फ़ॉलोअर



यह ब्लॉग खोजें

सोमवार, जून 09, 2014

"यह किसका प्रेम है बोलो" (चर्चा मंच-1638)

मित्रों!
प्रस्तुत है सोमवार की चर्चा के लिए कुछ लिंक।
--
--

हिन्दू-मुस्लिम भेद - 

समझ समझ का फेर 

''खुदा किसी का राम किसी का ,
बाँट न इनको पाले में।
तू मस्जिद में पूजा कर ,
मैं सिज़दा करूँ शिवाले में।
जिस धारा में प्यार-मुहब्बत ,
वह धारा ही गंगा है।
और अन्यथा क्या अंतर ,
वह यहाँ गिरी या नाले मे। ''
! कौशल !पर Shalini Kaushik 
--

थी उसकी रंजिशें तो हमने यार छोड़ दिया 

गरज भी उसकी मगर हमने प्यार छोड़ दिया | 
गज़ब की थीं नसीहतें जो तनहा कर गयीं, 
जिसे था छोड़ा उसने.......ऐतबार छोड़ दिया...
Harash Mahajan
--
--

बैठे ठाले - 12 

वर्तमान समय में हमारे देश, समाज अथवा प्रशासन/सरकार में केवल वही लोग ईमानदार रह गए हैं जिनको बेईमानी का मौक़ा नहीं पाया है. जब पैसा ही ईमान हो जाये तो कहाँ धर्म? कहाँ रिश्ते नाते? कहाँ देश-प्रेम? सब पोथी के बैगन होकर रह गए हैं...
जालेपर पुरुषोत्तम पाण्डेय
--
--

मिनी की पहचान 

बाबुल का आँगन 
फिर एक बार याद करा गया वो बचपन , 
हवाओं मे महकता दुलार लाड़ और प्यार , 
करा गया एहसास कि 
मैं वहीँ सबकी लाड़ली छोटी अल्हड सी मिनी 
जो फुदकती ,कूदती अटखेलियां करती 
नाचती थी आँगन आँगन...
Loveपर Rewa tibrewal 
--

बात सुनो पछुआ पवन 

बात सुनो पछुआ पवन
बात सुनो पछुआ पवन
अर्जन के उत्सव में रहने दो शेष तनिक
रिश्तों की स्नेहिल छुवन
बात सुनो पछुआ पवन...
....आचार्य रामपलट दास 
PAWAN VIJAY
--

ऊबड़ खाबड़ में 

सपाट हो जाता है सब कुछ

कई सालों से कोई मिलने आता रहे 
हमेशा बिना नागा किये निश्चित समय पर 
एक सपाट चेहरे के साथ 
दो ठहरी हुई आँखे 
जैसे खो गई हों कहीं .... 
--
उलूक टाइम्स पर सुशील कुमार जोशी 
--

उलझे ख्यालों की दुनिया 

रोज़ भटकता हूँ उलझे ख्यालों की अ
नकही अजीब सी दुनिया में 
जिसके एक तरफ घनी हरियाली है 
और दूसरी तरफ वीरान बंजर...
Yashwant Yash
--

"भजन-सिमट रही है पारी" 

चार दिनों का ही मेला है, सारी दुनियादारी।
लेकिन नहीं जानता कोई, कब आयेगी बारी।।
अमर समझता है अपने को, दुनिया का हर प्राणी,
छल-फरेब के बोल, बोलती रहती सबकी वाणी,
बिना मुहूरत निकल जायेगी इक दिन प्राणसवारी।
लेकिन नहीं जानता कोई, कब आयेगी बारी।।
--
--
--

ये कैसा घर है ? ...  

कौन रहता है यहाँ ? 

रातरानी की सुगंधों से 
यह महरूम है गौरैया भी यहाँ नहीं रहती 
हवाएं आकर यहाँ लौट जाती है 
गंभीर दिखने की कोशिश में 
मनहूस से कुछ लोग दिखते हैं 
यहाँ यहाँ बच्चे तो हैं पर 
उनके दादी -दादा नहीं दिखते...
Shabd Setuपर 
RAJIV CHATURVEDI
--
--
--
--
--

शिक्षा एवं लोकतंत्र 

लोकतंत्र बहाल रहे इसके लिए ज़रूरी है समाज में हर तरह की विचारधारा को स्थान मिले! और विभिन्न विचार सुरक्षित रहे समाज में इसके लिए हर तरह के स्वर उठने चाहिए , उनका दमन नहीं किया जाना चाहिए...
--

माँ  

[कुण्डलिनी] 

माँ में तीरथ हैं सभी माँ में हैं सब धाम 
जीवन तुम संवार लो करो नेक कुछ काम...
गुज़ारिशपर सरिता भाटिया 
--
--

आओ जुड़ें ब्लॉगसेतु से- 

Blogsetu
Randhir Singh Suman 
आदरणीय Randhir Singh Suman के विशेष अनुरोध पर 
यह पोस्ट चर्चा मंच पर ली गयी है...
--

11 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छा संकलन सूत्रों का
    |
    आशा

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर चर्चा-
    आभार आदरणीय-

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर चर्चा । उलूक का आभार उसके सूत्र 'ऊबड़ खाबड़ में सपाट हो जाता है सब कुछ' और 'लट्टू को घूमना होता है यहाँ होता है या वहाँ होता है' को आज की चर्चा में लाने के लिये ।

    जवाब देंहटाएं
  4. शास्त्री जी,

    पोस्ट को शामिल करने के लिए आभार

    जवाब देंहटाएं
  5. हर हर महादेव ! , बढ़िया लिंक्स व प्रस्तुति , पोस्ट को सम्मान देने हेतु आ. शास्त्री जी व मंच को सद: धन्यवाद !
    I.A.S.I.H - ब्लॉग ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )

    जवाब देंहटाएं
  6. मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार ........

    जवाब देंहटाएं
  7. सार्थक सूत्रों से परिचय हुआ। मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभार !

    जवाब देंहटाएं
  8. धन्यवाद ! मयंक जी ! मेरी रचना ''यह भरोसा मुझको आख़िरकार ... ''को स्थान देने हेतु.........

    जवाब देंहटाएं
  9. सुन्दर सूत्र संकलन में खुबसूरत चर्चा अचछा लगा

    जवाब देंहटाएं

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।