आइस क्रीम से ज़्यादा ठंडी,कचौरियों से ज़्यादा गर्म यादें!
Prabodh Kumar Govil
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आपका ब्लॉग पर
Virendra Kumar Sharma
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माँ तुझे सलाम ! (16)
क्या स्मृतियों में सजी बसी माँ को
ऐसे ही कवि कविता में ढाल कर प्रस्तुत कर देता है।
ये ही स्मृति शेष कही जाती हैं।
आज इस विषय में क्या कहा जाय स्वयं
*संजीव वर्मा "सलिल "

फोटोफीचर "कैसे लू से बदन बचाएँ?"
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मधु सिंह : नियति व्यंग से

ब्रिटेन की धरती से -2
(दिनकर जी के चरणों में समर्पित)
कूक रही है नियति
व्यंग से जीवन के ...
madhu singh की पोस्ट देखें
मधु सिंह : नियति व्यंग से

ब्रिटेन की धरती से -2
(दिनकर जी के चरणों में समर्पित)
कूक रही है नियति
व्यंग से जीवन के ...
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बहुत सुन्दर चर्चा।
ReplyDeleteआदरणीय रविकर जी आपका आभार।
बढ़िया प्रस्तुति व लिंक्स , मेरे पोस्ट को स्थान देने हेतु आदरणीय शास्त्री जी , रविकर सर व मंच को धन्यवाद !
ReplyDeleteI.A.S.I.H - ब्लॉग ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
बढ़िया लिंक्स आज |
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिंक संयोजन ……आभार
ReplyDeletevividhtapoorn
ReplyDeleteसुन्दर संयोजन के लिए किये गए परिश्रम के लिए और मेरी पोस्टों को स्थान देने के लिए धन्यवाद !
ReplyDeleteसुंदर चर्चा में मेरी रचना को स्थान दिया
ReplyDeleteआभार।
सुन्दर चर्चा लाये रविकर ,कई दिनों में आये रविकर।
ReplyDeleteसुन्दर सहज अभिव्यक्ति बनारस और बेंगलुरु तुलना हो भी नहीं सकती एक परम्परा से गुम्फित है तो दूसरा भारतीय सिलिकॉन वेळी है। यहां गंगा है वहां एक पूरी झील ही गुम हो चुकी है आदमी की तरह। बढ़िया विचार मंथन।
ReplyDeleteदो माह के बनारसी
प्रवीण पाण्डेय
न दैन्यं न पलायनम्
बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति……… आभार !
ReplyDeleteअपनों की ही चर्चा
ReplyDeleteसुन्दर पठनीय सूत्र
ReplyDeleteशानदार संयोजन रविकर जी
मुझे सम्मलित करने का आभार ---
सादर---