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बुधवार, जून 04, 2014

"आ तुझको मैं अपनी कूची में उतार लूँ " (चर्चा मंच 1633)

मौत !

रेखा श्रीवास्तव 

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Virendra Kumar Sharma
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माँ तुझे सलाम ! (16) 

क्या स्मृतियों में सजी बसी माँ को 
ऐसे ही कवि कविता में ढाल कर प्रस्तुत कर देता है। 
ये ही स्मृति शेष कही जाती हैं। 
आज इस विषय में क्या कहा जाय स्वयं 
*संजीव वर्मा "सलिल "
मेरा सरोकार पर रेखा श्रीवास्तव
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फोटोफीचर "कैसे लू से बदन बचाएँ?" 
चलतीं कितनी गर्म हवाएँ। 
कैसे लू से बदन बचाएँ?
नीबू-पानी को अपनाओ।
लौकी, परबल-खीरा खाओ।।
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चित्र प्रदर्शित नहीं किया गया
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मधु सिंह : नियति व्यंग से 
चित्र प्रदर्शित नहीं किया गया
ब्रिटेन की धरती से -2    
(दिनकर जी के चरणों में समर्पित)
कूक   रही   है  नियति
व्यंग  से   जीवन    के ... 

madhu singh की पोस्ट देखें

12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर चर्चा।
    आदरणीय रविकर जी आपका आभार।

    जवाब देंहटाएं
  2. बढ़िया प्रस्तुति व लिंक्स , मेरे पोस्ट को स्थान देने हेतु आदरणीय शास्त्री जी , रविकर सर व मंच को धन्यवाद !
    I.A.S.I.H - ब्लॉग ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर लिंक संयोजन ……आभार

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्दर संयोजन के लिए किये गए परिश्रम के लिए और मेरी पोस्टों को स्थान देने के लिए धन्यवाद !

    जवाब देंहटाएं
  5. सुंदर चर्चा में मेरी रचना को स्थान दिया
    आभार।

    जवाब देंहटाएं
  6. सुन्दर चर्चा लाये रविकर ,कई दिनों में आये रविकर।

    जवाब देंहटाएं
  7. सुन्दर सहज अभिव्यक्ति बनारस और बेंगलुरु तुलना हो भी नहीं सकती एक परम्परा से गुम्फित है तो दूसरा भारतीय सिलिकॉन वेळी है। यहां गंगा है वहां एक पूरी झील ही गुम हो चुकी है आदमी की तरह। बढ़िया विचार मंथन।

    दो माह के बनारसी
    प्रवीण पाण्डेय
    न दैन्यं न पलायनम्

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति……… आभार !

    जवाब देंहटाएं
  9. सुन्दर पठनीय सूत्र
    शानदार संयोजन रविकर जी
    मुझे सम्मलित करने का आभार ---

    सादर---

    जवाब देंहटाएं

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