मित्रों।
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसंद के कुछ लिंक।
आखिर क्यों
कभी मन के भीतर
कभी मन के बाहर
आखिर क्यों दहक उठते हैं अंगारे
गुज़रे वक़्त के पीपों में ...
जो मेरा मन कहे पर Yashwant Yash
कभी मन के भीतर
कभी मन के बाहर
आखिर क्यों दहक उठते हैं अंगारे
गुज़रे वक़्त के पीपों में ...
जो मेरा मन कहे पर Yashwant Yash
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रोटी मिली पसीने की
इक हिसाब है मेरी जिन्दगी सालों साल महीने की
लेकिन वे दिन याद सभी जब रोटी मिली पसीने की ...
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लोक उक्ति में कविता
कल्पना पब्लिकेशन, जयपुर ने मेरे पहले लघु कविता संग्रह ‘*लोक उक्ति में कविता*’ को प्रकाशित कर मेरे भावों को शब्दों में पिरोया है, इसके लिए आभार स्वरूप मेरे पास शब्दों की कमी है; लेकिन भाव जरूर है। भूमिका के रूप में श्रद्धेय डॉ. शास्त्री ‘मयंक’ जी के आशीर्वचनों के लिए मैं नत मस्तक हूँ। इस लघु कविता संग्रह के माध्यम से शैक्षणिक संस्थाओं के विद्यार्थियों के साथ ही जन-जन तक लोकोक्तियों का मर्म सरल और सहज रूप में पहुंचे, ऐसा मेरा प्रयास रहा है। इस अवसर पर मैं अपने सभी सम्मानीय ब्लोग्गर्स और पाठकजनों का भी हृदय से आभार मानती हूँ...
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विज्ञापनों के लिए भी बनाया जाए
सेंसर बोर्ड !
विज्ञापनों की विश्वसनीयता का भी कोई क़ानून सम्मत वैज्ञानिक प्रमाण होना चाहिए. मेरे विचार से केन्द्र सरकार को फिल्म सेंसर बोर्ड की तरह विज्ञापन सेंसर बोर्ड भी बनाना चाहिए .उपभोक्ता वस्तुओं के प्र्काशित और प्रसारित होने वाले विज्ञापनों में सेंसर बोर्ड का प्रमाणपत्र भी जनता को दिखाया जाना चाहिए ताकि फूहड़ और अश्लील विज्ञापनों को समाज में प्रदूषण फैलाने से रोका जा सके ...
Swarajya karun
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“गर्मी से तन-मन अकुलाता”
बहता तन से बहुत पसीना,
जिसने सारा सुख है छीना,
गर्मी से तन-मन अकुलाता।
नभ में घन का पता न पाता...
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंपितृ दिवस पर आज हम दौनों की और से प्रणाम |मेरी रचना शामिल करने के लिए
उम्दा सूत्र संयोजन के लिए आभार |
पितृ दिवस पर सभी आत्मीय स्वजनों, मित्रों व प्रबुद्ध पाठकों को हार्दिक शुभकामनायें ! आज के चर्चामंच में हमेशा की तरह पठनीय सूत्रों का संकलन ! मेरी प्रस्तुति को सम्मिलित करने के लिये धन्यवाद एवं आभार !
जवाब देंहटाएंsundar
जवाब देंहटाएंपितृ दिवस पर शुभकामनाऐं । सुंदर चर्चा । नये चर्चाकार श्री नवीन जी का स्वागत है । 'उलूक' के सूत्र 'एंटी करप्शन पर अब पढ़ाई लिखाई भी होने जा रही है' को जगह देने के लिये आभार ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति व लिंक्स , धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंI.A.S.I.H - ब्लॉग ( हिंदी में प्रकार की जानकारियाँ )
बहुत बहुत धन्यवाद सर!
जवाब देंहटाएंसादर
बढियाँ प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंNICE COLLECTION...
जवाब देंहटाएंsundar charcha ..badiya prastuti ...
जवाब देंहटाएंसार्थक संयोजन. मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार
Sunder sootron se saji charcha.
जवाब देंहटाएंSir,bahut achchhe linkon ke sath badhiya charcha.....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे लिंक्स कुछ तक हम जल्द पहुँचते है |
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा बढ़िया लिंक शुक्रिया हमें पचाने खपाने आज़माने का।
जवाब देंहटाएंदादुर जल बिन बहुत उदासा,
जवाब देंहटाएंचिल्लाता है चातक प्यासा,
थक कर चूर हुआ उद्गाता।
नभ में घन का पता न पाता।४।
बढ़िया परिवेश प्रधान रचना।
“गर्मी से तन-मन अकुलाता”
बहता तन से बहुत पसीना,
जिसने सारा सुख है छीना,
गर्मी से तन-मन अकुलाता।
नभ में घन का पता न पाता...
उच्चारण
जवाब देंहटाएंशोध भी होवे करप्शन अपने भागों को रोवे।
एंटी करप्शन पर
अब पढ़ाई लिखाई भी होने जा रही है
उलूक टाइम्स
उलूक टाइम्स पर सुशील कुमार जोशी
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इंटरनेट के प्रॉब्लम के चलते देर से आने के लिए खेद है
जवाब देंहटाएंचर्चा में मेरी पोस्ट शामिल करने हेतु बहुत-बहुत आभार!