रविवारीय चर्चा में आप सभी का स्वागत
और
आज की चर्चा को प्रारम्भ करता हूँ
लेख़न के हर काल में महिलाओं की भागीदारी बहुत अहम् रही है।
अगर आज के दौर में ये देखें, तो पुरुषों की तुलना में कहीं अधिक ही होगी।
आज जो भी अभिव्यक्ति प्रस्तुत करूँगा, शायद
इस से आप सभी को भी अंदाज़ा हो जाए, और साथ में एक प्रश्न भी मन में
उत्पन्न हो कि जब महिला इतनी जागरूक हो गई हैं, फिर आज भी इनपे
इतना ज़ुल्म क्यों ?
प्रस्तुत है कुछ अनमोल अभिव्यक्तियाँ
(पूरी अभिव्यक्ति पढ़ने हेतु, कृपया रचनाकारों के नाम पे क्लिक करें या तस्वीर पे)
(पूरी अभिव्यक्ति पढ़ने हेतु, कृपया रचनाकारों के नाम पे क्लिक करें या तस्वीर पे)
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देखकर सपने छलावों से भरे बाज़ार में
लुट रही जनता दलालों से भरे बाज़ार में
देखकर सपने छलावों से भरे बाज़ार में
लुट रही जनता दलालों से भरे बाज़ार में
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देखा है कभी
किसी दरख़्त को
जीवन का रस खो
ठूँठ में बदलते हुए
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प्रिय आओ हम तुम मिल जुल कर
जीवन वैतरणी पार करें,
तट दूर नहीं, नैया भटकी
कुछ तुम खे लो कुछ मैं खे लूँ
जीवन वैतरणी पार करें,
तट दूर नहीं, नैया भटकी
कुछ तुम खे लो कुछ मैं खे लूँ
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नीम के पत्ते
यहाँ
दिन-रात गिरकर,
चैत के आने का हैं
आह्वान करते
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मर्यादा के वृत्त में खड़ा कर औरत
सदियों से जिंदगी को जबरन ढोती
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अनगिनत बार तोड़ना चाहा
टूट भी गये
जर्जर हो गये
फिर से लौ जली
मद्धम
टूट भी गये
जर्जर हो गये
फिर से लौ जली
मद्धम
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नई सुबह के नए सपने
उग आते है सूरज के साथ
दिन भर देकर अपनी खुशबू
फिर झड जाते शाम के साथ
उग आते है सूरज के साथ
दिन भर देकर अपनी खुशबू
फिर झड जाते शाम के साथ
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मौन की पीड़ा व्याकुल करती
अब वापस कर दो मेरे गीत
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मेरे सपनों की एक अलग दुनियाँ है
मेरी दुनियाँ है तो मैं खुश हूँ
उस दुनियाँ में ढ़ेरों खुशियाँ हैं
मेरे सपनों की एक अलग दुनियाँ है
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हक़ रखेंगे एक दुसरे पर, प्रेम से रहेंगे साथ
खुशियों में होंगे पास,दुःख दर्द भी बाँटेंगे साथ
चलो करते हैं ये नई शुरुआत
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हूँ एक ऐसा अभागा
दुनिया ने ठुकराया जिसे
वे भी अपने न हुए
विश्वास था जिन पर कभी
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लगाए झड़ी
रिमझिम सावन
अँखियाँ बूढ़ी
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जब नारी ने जन्म लिया था !
अभिशाप ने उसको घेरा था !!
अभिशाप ने उसको घेरा था !!
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मन कोयला बन जल राख हुई
धूआं उठा जब इस दिल से
तेरा ही नाम लिखा फिर भी
हवा ने , बड़े जतन से
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अब कुछ अभिव्यक्ति गद्य में
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शक्ति पीठ रहस्य
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विरोधाभासी निर्णय :ये न्याय नहीं
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ये जुबां की बदमाशी है..दिल तो..
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हाय!! ये मेरी चुहिया जैसी पूंछ..
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झांसे में दुष्कर्म !
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और चर्चा की समापन अपनी इस अभिव्यक्ति से करता हूँ
हे नारी ! तुझे सलाम
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नारी तेरे रूप अनेक
बेटी, माँ और बीवी, तू ही,
लक्ष्मी तू और दुर्गा, तू ही ।
संघर्षों की मूरत तू ही ।।
फिर क्यूँ कहते सब हैं,
कि औरत तेरी क्या हस्ती है ?
सबको संभालती है तू ही,
सबपे प्यार लुटाती तू ।
हार मान जाये सब, पर-
हार नहीं मानती है तू ।।
जन्म से लेकर मृत्यु तक,
कष्ट-अपमान भी सहती तू ।
फिर भी जीवन से-
निराश ना कभी होती तू ।।
हे औरत ! तू देवी है ।
''अभी'' करता प्रणाम तुझे,
कभी कोई गलती हुयी तो,-
क्षमा करना मुझे-क्षमा करना मुझे ।।
अभिषेक कुमार ''अभी''
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विशेष :
आज विशेष चर्चा में सभी चर्चाकारों को भी पढ़िए
आदरणीय ''श्री रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी''
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आदरणीय ''श्री रविकर जी''
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आदरणीय ''श्री राजीव कुमार झा जी''
रंग और हमारी मानसिकता
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आदरणीय ''श्री राजेन्द्र कुमार जी''
धूम्रपान की लत
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आदरणीय ''श्री दिलबाग विर्क जी''
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आदरणीय ''श्री अभिलेख द्विवेदी जी''
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वाह !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा । एक नये कलेवर में । बहुत खूब अभिषेक ।
हटाएंहौसला अफ़ज़ाई के लिए हार्दिक आभारी हूँ।
लेख़न में महिलाओं की भागीदारी को केन्द्रित कर बहुत ही सुन्दर और सार्थक चर्चा, बहुत बहुत आभार अभिषेक जी।
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हटाएंहौसला अफ़ज़ाई के लिए हार्दिक आभारी हूँ।
बहुत सुंदर चर्चा ! अभी जी,नए रूप,रंग के साथ. आभार.
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हटाएंहौसला अफ़ज़ाई के लिए हार्दिक आभारी हूँ।
सुंदर संकलनीय सूत्रों से सुसज्जित शानदार मंच ! मुझे भी इस मंच पर स्थान दिया आपका बहुत-बहुत आभार अभिषेक जी ! धन्यवाद !
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हटाएंहौसला अफ़ज़ाई के लिए हार्दिक आभारी हूँ।
बहुत सुंदर लिंक्स...मेरी रचना को मंच देने के लिये आपका आभार अभिषेक जी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लिंक्स...मेरी रचना को मंच देने के लिये आपका आभार अभिषेक जी।
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हटाएंहौसला अफ़ज़ाई के लिए हार्दिक आभारी हूँ।
बहुत सुंदर लिंक्स...मेरी रचना को मंच देने के लिये आपका आभार अभिषेक जी।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति है सरजी !नारी विशेषांक कहना इस अंक को समीचीन रहेगा। स्तुत्य प्रयास स्तरीय रचनाएँ परोसने का।
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हटाएंहौसला अफ़ज़ाई के लिए हार्दिक आभारी हूँ।
पाना-वाना कुछ नहीं, फिर भी करें प्रचार |
जवाब देंहटाएंताना-बाना टूटता, जनता करे पुकार |
जनता करे पुकार, गरीबी उन्हें मिटाये |
राजनीति की मार, बगावत को उकसाए |
आये थे जो आप, मिला था एक बहाना |
किन्तु भगोड़ा भाग, नहीं अब माथ खपाना ||
साही की शह-मात से, है'रानी में भेड़ |
खों खों खों भालू करे, दे गीदड़ भी छेड़ |
दे गीदड़ भी छेड़, ताकती ती'जी ताकत |
हाथी बन्दर ऊंट, करे हरबार हिमाकत |
अब निरीह मिमियान, नहीं इस बार कराही |
की काँटों से प्यार, सवारी देखे साही ||
बढ़िया व्यंग्य चित्र चुनाव पूर्व झलकियों के .
रंग बोले तो वेवलेंग्थ। तारों के रंग लाल ,हरा ,नीला- स्वेत क्रमश : बढ़ते तापमान को दर्शाते हैं। लाल ठंडा नीला गर्म बहुत ज्ञान वर्धक लेख रंगों की माया पर ,रंग चिकित्सा पर।
जवाब देंहटाएंआदरणीय ''श्री राजीव कुमार झा जी''
रंग और हमारी मानसिकता
नई सजधज चर्चा मंच की |मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |
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हटाएंहौसला अफ़ज़ाई के लिए हार्दिक आभारी हूँ।
बहुत सुन्दर और उपयोगी लिंकों के साथ रोचक चर्चा।
जवाब देंहटाएंआदरणीय अभिषेक कुमार अभी जी
आपका बहुत-बहुत आभार।
हटाएंहौसला अफ़ज़ाई के लिए हार्दिक आभारी हूँ।
बढ़िया चर्चा व सूत्र , अभिषेक भाई व मंच को धन्यवाद !
जवाब देंहटाएं॥ जय श्री हरि: ॥
sundar links abhishek bhayi .. naari vishay par banaye gaye is post par badhiya rachnaye padhne ko mili ..inke madhya meri rachna ko sthan dekar mujhe samman dene ke liye haardik aabhar :)
जवाब देंहटाएंबड़े ही पठनीय सूत्र।
जवाब देंहटाएंक्षमाप्राथी हूं...कल उपस्थित नहीं हो पाई....आपका बहुत शुक्रिया ...इतने अच्छे लिंक्स और मेरी रचना शामिल करने के लिए...
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