मित्रों!
प्रस्तुत है सोमवार की चर्चा के लिए कुछ लिंक।
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हिन्दू-मुस्लिम भेद -
समझ समझ का फेर
''खुदा किसी का राम किसी का ,
बाँट न इनको पाले में।
तू मस्जिद में पूजा कर ,
मैं सिज़दा करूँ शिवाले में।
जिस धारा में प्यार-मुहब्बत ,
वह धारा ही गंगा है।
और अन्यथा क्या अंतर ,
वह यहाँ गिरी या नाले मे। ''
बाँट न इनको पाले में।
तू मस्जिद में पूजा कर ,
मैं सिज़दा करूँ शिवाले में।
जिस धारा में प्यार-मुहब्बत ,
वह धारा ही गंगा है।
और अन्यथा क्या अंतर ,
वह यहाँ गिरी या नाले मे। ''
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थी उसकी रंजिशें तो हमने यार छोड़ दिया
गरज भी उसकी मगर हमने प्यार छोड़ दिया |
गज़ब की थीं नसीहतें जो तनहा कर गयीं,
जिसे था छोड़ा उसने.......ऐतबार छोड़ दिया...
Harash Mahajan
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बैठे ठाले - 12
वर्तमान समय में हमारे देश, समाज अथवा प्रशासन/सरकार में केवल वही लोग ईमानदार रह गए हैं जिनको बेईमानी का मौक़ा नहीं पाया है. जब पैसा ही ईमान हो जाये तो कहाँ धर्म? कहाँ रिश्ते नाते? कहाँ देश-प्रेम? सब पोथी के बैगन होकर रह गए हैं...
जालेपर पुरुषोत्तम पाण्डेय
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मिनी की पहचान
बाबुल का आँगन
फिर एक बार याद करा गया वो बचपन ,
हवाओं मे महकता दुलार लाड़ और प्यार ,
करा गया एहसास कि
मैं वहीँ सबकी लाड़ली छोटी अल्हड सी मिनी
जो फुदकती ,कूदती अटखेलियां करती
नाचती थी आँगन आँगन...
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बात सुनो पछुआ पवन
बात सुनो पछुआ पवन
बात सुनो पछुआ पवन
अर्जन के उत्सव में रहने दो शेष तनिक
रिश्तों की स्नेहिल छुवन
बात सुनो पछुआ पवन...
बात सुनो पछुआ पवन
अर्जन के उत्सव में रहने दो शेष तनिक
रिश्तों की स्नेहिल छुवन
बात सुनो पछुआ पवन...
....आचार्य रामपलट दास
PAWAN VIJAY
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ऊबड़ खाबड़ में
सपाट हो जाता है सब कुछ
कई सालों से कोई मिलने आता रहे
हमेशा बिना नागा किये निश्चित समय पर
एक सपाट चेहरे के साथ
दो ठहरी हुई आँखे
जैसे खो गई हों कहीं ....
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उलझे ख्यालों की दुनिया
रोज़ भटकता हूँ उलझे ख्यालों की अ
नकही अजीब सी दुनिया में
जिसके एक तरफ घनी हरियाली है
और दूसरी तरफ वीरान बंजर...
Yashwant Yash
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"भजन-सिमट रही है पारी"
चार दिनों का ही मेला है, सारी दुनियादारी।
लेकिन नहीं जानता कोई, कब आयेगी बारी।।
अमर समझता है अपने को, दुनिया का हर प्राणी,
छल-फरेब के बोल, बोलती रहती सबकी वाणी,
बिना मुहूरत निकल जायेगी इक दिन प्राणसवारी।
लेकिन नहीं जानता कोई, कब आयेगी बारी।।
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ये कैसा घर है ? ...
कौन रहता है यहाँ ?
रातरानी की सुगंधों से
यह महरूम है गौरैया भी यहाँ नहीं रहती
हवाएं आकर यहाँ लौट जाती है
गंभीर दिखने की कोशिश में
मनहूस से कुछ लोग दिखते हैं
यहाँ यहाँ बच्चे तो हैं पर
उनके दादी -दादा नहीं दिखते...
RAJIV CHATURVEDI
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शिक्षा एवं लोकतंत्र
लोकतंत्र बहाल रहे इसके लिए ज़रूरी है समाज में हर तरह की विचारधारा को स्थान मिले! और विभिन्न विचार सुरक्षित रहे समाज में इसके लिए हर तरह के स्वर उठने चाहिए , उनका दमन नहीं किया जाना चाहिए...
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आओ जुड़ें ब्लॉगसेतु से-
Randhir Singh Suman
आदरणीय Randhir Singh Suman के विशेष अनुरोध पर
यह पोस्ट चर्चा मंच पर ली गयी है...
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सुंदर चर्चासूत्र।
जवाब देंहटाएंअच्छा संकलन सूत्रों का
जवाब देंहटाएं|
आशा
सुन्दर चर्चा-
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय-
बहुत सुंदर चर्चा । उलूक का आभार उसके सूत्र 'ऊबड़ खाबड़ में सपाट हो जाता है सब कुछ' और 'लट्टू को घूमना होता है यहाँ होता है या वहाँ होता है' को आज की चर्चा में लाने के लिये ।
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी,
जवाब देंहटाएंपोस्ट को शामिल करने के लिए आभार
हर हर महादेव ! , बढ़िया लिंक्स व प्रस्तुति , पोस्ट को सम्मान देने हेतु आ. शास्त्री जी व मंच को सद: धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंI.A.S.I.H - ब्लॉग ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
सार्थक चर्चा ... नए सूत्र ....
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार ........
जवाब देंहटाएंसार्थक सूत्रों से परिचय हुआ। मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ! मयंक जी ! मेरी रचना ''यह भरोसा मुझको आख़िरकार ... ''को स्थान देने हेतु.........
जवाब देंहटाएंसुन्दर सूत्र संकलन में खुबसूरत चर्चा अचछा लगा
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