अव्वल चर्चा मंच है, ब्लॉगिंग का आधार |
पाठक बारह सौ हुवे, बढे नित्य परिवार |
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उत्तम सत्य सटीक, लेख कविता मनभाये |
कह रविकर कविराय, समर्थक इसके सम्बल |
करता जनहित कार्य, तभी चर्चा में अव्वल ||
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तुम्हारे नाम ~
घाटी की ओ पवित्र लड़कियों
कितने गुमसुम से हैं तुम्हारी घाटी में
गुलाब के ये फूल
अमन पैगाम की भाषा भी
क्या खूब समझते हैं. ...
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"गूँथ स्वयं को रोज, बनाती माता रोटी"
रोटी सा बेला बदन, अलबेला उत्साह |
हर बेला सिकती रही, कभी न करती आह...
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मेरे ख्याल
अक्सर मेरे ख्यालों में
जब भी तुम होते हो मेरे पास
सिर्फ मुझे सुनते हो
कहते हो अपने दिल की बात
तब सारा जहाँ
सिमटा लगता है मुझे...
गुज़ारिश पर सरिता भाटिया
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इल्तिजा
मेरे मौला तेरी रहमत का शुक्रिया
कि तूने मेरे हाथों में कंदील देकर
मुझे ज़रूरतमंदों की राह के अंधेरों को
दूर करने की तौफीक अता की...
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प्रिय! यदि तुम पास होते!
अगणित आशा–पत्रों से लदा,
प्रफुल्ल कल्पतरु जीवन सदा,
पतझर भी सुवासित मधुमास होते,
प्रिय! यदि तुम पास होते...
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Digital addiction a psychiatric disorder
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फुटबाल, पिताजी, एक और पीढ़ी
४ वर्ष पहले लगभग इसी समय अपना ब्लॉग प्रारम्भ किया था और फुटबॉल के ऊपर एक आलेख लिखा भी था। भारत में भले ही फुटबॉल को क्रिकेट जैसी लोकप्रियता न मिल पायी हो, पर मेरे मन में फुटबॉल आज भी प्रथम स्थान पर अवस्थित है...
न दैन्यं न पलायनम् पर प्रवीण पाण्डेय
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"मन खुशियों से फूला"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मानसून का मौसम आया,
तन से बहे पसीना!
भरी हुई है उमस हवा में,
जिसने सुख है छीना!!..
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मातु पिता इक वैचारिक छत
जो हालात सामने जब जब खुशी खुशी मंजूर हुए
वक्त से टकराने की आदत कभी नहीं मजबूर हुए...
मनोरमा पर श्यामल सुमन
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मुस्कुराहटें छुपा देती है दिलों के राज़
बन सकते हैं अफ़साने जिन बातों से
मुस्कुराहटें रोक देती हैं , लबों पर आती बात।
बिन कही बातें कह जाती है तो कभी -कभी
बेबसी छुपा भी जाती है ये मुस्कुराहटें...
नयी उड़ान + पर Upasna Siag
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याद गुज़री.......
सरसराती ,फन उठाती
बिन बुलाये ,
अनचाही
एक याद गुज़री.....
बिन बुलाये ,
अनचाही
एक याद गुज़री.....
expression
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किसने कहा तुमसे? कि मैं रोती हूँ
अब मैं नहीं रोती
मेरे भीतर बरसों से जमी संवेदनाएँ
पिघल रही हैं...
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हार्ड डिस्क से डेटा रिकवरी करें
और डिलीट फ़ाइलें दुबारा पायें
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सुप्रभात
जवाब देंहटाएंउम्दा लिंक्स |
सुप्रभात मित्रों।
जवाब देंहटाएंइतनी सुन्दर चर्चा करने के लिए रविकर जी आपका आभार।
बहुत ही सुन्दर चर्चा .. सुन्दर लिंक्स .. बहुत धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंसार्थक एवं पठनीय सूत्रों का उम्दा संकलन ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिये धन्यवाद एवं आभार आपका !
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति व लिंक्स , रविकर सर , शास्त्री जी व मंच को धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंI.A.S.I.H - ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
आभार आशीष भाई
हटाएंबाराह सौ हो गये
जवाब देंहटाएंहों अब बाराह हजार
चर्चा मंच करे तरक्की
चर्चा हो सात समुंदर पार
'उलूक' को जगह देने
के लिये दिल से आभार :)
चर्चा तो सात समुंदर पार हो रही है आदरणीय।
हटाएंजी, आभार
हटाएंPYAAR EK AISI CHEEZ HAI ISKO JITNA BADHAYENGE UTNA YE GAHRA HO JAATAA HAI !! MAIN AAPKE PYAAR MAIN DABAA JAA RAHA HOON !! BADI GYANWAN CHARCHA HAI RAVIKAR JI !!
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार!
बढियाँ सूत्र संकलन
जवाब देंहटाएंvery nice links .best link award goes to kajal kumar kartoon .thanks .
जवाब देंहटाएंसहमत-
हटाएंबहुत ही सुन्दर और व्यवस्थित चर्चा, आभार आदरणीय।
जवाब देंहटाएंबड़े ही सुन्दर और पठनीय सूत्र।
जवाब देंहटाएंकह रविकर कविराय, बात करता नहिं छोटी |
जवाब देंहटाएंगूँथ स्वयं को रोज, बनाती माता रोटी |वाह रविकर भाई क्या बात है।
आज खटीमा से लखनऊ की ओर निकल रहा हूँ-
हटाएंसादर
बहुत सुन्दर बात कही है :
जवाब देंहटाएंनंगे हैं अपने हमाम में, नागर हों या बनचारी,
कपड़े ढकते ऐब सभी के, चाहे नर हों या नारी,
पोल-ढोल की खुल जाती तो, आता साफ नज़र चेहरा।
बिन परखे क्या पता चलेगा, किसमें कितना खोट भरा।।
फुटबाल, पिताजी, एक और पीढ़ी
जवाब देंहटाएं४ वर्ष पहले लगभग इसी समय अपना ब्लॉग प्रारम्भ किया था और फुटबॉल के ऊपर एक आलेख लिखा भी था। भारत में भले ही फुटबॉल को क्रिकेट जैसी लोकप्रियता न मिल पायी हो, पर मेरे मन में फुटबॉल आज भी प्रथम स्थान पर अवस्थित है...
न दैन्यं न पलायनम् पर प्रवीण पाण्डेय
अतीत के झरोखे से खेल को देखना उसमें होना ही है।
सुन्दर रचना :
जवाब देंहटाएंमनभावन बंदिश :
मानसून का मौसम आया,
तन से बहे पसीना!
भरी हुई है उमस हवा में,
जिसने सुख है छीना!!
कुल्फी बहुत सुहाती हमको,
भाती है ठण्डाई!
दूध गरम ना अच्छा लगता,
शीतल सुखद मलाई!!
पंखा झलकर हाथ थके जब,
हमने झूला झूला!
ठण्डी-ठण्डी हवा लगी तब,
मन खुशियों से फूला!!
रेत में पत्थर
जवाब देंहटाएंपानी में हवा
जंगल में आदमी
या आदमीं में जँगल
सब गडमगड
सबके अंदर
बढ़िया है प्रस्तुति।
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भ्रम कहूँ या कनफ्यूजन
जो अच्छा लगे वो मान लो
पर है और बहुत है
उलूक टाइम्स
सुशील कुमार जोशी उलूक टाइम्स