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शनिवार, जून 07, 2014

"लेखक बेचारा क्या करे?" (चर्चा मंच-1636)

मित्रों!
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
आज देखिए मेरी पसंद के कुछ लिंक।

(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

ये एक गरम दिन था 

ये एक गरम दिन था
जिसमें सूरज ने उड़ेल दिया
अपना सम्पूर्ण प्रेम
और धरा
उस प्रेम में तप कर
निर्वाक जलाती रही खुद को
आँख मीचे...
सु..मन(Suman Kapoor) 
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पुकार... 

लम्बे होते हैं घंटे दोपहर के 
नवतपा में जलती धरा लू के थपेड़ों संग 
मृत- जीवन आओ बादलों बरसो रिमझिम 
बचा लो तृण तनिक 
अब सूरज ले विश्राम 
मिले आराम...
मेरे मन की पर Archana 
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कुछ कहने के लिये 

बस कुछ कह लेना है  

जो होना है वो तो होना है 
होगा ही होने देना है 
किसी से कहने से कुछ होगा 
किसे इस पर कुछ पता होना है 
उनकी यादों की यादों को सोने ही देना ...
उलूक टाइम्स पर सुशील कुमार जोशी
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"कुछ प्यार की बातें करें" 


ज़िन्दगी के खेल में, कुछ प्यार की बातें करें।
प्यार का मौसम हैआओ प्यार की बातें करें।।
स्वच्छ ही भाते
तरु नीर समीर
न छेड़ो उसे
रुष्ट जब हो जाते
प्रलय मचा देते... 
ऋता शेखर 'मधु'
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देख माँ

सुनहरा अहसास
निवेदिता दिनकर
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गंगा-गीत 

सुनो हे माँ मेरे उर की तान 
क्यों मुँह फेरी गैर नहीं हूँ , तेरी हूँ संतान,
सुनो हे..... 
दुखिता बनकर जीती आई 
पतिता बनकर शरण में आई 
मुझ पर कर एहसान,
सुनो हे...... 
--

मुझे अमरत्व की चाह है 

सेठ बने है, जब फ़िक्र में थे तो लामलेट हो रहें थे |
जिसके भाग्य में लिखा वो बेफिकर होकर झेले...
हमें तो इन्तजार है उस सूरज का ,
जो चमके मेरे प्रताप से ......
--

लेखक बेचारा क्या करे? 

पिछले वर्ष मैंने
 में एक लेखक की ज़िम्मेदारी और 
उसकी मानसिक हलचल को 
समझने का प्रयास किया था। 
उस पोस्ट पर आई टिप्पणियों से जानकारी में वृद्धि हुई। 
पिछले दिनों इसी विषय पर 
कुछ और बातें ध्यान में आयी, 
सो चर्चा को आगे बढ़ाता हूँ।
--

वह संवेदनशील, पराये अपने जाने- 

"लिंक-लिक्खाड़"
दासी सा बर्ताव भी, नहीं दिलाता ताव |
किन्तु उपेक्षा से मिलें, असहनीय से घाव...
"लिंक-लिक्खाड़" पर रविकर
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दोहे [वीर रस ] 

उठो देश के सपूतो, भारत रहा पुकार । 
भारत पर तुम मर मिटो ,हो जाओ तैयार ॥ 
आन बान पर देश की ,लाखों हुये शहीद । 
सीमा पर उत्सव मने ,क्या होली क्या ईद ॥
Ocean of Bliss पर Rekha Joshi
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झील 

नगुना रही थी झील 
एक बंदिश राग भैरवी की 
कि पानी में झलक रहा था अक्स 
उसके ललाट की बिंदी का...
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कैसे मुस्काऊँ सज़ना के भर आएं अँखियाँ 

आपका ब्लॉग पर निभा चौधरी
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अमीर यु हीं अमीर नहीं होता 

आपका ब्लॉग पर subodh 
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तुम्हारा स्वागत है  

vandana gupta
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♥कुछ शब्‍द♥ पर निभा चौधरी 

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"निम्बौरी अब आयीं है नीम पर" 

पहले छाया बौर, निम्बौरी अब आयीं है नीम पर।
शाखाओं पर गुच्छे बनकर, अब छायीं हैं नीम पर।।

मेरे पुश्तैनी आँगन में खड़ा हुआ ये पेड़ पुराना,
शीतल छाया देने वाला, लगता हमको बहुत सुहाना,
झूला डाल बालकों ने भी पेंग बढ़ाई नीम पर...

10 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर प्रस्तुति-
    बढ़िया लिंक्स-
    आभार स्वीकारें -
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. pyaar bharaa aabhaar swikaar karen !! bahut sundar vicharon wale lekhak mitron se milwaya aapne dhanywaad !!

    जवाब देंहटाएं
  3. आदरणीय सर आपका संकलन बेहतरीन होता है .एक से बढ़कर एक रचना सब है .धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  4. धन्यवाद मित्रों , आभार हम अब ज्यादा सक्रियता से आपके साथ अपने कार्य साझा करेंगे |

    जवाब देंहटाएं
  5. बहोत बहोत धन्यवाद इतने सारे बेहतरीन रचनाओं के बीच हमारी रचना साझा करेने के लिए

    जवाब देंहटाएं
  6. Thanks Dr Shastri for puting my composition amidst so many great Poets. http://niveditadinkar.blogspot.in/

    जवाब देंहटाएं
  7. सुन्दर प्रस्तुति, बढ़िया कड़ियाँ, आभार!

    जवाब देंहटाएं
  8. पिछ्ले दस अंक छूट गये यात्रा में होने के कारण । सुंदर चर्चा सुंदर सूत्रों के साथ बहुत दिनों के बाद देखने को मिल रही है । आभारी हूँ 'उलूक' के सूत्र 'कुछ कहने के लिये बस कुछ कह लेना है' को स्थान देने के लिये ।

    जवाब देंहटाएं

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