेगा' का चर्चा में भी हिसाब है ।

    जवाब देंहटाएं
  10. रवि बिन निस्संदेह है, फीकी फीकी धूप
    किन्तु उजाला फैलता, ज्यों ज्यों निखरे "रूप"

    आभार..........

    जवाब देंहटाएं

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