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सोमवार, जून 30, 2014

"सबसे बड़ी गुत्थी है इंसानी दिमाग " (चर्चा मंच 1660)

मित्रोंं।
अपने सभी मुसलमान भाइयों को 
पाक रमज़ान की शुभकामनाएँ देते हुए 
जून मास की अन्तिम चर्चा में 
आपका स्वागत करता हूँ।
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जश्न  

(कहानी) 

सादर ब्लॉगस्ते! पर संगीता तोमर 
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सात समंदर पार, चली रविकर अधमाई- 

लाज लूटने की सजा, फाँसी कारावास |
देश लूटने पर मगर,  दंड नहीं कुछ ख़ास...
रविकर की कुण्डलियाँ
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आ कर लें हम तुम प्यार 

है प्रेम सृजन संसार, 
आ कर लें हम तुम प्यार। 
ना इन्सानी बाजार, 
आ कर लें हम तुम प्यार...
मनोरमा पर श्यामल सुमन 
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भारतीय प्रतिभाएं और सरकारों की विदेशी गुलामी 

भारतवर्ष में प्रतिभाओं का अनमोल खजाना भरा पड़ा है ! 
इंद्रप्रस्थ इंजीनियरिंग कॉलेज के तीन छात्र अभेन्द्र, सौरभ और अभिषेक ने 
अपने कॉलेज के सामने के नाले से निकलने वाली मीथेन गैस पर गैस-प्लांट लगा दिया ! 
इस कॉलेज के सामने चाय बेचने वाले चार-पांच गरीब दुकानदारों को प्रतिमाह एलपीजी की जगह मीथेन इस्तेमाल करने के कारण उनका एक हज़ार रुपया बच रहा है ! अब ४००० की जगह ५००० की मासिक आमदनी हो गयी है उनकी ! मिटटी में खेलते अपने बच्चों को भी स्कूल में दाखिला दिला दिया ! 
काश हमारी सरकारें भी इन छोटी छोटी बचत पर ध्यान दें तो एलपीजी इतनी महँगी न करने पड़े ! गरीबों की आमदनी भी बढे और हमारी भारतीय प्रतिभाएं भी विदेशों को पलायन न करें ! 
स्वदेशी अपनाओ ! विदेशी कंपनियों की गुलामी को नकारो ! 
Zeal (Divya)
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छोटी सी बात ..... 

फिर एक नए दिन का इंतज़ार
कि सुबह सूरज अलसाया सा उठे
ओढ़कर बादलों की चादर....
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निकले पंछी कलरव करते
कि पशुओं से भी छूट गए खूंटे
खुश हो थोड़ा घूमें बाहर.........
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ठंडी सी बयार आए
लेकर के संदेसा बूंदों का.
भीनी सी महक मन ले हर ......
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यादों का पुलिंदा सर पर बोझ सा 
अश्रु संग बह जाए अकेले में 
तू अपनों को जब चाहे याद कर ....
मेरे मन की पर Archana
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रंग - ( तांका ) 

बनी जोगनधार 

केसरी बाना 
तजा संसार   
मीरा विरक्त हुई 
हुए रंग असार !
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काम की बात 

काम करने वाला ही कह पाता है 

पहली तारीख को वेतन की तरह 
दिमागी शब्दकोश भी 
जैसे कहीं से भर दिया जाता है 
महीने के अंतिम दिनो तक आते आते 
शब्दों का राशन होना शुरु हो जाता है 
दिन भर पकता है बहुत कुछ...
उलूक टाइम्स पर सुशील कुमार जोशी
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अब बता रहा हूं पर बात पुरानी है. 
आप चाहें तो मेरी इस अज्ञानता पर हंस भी सकते हैं. 
दरअसल, मैं जमूरे और जम्हूरियत को 
समानार्थी शब्द समझता था.  
अच्छा हुआ मेरी ... 
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क्या है दिल में उन के हम पहचान लेते हैं। 
आँखों में कुछ, दिल में कुछ, ज़ुबां पे कुछ 
इतनी शिद्दत से मेरी तो वह जान लेते हैं...
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दर्पण नहीं 
स्वयं को देख रही हूँ 
तुम्हारी आँखों से ! 
नई-सी लग रही हूँ , 
ऐसे देखा नहीं था कभी अपने आप को...
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7 टिप्‍पणियां:

  1. हमेशा की तरह सुबह की गरम चाय की प्याली चर्चा । 'उलूक' के सूत्र 'काम की बात काम करने वाला ही कह पाता है' को भी मिली है जगह । आभार ।

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  2. बहुत सुंदर व सार्थक सूत्र ! मेरी प्रस्तुति को भी स्थान दिया आपका बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार !

    जवाब देंहटाएं
  3. बढ़िया प्रस्तुति , सूत्र संकलन बेहतर आ. शास्त्री जी व मंच को धन्यवाद !
    I.A.S.I.H - ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )

    जवाब देंहटाएं
  4. धन्यवाद ! मयंक जी ! मेरे 'मुक्तक : लाखों मातम में भी... ' को स्थान देने हेतु .......

    जवाब देंहटाएं
  5. लम्बी अवक्धिके बाद अभिवादन !
    आज बहुत दिनों के बाद चर्चा-मँच से ज८उद कर अच्छा लग रहा है ! अच्छे विषय चर्चा पर प्रस्तुत हैं !

    जवाब देंहटाएं
  6. चुने हुए लिंक्स हेतु आभार - मुझे सम्मिलित किया कृतज्ञ हूँ !

    जवाब देंहटाएं

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