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रविवार, जून 29, 2014

''अभिव्यक्ति आप की'' ''बातें मेरे मन की'' (चर्चा मंच 1659)

रविवारीय ''चर्चा मंच 1659'' में आप सभी का हार्दिक स्वागत।
आज की चर्चा मेरे द्वारा सभी चर्चाओं से कुछ विशेष है, आप सभी का ध्यान चाहूंगा। 
''अभिव्यक्ति आप की'' ''बातें मेरे मन की''
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आदरणीया रश्मि शर्मा जी की सोच प्रेम के ऊपर, उनके मन के व्यवहारिकता का परिचायक के रूप में उल्लेखित है। पर अगर हम यहाँ 'भरमाते हो' पर ग़ौर करें, तो फिर ये साश्वत प्रेम नहीं कहला सकता है। पूरी कविता एक बेहतरीन रूप से रश्मि जी ने सजाया है, कुछ पंक्तियाँ यहाँ उल्लेखित कर रहा हूँ :
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आदरणीया वंदना गुप्ता जी द्वारा रचित ये मुक्त काव्य उन सभी बातों का लब्बेलुआब है, जब हम शून्य से सफ़र प्रारम्भ करते हैं और शून्य पे ही आकर सिमट जाते हैं। 
लेकिन ज़िन्दगी ख़ुद के लिए जीने का नाम नहीं, हम जो कुछ भी यहाँ अपने चाहने वालों और इस दुनिया के लिए करते हैं, वही हमारे अस्तित्व को हमेशा ज़िंदा रखती हैं।
वंदना जी की इस कविता में उनकी उस मनोस्थिति को दर्शाती है, जिनमें इंसान करता तो बहुत कुछ है पर उसके हाथ कुछ नहीं लगता :
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आदरणीया ज़ील जी ''जैसा की उन्होंने अपने परिचय में ही इस बात का उल्लेख कर दिया है ''एन आयरन लेडी'' ठीक उसी के अनुरूप ही उनकी ये अभिव्यक्ति है। सत्य लिखा है ''निर्मम समाज''
पर क्या बिना समाज के हम सबका अस्तित्व है ? शायद नहीं, कदापि नहीं !
जो कुछ भी लेख में वर्णित है, उससे पूरी तरह इत्तेफ़ाक़ रखता हूँ, पर कहीं न कहीं आज पुरुष के साथ साथ उन पर हो रहे अत्याचार के लिए महिला भी दोषी है। 
जहाँ तक लेख का सवाल है, तो बेहद उत्कृष्ट विषय पे एक बेहतरीन लेख :
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आदरणीया आशा सक्सेना जी ने जो देखा, जो घटित हुआ, उसे अपने खूबसूरत शैली के हिसाब से काव्य में पिरो के सामने रखा है। वास्तविकता से परिपूर्ण इसकी हरेक पंक्ति में सत्यता वर्णित है। 
इस कविता को पढ़कर २००१-२००२ कॉलेज के दिनों में नुक्कड़ नाटक किया था ''दोषी कौन'' इसमें संवाद बेहद सटीक था जिसे खूब सराहा गया, कौन है दोषी ?
शासन ! नहीं नहीं 
प्रशासन ! नहीं नहीं 
जनता ! नहीं नहीं 
आखिर सब नहीं नहीं तो फिर ये कुशासन क्यों ?
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काव्य क्या है ? 
मेरे हिसाब से ''शब्दों का सटीक चयन, काम शब्दों में सागरगर्भित अर्थ, और इसी को परिभाषित किया है अपने इस उत्कृष्ट अभिव्यक्ति में आदरणीय प्रवीण पाण्डेय जी ने। 
इस रचना के संदर्भ में ज्यादा कुछ कहने के लिए कोई गुंजाईश नहीं छोड़ी है, प्रवीण जी ने, बहुत बहुत बधाई आपको इस उत्कृष्ट कृति हेतु :
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ॐ शांति ओम शांति 
आदरणीया भारती दास जी ने बेहद मार्मिकता अभिव्यक्ति प्रस्तुत की है। साथ ही उनके कोमल हृदय से जो उत्कृष्ट प्रार्थना निकली है, इस काव्य को बेहद ऊँचे मुक़ाम पे पहुँचा रही है। शब्दों के चयन से ले कर, लय और प्रस्तुतीकरण तक सब बेहतरीन व उत्कृष्ट हैं :
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वाह ! आदरणीय ओंकार जी की इस कविता को पढ़कर यक़ीनन आप सब भी वाह्ह्ह कह उठेंगे। क्या सहजता/कोमलता/निर्मला से कविता को सजाया है और उत्कृष्ट अंदाज़ से समापन किया है। 
इस कविता के बारे में कुछ विशेष नहीं कहा जायेगा, मैंने तो एक बार पढ़ने की चेष्टा की थी और पाँच बार पढ़ा लिया इस कविता ने, आप सब को भी ये कविता बार बार उत्प्रेरित करेगी पढ़ने को। ओंकार जी हृदय के अंतःकरण से आपको बधाई :
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आदरणीय अनिल साहू जी द्वारा लिखा गया एक बेहतरीन लेख़। प्रश्न मैंने नीचे अंकित किया है, जिसका ज़वाब भी ख़ुद अनिल साहू जी के द्वारा ही पढ़िए। ठीक वही ज़वाब मिलेगा जो हर मन जनता है, पर क्या बेहतरीन तरह से इन्होंने प्रस्तुत किया है। वाह : 
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हिंदी ग़ज़ल की दुनियाँ में मेरे हिसाब से आदरणीया कल्पना रूमानी जी जैसा कोई नहीं। विषय कुछ भी क्यों न हो इनकी सोच और क़लम की लाज़वाब बयानगी अपने आप ही बेहतरीन रच डालती है। ऐसे क़लमकारा को मैं तुक्ष्य सा पाठक सिर्फ़ नतमस्तक ही हो सकता हूँ, इनकी बेहतरीन लेखनी का एक अद्भुत पेशकश :
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एक ऐसा ब्लॉग जो बेहतरीन जानकारियों से परिपूर्ण है, आशीष भाई द्वारा संचालित इस ब्लॉग को देखकर आप उनके श्रम का अंदाज़ा लगा सकते हैं। ब्लॉग की दुनियाँ में यह एक अनूठा संग्रह है। भाई आशीष जी आपको बहुत बहुत हार्दिक बधाई व अनंत अनंत शुभकामनायें :
*
और 
अब चलते चलते, मेरी एक ग़ज़ल आप सभी के समीक्षार्थ :

--अभिषेक कुमार ''अभी''
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"अद्यतन लिंक"

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

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आओ फलों के पेड़ हो जायें 

खट्टे मीठे फलों की खुश्बुओं से लद जायें 
कुछ तुम झुको थोड़ा बहुत 
कुछ हम भी झुक जायें 
अकड़ी हुई सोच पर 
कुछ चिकनाई लगायें ...
उलूक टाइम्स पर सुशील कुमार जोशी
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शरीर जरूर विकलांग है पर आत्मा नहीं 

कुछ अलग सा पर गगन शर्मा
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मानव को वरदान में, मिले बोल अनमोल 

मधुर गुंजन पर ऋता शेखर मधु
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बचाती हैं व्‍यक्तित्‍व को !!!! 

SADA
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खिड़की खुली रखोगे तो आएँगी बहारें 

मेरा फोटो
तीखी कलम से पर Naveen Mani Tripathi
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ब्लोगिंग के तीन साल, 

काव्यान्जलि पर धीरेन्द्र सिंह भदौरिया 
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लिपियाँ और कमियाँ 

Smart Indian
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कार्टून :- 

वात्‍स्‍यायन, डा.हर्षवर्धन और गंदी बात...

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"दोहे-"दोहे-आया नहीं सुराज" 

15 टिप्‍पणियां:

  1. वाकई अभिषेक आज की चर्चा कुछ अलग है । बहुत मेहनत की है आपने बधाई । 'उलूक' के सूत्र 'आओ फलों के पेड़ हो जायें ' को भी जगह मिली है जिसके लिये दिल से आभार ।

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  2. सुन्दर सुसज्जित चर्चा...मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार !!

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  3. बढ़िया खूबसूरत प्रस्तुति , अभिषेक भाई बढ़िया मेहनत की हैं आपको शास्त्री जी व मंच को धन्यवाद !
    I.A.S.I.H - ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )

    जवाब देंहटाएं
  4. चर्चा का अंदाज़-ए-बयाँ बहुत अच्छा और मनभावन लगा …………आभार

    जवाब देंहटाएं
  5. इतने सुन्दर ढंग से प्रस्तुतीकरण की आपने कि मन के हर तार झंकृत हो गए ,धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत बढ़िया रविवारीय चर्चा प्रस्तुति
    आभार!

    जवाब देंहटाएं
  7. बेहतरीन लिंक्‍स संयोजन ....
    आभार

    जवाब देंहटाएं
  8. बढ़िया चर्चा , धन्यवाद !
    ब्लॉग जगत में एक नए पोस्ट्स न्यूज़ ब्लॉग की शुरुवात हुई है , जिसमें आज आपका ये अंक चुना गया है आपकी इस रचना का लिंक I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ पर है , कृपया पधारें धन्यवाद !

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  9. बहुत सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय अभिषेक कुमार अभी जी।
    आपके श्रम को नमन।
    आभारी हूँ आपका।

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  10. बहुत अच्‍छी चर्चा लगाई है आपने....मेरी रचना शामि‍ल करने के लि‍ए आभार....

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  11. आप सभी का हार्दिक आभारी हूँ।

    जवाब देंहटाएं
  12. बहुत उम्दा चर्चा का अंदाज लगा अभिषेक जी |मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सर |

    जवाब देंहटाएं

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