आज के इस चर्चा मंच पर मैं राजेन्द्र कुमार हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ।इस अनमोल वचन पर विचार करते हुए आगे चर्चा की तरफ बढ़ते हैं।
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वीरेन्द्र कुमार शर्मा जी की प्रस्तुति
महाकाल के हाथ पर गुल होते हैं पेड़ ,
सुषमा तीनों लोक की कुल होते हैं पेड़।
पेड़ पांडवों पर हुआ जब जब अत्याचार ,
ढांप लिए वटवृक्ष ने तब तब दृग के द्वार।
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पल्लवी त्रिवेदी जी की प्रस्तुति
हिन्दुस्तान में घरवालों की मर्ज़ी के विरुद्ध किये गए प्रेम विवाह के लिए लड़के लड़की आवागमन के लिए बैलगाड़ी से लेकर हवाई जहाज तक किसी भी साधन का प्रयोग कर लें , वो हमेशा भागते ही हैं ! भागे बिना प्रेम विवाह का कोई मोल नहीं ... दो कौड़ी का है वो प्रेम विवाह जिसमे लड़का ,लड़की भागें ना और भागते भागते घर वालों , रिश्तेदारों , दूर के रिश्तेदारों और बिरादरी की नाकें काटकर अपनी जेबों में न भर ले जाएँ
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डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी की प्रस्तुति
कल-कल, छल-छल करती गंगा,
मस्त चाल से बहती है।
श्वाँसों की सरगम की धारा,
यही कहानी कहती है।।
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कल्पना रामानी जी की प्रस्तुति
गर्भ में ही काटकर, अपनी सुता की नाल माँ!
दुग्ध-भीगा शुभ्र आँचल, मत करो यूँ लाल माँ!
तुम दया, ममता की देवी, तुम दुआ संतान की,
जन्म दो जननी! न बनना, ढोंगियों की ढाल माँ!
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मुकेश कुमार सिन्हा जी की प्रस्तुति
कभी सुना
आवाजें मर गई ?
आवाज सन्नाटे को चीरतीं है
बहते मौन हवाओं के बीच
हमिंग बर्ड की तरह..
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यशोदा अग्रवाल जी की प्रस्तुति
सखि बसंत आ गया
सबके मन भा गया
धरती पर छा गया
सुषमा बिखरा गया
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केवल राम जी की प्रस्तुति
ब्लॉग एक ऐसा शब्द जो web-log के मेल से बना है. जो अमरीका में सन 1997 के दौरान इन्टरनेट पर प्रचलित हुआ. तब से लेकर आज तक यह शब्द मात्र शब्द ही बनकर नहीं रहा है, बल्कि ब्लॉग जैसे माध्यम से अनेक व्यक्तियों ने सृजन के क्षेत्र में कई नए आयाम स्थापित किये हैं. ब्लॉग की अपनी अवधारणा है और इससे जुड़े लोगों ने इसे प्रचलित करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. ब्लॉग तकनीक और सृजन का ऐसा ताना-बाना है जिसने दुनिया में वैचारिक क्रांति का सूत्रपात किया.
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श्याम कोरी 'उदय' जी की प्रस्तुति
वोट ही … अंतिम विकल्प है
चोट ही …
अंतिम विकल्प है
उठो, जागो … पहलवानो
अंध में, अंधकार में …
आज पूरा … हमारा तंत्र है ?
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प्रभात रंजन जी की प्रस्तुति
मुझे ऐसी कवितायेँ प्रभावित करती हैं जो सफलता-असफलता के भाव से मुक्त कुछ नए ढंग से कहने की कोशिश करती हैं. अंकिता आनंद की कविताओं ने इसी कारण मुझे आकर्षित किया. आप भी पढ़िए …
अधपका
अभी से कैसे परोस दें?
सीझा भी नहीं है।
पर तुम भी तो ढीठ हो,
चढ़ने से पकने तक,
सब रंग देखना होता है तुमको।
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राजीव कुमार झा जी की प्रस्तुति
मनुष्य जाति की उत्पति के दो आदिम स्रोत हैं – आदम और हौवा.यही किसी देश में शिव और शक्ति के रूप में,किसी देश में पृथ्वी और आसमान के नाम से,ज्यूस तथा हेरा तथा कहीं यांग और यिन जैसे विभिन्न प्रतीकों से जाने जाते हैं.भिन्न-भिन्न नामों एवं प्रतीकों के बावजूद मानव जाति की उत्पति की मूल कल्पना एक है.
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विकेश वडोला जी की प्रस्तुति
पन्द्रह बीस साल पहले विद्यालय की कक्षाओं में एक निबन्ध लिखने को दिया जाता था--विज्ञान वरदान भी है और अभिशाप भी। उस समय बच्चों के पास इस विषय पर लिखने के लिए काल्पनिक सामग्री, तथ्य ही ज्यादा थे। बच्चे तो इस समय भी इस पर कुछ खास नहीं लिख पाएंगे। असल में यह विषय वयस्कों के लिए चिन्हित होना चाहिए कि वे इस पर केन्द्रित होकर केवल लिखें ही नहीं बल्कि गम्भीर चिन्तन भी करें।
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सरोज जी की प्रस्तुति
काल वृक्ष की डाल पर
लटके चमगादड़ों को
दुनिया कभी .....
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अनुलता जी की प्रस्तुति
रख कर हाथ
नीले चाँद के सीने पर
हमने खायीं थीं जो कसमें
वो झूठी थीं |
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सुशील कुमार जोशी जी की प्रस्तुति
आज उसकी भी
घर वापसी हो गई
उधर वो उस घर से
निकल कर आ
गया था गली में
इधर ये भी
निकल पड़ा था
बीच गली में
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पवन विजय जी की प्रस्तुति
कच्ची उमर की बात भुलाना मुश्किल है आसान नही,
संगी साथी जज्बात भुलाना मुश्किल है आसान नही।
जाने कितने चेहरे मुझसे मिलते और बिछड़ते है,
पर इक उस पगली को भूलना मुश्किल है आसान नही।
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"अद्यतन चर्चा"
भेडि़ए की रामनामी चादर
"अद्यतन चर्चा"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
--भेडि़ए की रामनामी चादर
विशेष :
अमरीका जैसे मुल्क अपने किसानों को
भारी राज्य सहायता ही मुहैया नहीं करवाते हैं ,
उपभोक्ता को फ़ार्म से सीधे सीधे
खादय सामिग्री खरीदने के लिए भी प्रेरित करते हैं
ऐसा हमने अपने अमरीका के
आवधिक प्रवास के दौरान अक्सर देखा है।
चाँद-चाँदनी (7 हाइकु)
तप करता
श्मशान में रात को
अघोरी चाँद...
बोतल में तो नहीं लौटेंगे किताबी जिन्न
आपका ब्लॉग पर
Virendra Kumar Sharma
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जिंदगी से प्यार
तुम जिंदगी से क्यों हार मान गए गये
ऐसे तो न थे तुम,
जिंदगी को जीने वाले थे तुम
सबको हँसना सिखाते थे तुम
और आज खुद ही रो दिए...
आज कोई मौन गाया-
*प्रस्तरों से गीत फूटा *
*ह्रदय में नव बौर आया *
*मंजरी रस-स्निग्ध होई *
*कुञ्ज में एक दौर आया....
पैनी धार
ग़ज़ल - तंग तनहाई के...
*तंग तनहाई के , बैठा था , क़ैदखाने से II*
*आ गई तू कि ये जाँ बच गई है जाने से...
"जग का आचार्य बनाना है"
पिछले साल इसे श्रीमती अर्चना चावजी को भेजा था। उसके बाद मैं इसे ब्लॉग पर लगाना भूल गया। |
इसको बहुत मन से समवेत स्वरों में
मेरी मुँहबोली भतीजियों
श्रीमती अर्चना चावजी और उनकी छोटी बहिन
रचना बजाज ने गाया है।
आप भी इस गीत का आनन्द लीजिए!
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तन, मन, धन से हमको, भारत माँ का कर्ज चुकाना है।
फिर से अपने भारत को, जग का आचार्य बनाना है।।
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देह मेरी , हल्दी तुम्हारे नाम की ।
हथेली मेरी , मेहंदी तुम्हारे नाम की...
शब्द-शिखर पर Akanksha Yadav
बहुत मेहनत से सजी आज की सुंदर शुक्रवारीय चर्चा में 'उलूक' के सूत्र 'घर घर की कहाँनी से मतलब रखना छोड़ काम का बम बना और फोड़' को शामिल करने पर आभार राजेंद्र जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा ! राजेंद्र जी. मेरे पोस्ट को शामिल करने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंमेरे पोस्ट को शामिल करने पर आभार राजेंद्र जी ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया सुन्दर प्रस्तुति व बेहतरीन लिंक्स भी , राजेन्द्र भाई व मंच को धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
बहुत उम्दा लेख!
जवाब देंहटाएं---------------------------
जानिए - ब्लॉग साइडबार की 5 प्रमुख ग़लतियाँ
मेरी ग़ज़ल ''*तंग तनहाई के , बैठा था , क़ैदखाने से II* को सम्मिलित करने हेतु धन्यवाद ! मयंक जी !
जवाब देंहटाएंNice links ......
जवाब देंहटाएंhttp://hindikavitamanch.blogspot.in/
http://rishabhpoem.blogspot.in/
बढ़िया चर्चा प्रस्तुति ..... आभार!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा....हमारी रचना को स्थान देने का शुक्रिया राजेन्द्र जी.
जवाब देंहटाएंसादर
अनु
सुन्दर संकलन...
जवाब देंहटाएंसुन्दर और वयवस्थित चर्चा।
जवाब देंहटाएं--
भाई राजेन्द्र कुमार जी आपका आभार।
बहुरंगी सूत्र लिए आज की चर्चा |मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद सर |
जवाब देंहटाएंबढ़िया सुन्दर।
जवाब देंहटाएंबहुत विविधता से परिचय हुआ। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा....
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंatisundar ... jay ho ...
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