मित्रोंं।
अपने सभी मुसलमान भाइयों को
पाक रमज़ान की शुभकामनाएँ देते हुए
जून मास की अन्तिम चर्चा में
आपका स्वागत करता हूँ।
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सात समंदर पार, चली रविकर अधमाई-
लाज लूटने की सजा, फाँसी कारावास |
देश लूटने पर मगर, दंड नहीं कुछ ख़ास...
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आ कर लें हम तुम प्यार
है प्रेम सृजन संसार,
आ कर लें हम तुम प्यार।
ना इन्सानी बाजार,
आ कर लें हम तुम प्यार...
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भारतीय प्रतिभाएं और सरकारों की विदेशी गुलामी
भारतवर्ष में प्रतिभाओं का अनमोल खजाना भरा पड़ा है !
इंद्रप्रस्थ इंजीनियरिंग कॉलेज के तीन छात्र अभेन्द्र, सौरभ और अभिषेक ने
अपने कॉलेज के सामने के नाले से निकलने वाली मीथेन गैस पर गैस-प्लांट लगा दिया !
इस कॉलेज के सामने चाय बेचने वाले चार-पांच गरीब दुकानदारों को प्रतिमाह एलपीजी की जगह मीथेन इस्तेमाल करने के कारण उनका एक हज़ार रुपया बच रहा है ! अब ४००० की जगह ५००० की मासिक आमदनी हो गयी है उनकी ! मिटटी में खेलते अपने बच्चों को भी स्कूल में दाखिला दिला दिया !
काश हमारी सरकारें भी इन छोटी छोटी बचत पर ध्यान दें तो एलपीजी इतनी महँगी न करने पड़े ! गरीबों की आमदनी भी बढे और हमारी भारतीय प्रतिभाएं भी विदेशों को पलायन न करें !
स्वदेशी अपनाओ ! विदेशी कंपनियों की गुलामी को नकारो !
Zeal (Divya)
इस कॉलेज के सामने चाय बेचने वाले चार-पांच गरीब दुकानदारों को प्रतिमाह एलपीजी की जगह मीथेन इस्तेमाल करने के कारण उनका एक हज़ार रुपया बच रहा है ! अब ४००० की जगह ५००० की मासिक आमदनी हो गयी है उनकी ! मिटटी में खेलते अपने बच्चों को भी स्कूल में दाखिला दिला दिया !
काश हमारी सरकारें भी इन छोटी छोटी बचत पर ध्यान दें तो एलपीजी इतनी महँगी न करने पड़े ! गरीबों की आमदनी भी बढे और हमारी भारतीय प्रतिभाएं भी विदेशों को पलायन न करें !
स्वदेशी अपनाओ ! विदेशी कंपनियों की गुलामी को नकारो !
Zeal (Divya)
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छोटी सी बात .....
फिर एक नए दिन का इंतज़ार
कि सुबह सूरज अलसाया सा उठे
ओढ़कर बादलों की चादर....
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निकले पंछी कलरव करते
कि पशुओं से भी छूट गए खूंटे
खुश हो थोड़ा घूमें बाहर.........
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ठंडी सी बयार आए
लेकर के संदेसा बूंदों का.
भीनी सी महक मन ले हर ......
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यादों का पुलिंदा सर पर बोझ सा
अश्रु संग बह जाए अकेले में
तू अपनों को जब चाहे याद कर ....
मेरे मन की पर Archana
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काम की बात
काम करने वाला ही कह पाता है
पहली तारीख को वेतन की तरह
दिमागी शब्दकोश भी
जैसे कहीं से भर दिया जाता है
महीने के अंतिम दिनो तक आते आते
शब्दों का राशन होना शुरु हो जाता है
दिन भर पकता है बहुत कुछ...
उलूक टाइम्स पर सुशील कुमार जोशी
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अब बता रहा हूं पर बात पुरानी है.
आप चाहें तो मेरी इस अज्ञानता पर हंस भी सकते हैं.
दरअसल, मैं जमूरे और जम्हूरियत को
समानार्थी शब्द समझता था.
अच्छा हुआ मेरी ...
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क्या है दिल में उन के हम पहचान लेते हैं।
आँखों में कुछ, दिल में कुछ, ज़ुबां पे कुछ
इतनी शिद्दत से मेरी तो वह जान लेते हैं...
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दर्पण नहीं
स्वयं को देख रही हूँ
तुम्हारी आँखों से !
नई-सी लग रही हूँ ,
ऐसे देखा नहीं था कभी अपने आप को...
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