मित्रों।
मंगलवार के लिए मेरी पसंद के लिंक देखिए।
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कृपया गुणीजन ध्यान दें ----
कवि का धर्म होता है अपने लेखन से समाज मे जागृति पैदा करना ये जानते हुए भी कुछ ऐसे भावों से रु-ब-रु हुयी हूँ कि खुद आश्चर्यचकित हूँ ……अब आप ही लोग मार्गदर्शन करें क्या सही और क्या गलत है या ऐसे भावों का जन्म भी होता है ........अब आपकी अदालत में
हताशा पंख पसारे
चुपके सा आ
मुझे डराती है
मेरे मन की खिड़कियों पर
अनिश्चितता की थाप दे
बंद कर जाती है...
vandana gupta
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उलूक टाइम्सपरसुशील कुमार जोशी
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वोट मांगते चलो , वोट मांगते चलो
क्या तेरा क्या मेरा,
सब है देश का रे वोट मांगते चलो,
वोट मांगते चलो
ए भैया जरा वोट देना...
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मन अकारण खुश हो तो
व्यक्तित्व में निखार आता है..
प्रसन्नता आत्मविश्वास दो गुना हो जाता है
आज़ मेरे साथ ऐसा ही है.,,,.
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भगजोगनी
अमावस की रात
धुप्प अंधेरी
हाथ को हाथ नहीं दिखता
वैसे में
एक भगजोगनी
सूरज से कम नहीं लगती....
धुप्प अंधेरी
हाथ को हाथ नहीं दिखता
वैसे में
एक भगजोगनी
सूरज से कम नहीं लगती....
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अंब लौट जाने की बारी हमारी है....
न बढ़ाउंगी अब कोई कदम
न ही होंगी अब तुम्हारी यादें
बस अब पीछे हटने की बारी हमारी है..
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इतवार
छह व्यस्त दिन गुजारने के बाद
आ ही गया इतवार
सोचा, खूब आराम करूंगा,
पूरे दिन सो जाऊंगा
करूंगा, खुद को रेजुविनेट !!
पर नींद या ख्वाब कभी आते हैं बुलाने पर?
भटक रहा हूँ,,,
Mukesh Kumar Sinha
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वक्त देखो ये कैसा आया...
तैयारी के साथ, घुमने चले,
कुत्ते को भी गाड़ी में बिठाया।
फिर कुत्ते को एक केला दिया,
छिलका सड़क पर गिराया।
केले का छिलका देखकर,
भूखा बालक दौड़के आया,
भूख मिटाई खाकर छिलका...
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किताबों की दुनिया
सावन को जरा खुल के बरसने की दुआ दो
हर फूल को गुलशन में महकने की दुआ दो
मन मार के बैठे हैं जो सहमे हुए डर से
उन सारे परिंदों को चहकने की दुआ दो...
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उड़ता रहेगा जीवन…
मेरे घर के गलियारे में
बिजली की डोर से लटकता
प्यारा-सा घोंसला बनाया है
सुन्दर-सी चिड़िया ने।
मैं देखता हूँ उसे…
जाने किस अचूक निशाने से
वह उड़ती आती है तीव्र गति से
और नीड़ के छोटे-से द्वार में
जाकर दुबक जाती है… !
मैं निरंतर देखता हूँ
उसका श्रम, उसकी स्फूर्ति और
उसकी सम्मोहक उड़ान…
आनन्द वर्धन ओझा
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बदलते पैमाने
द कर सब शब्द उससे गुजर गए,
कुछ दिल को भेद कुछः ऊपर से निकल गए।
अलग-अलग करना अब मुश्किल है,
जिंदगी जहर बन गया...
अंतर्नाद की थाप पर Kaushal Lal
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"तख्ती और स्लेट"
सिसक-सिसक कर स्लेट जी रही,
तख्ती ने दम तोड़ दिया है।
सुन्दर लेख-सुलेख नहीं है,
कलम टाट का छोड़ दिया है।।
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मुक्तक
उनके ऐलान पे वो ईद मानाने निकले ।
सजा ए रेप को वो दिल से भुलाने निकले ।।
वो दरिंदो के देवता का असर रखते हैं ।।
हादसे होंगे नहीं !अब वो ज़माने निकले ....
तीखी कलम से पर
Naveen Mani Tripathi
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अनाडी बन के आता है
अनाडी बन के आता है,
खिलाड़ी बन के जाता है
लगे जो दाग दामन में,
उन्हें सब से छुपाता है...
काव्यान्जलि पर
धीरेन्द्र सिंह भदौरिया
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अबुल कलाम आजाद आज होते
‘‘आज अगर एक फरिश्ता आसमान की बदलियों से उतर आए और कुतुब मीनार पर खड़े होकर यह ऐलान कर दे कि स्वराज 24 घण्टे के अन्दर मिल सकता है, बशर्ते यह कि हिन्दू मुसलमान इत्तेहाद से दस्तबरदार हो जाएँ तो मैं स्वराज से दस्तबरदार हो जाऊँगा मगर आपसी इत्तेहाद से दस्तबरदार न होऊँगा क्योंकि स्वराज मिलने में ताखीर (देर) हुई तो यह हिन्दोस्तान का नुकसान होगा लेकिन अगर हमारा इत्तेहाद जाता रहा तो यह आलमे इंसानियत का नुकसान होगा।’’...
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शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंसुंदर सूत्र संयोजन |
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात...सुंदर सूत्र संयोजन
चर्चा में मुझे स्थान देने के लिये आप का आभार...
सुंदर सूत्र बढ़िया चर्चा । 'उलूक' का सूत्र 'बक दिया बहुत चुनाव अब करवा दिया जाये नहीं तो कोई कह देगा भाड़ में जाओ बाय बाय' शामिल किया आभार ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया शास्त्री जी मेरी पोस्ट यहाँ तक पहुँचाने के लिए।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति हेतु धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंअरे वाह ! इतने पठनीय सूत्रों में मेरी सोच को भी स्थान दिया .... आभार आपका !
जवाब देंहटाएंसुंदर सूत्रों से सजी चर्चा। कुछ देखे कुछ देखते हैं।
जवाब देंहटाएंकविता को चर्चा में रखने के लिए आपका आभार, शास्त्रीजी !
जवाब देंहटाएंAap ke kaam ki jitni tareef ki jaay kam...Post refer karne ke liye tahe dil se shukriya..
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