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शनिवार, जून 14, 2014

"इंतज़ार का ज़ायका" (चर्चा मंच-1643)

मित्रों।
शनिवार के चर्चा मंच में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के अद्यतन लिंक।
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पितृ - दिवस 


पिता-दिवस में पिता नहीं है

हमारी उर की व्यथा यही है
कहाँ पर होंगे पता नहीं है
बरगद की छाया सी स्नेह
सदा बरसता उनका नेह... 
My Photo
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इंतज़ार का ज़ायका 

सु..मन(Suman Kapoor) 
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अच्छे दिन अपने शायद आने लगे हैं , 
बच्चे वॉट्स एप पर बतियाने लगे हैं...

अंतर्मंथन पर डॉ टी एस दराल

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मुंबई के गुलमोहर 

मेरे घर से स्कूल के रास्ते में 
खिले कुछ गुलमोहर..
Chaitanyaa Sharma
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Start Your Own You Tube Channel 

Aamir Dubai 
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जैसा बोओ वैसा काटो 

जो हलाहल बोता है वह अमृत न पीता है। 
बात और है वो हलाहल अमृत हमकोि दिखता है। 
किसे पता है किसके अन्तस् कितनी पीड़ायेँ सोयी हैँ? ...
ममता त्रिपाठी
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अंतिम पुकार 

जिन्दगी ज़ी रहीं हूँ, कैसे जिया है " अब तक " | 
लफ्जों ने बेवफाई ना की है 
पर क्या कहूँ, तेरे बिन अब तक ?? ... 
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poit पर Point
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ग़ज़ल - 

यूँ ही सा देखने में है... 

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मुरझाई नींदों का सबब .... 

पहले खुद हर रोज नींदों की तह बनाकर 
सिरहाने रख लेती हूं, 
फिर खाली आंखों से नींद तलाशती हूँ...
Pratibha Katiyar 
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चन्द माहिया 

ये हुस्न का जादू है 
सर तो सजदे में 
दिल पे कब क़ाबू है 
आँखों में उतरना है 
दिल ने टोक दिया 
कुछ और सँवरना है ...
आपका ब्लॉग पर आनन्द पाठक
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तुम्हारा स्वागत है …… 

अन्तिम भाग 

vandana gupta
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लोककथा 

बालकुंज पर सुधाकल्प
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कथा- गाथा : 

गायब होता देश : 

रणेन्द्र

समालोचन पर arun dev
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पूरा दिन ये बस आपके नाम 


आपकी समझाइशों का सच
थाम के उँगली
मेरे साथ चलता है
परखने की आदत
मुझे मिली है आपसे
विरासत में
पितृ दिवस के दिन
कुछ स्‍मृतियाँ
मेरे इर्द-गिर्द
अपना घेरा बना के
आपके साथ हैं
और साथ रहेंगी भी...
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गौण ही है 

पर यही है बताने के लिये 

आज भी 

उसकी शोध छात्रा ने 
शिकायत की है छेड़ छाड़ की 
अच्छे दिन लाने वाले लोगों को वैसे भी 
देश देखना है 
ये बातें तो छोटे लोग करते हैं 
तेरे जैसे कोई हल्ला गुल्ला 
जब नहीं है कहीं कोई एफ आई आर 
नहीं है कोई कहीं कोई सबूत ...
उलूक टाइम्स पर सुशील कुमार जोशी
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आँधी 

Sunehra Ehsaas पर 
Nivedita Dinkar
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बीत जाना होता है हमें !! 

कितना कठिन होता है
समय का बीत जाना,
और उससे कठिन होता है 
उस समय से गुजर जाना...
अन्तर्गगन पर धीरेन्द्र अस्थाना
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कार्टून :- 

नाई नाई कि‍तने बाल,  

सामने आए ही समझो 

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जब सूरज आग उगलता है,
लू ने जब तन को झुलसाया।
सड़क किनारे खड़े तपस्वी,
देते फूलों की छाया।
अमलतास के पीले झूमर,
मन को बहुत लुभाते हैं।
पीताम्बर को धारण कर,
जीवन दर्शन सिखलाते हैं...

15 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया लिंक्स मिले ...चैतन्य को शामिल करने का आभार

    जवाब देंहटाएं
  2. चर्चा सुंदर ही होती है हमेशा ही आज भी है । 'उलूक' के सूत्र 'गौण ही है पर यही है बताने के लिये
    आज भी' को स्थान मिला । आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  3. AAPKE PRYAS SAMAAJ KO NAYE AAYAAM STHAPIT KARNE MAIN AWSHY SAHAYAK SIDDH HONGE !! SUNDAR RACHNAON MAIN MERI PRASTUTI KO STHAN DENE HETU DHANYWAAD OR AABHAAR !!

    जवाब देंहटाएं
  4. आपका यह प्रयास बेहद सराहनीय है, रचनाओ का चयन और प्रस्तुति अनुपम .....
    आभार

    जवाब देंहटाएं
  5. मेरी वेदना की एहसास ,लेकर आई कुछ खास .आपकी इन बेहतरीन चर्चाओं में मैं भी हूँ शुमार ,आदरणीय सर आपको खूब आभार

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति ....आभार!

    जवाब देंहटाएं
  7. सुन्दर चर्चा, मेरे संस्मरण "लेह - लद्दाख" शामिल करने के लिए आभार.

    सादर

    कमल कुमार सिंह

    जवाब देंहटाएं
  8. धन्यवाद ! मयंक जी ! मेरी ग़ज़ल ''यूँ ही सा देखने में है... '' को स्थान प्रदान करने का..........

    जवाब देंहटाएं
  9. बढ़िया लिंक्स .........बहुत बढ़िया चर्चा

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत अच्छे लिंक्स कुछ तक हम पहुँचते है |

    जवाब देंहटाएं
  11. सुन्दर लिंक्स के लिए शुक्रिया

    जवाब देंहटाएं

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